शिमला मिर्च की खेती कैसे करें |
Shimla mirch vibhinn kismen |
शिमला
मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :- शिमला मिर्च की अच्छी वृद्धि के लिए 21 से
250 सेल्सियस का तापमान अच्छा होता है | ज्यादा ठन्डे मौसम में इसके फूल बहुत कम
मात्रा में खिलते है और इसके फल टेढ़े – मेढ़े , छोटे आकार के बनाते है | शिमला मिर्च की खेती नर्म
आद्र मौसम में की जाती है | पाला इसकी खेती के लिए हानिकारक होता है | अधिक तापमान
में इसके फल और फूल झड़ने लगते है | इसलिए
इसे छतीसगढ़ के सामान्य जलवायु में उगाया जाता है जहाँ तापमान 100 डिग्री सेल्सियस
से नीचे रहता है | यहाँ ठण्ड का प्रभाव कम रहता है इसी कारण यहाँ सालभर शिमला
मिर्च की खेती की जा सकती है |
शिमला
मिर्च की खेती के लिए उपयुक्त भूमि :- चिकनी दोमट मिटटी इसकी खेती के लिए अच्छी
मानी जाती है क्योकि इसमें जल का निकास ठीक प्रकार से होता है | इसके आलावा बलुई
दोमट मिटटी में अधिक खाद डालकर शिमला मिर्च की खेती की जा सकती है लेकिन इस मिटटी
में उचित समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए | शिमला मिर्च को जमीन से उपर उठी हुई
क्यारियों में बोया जाता है | जिस चिकनी दोमट मिटटी का पी. एच. मान 6 – 6. 5 हो वह
मिटटी इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम होती है |
शिमला
मिर्च की किस्मे :- इसकी निम्नलिखित किस्मे भारत में बोई जाती है |
1.
अर्का गौरव
2.
अर्का मोहिनी
3.
अर्का बसंत
4.
ऐश्वर्या
5.
अलंकर
6.
अनुपम
7.
रानी पूसा
8.
किंग ऑफ़ नार्थ
9.
कैलिफोर्नियाँ वांडर
10.
इंद्रा
11.
हीरा
12.
भारत
13.
ग्रीन गोल्ड
14.
दीप्ती
इसकी खेती में प्रयोग होने वाली खाद और
उर्वरक :- शिमला मिर्च को बोने से पहले हमे खेत की अच्छी प्रकार से जुताई करनी
चहिये | खेत की तैयारी करते समय इसमें 30 से 35 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डालना
चाहिए | इसके आलावा हम कम्पोस्ट खाद का भी प्रयोग कर सकते है | कम्पोस्ट खाद दलने
के बाद मिटटी की जुताई करें | ताकि खाद मिटटी में अच्छी तरह से मिल जाये | बीज की
रोपाई करते समय 55 से 60 किलो नत्रजन , 50 से 60 किलो पोटाश और 70 से 80 किलो
स्फुर की मात्रा को आपस में मिलाकर भूमि पर बिखेर दें | नत्रजन की 60 किलो की
मात्रा को दो भागों में प्रयोग करें | एक हिस्से को रोपाई करते समय बिखरे और दुसरे
हिस्से को रोपाई के 55 दिनों के बाद छिडकें |
Shimla mirch Poudhe ki Sanrachana |
शिमला मिर्च के लिए नर्सरी बनाना :- इसके लिए
सबसे पहले हमे मिटटी को उपचारित करना चाहिए | इसे उपचारित करने के लिए 1 ग्राम
बाविस्टिन को एक लीटर पानी में घोलकर मिटटी पर छिडकें | इसके बाद जमीन की सतह से
लगभग 3 *1 मीटर उठी हुई क्यारियां बना लें | एक हक्टेयर भूमि में कम से कम 6 या 7
क्यारियां बहुत होती है | खेत में क्यारियां बनाने के बाद हर एक क्यारी में 2 या 3
टोकरी सड़ी हुई गोबर की खाद डालना चाहिए | शिमला मिर्च के बीजों को बोने से पहले
थाईरम , केप्टान की 2.5 ग्राम से उपचारित करना चाहिए | यह मात्रा एक किलोग्राम बीज
के लिए है | हर एक क्यारी की कतार के बीच में लगभग 1 सेंटीमीटर गहरी नाली बनाएं |
नाली बनाकर 2 से 3 सेंटीमीटर की दुरी रखकर बीजो की बुआई करें | बीजो को बोने के
बाद इन्हें खाद और मिटटी के मिश्रण से अच्छी तरह से ढक दें | और हल्की से सिंचाई
कर दें | सिंचाई करने के बाद क्यारियों को सुखी हुई घास या पुरल से कुछ दिनों के
लिए ढक देना चाहिए | एक हक्टेयर भूमि पर कम से कम 1 किलोग्राम बीज की मात्रा
