करेले की लाभदायक खेती करने का तरीका |
करेले की खेती के
लिए उपयुक्त जलवायु :- करेले को गर्म और आद्र मौसम में उगाया जाता है | इसकी अच्छी पैदावार के लिए मौसम का तापमान 25 से
30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए | ज्यादा ठण्ड में भी करेले को कोई हानी नहीं होती
लेकिन पाला इसकी खेती के लिए हानिकारक होता है |
करेले के लिए उपयुक्त भूमि |
इसकी खेती के लिए
उपयुक्त भूमि :- करेले को किसी भी प्रकार की मिटटी में उगाया जा सकता है लेकिन
जीवांश युक्त हल्की दोमट मिटटी में इसकी खेती सफलता से की जा सकती है | दोमट मिटटी
इसके लिये सबसे अच्छी मानी जाती है क्योकि इस मिटटी में जल धारण करने की क्षमता
होती है | दोमट मिटटी के आलावा नदियों के किनारे वाली मिटटी भी इसके लिए उपयोगी
होती है | उदासीन पी. एच. मान वाली भूमि भी इसके लिए अच्छी मानी जाती है | करेले
की खेती करने से पहले खेत की जुताई मिटटी
पलटने वाले हल से करें | मिटटी पलटने के बाद 2 या 3 बार केल्टिवेटर चलायें |
( अम्लीय भूमि में
भी इसकी खेती सफलता से की जा सकती है )
करेले की जातियां :-
करेले की निम्नलिखित जातियां है :-
1. कोयम्बूर लौंग
2. पूसा 2 मौसमी
3. कल्याण पुर बारह
मासी
4. अर्का हरित
5. पूसा विशेष
6. सी 16
7. हिसार सेलेक्शन
8. पी, वी. आई. जी. 1
9. पूसा संकर 1
10. फैजाबादी बारह मासी
11. के. बी. जी. 16
12. आर. एच. बी. बी. जी. 4
बीज की मात्रा :-
करेले की 5 से 7 किलोग्राम की मात्रा को एक हेक्टयेर भूमि पर उगाया जा सकता है |
krele Ke Vibhinn kismen |
बीज को बोने की विधि
:- करेले के बीजों को बोने से एक दिन पहले पानी में भिगोकर रख देना चाहिए | ऐसा
करने से बीजो का अकुंरण अच्छा और जल्दी होता है | खेत में एक जगह 2.50 मीटर का
गड्ढा खोदकर इसमें 2- 4 बीजों को बों दें और मिटटी से अच्छी प्रकार से ढक देना
चाहिए | इसी प्रकार से सारे खेत में करेले के बीज को बो दें |
करेले को 2 प्रकार
से बोया जाता है | 1. बीज के द्वारा 2. पौधा रोपण के द्वारा |
करेले को बोने के
लिए उपयुक्त समय :- गर्मी के मौसम में इसकी खेती 15 फरवरी से 30 फरवरी तक और बारिश
के मौसम में 15 जुलाई से 30 जुलाई तक इसके बीजो को बोया जाता है |
करेले की खेती में
प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इसकी फसल
में कम्पोस्ट खाद और आर्गनिक खाद का प्रयोग करना बहुत जरूरी है | इसके लिए एक
हेक्टेयर की भूमि में लगभग 50 से 60 किवंटल सड़ी हुई गोबर की खाद और लगभग 45 से 50
किलो नीम की खली को अच्छी प्रकार से आपस में मिला दे | करेले के बीजो को बोने से
पहले गोबर और नीम की खली के इस मिश्रण को खेत में बिखेर दें | खाद डालने के बाद
खेत की जुताई करें और फिर इसमें बीजो को बोये | बीज के बोने के बाद जब हमारी फसल
को एक महिना हो जाये तो इस पर नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाकर इसमें देसी गाय के
मूत्र को मिलाकर एक घोल बनाएं | इस घोल को तैयार फसल पर छिडकें | इससे हमारी फसल
को नुकसान नहीं होता |
विशेष बात :-
इस प्रकार के घोल का छिडकाव महीने में एक
बार जरुर करें
