अदरक की लाभदायक खेती करने का तरीका, Adrak ki Labhdayak Kheti Karne ka Tarika |


अदरक की खेती करने का तरीका :-
अदरक की खेती भारत में कई जगहों पर की जाती है | अदरक एक मसाला है और एक औषधी भी है | इसे सुखाकर सोंठ के रूप में भी प्रयोग किया जाता है | इसका सेवन करने से मनुष्य के शरीर में शक्ति और स्फूर्ति आती है और बिमारियां कम लगती है | तो आज कई गुणों वाली अदरक की खेती के विषय में जानकारी दे रहे है |
Adrak ki Labhdayak Kheti Karne ka Tarika
Adrak ki Labhdayak Kheti Karne ka Tarika 
अदरक की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु :- अदरक की खेती के लिए गर्मी और नमीयुक्त जलवायु उत्तम मानी जाती है | अदरक एक उष्णकटिबंधीय फसल है | अदरक की खेती करने के लिए केरल का मौसम अच्छा माना जाता है | इसे केरल के घाटी इलाके में 1500 मीटर की ऊंचाई  पर बोया जाता है इसकी खेती के लिए लगभग 1800 से 3000 मिलीमीटर की वार्षिक वर्षा का होना बहुत जरूरी होता है | अदरक के बीजो को बोने से लेकर उसके अंकुरण तक हल्की बारिश होनी चाहिए और वृद्धि के लिए बीच – बीच में भारी बारिश होना बहुत जरूरी है | बुआई करने के कम से कम एक महीने पहले बारिश समाप्त हो जानी चाहिए |
अदरक की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- अदरक की खेती कई तरह की भूमियों में की जा सकती है | लेकिन रेतीली दोमट मिटटी , दोमट मिटटी और ठोस चिकनी मिटटी इसकी खेती के लिए सर्वोतम होती है | क्योंकि इस भूमि में उचित जल निकास की अच्छी व्यवस्था होती है | जिस खेत में अदरक की खेती की जा रही हो उस खेत की भूमि क्षारांस होनी चाहिए | रबड़ के भाग में पहले तीन सालों तक लगातार अदरक की खेती की जा सकती है |  नारियल ,काली मिर्च , और सुपारी आदि फसलों की तरह ही अदरक की फसल के लिए भी बहुत धुप और खुली जगह की आवश्कता होती है |
Adrak  ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi
Adrak  ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi
अदरक की खेती के लिए भूमि की तैयारी :- जिस खेत में अदरक की खेती करनी है तो उस खेत की भूमि को मिटटी पलटने वाले हल से जुताई करें | जुताई करने के बाद पाटा अवश्य चलायें | ऐसा करने से खेत की मिटटी भुरभुरी और समतल हो जाती है | अदरक की फसल को सूत्र कृमि बीमारी से बचाने के लिए बुआई करने के से पहले खेत की एक हेक्टयर भूमि में कम से कम 80 से 100 किलोग्राम माइक्रो नीम की खाद जरुर डालें | इसके बाद खेत में बुआई करें |
विशेष बात :- अदरक के बीजों को उपचारित करने के बाद ही बोयें | इसके बीजों को कैरोसिन के तेल से उपचारित करें |
प्रजातियाँ :- अदरक की फसल और गुणवत्ता की दृष्टि से अदरक की  निम्नलिखित देशी और वेदेशी किस्में उगाई जाती है | जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
1.          कच्चा अदरक :- रेयो – डी – जनिरो
2.          टफ्नागीया तैलिराल रियो – डी जनीरो
3.          चीन वाय नाटू  लोकल
       सोंठ :-
1.          करूंघपटी
2.          मारना वायनाटू मन्नतवाटी वल्ल्नाटू एरनाटू
अदरक की आधुनिक किस्में :-
1.          सुरुचि :- अदरक की इस किस्म में रेशा 3.8 %और ओलेरिओसिन की 10 % की मात्रा उपस्थित होती है | इसमें बिमारियां बहुत कम लगती है | इसके कंद थोड़े से हरे और पीला होता है | अदरक की इस किस्म खेती से हमे अधिक पैदावार मिलती है |
Adrak ,अदरक ki Kismen
Adrak ,अदरक ki Kismen 
2.          सुरभि :- इस किस्म के कंद में 2.1 % तेल पाया जाता है | इसका छिलका गहरा चमकीला होता है | इस किस्म के कंद की संख्या अधिक होती है | इस किस्म को उत्परिवर्तन मंयूटेशन के द्वारा किया जाता है | इस किस्म की खेती करने से हमे अधिक उपज मिलती है |
3.          सुप्रभा :- इस किस्म के कंद लम्बे , अंडाकार सिरों वाले होते है | अदरक की इस किस्म का रंग भूरा चमकीला होता है | इस किस्मं को भारत में पर्वतीय इलाके में उगाया जाता है | इसमें 1.1 % तेल और 18. 9 % ओलेरिओसीन रेशा पाया जाता है | अदरक की इस किस्म में फुटाव अधिक होता है |
