जिमीकंद की लाभदायक खेती करने का तरीका, Jimikand ki Labhdayak Kheti Karne ka Tarika |

·      जिमीकंद की जैविक उन्नत खेती करने का तरीका :-
जिमीकंद की लाभदायक खेती करने का  तरीका
जिमीकंद की लाभदायक खेती करने का  तरीका

जिमीकंद की खेती भारत में कई स्थानों में की जाती है | यह भूमि के अंदर उगने वाली सब्जी है | इसे अलग – अलग राज्य में अलग – अलग नामों से जाना जाता है |  इसे ओल या सुरन भी कहा जाता है | पहले जिमीकंद को घर में बनी हुई वाटिका अथवा बगीचों में उगाया जाता था लेकिन आज के समय में जिमीकंद की एक व्यावसायिक रूप में खेती की जाती है | इसका तने को घनाकन्द के नाम से भी जाना जाता है | क्योंकि इसका तना भूमि के अंदर ही फलता फूलता है | इसका पौधा ज्यादा बड़ा होता | इसकी सतह पर इधर – उधर अपस्थानिक जड़ें निकली रहती है | ओल के अगले सिर पर अग्रकिलका और शल्क पत्रों के अक्ष पर छोटी कलिकाएँ होती है | जिमीकंद यानि ओल का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है | लेकिन बहुत कम लोग इस बात से परिचित है कि इसे एक आयुर्वेद औषधी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है | यह एक मूल्यवान जडीबुटी है जिसके उपयोग से मनुष्य स्वस्थ और निरोग रहता है | लेकिन इसकी तासीर गर्म होती है |  
·      जिमीकंद की खेती करने के लिए उचित जलवायु :- जिमीकंद की अच्छी वृद्धि के लिए गर्म और तर मौसम की जरूरत होती है जबकि कंदों की अच्छी बढ़वार के लिए ठंडा और शुष्क मौसम उत्तम माना जाता है | जिमीकंद के बीजों को बोने के बाद अंकुरण के लिए ऊँचे तापमान की जरूरत होती है | इसके आलावा पौधे की बढवार के लिए अच्छी बारिश होनी चाहिए |
Jimikand  ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi
Jimikand  ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi
·      जिमीकंद की खेती के लिए उचित भूमि  :- जिमीकंद को रेतीली दोमट मिटटी में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है | जिमीकंद की खेती उस भूमि में करें जिसमें जल धारण करने की उचित क्षमता हो | चिकनी मिटटी और रेतीली मिटटी में इसकी खेती करना असम्भव है क्योंकि इन मिटटी में जिमीकंद के कंदों का अच्छी तरह से विकास नहीं हो पाता |
·      खेत की तैयारी :- खेत में जिमीकंद की रोपाई से पहले मिटटी पलटने वाले हल से 2या 3 बार गहरी जुताई करें | प्रत्येक जुताई करने के बाद पाटा अवश्य लगायें | खेत में जुताई करने से पहले खेत की एक हेक्टेयर भूमि में  लगभग 20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद डाल दें | इसके बाद ही जुताई करें | ताकि खाद और मिटटी अच्छी तरह मिल जाये |  इस प्रकार की विधि से पहले खेत को तैयार कर लें | खेत में मेढ़े और नालियों का निर्माण अवश्य करें | इससे सिंचाई करने के बाद का पानी इक्कठा नहीं होता |  
·      जिमीकंद की किस्मे :- पुरे भारत में जिमीकंद की केवल तीन किस्मों की ही खेती की जाती है | जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
