Gajar Ki Labhdaayk Kheti Ka Trika |
गाजर की खेती करने का तरीका :- गाजर की खेती पूरे भारत में की जाती है |
परन्तु गाजर की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश , असाम , कर्नाटक , आन्ध्र प्रदेश
, पंजाब और हरियाणा आदि क्षेत्रो में उगाई जाती है | गाजर का सब्जियों और फलों के
रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान है | यह एक जड़ वाली सब्जी है | जिसका उपयोग हम कच्चा
भी कर सकते है और पकाकर भी | इसे दोनों रूप में प्रयोग किया जा सकता है | गाजर की
हरी – हरी पत्तियों में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक पाई जाती है | जैसे प्रोटीन ,
मिनरल्स , और विटामिन आदि पोषक तत्व होते है जो की जानवरों के लिए लाभदायक होता है
| गाजर की पत्तियों को मुर्गियों के चारे
के रूप ,में भी प्रयोग किया जाता है | इसके आलावा गाजर में कैरोटिन और विटामिन A
की भरपूर मात्रा में पाया जाता है | जो कि मनुष्य के शरीर के लिए बहुत फायदेमंद
होता है | नारंगी रंग की गाजर में कैरोटिन की मात्रा अधिक पाई जाती है | तो आज हम
बहुत से गुणों वाली गाजर की खेती के बारे में जानकारी दे रहे है|
गाजर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :- गाजर मुख्य रूप से सर्दी के मौसम की
फसल है | इसकी जड़ों की वृद्धि और उसका रंग मौसम के तापमान से पर निर्भर करता है | गाजर
का बीज 7. 5 से 28 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर अच्छी तरह से अंकुरण कर सकता है |
गाजर की अलग – अलग किस्मों पर तापमान का प्रभाव अलग – अलग पड़ता है | 15 से 20
डिग्री तापमान पर गाजर की जड़ों का आकार छोटा होता है लेकिन इसका रंग बहुत अच्छा
होता है | गाजर की यूरोपियन किस्मो जड़ बनने के लिए मौसम का तापमान 0 डिग्री
सेल्सियस होना चाहिए और विरिधि करने के लिए 4. 8 से 10 डिग्री सेल्सियस का तापमान
सर्वोत्तम माना जाता है |
Gajar Ki Kheti Ke Liye Uchit Bhumi or Jalvayu |
इसकी खेती करने के लिए भूमि का चुनाव :- इसकी खेती दोमट मिटटी में सफलतापूर्वक की जा
सकती है | गाजर के बीजो को बोने से पहले खेत की मिटटी भुरभुरा कर लें | इससे गाजर
की जड़ें अच्छी बनती है | खेत में जरूरत से ज्यदा पानी इक्कठा ना करें अन्यथा फसल
खराब हो सकती है | जिस खेत में गाजर बोई
गई उस खेत में पानी की निकासी का प्रबंध अच्छा होना चाहिए |
गाजर की फसल बोने से पहले खेत की तैयारी :- खेत की 3 या 4 बार जुताई करके देसी
हल से करें | इससे पहले खेत को विट्री हल से जोतना चाहिए | हर एक जुताई करने के
बाद पाटा जरुर लगायें | ताकि मिटटी भुरभरी हो जाये | भूमि की 30 से 0 गहराई तक पर
मिटटी भुरभुरी होनी चाहिए | ताकि जड़ें अच्छी तरह से बन जाये |
गाजर की किस्में :-
पूसा केसर :- यह गाजर की सबसे अच्छी किस्म होती है | इसका रंग लाल होता है ,पत्तियां
छोटी , जड़ें लम्बी बीच का भाग लाल और संकरा होता है | गाजर की इस किस्म की फसल
बुआई के 90 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इस किस्म से हमे एक हेक्टेयर
भूमि पर से 300 से 350 किवंटल तक की अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है |
Gajar, गाजर Ki Unnat Kismen |
पूसा मेघाली :- गाजर की इस किस्म में कैरोटिन की मात्रा अधिक पाई जाती है | यह
