सेम की खेती करने का
तरीका :-
सेम की खेती भारत के सभी भागों में की जाती है | इसके बीजों की सब्जी
बनाकर खाई जाती है | सेम की दाल भी बनाई जाती है | सेम में प्रोटीन की मात्रा अधिक
पाई जाती है | इसमें प्रोटीन के आलावा कई सारे पोषक तत्व मोजूद होते है | जो हमारे
शरीर के लिए लाभदायक होते है | सेम एक लता है जिसमे फलियाँ लगती है | सेम की
पत्तियों को चारे के रूप में प्रयोग की जाती है जिसे गाय और भैंस खाते है | और
इसकी फलियों की सब्जी बनाई जाती है | सेम से हमारे शरीर की कई बीमारियाँ ठीक हो
सकती है | त्वचा पर ललौसी नामक रोग होने पर इसकी हरी पत्तियों को गृहसित स्थान पर
रगड़ने पर ही इस रोग से मुक्ति मिल जाती है | वैदिक रूप से सेम का प्रयोग शीतल ,
भारी , बलकारी वात कारक दाहजनक , दीपन , पित्त और कफ नाशक होता है | सेम की बहुत
सारी जातियां उगाई जाती है | इन्ही जातियों के आधार पर ही इसकी फलियाँ अलग – अलग
आकार की होती है | कुछ लम्बी , कुछ टेडी और कुछ सफेद हरी और पीली होती है| भारत में सेम की
निम्नलिखित किस्मे उगाई जाती है |
Sem Ki Kheti Karne ka Tarika |
:- सेम
की जातियां :-
पूसा अर्ली
प्रोलिफिक , hd 1 ,HD 26 , रजनी , HA 3 , DB 1 , DB 18 , JDL 53 , JDL 85 , पूसा
सेम 3 , पूसा सेम 2 , कल्याणपुर टाईप 1 , कल्याणपुर टाइप 2 आदि कुछ किस्मो को भारत
में उगाया जाता है |
सेम की फसल के लिए
उपयुक्त जलवायु :- सेम ठण्ड की फसल होती है | इसे ठंडी जलवायु में उगाया जाता है |
इस फसल में पाला सहने की क्षमता बहुत होती है | सेम की फसल को 15 से 22 डिग्री ताल
के तापमान की आवश्कता होती है |
सेम की किस्में |
सेम की फसल को बोने
के लिए उपयुक्त भूमि :- इसकी खेती के लिए दोमट मिटटी अच्छी होती है | इसमें जल का
निकास अच्छी तरह से होता है | जिस भूमि पर सेम की खेती की जा रही हो उस भूमि की
जुताई मिटटी को पलटने वाले हल से करें | बाद में 2 या 3 बार हल या केल्टिवेटर
चलाकर जुताई करें | जुताई करने के पश्चात इसमें पाटा जरुर लगवाएं | ज्यादा क्षारीय
और अम्लीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं होती |
बीज के बोने का समय
:- सेम की अगेती फसल फरवरी या मार्च में बोई जाती है |जून – जुलाई में वर्षाकालीन की फसल उगाई जाती है और अगस्त के महीने में सेम
की रजनी नामक फसल उगाई जाती है |
सेम को बोने के लिए
बीज की मात्रा :- भूमि की एक ह्येक्टर में लगभग 6 किलोग्राम बीज की मात्रा काफी
होती है |
Sem ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi |
क्यारियों में दूरी
:- सेम की बेल को लाइन में बोना चाहिए | इन लाइनों की आपस की दूरी लगभग 10
सेंटीमीटर की होनी चहिये | अगर सेम की बेल को चौड़ी क्यारियों में बोना है तो 1. 5
मीटर की चौड़ी क्यारियाँ बनाएं | उनके किनारों पर लगभग 50 सेंटीमीटर की दुरी रखे |
सेम के बीजों को 3 सेंटीमीटर की गहराई में बोयें | जब सेम की बेल बढ़ने लगे तो इसकी
बेल को किसी चीज का सहारा देकर बढायें |