पर्याप्त होती है | इस प्रकार की विधि का उपयोग करके आप शिमला मिर्च की नर्सरी बना
सकते है |
बीज को बोने का समय :- जून या जुलाई , अगस्त
या सितम्बर , सितम्बर – अक्तूबर , नवम्बर या दिसम्बर और दिसम्बर या जनवरी आदि सभी
महीनों में शिमला मिर्च की बुआई कर सकते है |
शिमला मिर्च की बुआई का सही समय |
पौधा रोपण की विधि :- नर्सरी में बीजो को
बोने के बाद कम से कम 50 दिनों में पौधे रोपण के लिए तैयार हो जाते है | इन पौधे
की लम्बाई 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी होती है और उसमे 4 या 5 पत्ते ही निकलते है |
पौधे को खेत में बोने से पहले एक दिन पहले क्यारियों की सिंचाई कर देना चहिये |ताकि पौधे को आसानी से निकाला जा
सके | पौधे की रोपाई करने से पहले पौधे की जड़ को बाविस्टिन और पानी के घोल में आधा
घंटा डुबोकर रखना चाहिए | इसके बाद ही रोपाई करना चाहिए | शिमला मिर्च के पौधे को
खेत में 60 से 45 सेंटीमीटर की दुरी पर लगाना चाहिए | इसी प्रकार से सभी पौधे को
क्यारी में बोकर हल्की सी सिंचाई कर दें |
सिंचाई करने का तरीका :- इसकी सिंचाई मिटटी
पर आधारित होती है | यदि मिटटी में नमी नहीं है तो सिंचाई करनी चाहिए | भूमि में
नमी जाचने के लिए हाथ में थोड़ी सी मिटटी उठाकर उसका लड्डू बनाकर देखे यदि लड्डू
आसानी से बन जाता है तो भूमि में नमी है | यदि ना बने तो सिंचाई करना चाहिए | सामान्य
रूप से गर्मी के मौसम में एक सप्ताह में के बार और ठण्ड के मौसम में महीने में दो
बार सिंचाई जरुर करनी चाहिए | शिमला मिर्च की फसल में कम और ज्यादा सिंचाई करने से
नुकसान होता है | इसलिए यदि खेत में पानी भर जाये तो जल्द ही पानी के निकास की
वयस्था करनी चाहिए | अन्यथा इसकी फसल ख़राब हो सकती है |
खरपतवार के नियंत्रण के लिए |
खरपतवार के नियंत्रण के लिए :- एक अच्छी फसल
प्राप्त करने के लिए हमे अपने खेत में लगातार हल्की – हल्की निराई – गुड़ाई करते
रहना चाहिए | पौधे रोपण के 30 से 45 दिनों तक अपने खेत खरपतवार को ना होने दें |
इसके लिए कम से कम दो बार निराई – गुड़ाई करनी चाहिए | पहली बार पौधा रोपण के लगभग
२५ दिन के बाद और दूसरी बार 45 दिन के बाद फसल में निराई – गुड़ाई करनी चहिये | अगर
हमे खरपतवार को दूर करने के लिए रसायनों का उपयोग करना है तो खेत में नमी की
अवस्था में पेंडीमेंथेलिनकी 4 लीटर की मात्रा को एलाक्लोर की 2 किलो की मात्रा में
मिक्स करके उपयोग करना चाहिए | यह मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है | भूमि
के हिसाब से इसकी मात्रा को घटाया – बढ़ाया जा सकता है | पौधे को बोने के 30 दिन के
बाद पौधे में दोबारा मिटटी की परत चढ़ा देनी चाहिए ताकि पौधे में मजबूती बनी रहे |
फूल और फल की हानि होने से बचाने के लिए :- शिमला
मिर्च के पौधे में से जब फूल झड़ने लगे तो हमे प्लानोंफिक्स नामक दवा की 2 लीटर की
मात्रा को पानी में घोलकर पौधे पर छिडकाव करना चहिये | पहला छिडकाव करने के लगभग
25 दिन के बाद इस दवा का दूसरा छिडकाव करना चाहिए | ऐसा करने से उत्पादन में
वृद्धि होती है , फल अच्छे लगते है और फूलो का झड़ना भी दूर हो जाता है | शिमला
मिर्च के पौधे में फूल लगाना आरंभ हो जाये तो इस घोल का उपयोग करना चहिये |
रोगग्रस्त फसल |
शिमला मिर्च में लगने वाले रोग और कीट :-
शिमला मिर्च में निम्नलिखित कीटों का प्रकोप होता है :- माहो , थ्रिप्स , सफेद
मक्खी , और मकड़ी इन सभी कीटों के प्रभाव से इसकी फसल खराब हो सकती है | पौधे में
