विभिन्न परेशानियों और
बिमारियों में प्रयोग होने वाले षट्कर्म की क्रिया
मानव शरीर को स्वस्थ
रखने के लिए और शुद्ध करने के लिए षट्कर्म की विधि को किया जाता है | इस विधि में
छ: कर्म किये जाते है | जिनका विवरण निम्नलिखित किया गया है.
१.
नेति
२.
धोती
३.
शंख प्रक्षलन
४.
बस्ति
५.
त्राटक
६.
नौली
नेति कर्म neti karma |
इन छ: कर्मो को मानव को
रोजाना नहीं करना चाहिए | अपितु अपनी जरुरत अनुसार और इन क्रियाओं को कफज विकार ,
पित्त विकार को दूर करने के लिए किया जाता है | इस योग को करने से मन की शांति
मिलती है और शरीर में शक्ति बढती है | षट्कर्म की विधि को अपनाकर हम उदर के रोग ,
कुष्ठ रोग , फुफ्फुस रोग , दिल की बीमारी और वृक्क आदि बीमारियों को दूर करते है |
षट्कर्म में जिन छ: कर्मो के बारे में बताया गया है उनका वर्णन इस प्रकार से है |
१.
नेति कर्म / Neti Karma :- इस कर्म का
प्रयोग नाक के द्वारा किया जाता है | इस विधि का अभ्यास करने से नाक से जुडी हुई
समस्या और गले व मस्तिष्क संबंधी परेशानी दूर हो जाती है | इस बीमारी के आलावा
आँखों के विकार , नेत्र दाह , नासाशोथ या नाक सम्बन्धी रोग इत्यादि बीमारियों में
भी हमें फायदा मिलता है | इस विधि को जलनेति या धृत नेति क्रिया भी कहा जाता है |
षट्कर्म उपकरण , shatkarma upkaran |
२.
धौति कर्मा / dhoti karma :- इस कर्म का
अभ्यास करना सबसे आसान व सुरक्षित और बहुत ही लाभ देने वाला है | इसके करने से शरीर
के अंदर नाड़ी जाल शुद्ध होता है और शरीर हल्का और स्वस्थ हो जाता है | शरीर के
अंदर रक्त संचरण भली प्रकार होने लगता है , इस विधि का उपयोग पेट की बीमारी को दूर
करने के लिए किया जाता है | इसके अभ्यास से अम्लपित्त- amlpit , अग्नि मन्ध्य ,
दमा – dama , साँस से जुडी हुई परेशानी – sans rog , प्लीहा - pliha, गुल्म -
pliha, जथारशोथ – jatharsodh आदि बीमारी को ठीक करता है |
३.
शंख प्रक्षालन कर्म / shankh prakshalan :- इस विधि में मानव के
आंतो को शुद्ध किया जाता है | इसलिए इसे शंख प्रक्षालन कहा जाता है | इस क्रिया को
करने से वास्तव में मानव शरीर का काया कल्प हो जाता है | इसके प्रयोग से पेट के
रोग , कब्ज रोग – kabj rog , अम्लपित्त – amlpit , मधुमेह - madhumeh , श्वास दिल
की बीमारी swas rog , मस्तिष्क का दर्द – sar का dard , जिव्हा विकार tongue problem , आँखों का रोग –
ankhon ke rog ठीक हो जाता है | इसे वामन धौति , वस्त्र धोती कर्म और कुन्जेर क्रिया भी कहते है |
बस्ति कर्म / basti karma |
४.
बस्ति कर्म / basti karma :- बस्ति कर्म में मल
के द्वारा हमारे शरीर की गंदगी को बाहर निकलते है | इसका प्रयोग पक्क्वाश्य के शोधन के लिए किया
जाता है | इसके उपयोग से बड़ी आंतों को शोध किया जाता है | और पुरुषों में स्वप्न
दोष और धातु विकार को ठीक किया जाता है | इसके उपयोग के करने से बदहजमी ठीक होकर ,
पाचन शक्ति बढती है शरीर में खून की कमी पूरी होती है और हमारा शरीर मजबूत बनता है
| इसे जल बस्ती कर्म और पवन बस्ति कर्म भी कहा जाता है | जिन लोगों को अर्श – बवासीर , भंगंदर , आंत के
बुखार की बीमारी है उसे इस विधि का उपयोग नहीं करना चाहिए |
त्राटक कर्म tratak in yoga |
५.
त्राटक कर्म / tratak :- आखों से जुडी हुई समस्या और छाती में जमे हुए बलगम या
कफ को बाहर निकालने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है | त्राटक के लगातार अभ्यास
करने से मष्तिस्क और आखों की गर्मी बढ़ने लगती है | इसलिए इसके तुरंत बाद नेति विधि
का उपयोग करना चाहिए | इसके प्रयोग से आखों की मशपेशियो को बल मिलता है और आखों की
शक्ति बढती है | त्राटक के उपयोग करने से
अनेक प्रकार की सिद्ध्या प्राप्त होती है |इस विधि के उपयोग से आलस्य ज्यादा नींद
आना आदि परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है |
नौली क्रिया nauli kriya |
६.
नौली क्रिया / nauli kriya :- यह किर्या षट्कर्म की छ: क्रियाओं में से सबसे
आसान और सर्वश्रेष्ठ और उत्तम माना गया है | जिन लोगो को पेट से जुडी हुई समस्या
है और जिनकी मास्पेशियाँ कमजोर होती है उनके ये क्रिया करना बढ़िया माना गया है |
उन लोगों के लिए यह विधि बहुत ही फयेदेमंद है | इसके प्रयोग से माताओं और बहनों
में होने वाले मासिक धर्म विकार दूर हो जाते है | और स्त्री व पुरुष दोनों की पाचन
शक्ति बढ़ जाती है | इसके लगातार उपयोग से हमारा शरीर निरोग हो जाता है | लेकिन
गर्भवती स्त्रियों के लिए यह प्रयोग नुकसानदायक हो सकता है इसलिए गर्भ धारण करने
के बाद इस क्रिया को नहीं करना चाहिए |
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