4.          बीज की मात्रा :- अदरक को बोने के लिए रोगमुक्त बीज प्रकंदों की जरूरत होती है | इसे 4 से 5 सेंटीमीटर के आकार के टुकड़ों में काट लिया जाता है | इसके प्रकंदों में कम से कम दो ऑंखें अवश्य होनी चाहिए | हे एक कंद के टुकडें का भार 25 से 30 ग्राम का होना चाहिए | एक हेक्टेयर भूमि पर लगभग 20 से 25 किवंटल बीजों के प्रकंदों की जरूरत होती है | बीजों को रोगमुक्त करने के लिए बीजों का उपचार करना चाहिए |
5.          बीजोपचार की विधि :- 5 लीटर देशी गाय का मठा लेकर उसमे एक लीटर में 3 चने के आकार की हिंग लेकर अच्छी तरह से घोल लें | इस घोल में प्रकंदों को अच्छी तरह से भिगों दें | इसके कुछ देर के बाद बीजों को निकालकर सुखा लें | इसके बाद ही बीजों की बुआई  करें |
कैरोसिन के तेल में अदरक के बीजों को उपचारित करके बुआई करें |
देशी गाय के मूत्र में अदरक के बीज या प्रकंदों को भिगोकर सुखा कर बुआई करें |  
इस तरह से बीजो का उपचार करके बीजों की बुआई करने से भूमि से होने वाले रोगों से बचाया जाता है |
Adrak ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Kaese Roken
Adrak ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Kaese Roken
अदरक की बुआई का समय :- बुआई के समय पर इसकी उपज का असर पड़ता है | इसलिए जंहा पर बारिश के आधार पर फसल उगानी हो , उस स्थान पर पहली बारिश के बाद बुआई करनी चाहिए | इसके आलावा अदरक की बुआई क्षेत्र और मौसम के अनुसार मई और जून के महीने में की जाती है | जिस जगह पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो उस स्थान पर अदरक की बुआई अप्रैल से मई के महीने के मध्य में की जाती है |
बुआई का तरीका :- अदरक को हमेशा एक लाइन में बोना चाहिए | एक पौधे से दुसरे पौधे की दुरी कम से कम 15 से 20 सेंटीमीटर की होनी चाहिए और  दो पंक्तियों की आपस की भी लगभग 15 से 20 सेंटीमीटर की रखे | अदरक के प्रकंदों को 4 सेंटीमीटर गड्ढा खोदकर बोना चाहिए | कंदों को बोने के बाद गड्डों को मिटटी से अच्छी तरह से ढक देना चाहिए | अदरक के अच्छे अंकुरण  के लिए मिटटी में नमी की आवश्कता पड़ती है | इसके लिए बुआई करने के बाद प्रकंदों को गोबर की खाद या घास – फूस की पत्तियों से ढक देना चाहिए |  यदि इसकी फसल पर तेज़ धुप लगती है तो इसके अंकुरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है |
फसलों पर छिडकाव करें के लिए उपाय :-
1.          नीम का काढ़ा बनाना :- नीम के पेड़ से 25 ग्राम ताज़ी हरी पत्तियों को तोड लें और उन्हें कुचल कर पीस लें | पीसी हुई पत्तियों को 50 लीटर पानी में डालकर उबाल लें | पकते – पकते जब पानी की मात्रा आधी रह जाये तो इसे आंच से उतारकर ठंडा कर लें | इस काढ़े की आधे लीटर की मात्रा में पानी मिलाकर पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें |
2.          गौमूत्र :- देसी गाय के 10 लीटर मूत्र को किसी कांच या प्लास्टिक के बर्तन में 10 से 15 दिन तक धुप में रख दें | जब यह मूत्र पुराना हो जाये तो एक पम्प पानी में आधा लीटर इस मूत्र की मात्रा को मिलाकर प्रयोग करें |
अदरक की फसल में सिंचाई करने का तरीका :- अदरक की फसल में समय – समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए | इसकी फसल के लिए भूमि में उचित रूप से नमी होनी चाहिए | इसलिए इसकी पहली सिंचाई बुआई के कुछ दिन के बाद करें | गर्मियों में एक सप्ताह में एक बार सिंचाई अवश्य करें |   इसके आलावा जब तक बारिश नहीं होती हर 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करनी चाहिए | केवल इस बात का ध्यान रहे की भूमि में नमी कम ना हो | इससे हमारी पैदावार पर प्रभाव पड़ता है |
खरपतवार की रोकथाम करने के लिए :- अदरक के खेत को हमेशा खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए | इसके लिए जरुरुत पड़ने पर निराई – गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए | अदरक की बुआई से लेकर फसल पकने तक कम से क 3 या 4 बार निराई और गुड़ाई अवश्य करनी चाहिए | हर एक निराई के बाद पौधे पर मिटटी की परत चढ़ा देनी चाहिए | ताकि पौधा भूमि में मजबूती से  स्थिर खड़ा रहे |