नारंगी रंग की गाजर होती है और इसकी टॉप छोटी होती है | यह एक संकर प्रजाति है | गाजर की अगेती बुआई अगस्त – सितम्बर से अक्टूबर तक के समय में की जाती है | बुआई के
लगभग 100 से 110 दिन के बाद फसल पककर तैयार हो जाती है | गाजर की इस किस्म से हमे
200 से 300 किवंटल तक की अच्छी उपज मिल जाती है |
पूसा यम्दाग्नी :- गाजर की यह किस्म आई . ए. आर. आई. के क्षत्रो के केंद्र
द्वारा विकसित हुई है | गाजर की इस किस्म से हमे 150 से 200 किवंटल प्रति एक
हेक्टेयर तक की उपज मिल जाती है |
नेन्ट्स :- गाजर क की इस किस्म की जड़ें नारंगी रंग की होती है | इसके अंदर का
भाग मुलायम , मीठा , और रसीला होता है | बुआई
के 110 से 120 दिन के बाद यह फसल पककर
तैयार हो जाती है | इस किस्म से एक हेक्टेयर भूमि से 90 से 125 किवंटल तक की उपज मिल जाती है |
गाजर की बुआई का समय :- भारत के मैदानी भागो में एशियाई किस्म की बुआई अगस्त
से अक्टूबर तक के समय में की जाती है | इसके आलावा यूरोपियन किस्मों के लिए
अक्टूबर से नवम्बर तक का समय सर्वोत्तम माना जाता है | इस समय में बुआई से गाजर की
उत्तम फसल प्राप्त होती है |
गाजर के बीज की मात्रा :- गाजर की 6 किलोग्राम बीज की मात्रा को एक हेक्टेयर
भूमि पर बोया जा सकता है |
गाजर की बुआई का तरीका :- गाजर की बुआई छोटी – छोटी समतल क्यारियां बनाकर की
जाती है | या मेड बनाकर 30 से 40 सेंटीमीटर की दुरी पर गाजर की बुआई कर सकते है |
सिंचाई करने का तरीका :- गाजर की बुआई करते समय खेत में नमी की मात्रा अधिक
होनी चाहिए | गाजर के बीजो में जब अंकुरण शरू हो जाये तो पहली बार सिंचाई करें | पहले
8 से 10 दिन के अंतर पर सिंचाई करें | जब फसल पकने लगे तो 15 दिन के अंतर पर
सिंचाई करें | खेत को कभी भी सुखाना नहीं चाहिए | नहीं तो हमे कम उपज मिलती है |
खरपतवार की रोकथाम करने के लिए :- गाजर के की फसल में उगे हुए व्यर्थ खरपतवार
को निराई और गुड़ाई करके नष्ट कर देना चाहिए | गाजर की फसल के साथ – साथ भूमि में
बहुत से खरपतवार उग जाते है | जो भूमि से नमी और पोषक तत्व अवशोषित कर लेते है | जिसके
कारण गाजर की वृद्धि रुक जाती है | गाजर की जडो के पास हल्की निराई करनी चाहिए ,
नहीं तो जड़े कट सकती है | जिस खेत में
गाजर उगाई जा रही हो उस खेत को फसल पकने तक खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए |
Gajar Mein Lagne Vale Rog or Keet se bachaav |
गाजर की फसल में प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- गाजर की अच्छी फसल पाने के
लिए हमे खेत में खाद का प्रयोग करना चाहिए | इसके लिए एक हेक्टेयर भूमि पर लगभग 20
से 30 टन सड़ी हुई गोबर की खाद को आखरी जुताई से पहले खेत में मिला दें | इसके बाद
खेत की जुताई करें | ताकि खाद अच्छी तरह से मिटटी में मिल जाये | इसके आलावा 30
किलोग्राम नाइट्रोजन और 25 से 30 किलोग्राम पोटाश की मात्रा को आपस में मिलाकर एक
मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को एक हेक्टेयर की दर से बीजों की बुआई करने से पहले
डालें | बीजों की बुआई करने के 6 सप्ताह के बाद लगभग 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन
की मात्रा को टॉप ड्रेसिंग के रूप में
प्रयोग करें | इससे हमारी गाजर की फसल अच्छी तरह से विकास कर पाती है |
कीटों की रोकथाम करने के लिए :- गाजर की फसल को विविल नामक छ : धब्बे वाला