होने इन सभी कीटों से होने वाले नुकसान को ठीक करने के लिए हमे निम्नलिखित उपाय
करना चाहिए |
:- उपाय :-
इन सभी कीटों से बचने के लिए डायमेंथोएट या
मिथाएल डेमेटन की 1 मिलीलीटर की मात्रा कोप पानी में घोलकर एक मिश्रण तैयार करें |
इस मिश्रण को पानी फसलों पर हर 15 दिन के अंतर पर छिडकें | केवल 2 या 3 बार छिडकाव
करने से पौधे को हानिकारक कीटों के प्रभाव से बचाया जा सकता है | शिमला मिर्च की
तुड़ाई के बाद रसायनों का छिडकाव जरुर करें |
शिमला मिर्च की फसलों में मुख्य रूप से आद्र
गलन , भभूतिया रोग , श्याम वर्ण , कुचन और फलों की सडन आदि रोग लग जाते है | जिसे
दूर करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाने चाहिए |
आद्रगलन की बीमारी :- इस रोग में पौधे की
जमीन की सतह वाले तने का भाग काला हो जाता है | इसके कारण पौधा गलने लगता है और
पौधे मरकर गिर जाते है | पौधे में यह बीमारी नर्सरी अवस्था में होती है | इसकी
रोकथाम के लिए एक उपाय है जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
:-
उपाय :-
बीजो को बोने से पहले इन्हें उपचारित करना
चाहिए | इन्हें थाईराम की 2 ग्राम की मात्रा
, केप्टान की 5 ग्राम की मात्रा और बाविस्टिन की 2 ग्राम की मात्रा को एक किलो बीज
की दर से उपचारित करके बोये | अपनी फसल की नर्सरी को भूमि से 6 से 8 इंच की ऊंचाई
पर बनाएं | नर्सरी की मिटटी को बीज बोने से पहले उपचारित करने के लिए थाईरम ,
कैप्टान और बाविस्टिन के गोल से मिटटी को सींचे जिसे हम डेचिग कहते है | बीज और
मिटटी को उपचारित करने के बाद ही पौधे की बुआई करें | यदि पौधे में रोग के लक्षण
दिखने लगे तो बाड़ो पर कोपर ओक्सीकलोराइड की 3 ग्राम की मात्रा को पानी में घोलकर
छिडकाव करें | इस छिडकाव से पौधे में होने वाली बीमारी दूर हो जाती है |
Shimla mirch ke Poudhe ko keeton se Kaise Bachayen |
भभूतिया का रोग :- इस रोग के कारण पौधे की
हरी – हरी पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त धब्बे पड़ जाते है | पौधे में यह बीमारी
बड़ी जल्दी बढ़ जाती है जिसके कारण पत्तियां पीली होकर सुख जाती है और पौधा बौना हो
जाता है | पौधे में यह रोग ज्यादातर गर्मी के मौसम मे होता है | इसकी रोकथाम के
लिए एक उपाय है |
:-
उपाय :-
सेल्फेक्स या कैलेसिन के 0.2 %सांद्रता घोल
को पानी के साथ मिलाकर फसलों पर छिडकाव करें | इस प्रकार के घोल को हर पन्द्रह दिन
के अंतर पे छिडके | इस प्रकार के उपचार से हम पौधे में हुए रोग को दूर कर सकते है|
जीवाणु उकठा :- इस रोग के प्रकोप से पौधे की
हरयाली सुख कर मुरझा जाती है | पौधे में यह रोग किसी भी समय हो सकता है | इसकी
रोकथाम करना जरूरी है |
इस बीमारी से पौधे को बचाने के लिए उपाय :- गर्मी
के मौसम में अपने खेत में गहरी जुताई करवानी चाहिए | और कुछ समय के लिए खेत को
खाली छोड़ देना चहिये | अर्का गौरव जैसी जाति का चुनाव करना चाहिए जो बीमारी को सहन
कर सके | किसानो को फसल चक्र की विधि को अपनाना चहिये |
जीवाणु उकठा :- इस बीमारी में हरे – हरे पौधे
मुरझाकर सुख जाते है | पौधे में यह बीमारी किसी भी समय लग सकती है | इस रोग से खेत
की सभी फसलें प्रबावित होते है इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी है |
बीमारी से बचाने के लिए |
इस
बीमारी से फसलों को बचाने के लिए :- गर्मी के मौसम में अपने खेत की गहरी जुताई
करें और कुछ दिनों के लिए इसमें किसी भी प्रकार की फसल ना बोयें | अर्का गोरव जैसी