|
बीजो को बोने से पहले खेत में कम्पोस्ट खाद
डालकर खेत को तैयार करें | खेत में बीजो को बोने से कम से कम एक महिना पहले खेतों
की नालियों में 50 किलोग्राम डी. ए. पी. और 50 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की मात्रा को
एक हेक्टेयर भूमि में मिला दें | इसके आलावा नत्रजन की 25 से 30 किलो की मात्रा और
यूरिया को एक समान मात्रा में मिलाकर खेत में बीज के बोने के एक महीने बाद
डाल दें | जब हमारी फसल में फूल और फल
लगने लगेंगे तो एक बार फिर नत्रजन और यूरिया को आपस में मिलाकर खेत में छिडकाव
करने से फसल की पैदावार अच्छी होती है |
सिंचाई :- करेले की
फसल में सिंचाई मिटटी की किस्म और मौसम पर निर्भर होती है | गर्मियों के दिनों में
इसकी फसल में 5 दिन में एक बार सिंचाई करना जरूरी है लेकिन बारिश के मौसम में
सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती | लेकिन बारिश कम होने के कारण तो इसमें सिंचाई
करनी ही पड़ती है |
खपतवार पर नियंत्रण
:- फसलो के बीच में अनचाहे छोटे – छोटे पौधे उग जाते है जिसके कारण फसलों की
वृद्धि में रूकावट आ जाती है | इसलिए खरपतवार को उखाड़ क्र नष्ट कर देना चाहिए |
कीटों का प्रभाव और
उस पर नियन्त्र्ण :-
लालड़ी नामक कीट :- इस कीट की सुंडी धरती के अंदर होती है जो
पौधे की जड़ों को कटती रहती है | इस कीट का कुप्रभाव पौधे के उपर उगे हुए फूलो और
पत्तियों पर भी पड़ता है | यह कीट पौधे की पत्तियों और फूलों को खाकर इन्हें नुकसान
देता है | जब फसल पर पत्तियां आने लगती है तो इस कीट का कुप्रभाव शुरू हो जाता है
| इससे बचने के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
:- उपाय
:-
15 लीटर देसी गाय के
मूत्र को कम से कम 45 से 50 दिन तक किसी ताम्बे के बर्तन में रख दें | इस मूत्र
में धतूरे की लगभग 5 किलो पत्ती और तने को मिलाकर उबाल लें | पकाते हुए जब इस
मूत्र की मात्रा आधी रह जाये तो इसे आंच से उताकर ठंडा होने के लिए रख दें | जब यह
मिश्रण ठंडा हो जाये तो इसे छान लें | इस प्रकार से तैयार किये हुए मिश्रण की 3
लीटर की मात्रा को किसी पम्प के द्वारा फसलों पर तर बतर करके छिडकाव करें | ऐसा
करने से फसलों को लालड़ी नामक कीट के कुप्रभाव से बचाया जा सकता है |
फलों को नुकसान देने
वाली मक्खी :- यह मक्खी ज्यादातर खरीफ की फसलों को नुकसान पंहुचाती है | यह मक्खी
फसलों के अंदर घुस जाती है और उसी में अंडे दे देती है | इन अन्डो में से कुछ
दिनों के बाद सुंडी निकल जाती है जिसके कारण फल बेकार हो जाते है | जिन्हें बाजार
में बेचा नहीं जाता | फसलो को इस बीमारी से बचाने के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार
से है |
Krele Ki Fasal Mein Hone Vale Rog Or Keeton Se Bachav |
15 लीटर देसी गाय के
मूत्र को कम से कम 45 से 50 दिन तक किसी ताम्बे के बर्तन में रख दें | इस मूत्र
में धतूरे की लगभग 5 किलो पत्ती और तने को मिलाकर उबाल लें | पकाते हुए जब इस
मूत्र की मात्रा आधी रह जाये तो इसे आंच से उताकर ठंडा होने के लिए रख दें | जब यह
