ब्रोकोली लैटिन भाषा के शब्द बैकियम से बना है
जिस अर्थ है शाखा | अत: कई सारी कलियों से बनने वाली सब्जी | जिसे हम ब्रोकोली
कहते है यह भूमध्यसागरीय उपज है |
Brokoli ki Kheti Karne ka Tarika |
ब्रोकोली फुल गोभी की तरह ही होता है | लेकिन इसका रंग हरा
होता है | इसलिए इसे हरी गोभी भी कहते है | इसकी खेती बिल्कुल फुल गोभी की तरह ही की जाती है |
ब्रोकिली को सर्दियों के मौसम में उगाया जाता है | इसके बीज और इसके फुल ठीक फूल
गोभी की तरह ही दिखते है | फुल गोभी में एक पौधे में से एक ही फुल मिलता है लेकिन
ब्रोकोली में से कलियों से बना हुआ गुच्छा काटने के बाद भी उसमे कुछ शाखाएं निकलती
है | इन निकली हुई शाखाओं को बाद में छोटे – छोटे गुच्छे बेचने के काम आते है |
जिसे हम खाने में भी प्रयोग क्र सकते है | ब्रोकोली का खाने वाला हिस्सा छोटे –
छोटे बहुत सारे फूलों से मिलकर बना हुआ एक गुच्छा है जिसे खिलने से पहले ही काट
लिया जाता है | ब्रोकोली का यह हिस्सा मुख्य होता है जिसे हम खाने में प्रयोग करते
है | ब्रोकोली यानि हरी गोभी के बीजों को जम्मू – कश्मीर , उतरांचल और हिमाचल
प्रदेश में बनाये जाते है और इसकी खेती पूरे उत्तर भारत में बड़ी ही आसानी से की
जाती है | इसकी खेती ठण्ड में की जाती है |
ब्रोकोली ki Kismen |
ब्रोकोली की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :-इसकी खेती सर्दियों के मौसम में की जाती है | ये दिन बहुत छोटे होते है
लेकिन इस समय फूलों में बहुत बढ़ोतरी होती है | ब्रोकोली की खेती में ठंडी और आद्र
जलवायु की जरूरत होती है | इसलिए इसके फुल बनते समय तापमान अधिक नहीं होना चाहिए |
तापमान ज्यादा होने के कारण फुल पत्तेदार छितरेदार और पीले रंग के हो जाते है |ब्रोकोली
में पोष्टिक तत्व की मात्रा अधिक होती है जो हमारे सहेत के लिए लाभदायक है | इस
सब्जी की बढती हुई मांग को देखते हुए कई किसान इसे उगाने लगे है और बाजार में उचित मूल्य पर बेच कर मुनाफ़ा कमा रहे है | इस
सब्जी को ज्यादातर बड़े – बड़े शहरों में मांग है क्योंकि छोटे शहर में इस सब्जी के
बारे में कोई नहीं जनता | इस सब्जी में विटामिन सी की मात्रा अधिक होती है | इसे
कच्चा या पकाकर खाया जाता है लेकिन यदि आप इसे उबालकर खयेंगे तो बहुत फायदा मिलता
है | यह केंसर जैसी खतरनाक बीमारी से लड़ने में रोगी की मदद करता है | इसकी खेती
किस प्रकार से करनी है इस बात की जानकारी हम आपको दे रहे है |
ब्रोकोली की खेती करने के लिए उपयुक्त भूमि :- इसकी खेती के लिए बलुई दोमट मिटटी बहुत अच्छी होती है | इस मिटटी में सही
मात्रा में जैविक खाद मिली हुई होती है जो खेती के लिए उपयुक्त होती है | ब्रोकोली
को किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है | लेकिन मिटटी में जैविक खाद मिलाकर इसकी एक सफल खेती
की जा सकती है | और इसकी एक अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है |
ब्रोकोली की मुख्य जातियां :- इसकी केवल तीन ही प्रजातियाँ पाई जाती है | 1.