प्रजाति का चुनाव करें जो किसी भी प्रकार के रोग को सहन कर सकता है | किसानों को फसल को बदल – बदलकर बोना चाहिए |फसल चक्र की विधि को अपनाना चहिये | खड़ी फसलों में इस रोक के प्रभाव को दूर करने
के लिए निराई – गुड़ाई करना बंद क्र दें क्योंकि गुड़ाई करने से फसलों की जड़ों में
घाव बन जाते है | जिससे इस बीमारी का प्रभाव बढ़ जाता है | बीजों को भूमि में बोने
से पहले मिटटी में 15 किलो ब्लीचिंग पाउडर की मात्रा मिला दें | यह मात्रा एक
हेक्टेयर भूमि के लिए है | भूमि के हिसाब से इसकी मात्रा को घटाया और बढ़ाया जा
सकता है |
पर्ण कुंचन या मोजेक :- इस रोग के कारण पौधे के हरे – हरे पत्ते
सिकुडकर मुड़ जाते है | इसका रंग भूरा होकर आकार छोटा हो जाता है | जिस पत्ती में यह रोग लग जाता है वह पत्ती मोटी , खुरदरी
और नीचे की और मुड़ी हुई होती है साथ ही साथ इन पत्तियों का आकार भी छोटा हो जाता
है | पौधे में यह बीमारी एक विषाणु के कारण फैलता है | मोजेक नामक रोग में पौधे की
पत्तियों पर गहरे पीले रंग के धब्बे पड़ जाते है | जो धीरे – धीरे सारी पत्तियों पर
फैल जाता है | इसके कारण हमे के अच्छी फसल प्राप्त नहीं होती | पौधे में बीमारी के
कारण इसकी गुणवत्ता और अच्छी उपज की मात्रा दोनों पूरी तरह प्रभावित होती है | पौधे
में रोग को फैलाने में कीटों का एक अहम
हिस्सा माना जाता है | फसलों को इस रोग से बचाने के लिए एक उपाय है जिसका वर्णन इस
प्रकार से है |
स्वस्थ शिमला मिर्च |
:- उपाय :- खेत में पौधे के रोपण के 15 या 20 दिन के बाद डाइमिथोएट या इमिडाक्लोप्रिड
की एक मिलीलीटर की मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर एक घोल बनाएं | इस प्रकार से
बनाएं हुए इस घोल का छिडकाव फसलों पर करें | छिडकाव के इस प्रकरण को दोबारा 15 या
20 दिन के बाद करें | इसके आलावा बीजों की बुआई करने से पहले कार्बोफ्युरान 3 जी ,
8 से 10 ग्राम की मात्रा को एक वर्ग मीटर की मिटटी में मिला दें | ऐसा करने से
पौधे में बीमारी का असर नहीं होता | फसल में जब फूल आने लगे तो कीटनाशक दवाओं के
स्थान पर मैलाथियान 50 ई.सी. की एक मिलीलीटर की मात्रा को पानी में घोलकर फसलों पर
छिडकाव करें |
फलों में सडन :- मौसम में ज्यादा आद्रता के
कारण पौधे में यह रोग होता है | इस रोग में पौधे की हरी पत्तियों में काले – काले
रंग के धब्बे हो जाते है | पौधे में जब यह रोग बढने लगता है तो पौधे की टहनी उपर
से नीचे की तरफ सूखने लगती है | फलों के पकने के समय में इस पर छोटे – छोटे काले
रंग के धब्बे बनने लगते है जो बाद में धसुर रंग के हो जाते है और साथ ही साथ
किनारों पर गहरे रंग की रेखा हो जाती है | इस प्रकार से प्रभावित फल समय से पहले
ही पेड़ से झड़ कर नीचे गिरने लगते है | इसकी रोकथाम के लिए हमे निम्नलिखित उपचार
करना चहिये |
:- उपाय :-
बीजो को उपचारित करके बोना चाहिए | केवल
स्वस्थ बीजो का प्रयोग करें | मेन्कोजेब , डायफोलटान , की 0.2 % के सांद्रता के
घोल बनाकर एक महीने में कम से कम 2 बार जरुर छिडकाव करें | इसके आलावा किसनों को
फसल चक्र की विधि को अपनाना चाहिए |
फलों की तुड़ाई :- शिमला मिर्च की तुड़ाई पौधे
को बोने के लगभग 70 से 75 दिन के बाद शुरू क्र देनी चाहिए | जो 90 से १२० दिन तक
चलता है | शिमला मिर्च को नियमित रूप से तोड़ना चाहिए |
उपज की प्राप्ती |
उपज
की प्राप्ती :- शिमला मिर्च की उन्नत किस्मो में हमे 100 से 120 किवंटल प्रति एक
हक्टेयर भूमि से मिल सकती है | जबकि किस्मो में हमे 220 से 250 किवंटल तक की अच्छी
उपज मिल जाती है
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