पत्ता गोभी जैसे की नाम से
मालूम होता है की यह एक पत्तेदार सब्जी है | जो हमारे लिए बहुत उपयोगी होती है |
इसे बंद गोभी के नाम से भी जाना जाता है | इसकी खेती रबी के फसल के रूप में की जाती है | इस
सब्जी में पोषक तत्वों की अधिक मात्रा पाई जाती है | इस सब्जी को सबसे पहले
पुर्तगालियों के द्वारा भारत में लाया गया था | भारत में आने के बाद इस सब्जी का
उत्पादन सारे देश – विदेश में किया जाने लगा | लेकिन इसकी उत्त्पति भूमध्यसागरीय
क्षेत्र से हुई है | बंद गोभी को सब्जी के रूप में और सलाद के रूप में किया उपयोग
किया जाता है | इसे सुखाकर आचार के रूप में भी प्रयोग किया जाता है | बंद गोभी में
विटामिन ए. और सी , कैलिशयम और फास्फोरस की मात्रा पाई जाती है | जो मनुष्य के
शरीर के लिए लाभदायक होते है |
पत्ता गोभी के लिए अनुकूल जलवायु |
इसकी खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :- जलवायु की उपयुक्तता के कारण बंद गोभी की
दो फसलें ली जा सकती है | भारत में पहाड़ी इलाके में अधिक ठंड होती है जिसके कारण
इसकी फसल गर्मी के मौसम में और बसंत के मौसम में ली जाती है | बंद गोभी की अच्छे
उत्पादन और वृद्धि के लिए ठंडी और आद्र जलवायु अच्छी मानी जाती है | इस फसल में
पाले और अधिक गर्मी सहन करने की क्षमता होती है | बंद गोभी के बीज में जब अंकुरण
होने लगे तो मौसम का तापमान 28 से 30 डिग्री सेल्सियस का होना चाहिए | इस तापमान
पर बीज का अंकुरण अच्छी तरह से होता है | बंद गोभी में एक सबसे अच्छा यह है की इसे
अगर खेत में उगाते है और ठंड में थोडा सा पाला पड़ जाये तो बंद गोभी का स्वाद अच्छा
हो जाता है |
इसकी खेत करने के लिए भूमि का चुनाव :- इसकी खेती करने के लिए भूमि का चुनाव
इसकी किस्म पर निर्भर करता है | यदि अगेती किस्म उगाई जा रही हो तो रेतीली दोमट
मिटटी सबसे अच्छी मानी जाती है और यदि पछेती फसल उगाई जा रही हो तो भारी भूमि जैसे
मृतिका सिल्ट या दोमट मिटटी बेहतर होती है | वैसे बंद गोभी की खेती किसी भी प्रकार
की भूमि में की जा सकती है | जिस खेत में बंद गोभी की फसल लगाई जाती है उस भूमि का
पी. एच. मान 5 से 7. 5 का हो तो अच्छा होता है | इसमें बंद गोभी का उत्पादन अच्छा
होता है |
खेत की तैयारी :- बंद गोभी की फसल को उगाने से पहले खेत को मिटटी पलटने वाले
हल से या ट्रेक्टर से करें | लगभग 3 या 4 बार गहरी जुताई करके खेत में पाटा लगाकर
भूमि को समतल बना लें | इसके बाद ही फसल को लगायें |
बंद गोभी की किस्में :- इसकी किस्मों को दो भागों में बांटा गया है | 1. अगेती
किस्म 2. पछेती किस्म
Patta Gobhi Ki Unnat Kismen |
1.
अगेती किस्म :- प्राइड ऑफ़ इण्डिया , मीनाक्षी ,
गोल्डन एकर और अर्ली ड्रमहेड आदि |
2.
