चुकंदर एक प्रकार की
सब्जी है | लेकिन कुछ लोग इसे फ्रूट भी मानते है | यह गहरे लाल रंग का होता है जो
भूमि के अंदर ही बढ़ता है | इसलिए इसे बीटरूट के नाम से भी जाना जाता है | चुकंदर
में उपयोगी पोषक तत्वों की मात्रा पाई जाती है | चुकंदर में चीनी , प्रोटीन ,
कार्बिनक अम्ल , कैलिशयम , मैग्नीशियम फास्फोरस , पोटाशियम , आयरन और आयोडीन के
मुख्य तत्व पाए जाते है| इसके साथ – साथ विटामिन सी , बी, -1 , बी.2 आदि विटामिन
पाए जाते है | जो हमारे शरीर को स्वस्थ बनाये रखने में सहायक होते है | कुछ लोग
चुकंदर का उपयोग सलाद के रूप में करते है | इसके
खाने से हम बहुत सी बीमारियों से बच सकते है | यह हमारे रक्त को शुद्ध रखता
है और रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा को बढ़ाता है | तो आज हम अनेक गुणों वाले
चुकंदर की खेती की जानकारी दे रहे |
इसकी खेती के लिए
उपयुक्त जलवायु :- चुकन्दर की खेती के लिए 30 से 60 सेंटीमीटर की वर्षा वाला
क्षेत्र उपयुक्त होता है | इसकी फसल के लिए 50 से 60 फारेनहाईट है | इस तापमान पर
चकुंदर की जड़ों में चीनी की मात्रा अधिक होने लगती है | इसे 5 से 8 हजार मीटर की
ऊंचाई पर भी की जा सकती है | चकुंदर की अच्छी वृद्धि के लिए मौसम शुष्क , चमकीला
दिन और रात का समय ठंडा हो तो बेहतर होता
है |
Chuknder Ki Kheti Ke Liye Uchit Bhumi |
चकुंदर की खेती के
लिए भूमि का चुनाव :- चकुंदर की खेती करने के लिए दोमट मिटटी या बलुई दोमट मिटटी
उत्तम मानी जाती है | इसके लिए भूमि का उपजाऊ होना अति आवश्यक है और इस भूमि में
जल की निकास अच्छी तरह से होना चाहिए | यदि जल का निकास नही होगा तो छोटे पौधे में
पानी ठहरने से हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है | चकुंदर की खेती लवण की भूमि मेंआसानी
से उगाया जा सकता है | इसके अलावा भारी चिकनी मिटटी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक
की जा सकती है | जब चुकंदर की फसल पक कर तैयार हो जाये तो इसकी खुदाई के समय मिटटी
को साफ करने में मुश्किल होती है |
चकुंदर की किस्मे :-
ईरो टाइप ईमेरोबी
मेरोक
पोलीइग्लोपोलीएन
.पी.पोलीए.,
जे.पोलीमेरोबी,
मेगना
पोलीरोमांस,
कायाब्रुश, ई
ट्रिपेलक्सयु,. एस. एच.
-1 ,बी.जी.डब्ल्यू – 684 यु.एस.-85 ,यु.एच .-35 ए.म्.एस.एच.-102
बीज को
बोने का तरीका :- चुकंदर के बीज के बोने का बीज की किस्म पर निर्भर करता है | एक
अंकुरण वाली किस्म में 5 से 6 किलो प्रति एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है | जबकि
बहु अंकुर वाली किस्म के लिए 10 से 12 किलो बीज प्रति एक हेक्टेयर भूमि के लिए
काफी है | चुकंदर के बीज की बुआई के समय
मिटटी में नमी की मात्रा होनी चाहिए |
पौधा
रोपण की विधि :- चकुंदर को कतारों में लगाना चाहिए | एक कतार से दुसरे कतार की
दुरी 50 से 60 सेंटीमीटर की दुरी होनी
चाहिए और एक पौधे से दुसरे पौधे के बीच की दुरी 20 से 25 सेंटीमीटर की रखे | एक
एकड़ भूमि पर 3000 से 45, 000 पौधे लगाना
फायदेमंद होता है | इस प्रकार से पौधे लगाकर हम चुकंदर का अच्छा उत्पादन कर सकते
है |
chuknder Ki Fasal Mein Pryog Hone Vali Khad, |
बीज
बोने का उचित समय :- चकुंदर के बोने का समय इसकी किस्म पर आधारित होता है | वैसे
इसकी बुआई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक के समय में की जाती है | बीज उतपादन के लिए
इसकी बुआई अप्रैल महीने की 15 तारीख तक करें | क्योंकि इस समय हिमाचल प्रदेश में
बीज का अच्छा उत्पादन होता है |
चकुंदर
को बोने का तरीका :- चुकंदर को बोने से पहले खेत में पानी डालकर हल्की सी सिंचाई
कर दें | और भूमि को समतल बना लें | इस विधि को हम पलेवा कहते है | इसके बीजों को
हम समतल भूमि पर या मेड़ बनाकर बो सकते है | अगर चुकंदर बोने के लिए ड्रिल मशीन ना