Sem ki Fasal Mein Kharpatvar Ko kaese roken |
इसकी खेती में
प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- सेम की खेती के लिए और इसकी अच्छी फसल प्राप्त
करने के लिए कम्पोस्ट खाद और आर्गनिक खाद का अधिक मात्रा में प्रयोग करना चाहिए | खेत
में फसल को बोने से पहले इसकी एक बार जुताई अवश्य करें और इसमें खाद का छिडकाव
करें | लगभग एक ह्येक्टर भूमि में 45 से
50 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद , 20 किलो नीम की पत्ती या खली और 50 किलो अरंडी
की खली को आपस में अच्छी तरह मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस मिश्रण को बीज बोने
से पहले खेत में एक बराबर मात्रा में डाल दें | इस मिश्रण के डालने के बाद खेत की
अच्छी तरीके से जुताई करें ताकि यह खाद मिटटी में अच्छी तरह से मिल जाये | इसके
बाद ही बुआई करें | बीज बोने के लगभग एक महीने के बाद इसमें देसी गाय के मूत्र में
नीम की पत्तियों का काढ़ा मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण को किसी
पम्प की मदद से फसलों पर छिडकें | इससे फसल में होने वाले कुप्रभाव दूर हो जाते है
| इस तरह के मिश्रण को अपनी फसल पर हर महीने में कम से कम दो बार जरुर छिडकें |
रासायनिक खाद का
प्रयोग :- बीज बोने से पहले खेत में बनाई हुई नालियों में 45 से 50 किलोग्राम डी
.ए. पी. और 50 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश को प्रति एक ह्येक्टर के मुताबिक भूमि में
मिलाएँ | इसके आलावा 20 से 30 टन सड़ी हुई गोबर की खाद अथवा कम्पोस्ट खाद को खेत
में बीज बोने से लगभग एक महीने पहले मिटटी में मिला दें | और खेत की अच्छी तरह से
जुताई करें | इसके बाद नत्रजन की 30 किलो की मात्रा और यूरिया को बीज बोने के लगभग
25 दिन के बाद डालें | जब पौधे में फुल आने लगे तो नत्रजन और यूरिया की इतनी ही
मात्रा को फसलों पर पर डालें |
सेम की फसल में
सिंचाई का प्रबन्ध :- सेम की अगेती फसल में जरूरत के अनुसार ही सिंचाई करें | इसके
आलावा जिस फसल को वर्षा ऋतू में लगाई जाती है उनमे आमतौर पर सिंचाई की आवश्कता
नहीं होती | लेकिन बारिश ना होने पर फसलों में सिंचाई करना जरूरी होता है | जिन
फसलों को फरवरी या मार्च में बोया जाता है उस फसल में एक महीने में कम से कम दो
बार सिचाई अवश्य करनी चाहिए |
खरपतवार :- सेम की
फसल पर होने वाले खरपतवार को दूर करने के लिए 3 या 4 बार खुरपी के साथ हल्की –
हल्की निराई और गुड़ाई करनी चाहिए |
Sem Ki Fasl ko Keeton Se Bachayen |
:- सेम की फसल में लगने वाले कीट :-
चैपा :- यह कीट पौधे
की हरी भरी पत्तियों और अन्य हिस्सों का रस चूस लेता है | जिससे पौधे के फुल और फल
को नुकसान होता है | चैंपा नामक कीट बहुत छोटे आकार का होता है | लेकिन यह पौधे को
बहुत नुकसान पहुचता है |
इसकी रोकथाम के लिए
उपाय :- इस कीट के प्रभाव से पौधे को बचाने के लिए नीम के पत्तियों का काढ़ा और
देसी गाय के मूत्र में माइक्रो झाइम मिलाकर एक मिश्रण बनाएं| इस तरह से तैयार किये