पछेती किस्म :- लेट ड्रम हेड , पूसा ड्रम हेड ,
अर्ली सॉलिड ड्रम हेड एक्स्ट्रा अर्ली एक्स्प्रक्स , लार्ड माउंटेन हेड कैबेज लेट
, सेलेक्टेड डब्ल्यू , डायमंड , सेलेक्शन -8 , क्वीईसिस्ट्स और पूसा मुक्त आदि |
इसकी खेती करने का उपयुक्त समय :- बंद गोभी को बोने का समय इसकी किस्म पर ही
आधारित होता है | मैदानी भागो में अगेती किस्मो को अगस्त से सितम्बर के महीने में
उगाया जाता है | जबकि पछेती किस्मों के लिए सितम्बर से अक्तूबर का महिना सर्वोतम
होता है | इसके आलावा पहाड़ी इलाके में बंद गोभी को सब्जी के रूप में जून के महीने में बोया जाता है | जबकि बंद गोभी के
बीज के उत्पादन के लिए अगस्त के महीने में बोया जाता है |
बंद गोभी की फसल को बोने के लिए बीज की मात्रा :- बंद गोभी के बीज की मात्रा
उसकी बुआई पर आधारित होती है | बंद गोभी की अगेती किस्मों के लिए आधी किलो ग्राम
बीज की मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त होती है | इसके आलावा पछेती
किस्मों के लिए 400 ग्राम प्रति एक हेक्टेयर बीज की मात्रा काफी होती है |
बंद गोभी के खेत में प्रयोग होने वाले खाद का विवरण :- बनद गोभी की अधिक
पैदावार के लिए भूमि का अधिक उपजाऊ होना बहुत जरूरी है | इसके आलावा बंद गोभी की
फसल को अधिक पोषक तत्वों की जरूरत होती है | इसलिए इसकी फसल में अच्छी तरह से सड़ी
हुई गोबर के खाद की 300 किवंटल की मात्रा में एक किवंटल नीम की सड़ी हुई पत्तियों ,
नीम की खली या नीम का दाना ( बारीक़ पिसा हुआ ) को आपस में अच्छी तरह से मिलाकर एक
खाद का मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को भूमि में मिला दें | इश्क खाद के प्रयोग करने
के लगभग 15 दिन के बाद फसल में केंचुए की खाद डालना चाहिए |
Patta Gobhi Ki Fasal Mein Pryog Hone Vali Khad |
रासायनिक खाद का प्रयोग :- यदि खेत
में रासायनिक खाद का प्रयोग करना है तो लगभग 120 किलो नाइट्रोजन , 50 से 60 किलो फास्फोरस की मात्रा , और 50 से 60 किलो पोटाश की मात्रा काफी होती है | नाइट्रोजन
की आधी मात्रा में फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा को मिलाकर खेत में बिखेर दें
| इस खाद के प्रयोग करने के एक महीने बाद बाकि बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा भूमि में मिला दें |
सिंचाई करने का तरीका :- बंद गोभी की फसल में सिंचाई की बहुत आवश्कता होती है
| क्योंकि जिस भूमि में बंद गोभी की फसल उगाई जा रही हो उस भूमि में नमी हमेशा
रहनी चाहिए | जिसके लिए हमे समय – समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए | बंद गोभी की
फसल में 7 से 10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहे | लेकिन जब इसकी फसल तैयार हो
रही हो खेत में ज्यादा सिंचाई ना करें | नहीं तो गोभी के फल फट सकते है |
खरपतवार पर नियंत्रण :- बंद गोभी की फसल में अनचाहे खरपतवार को दूर करने के
लिए एक बार सिंचाई करने के बाद हल्की – हल्की निराई और गुड़ाई करना चाहिए | इसकी
फसल में ज्यादा गहरी निराई ना करें नही तो गोभी की जड़े कट सकती है | निराई – गुड़ाई
करने के 4 से 6 सप्ताह के बाद मिटटी चढ़ा देनी चाहिए |
1.
कैबेज मैगेट :- यह कीट बंद गोभी की जड़ो को
नुकसान पंहुचता है जिसके कारण बंद गोभी का पौधा सुख जाता है | इसकी रोकथाम करना
बहुत जरूरी है |
रोकथाम का उपाय :- इस कीट के कुप्रभाव से बचने के लिए खेत में नीम की खाद का
प्रयोग करना चाहिए |
2.