पट्टी का टिड्डा बहुत हनी पंहुचता है | इसके आलावा छोटे – छोटे कीड़े – मकौड़े
सामान्य रूप से बुरा प्रभाव डालते है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी है |
रोकथाम के उपाय :- नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाकर किसी पम्प में डालकर फसल पर
तर – बतर करके छिडकाव करें | कीटों का प्रकोप दूर हो जाएगा |
आद्र विगलन :- यह फफूंदीजन्य रोग है | पौधे में यह रोग बीजो के अंकुरण होते ही
शुरू हो जाता है | इस रोग में बीज अंकुर होकर भूमि से बाहर नहीं निकलता और भूमि के
अंदर ही सड़ जाता है | यदि अंकुरण होने के बाद पौधा निकल भी जाता है तो पौधे के तने
का निचला भाग जो भूमि से चिपका रहता है पूरी तरह सड़ जाता है | जिसके कारण पौधा उसी
स्थान से टूटकर भूमि पर गिर जाता है | यह रोग पिथियम अफनिड़रमैटम
नामक फफूंदी के कारण होता है इसी बीमारी को आद्र विगलन कहा जाता है | इसकी रोकथाम करने के लिए निम्नलिखित
उपाय करने चाहिए |
gajar Ki Kheti Se Prapt Upaj |
उपाय :- गाजर में यह रोग बीज की
बुआई से शरू होता है | अत: हमे बीजो को
बोने से पहले गौमूत्र से उपचारित करना चाहिए | इसके आलावा बुआई के बाद हल्की –
हल्की सिंचाई करनी चाहिए |
जीवाणु मृदु और बिगवड रोग :- इस रोग का कुप्रभाव मुख्य रूप से गुद्देदार भागों
पर होता है | जिसके कारण गाजर की जड़ें सड़ने लगती है | ऐसे खेत जिसमे जल निकास की
व्यवस्था अच्छी नहीं होती या नीचले भाग में बोई गई फसलों में यह रोग लगता है | पौधे
में यह रोग इविर्निया कैरोटोवरा नामक जीवाणु से होता है | इस रोग में पौधा पूरी
तरह संक्रमित हो जाता है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक आसन सा उपाय है जिसका वर्णन
इस प्रकार से है |
रोकथाम :- खेत में जल में जल की निकासी का प्रबंध उचित प्रकार से होना चाहिए |
इसके आलावा 25 ग्राम नीम की ताज़ी पत्तियों
को तोडकर बारीक़ पीस लें ओ 50 लीटर पानी में मिलाकर आंच पर पका लें जब पानी मी
मात्रा 25 से 28 लीटर की रह जाये तो उसे
आंच से उताकर ठंडा कर लें | ठंडा होने के बाद पानी में काढ़े को मिलाकर किसी पम्प
में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | पौधे में लगा हुआ रोग दूर हो जाता है |
गौमूत्र :- देशी गाय के 10 लीटर मूत्र को कांच केर बर्तन में या पप्लास्टिक के
में डालकर 15 से 20 दिन के लिए रख दें | 20 दिन के बाद पम्प में आधा लीटर पानी
डालकर इसमें गौमूत्र मिला दें और गाजर की फसल पर छिडकाव करे |
गाजर की फसल पकने के बाद खुदाई :- गाजर की खुदाई फरवरी के महीने में करनी
चाहिए | इसकी खुदाई उस समय करें जब गाजर पूरी तरह विकसित हो जाये | गाजर की खुदाई
करते समय भूमि में पर्याप्त मात्रा में नमी होनी चाहिए | जब सारी गाजर की खुदाई हो
जाये तो इन्हें बाजार भेजने से पहले अच्छी तरह से धो लेना चाहिए | इससे बाजार में
गाजर की अच्छी कीमत मिल जाती है |
uttam kism ki gajar |
प्राप्त उपज :- गाजर की पैदावार उसकी किस्म पर निर्भर करती है | एसियाटिक
किस्म से हमे अच्छा उत्पादन मिल जाता है | पूसा यम्दाग्नी किस्म से 150 से 200
किवंटल प्रति एक हेक्टेयर तक की उपज मिल जाती है | , पूसा मेघाली से 200 से 300
किवंटल और नैनटिस से हमे 100 नसे 120 किवंटल तक की अच्छी उपज मिल जाती है |
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