सफेद 2. हरी 3. बैंगनी
इस किस्म में हरे रंग की गांठ होती है जिसे खाने में बहुत पसंद किया जाता है |
इसमें नाइन स्टार , परेनियल , इटालियन , केलेब्रस , बाथम , ग्रीन स्प्राउनटिंग और
29 ग्रीन हेड की किस्मे पाई जाती है |
संकर किस्मे :- प्रीमिय क्रोप , क्रुसेर , स्टिक , पाइरेट पेकमे , और ग्रीन
सर्फ की किस्मे मिलती है |
भारत में ब्रोकोली की एक नई किस्म विकसित हुई है | जिसे के. टी. एस. 9 के नाम
से जाना जाता है | इस जाती के पौधे मध्यम ऊंचाई वाले होते है | इसकी पत्तियां गहरे
हरे रंग की होती है | इसके उपर वाला भाग सख्त ( कठोर ) होता है और तना छोटा होता
है | भरतीय कृषि अनुसन्धान संसथान जो की नाइ दिल्ली में पूसा नामक स्थान पर
उपस्थित है | इसने ब्रोकोली की एक किस्म के लिए सिफारिश की है | इसकी खेती के लिए
बीज की मात्रा को पूसा संस्थान केटराइन कुल्लू घाटी , या हिमाचल प्रदेश से प्राप्त
किये जा सकते है |
Brokoli ki Kheti Karne ka Tarika |
इसे उगाने के लिए उपयुक्त समय :- ब्रोकोली को भारत के मैदानी क्षेत्र में सर्दी
के मौसम में उगाया जाता है | यह समय इसके बीजो को फलने – फूलने और पौधे की वृद्धि
के लिए अच्छा होता है | इसकी अच्छी वृद्धि के लिए कम से कम तापमान 20 से 25 डिग्री
सेल्सियस होना चाहिए | भारत के पर्वत वाले इलाके में इसके बोने का समय सितम्बर या
अक्तूबर का महीना अच्छा होता है इसके आलावा मध्यम ऊँचे वाले इलाके में अगस्त या
सितम्बर का महिना और ज्यादा ऊँचे भाग में मार्च या अप्रैल का महिना उत्तम होता है
| इसी समय में ब्रोकोली के बीजो को उगाया जाता है |
ब्रोकोली के बीजों की दर या मात्रा :- एक हक्टेयर भूमि पर कम
से कम 350 से 400 ग्राम के बीजों की मात्रा काफी होती है | इसके बीज गोभी के बीजों
की तरह बहुत छोटे होते है | इसी लिए इसके बीज की मात्रा कम ली जाती है और उपज बहुत
होती है |
ब्रोकोली को उगने से पहले इसकी तैयारी करना :- इसे बोने के लिए सबसे पहले क्यारी तैयार करनी होती है | इसके बाद इसमें
बीजो का रोपण किया जाता है | ब्रोकोली को
पत्ता गोभी की तरह क्यारियां बनाकर उगाया जाता है | यदि ब्रोकोली को कम संख्या में
उगाया जाये तो इसे उगने के लिए कम से कम 3
फीट लम्बी और एक फीट चौड़ी भूमि की सतह से 2 सेंटीमीटर की ऊंचाई वाली क्यारियां
बनाकर बीजों को बोए | पहले क्यारियों को भलीभांति तैयार क्र लें और फिर इसमें सड़ी
हुई गोबर की खाद मिला दें | बीजो को बोने से पहले इसकी दुरी का ध्यान रखे | इसके
बीजों को 2.5 सेंटीमीटर की गहराई में और कम से कम 4. 5 सेंटीमीटर की दुरी पर बोये
| ब्रोकोली के बीजों को बोने के बाद इसे घास – फूस की एक पतली पर्त् बनाकर ढक दें
| जैसे ही इसमें से पौधा निकलने लगे तो घास – फूस की इस पर्त को हटा दें | उगे हुए
इन पौधे को हानिकारक कीटों से बचाने के लिए इस पर नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाकर
छिडकाव करें | इसके आलावा देसी गाय के मूत्र का भी छिडकाव कर सकते है | ब्रोकोली
के बीजो को बोने के बाद इसकी समय – समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए | ताकि पौधे में
पानी की कमी न हों |