हो तो इसे बोने के लिए हम देशी हल का भी प्रयोग कर सकते है | चुकंदर को बोने के
लिए किसी भी हल्के यंत्र से लगभग 50 सेंटीमीटर का गड्डा खोदकर इसमें बीजों को
बोयें | चुकुन्दर के एक बीज से दुसरे बीज की दुरी लगभग 10 से 20 सेंटीमीटर की होनी
चाहिए | चुकुन्दर के बीजो को बोने से एक दिन पहले पानी में भिगोकर रख दें | अगले
दिन बीजों को पानी से निकालकर थोड़ी देर के लिए छाया में सुखा लें | इसके बाद ही
बुआई करें |
चुकंदर
की खेती में प्रयोग होने वाली खाद :- चुकंदर की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए
इसमें अच्छी खाद का प्रयोग करना चाहिए | इसके लिए हमे 10 से 12 किवंटल सड़ी हुई
गोबर की खाद , आर्गनिक खाद और नीम की खली को आपस में मिला लें | इस खाद के मिश्रण
को लगभग 1 एकड़ भूमि पर समान मात्रा में मिला दें | इसके आलावा यदि इसमें रसायनिक
खाद मिलाना है तो पोटाश और बोरान की मात्रा भी मिला सकते है | इससे हमारी चकुंदर
की फसल और उत्पादन अच्छा होता है |
chuknder Ki Kheti Se Prapt Upaj |
सिंचाई
करने का तरीका :- चकुंदर की फसल को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती | इसकी पहली
सिंचाई बुआई के 15 दिन के बाद करें | और दूसरी सिंचाई 20 दिन के बाद करें | वैसे
इसकी सिंचाई सर्दी के मौसम और वर्षा पर निर्भर होती है | फसल के पकने और कटाई करने
तक 25 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहे | लेकिन इस बात का ध्यान रहे की खेत में
जरूरत से ज्यादा पानी इक्कठा नही होना चाहिए अन्यथा चकुंदर में चीनी की मात्रा कम
हो जाती है | जब इसकी फसल पककर तैयार हो जाये तो खेत की मिटटी में नमी की मात्रा
कम होनी चाहिए | इससे सुक्रोज की मात्रा बढ़ती है |
खरपतवार
की रोकथाम करने के लिए :- चुंकदर की फसल बोने के लगभग 30 दिन के बाद खेत में हल्की
– हल्की निराई – गुड़ाई करके अनचाहे उगे हुए खरपतवार को नष्ट कर दें | दूसरी बार 44
दिन के बाद फसल में निराई – गुड़ाई करें | जिस खेत में चुकंदर की फसल बोई गई है उस
खेत को लगभग 60 दिन तक खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए |
चुकंदर
की फसल पर लगने वाले कीटों पर नियंत्रण :- चुकंदर की फसल पर कट वर्म या कटुआ , पत्तियों का चित्ती रोग
, बिहार हेयरी कैटर पिलर , और तम्बाकू की
सुंडी जैसे कीटों का प्रभाव हो सकता है | जो इसकी फसल को हानि पंहुचा सकते है |
इन
कीटों से बचने के लिए :- नीम के पेड़ की कुछ पत्तियों को तोडकर इसका काढ़ा तैयार
करें | इस तैयार काढ़े में गौमूत्र को मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण की 250
मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसल पर तर – बतर करके छिडकाव करें | इस
प्रकार के छिडकाव से चुकंदर की फसल पर लगने वाले कीटों के प्रभाव को दूर किया जा
सकता है |
Chuknder ko Rog |
फसल
तैयार होने पर खुदाई :- चुकंदर की फसल बोने के 5 से 6 महीने के बाद पककर तैयार हो
जाती है | लक्षण :- पकने के बाद चुकंदर के
पौधे की पत्तियां सुख जाती है | इसकी खुदाई करने से 15 दिन पहले सिंचाई करना बंद
कर दें |
अंकुरण
के लिए पौधे की छटाई करना :- बहु अंकुरण नाम वाली किस्म से एक पौधे से अधिक पौधे
निकलते है | इसलिए खेत में अपनी इच्छा के अनुसार पौधे की संखया रखने के लिए बुआई
के 30 दिन के बाद पौधे की छटाई जरुर करनी चाहिए | ऐसा करने से फसल उत्पादन बढ़ता है
|
चुकंदर की जैविक खेती का
तरीका | Chuknder Ki Jaevik Kheti Ka Trika , चुकंदर, Chuknder Ki Unnat Kismen , Chuknder Ki Kheti Ke Liye Uchit Bhumi or Jalvayu
, Chuknder Mein Lagne Vale
Rog or Keet se bachaav , chuknder Ki Fasal Mein Pryog Hone Vali Khad , chuknder Ki Kheti Se Prapt
Upaj |
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