अदरक की फसल में लगने वाले रोग और उस पर नियन्त्रण :-
Adrak Ki Fasal Ko Keeton Se Kaese  Bachaayen
Adrak Ki Fasal Ko Keeton Se Kaese  Bachaayen
म्लानी :- इस बीमारी का पहला लक्ष्ण यह है की पौधे के पत्ते मुरझाकर नीचे की ओर लटक जाते है | यह एक फैलने वाली बीमारी होती है | जिसके कारण एक पत्ते से यह सभी पत्तों में फैल जाता है |  भारी बारिश के बाद जब धुप निकलती है तो इसका लक्षण दिखने लगता है | जब पत्ते नीचे की ओर लटक जाते है तो पत्तों पर पीलापन दिखाई देने लगता है और 4 से 6 दिन में सारे पत्ते इस बीमारी का शिकार हो जाते है | इस बीमारी को दूर करने के लिए एक उपाय है |
रोकथाम करने का उपाय :- नीम के पेड़ की कुछ पत्तियों को लेकर इसका काढ़ा तैयार करें | काढ़ा तैयार करने के बाद इसमें माइक्रो झाझम मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस दवा को बनाने के लिए आप नीम के काढ़े के स्थान पर गौमूत्र का भी प्रयोग कर सकते है |  इस छिडकाव करने के से पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक हो जाती है |
पत्तियों में धब्बा :- इस बीमारी में पौधे की पत्तियों पर कंही – कंही  अंडाकार के धब्बे पड़  जाते है जो बाद में आपस में मिलकर बड़े हो जाते है | इससे पौधे की बढ़वार रुक जाती है | पौधे में यह बीमारी एक फफूंदी के कारण होती है | जिसे फिलोसटी कटा जिंजी बरी नामक फफूंदी कहा जाता है | इस बीमारी के प्रभाव से हमे कम उपज की प्राप्ति होती है |
पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिए एक उपाय है :-  देशी गाय का मूत्र या  नीम के पेड़ की कुछ पत्तियों को लेकर इसका काढ़ा तैयार करें | काढ़ा तैयार करने के बाद इसमें माइक्रो झाझम  मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इससे पौधे में हुई बीमारी ठीक हो जाती है |
मृदु विगलन :- यह एक फफूंदी जन्य रोग है जो पिथियम एफेनिडरमेंटम नामक फफूदी से होता है | इस बीमारी में पौधे की पत्तियां नीचे की ओर झुक जाती है | और पीली हो जाती है |  धीरे – धीरे यह रोग पूरे पौधे में लग जाता है जिससे पौधा पीला होकर मुरझा जाता है | भूमि की सतह का भाग पनीला और कोमल हो जाता है | जिसके कारण यदि पौधे को धीरे से भी खींचते है तो वह आसानी से टूट जाता है |  और कंद भूमि के अंदर सड़ जाता है |  यह अदरक की फसल में लगने वाला मुख्य रोग है | पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिए निम्नलिखित उपचार है |
रोकथाम का उपाय :- अदरक के बीजों को उपचारित करके बोयें |
3.          भूमि में माइक्रो नीम और  अरंडी की खली की खाद जरुर डालें |
फसल के पकने के बाद खुदाई :- अदरक की खुदाई इसकी आवश्कता पर निर्भर होती है |  यदि इसे कच्चे अदरक के रूप में प्रयोग करना है तो इसे छठे महीने में ही खोद लेना चाहिए और यदि सोंठ के रूप में प्रयोग करना है तो इसकी खुदाई 8 महीने में करनी चाहिए | इन दिनों फसल के पत्ते पीले होकर सुख जाते है | इसकी खुदाई करते समय सावधानी बरतनी चाहिए |
अदरक के बीज का संकलन :- अदरक के बीज खरीदते समय इस बात का ध्यान रखे कि अदरक के अंकुरों को नुकसान ना पंहुचे | अदरक का संकलन कीट मुक्त कीटाणु रहित पौधे से करना चाहिए |
पलवार :- अदरक की बुआई के बाद पत्तियों  के पलवार देने से अंकुरण अच्छा होता है | इससे खरपतवार भी कम होते है | अदरक की खेती में तीन बार पलवार देने से अधिक उपज की प्राप्ति होती है | पत्तियों की पलवार को 30 दिन और 60 दिन के बाद दें | जब अदरक के पौधे की लम्बाई 20 से 25 सेंटीमीटर के हो जाये तो उन पर मिटटी चढ़ा देनी चाहिए |
Adrak ki Kheti Se Prapt Upaj
Adrak ki Kheti Se Prapt Upaj 
उपज की प्राप्ति :- अदरक की उपज उसकी अच्छी तरह से देखभाल और उपजाऊ भूमि पर निर्भर करता है | वैसे एक हेक्टेयर भूमि पर से हमे लगभग 120 से 150 किवंटल तक की अच्छी उपज मिल जाती है | यदि इस उपज को सुखाया जाये तो इसे 20 से 30 किवंटल सोंठ बन जाता है | 



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