Brokoli ki Fasal Mein Kharpatvar roke |
पौधे को रोपने का तरीका :- बीज जब छोटे – छोटे रूप में परवर्तित हो जाये
तो एक महीने के बाद इसे तैयार किये हुए खेत में एक लाइन में बोये | पौधो की एक
लाइन का फसलां कम से कम 20 से 60 सेंटीमीटर का रखे और एक पौधे से दुसरे पौधे के
बीच की दुरी लगभग 45 सेंटीमीटर की होनी चाहिए | खेत में ब्रोकोली के पौधे को बोने
के बाद जल्दी ही एक हल्की सी सिंचाई जरुर करें | रोपाई करते समय भूमि में उचित
मात्रा में नमी होनी चाहिए |
खाद और उर्वरक का प्रयोग :- खेत में पौधे को रोपने से पहले इस भूमि में खाद को मिल
देना चाहिए | इसके लिए हमे 50 से 60 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद जिसे अच्छी तरह से
सड़ाया गया हो , और एक किलो नीम के पेड़ की खली एक किलो अरंडी की खली को गोबर के साथ
अच्छी प्रकारे मिलाकर एक खाद तैयार करे | इस प्रकार की खाद को पोधे को रोपने से
पहले भूमि में अच्छी तरह से बिखरे दें | इसके बाद ही खेत में क्यारियां बनाएं |
क्यारियों की जुताई करके इसमें बीजो को बो दें | ध्यान रहे कि यह खाद की मात्रा
लगभग 10 वर्ग मीटर वाले क्षेत्र के लिए है | यदि ज्यादा भाग में खाद का प्रयोग
करना है तो इसकी मात्रा बड़ाई जा सकती है | इसके आलावा ब्रोकोली की अच्छी बडवार के
लिए और एक अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए हम एक और खाद का प्रयोग क्र सकते है
जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
आर्गनिक खाद का प्रयोग :-
ब्रोकोली के पौधे को रोपने से पहले जब हम क्र्यरिया बनाते है तो उसकी अंतिम बार
तैयारी करते समय सड़े हुए गोबर की लगभग 50 किलो की मात्रा , कम्पोस्ट खाद , आर्गनिक
खाद 1 किलो भू – पावर , 1 किलो माइक्रो फर्ट सिटी कम्पोस्ट , 1 किलो माइक्रोनीम ,
1 किलो सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट और अरंडी की खली को आपस में अच्छी प्रकार से मिलाकर
एक खाद का मिश्रण बनाये | इस प्रकार से तैयार किये हुए खाद के मिश्रण को बीजो को
रोपण से पहले एक समान मात्रा में बिखेर दें | इसके बाद ही क्यारी की जुताई करके
बीजो को बोयें | बीज के बोने के बाद जब फसल 20 से 25 दिन की हो जाए तो इस फसल पर
सुपर गोल्ड मेग्निश्यम और माइक्रो झाझ्म का छिडकाव करें | पौधे को उगने से पहले इस
प्रकार की खाद का प्रयोग करने से पौधे की बढ़वार अच्छी होती है और हमे अच्छी उपज
प्राप्त होती है |
रोगग्रस्त ब्रोकोली
रासायनिक खाद का प्रयोग :- सड़े हुए गोबर की
खाद :- 55 से 60 टन प्रति एक हेक्टेयर|
1. नाइट्रोजन की मात्रा :- 90 से 120 किलो ग्राम प्रति एक हेक्टेयर |
3.फास्फोरस की मात्रा :- 40 से 50 किलो प्रति एक हेक्टेयर |
खेत की तैयारी करते समय और रोपाई से पहले
मिटटी में सड़ी हुई गोब्र्र की खाद और फास्फोरस की मात्रा को आपस में मिक्स करके
मिटटी में अच्छी तरह से मिला दें | इसके आलावा नाइट्रोजन को 2 या 3 भागों में
बाँटकर खाद के रूप में प्रयोग करना चाहिए | नाइट्रोजन का एक बार रोपाई के कम से कम
20 से २५ दिन के बाद प्रयोग करें और दूसरी बार लगभग 60 दिन के बाद प्रयोग करें |
दूसरी बार नाइट्रोजन की खाद प्रयोग करने के साथ पौधे पर मिटटी की परत चढ़ा देनी