हुए मिश्रण की 250 ग्राम की मात्रा में पानी डालकर फसलों पर किसी पम्प की मदद से
छिडकाव करें | इस प्रयोग को करने से पौधे में हुए हानिकारक प्रभाव दूर हो जाते है
|
बीन बीटल नामक कीट
:- यह कीट पौधे के हरे कोमल भागों को खाता है | इस कीट का शरीर किसी मजबूत हिस्से
से ढका हुआ होता है और इसके उपर कुछ काले – काले निशान होते है | बीन बीटल पुराने
ताम्बे के रंग का होता है | इसके प्रभाव से पौधे को बचाने के लिए हमे निम्नलिखित
उपाय करना चाहिए |
बचाने का उपाय :- इस कीट के प्रभाव से पौधे को
बचाने के लिए नीम के पत्तियों का काढ़ा और देसी गाय के मूत्र में माइक्रो झाइम
मिलाकर एक मिश्रण बनाएं| इस तरह से तैयार किये हुए मिश्रण की 250 ग्राम की मात्रा
में पानी डालकर फसलों पर किसी पम्प की मदद से छिडकाव करें | इस प्रयोग को करने से
पौधे में हुए हानिकारक प्रभाव दूर हो जाते है |
चूर्णी फफूंदी :- पौधे
में यह रोह फफूंदी के कारण होता है | यह फफूंदी सेम के पौधे के सभी हिस्सों को
नुकसान पंहुचाती है | लेकिन पौधे के लिए यह नुकसानदायक नहीं है | इस फफूंदी के
कारण पौधे की हरी – हरी पत्तियां पीली होकर मर जाती है | चूर्णी फफूंदी पौधे में
कलियाँ नहीं बनने देती यदि कली बन भी जाती है तो बहुत छोटी बनती है | और इसकी उपज
बहुत ज्यदा कम होती है | इस फफूंदी से पौधे को बचाने के लिए एक उपाय है जो इस
प्रकार से है |
:- उपाय :-
देसी गाय के लगभग 15
लीटर मूत्र को किसी ताम्बे के बर्तन में 45 से 50 दिनों तक रख दें | 50 दिनों के
बाद इस मूत्र में 5 किलो धतूरे के पौधे की पत्तियां और तने को इसके साथ मिलाकर
उबाल लें | उबलते हुए जब इसकी मात्रा आधी शेष रह जाये तो इसे अनच से उतारकर ठंडा
होने के लिए रख दें | ठंडा होने के बाद इसे छान लें | इस प्रकार से तैयार किये हुए
इस मिश्रण की लगभग 2 से 3 लीटर की मात्रा को किसी पम्प की मदद से पौधे पर छिडकाव
करें | इस प्रयोग को करने से हमारी फसल खराब नहीं होती |
फसल की तुड़ाई |
फसल के पकने के बाद
इसकी तुड़ाई का तरीका :- सेम की जिस फसल को जुलाई या अगस्त में बोया जाता है उस फसल
में दिसंबर के महीने के फुल आने लगते है | फुल के निकलने के लगभग 3 या 4 सप्ताह के
बाद फलियाँ लग जाती है | जिसे हम तोड़ सकते है | सेम की फलियों को तोड़ते समय देरी
नहीं करनी चाहिए नहीं तो फली पक कर कठोर हो जाती है | पकी हुई फली की सब्जी अच्छी
नहीं बनती जिसके कारण इसे बाजार में उचित मूल्य पर नही बेचा जाता | इसलिए सेम की
हरी – हरी फलियों को ही तोड़ना चाहिए | जिसे बाजार में उचित मूल्य पर बेचा जा सके |
उपज की प्राप्ति :-
सेम की खेती में एक हक्टेयर भूमि में कम से कम 60 से 90 किवंटल तक की उपज प्राप्त
हो जाती है |
सेम की उन्नत खेती करने का तरीका, Sem Ki Kheti Karne ka Tarika, Sem ki Fasal Ke Liye Upyukt
Bhumi or Jalvayu , Sem ki Fasal Mein Kharpatvar
Ko kaese roken, Sem Ki Fasl ko Keeton Se Bachayen|
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