मिश्रण ठंडा हो जाये तो इसे छान लें | इस प्रकार से तैयार किये हुए मिश्रण की 3
लीटर की मात्रा को किसी पम्प के द्वारा फसलों पर तर बतर करके छिडकाव करें | इस प्रकार
से तैयार किये हुए मिश्रण के छिडकाव करने से फलों को हानी से बचा सकते है |
रोकथाम का उपाय :-
सफेद ग्रब नामक कीट से बचने के लिए खेत की मिटटी में नीम के खाद का प्रयोग करना
चाहिए | इसके प्रयोग करने से यह कीट भूमि के अंदर ही मर जाता है और साथ ही साथ
दुसरे कीट भी फसल को नुकसान नहीं देते |
चूर्णी फफूंदी :- चूर्णी फफूंदी :- इस फफूंदी के कुप्रभाव से पौधे की वृद्धि रुक जाती है और
साथ ही साथ पौधा सुख जाता है | यह फफूंदी पौधे की तनों और पत्तियों पर एक सफेद रंग
का जाल सा बना देती है जिसका आकार धीरे – धीरे बढ़ने लगता है | यह जाल गोलाकार अथवा
दरदरा होता है और इसका रंग गहरा लाल ( कथई ) होता है | लेकिन बाद में जब यह पूरा
प्रभावित हो जाता है तो इन पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है | पौधे में यह रोग
ऐरीसईफी सिकोरेसियेरम नामक फफूंदी से फैलता है | पौधे को इस रोग से बचाने के लिए
हमे निम्नलिखित उपचार करना चहिए | दिनों तक किसी तांबे से बने हुए बर्तन में रख दें | जब यह मूत्र सड़ जाये तो इसमें 5 किलो धतूरे के पौधे की पत्तियाँ और तने को आंच पर उबालकर पका लें | पकते – पकते जब इसकी मात्रा आधी रह जाये तो इसे आंच से उतारकर ठण्डा होने के लिए रख दें | ठण्डा होने के बाद इसे छान लें | इस मिश्रण की लगभग 2 से 3 लीटर की मात्रा को किसी पम्प के द्वारा पौधो पर छिडकाव करने से यह रोग दूर हो जाता है |
रोग रहित करेला |
एंथ्रेकनोज :- यह एक प्रकार का स्पिसिज है जिसका नाम कोलेटोट्राईकम है | इसके कारण पौधे की पत्तियों और फलों पर लाल और काले रंग के धब्बे पड़ जाते है जो बाद में आपस में मिलाकर बड़े हो जाते है | पौधे में यह रोग बीजो के कारण होता है | इसका एक ही उपाय है जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
:- उपाय :-
बीजों को बोने से पहले इन्हें उपचारित करना चाहिए | इसे गाय के मूत्र , कैरोसिन या नीम के तेल से उपचारित करके प्रयोग करना चहिये |
फसल के तैयार होने पर इसकी तुड़ाई :- आमतौर पर बीज बोने के लगभग 75 से 90 दिनों के अंदर फसल तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है | करेले की फसल को हर 3 दिन के अंतर पर तोड़ते रहना चाहिए | इसके फलों की तुड़ाई छोटी और कोमल अवस्था में करनी चाहिए | इसके फलों को तोड़ने में देर नहीं करनी चहिये नहीं तो फलों का रंग पीला हो जाता है जिसके कारण इन्हें बाजार में उचित मूल्य नही मिल पाता |
उपज की प्राप्ति |
उपज की प्राप्ति :- करेले की अच्छी उपज एक हेक्टेयर भूमि पर कम से कम 100 से 150 किवंटल तक प्राप्त हो जाती है |
करेले की लाभदायक खेती करने का तरीका | krele Ki
Labhdaayk Kheti Krne Ka Trika | krele Ke Vibhinn kismen ,krele
Ki Kheti Krne Ka Uttm Samay,krele Ki Fasal Mein khad Ka Upyog , Krele Ki Fasal
Mein Hone Vale Rog Or Keeton Se Bachav |
very nice keep it up
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