चाहिए | यह बहुत लाभदायक मानी जाती है |
ब्रोकोली की निराई और गुड़ाई करना और साथ ही साथ सिंचाई करना
:- जैसा की हम जानते है की इसकी खेती गोभी की तरह की जाती है | उसी प्रकार से इसकी
निराई भी गोभी की खेती की तरह ही होगी | जब ब्रोकोली की फसल तैयार होने लगती है तो
इसमें छोटे – छोटे अनचाहे उगे हुए पौधे को खुरपी से हटकर मिटटी में हल्की – हल्की
निराई गुड़ाई कर देना चहिये |इसके साथ ही साथमौसम और पौधे की वृद्धि को ध्यान में
रखते हुए इसकी फसल में एक महीने में कम से कम दो बार जरुर सिंचाई कर देनी चाहिए |
खरपतवार पर नियन्त्र्ण :- ब्रोकोली को क्यारी में उगाया
जाता है इसलिए इसकी क्यरियों में उगे हुए खरपतवार को निकालते रहना चाहिए | ऐसा
करने से इसकी फसल की जड़ और पौधे की अच्छी तरह से वृद्धि होती है | निराई और गुड़ाई
करने के बाद पौधे के पास मिटटी की परत चढ़ा देना चाहिए इससे पानी देने से पौधे और
मिटटी नहीं गिरते और इसकी अच्छी वृद्धि होती है |
ब्रोकोली में कीड़े
औरऔर बीमारियों के नाम :- इसकी फसल में काला सडन , तना सडन , मृदु रोमिल , और तेला
नामक मुख्य बीमारियाँ लगती है | इसकी रोकथाम के लिए एक उपाय है जिसका वर्णन इस
प्रकार से है |
Brokoli Ki Fasl Mein Keeton Se Bachaav |
:-
उपाय :-
पौधों को इन सभी बीमारियों से बचाने के लिए देसी गाय के 5
लीटर मट्ठे में 2 किलोग्राम नीम की पत्ती , 100 ग्राम तम्बाकू की पत्तियां , 1
किलोग्राम धतूरे की पत्तियों को लगभग 2 से 3 लीटर पानी में उबाल लें | उबालते हुए
जब इस मिश्रण की मात्रा आधी शेष रह जाये तो इसे आंच से उताकर ठंडा होने के लिए रख
दें | जब यह काढ़ा ठंडा हो जाये तो देसी गाय के मट्ठे और 150 लीटर पानी में मिला दें | इस प्रकार से तैयार मिश्रण को
किसी पम्प की मदद से पौधे पर छिडकाव करें | इस घोल का प्रयोग हम एक एकड़ भूमि पर कर
सकते है | आप इसकी मात्रा को घटा और बढ़ा भी सकते है |
विशेष बात :- देसी गाय के मट्ठे को आंच पर नहीं पकाना है |
फसल के तैयार होने पर इसकी कटाई :- ब्रोकोली की फसल 70 से
80 दिन में तैयार हो जाती है | जब यह फसल हरे रंग की कलियों का एक मुख्य गुच्छा बन
जाये तो इसे तेज धार वाले चाकू या दरांती से काट लें | इसकी कटाई करते समय इस बात
का ध्यान रखे की इसका गुच्छा बिलकुल गुथा हुआ होना चहिये और उसमे कोई भी कली ना
खिले | ब्रोकोली की फसल जब हरे रंग की तैयार हो जाती है तो इसे समय पर काट लेना चाहिए | यदि इसे देरी से
कटा गया तो यह ढीली होकर बिखर जाएगी और
कलियों का रंग पीला पड़ जायेगा | पीला होने के बाद इसकी फसल का दाम बाजार में कम
मिलाता है | फलस्वरूप किसानो को हानी हो सकती है |
फसल के तैयार होने पर कटाई |
उपज की प्राप्ति :- ब्रोकोली की अच्छी उपज एक हेक्टेयर भूमि
पर लगभग 15 से 18 टन प्राप्त हो जाती है |
ब्रोकोली
की खेती करने का
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ki Fasal
Ke Liye Upyukt BhumiOr Jalvayu, Brokoli ki Fasal Mein Kharpatvar
Ko Kaese Roken| Brokoli Ki Fasl Mein Keeton Se
Bachaav |
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