चैपा :- यह कीट हरे - भरे पौधे की पत्तियों और कोमल भागों का रस चूस लेता है|
जिसके कारण हरी – हरी पत्तियां पीली हो जाती है | इस कीट से पौधे को बचाने के लिए
एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
उपाय :- 5 लीटर देशी गाय के मूत्र में नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाकर मिलाकर
एक अच्छा सा मिश्रण बनाएं | इस प्रकार से तैयार किये हुए मिश्रण की 500 मिलीलीटर
की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इससे चैम्पा नामक कीट का
कुप्रभाव पौधे पर नहीं होता | ग्रीन कैबेज और वर्म कैबेज लुपर :- ये दोनों कीट पौधे की पत्तियों को खा कर उनका
आकार बिगाड़ देती है | इन दोनों कीटों से बचने के लिए हमे निम्नलिखित उपाय करना
चाहिए |
रोकथाम का उपाय :- नीम की पत्तियों का
काढ़ा बनाएं और इस काढ़े के गौमूत्र में मिला दें | इन दोनों के मिश्रण की 500
मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर बंद गोभी की फसल पर तर – बतर करके
छिडकाव करें | इस छिडकाव से पौधे में हुए कीटों के प्रभाव को दूर किया जा सकता है
|
डायमंड बैकमोथ :- यह कीट भूरे या कथई
रंग का होता है | इसकी लम्बाई लगभग 1 सेंटीमीटर की होती है और इसके अंडे 0. 5
मिलीमीटर व्यास के आकार के होते है | इस कीट की सुंडी एक सेंटीमीटर लम्बी होती है
जिससे यह पौधे की पत्तियों के किनारे वाले हिस्से को खा जाती है | इस क्र्र्ट से
बचने के लिए एक उपाय है जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
रोकथाम का उपाय :- नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाएं और इस काढ़े के
गौमूत्र में मिला दें | इन दोनों के मिश्रण की 500 मिलीलीटर की मात्रा को किसी
पम्प में डालकर बंद गोभी की फसल पर तर – बतर करके छिडकाव करें | इस छिडकाव से पौधे
में हुए कीटों के प्रभाव को दूर किया जा सकता है |
बलैक लैग : - पौधे में यह रोग उस स्थान पर होता है जंहा नमी होती है | पौधे
में यह रोग बीजों के कारण होता है | जिससे पौधे की जड़ सड़ जाती है | फलस्वरूप पौधा
मुरझाकर भूमि पर गिर जाता है | पौधे में यह बीमारी एक फफूंदी के कारण होता है | जिसका नाम फोमा लिगमा है | इसकी रोकथाम करने के
लिए बीज को बोने से पहले उपचारित करें | बीजो को
गौमूत्र या कैरोसिन , नीम के तेल से उपचारित करना चाहिए |
मृदु रोमिल आसिता :- पौधे में यह बीमारी एक फफूंदी के कारण होता है | इसका
कुप्रभाव छोटे – छोटे पौधे पर होता है | जिसके कारण हरा – भरा पौधा रंग विहीन हो
जाता है |
पत्ता गोभी की कटाई |
फसल तैयार होने के बाद कटाई :- जब बंद गोभी की फसल पूरी तरह विकसित हो जाये और
ठोस हो जाये तो ही इसकी कटाई करनी चाहिए | भारत के मैदानी भागों में दिसंबर के
महीने में मध्य में बंद गोभी की कटाई की जाती है | लेकिन पहाड़ी भागों में इसकी
कटाई दो बार की जाती है | बंद गोभी की पहली कटाई सितम्बर से दिसंबर में की जाती है
और दूसरी बार मार्च से जून में की जाती है |
Patta Gobhi Ki Kheti Se Prapt उपज |
उपज की प्राप्ति :- बंद गोभी की उपज इसकी किस्मं और अच्छी देखभाल पर आधारित
होती है | बंद गोभी की अगेती किस्म से हमे 200 से 250 किवंटल प्रति एक हेक्टेयर और
पछेती किस्म से 250 से 300 किवंटल तक की उपज प्राप्त हो जाती है |
पत्ता गोभी की खेती करने का तरीका | Patta Gobhi Ke Liye Uchit Bhumi Or Jalvaayu , Patta Gobhi Ki Unnat Kismen ,
Patta Gobhi Mein Lagne Vale Rog or Keet Se Bachaane Ka Trika , Patta Gobhi Ki
Fasal Mein Pryog Hone Vali Khad , Patta Gobhi Ki Kheti Se Prapt Upaj |
जिला मुख्यालय से नौ किलोमीटर दूर पश्चिम दिशा में करंजाकला ब्लॉक में गोमती नदी के किनारे बसा गाँव कोहड़ा सुल्तानपुर के निवासी गंगेश यादव लगभग 15 वर्षों से लगातार गोभी की उन्नत खेती कर रहे हैं। वर्ष में छह महीने सितम्बर से फरवरी तक गोभी की खेती करते हैं। उसके बाद गर्मियों में टमाटर और करेला उगाते हैं।
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