·      कोववयुर :- जिमीकंद की इस किस्म के पौधे की वृद्धि बहुत जल्दी बढती है | इस किस्म में कंदों की एक समान रूप से वृद्धि होती है | कोववयूर नामक किस्म संतरा गाची की तरह कन्या घनाकन्द बनने नहीं देता | जिमीकंद की इस किस्म की खेती करने से हमे अधिक उपज मिलती है | इसकी एक हेक्टेयर भूमि पर से हमे लगभग 100 किवंटल तक की अच्छी और लाभदायक उपज मिलती है |
Jimikand ki Kismen
Jimikand ki Kismen
·      संतरा गाची :- इस किस्म के घनकन्द हल्के कडवे होते है , और इसके कंद खुरदरे मखनी रंग के होते है | संतरा गाची नामक किस्म के पौधे की  वृद्धि बहुत ही तीव्रता से होती है | इसके कंद पर बहुत सारी कन्या  घनकन्द निकल जाते है | इसके कंद खाने में स्वादिष्ट लगते है |   भारत में इस किस्म को केवल पूर्वी भागों में ही उगाया जाता है | इस किस्म की खेती करने से हमे लगभग 50 से 75 टन की उपज मिल जाती है |
·      गजेन्द्र -1 :- जिमीकंद के इस किस्म के कंदों के गुद्दे का रंग हल्का गुलाबी रंग का होता है | इसमें कैल्शियम की मात्रा बहुत कम होती है | लेकिन इसका स्वाद बहुत अच्छा होता है | क्योंकि यह चरचराहट से रहित होता है | जिससे हमारे गले में जलन नही होती | इसकी बुआई मई के महीने में की जाती है जो अक्टूबर और नवम्बर के महीने में पककर तैयार हो जाती है | इससे हमे एक हेक्टेयर भूमि पर से लगभग 150 से 200 किवंटल की अच्छी उपज मिल जाती है | यह जिमीकंद की अच्छी किस्म मानी जाती  है |
·      जिमीकंद को बोने का उचित समय :- भारत के उत्तरी भाग में इसकी बुआई फरवरी या मार्च के महीने में की जाती है | जबकि दक्षिण भाग में इसे मई के महीने में बोया जाता है | यह समय इसकी बुआई के लिए उत्तम होता है |
·      बीज की मात्रा :- आधा किलोग्राम कंद लगाने के लिए एक हेक्टेयर भूमि पर लगभग 50 किवंटल बीज की जरूरत होती है और एक किलोग्राम कंद लगाने के लिए 100 किवंटल बीज की आवश्कता होती है | जिमीकंद के कंद में कम से कम दो आंख जरुर होनी चाहिए | इसकी बुआई के लिए पूसा कंद या आधा कटा हुआ कंद का भी उपयोग किया जाता है |
बुआई का तरीका
बुआई का तरीका 
v      जिमीकंद को बोने का तरीका :- खेत को जुताई करने के बाद तैयर कर लें | इसके बाद एक मीटर की दुरी पर 30 सेंटीमीटर लम्बा , 30 सेंटीमीटर चौड़ा और 30 सेंटीमीटर गहरा गड्डा खोद लें | इस तरह से एक हेक्टेयर भूमि पर लगभग 10,000 गद्दे खोद लें | इन्ही गड्डों में कंदों की बुआई की जाती है | इन कंदों का भार कम से कम 25 ग्राम का होता है | जिमीकंद की कुछ किस्में लघु कन्दो का निर्माण नहीं करती | इसके एक बड़े कंद को 500 से 1000 ग्राम के टुकड़ों में काट लिया जाता है | इसके बाद इसे गड्डा खोदकर बुआई की जाती है | जिमीकंद की बुआई करने से पहले इस बात का ध्यान रखे की भूमि में नमी की कमी ना हो | इसके लिए गड्डों में घनाकन्द बोने के बाद उसे मिटटी से ढक दें | और चरों तरफ से पिरामिड बना दें | खुदे हुए गड्डों को घास – फूस से ढक दें | इससे जिमीकंद के कंदों का अच्छी तरह से अंकुरण होता है |
v      जिमीकंद की फसल में सिंचाई करने का तरीका :- जिमीकंद की फसल में अधिक सिंचाई की आवश्कता नहीं होती | इसकी फसल में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए | भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए | इसलिए वर्षा ऋतु के आने से पहले फसल में एक सिंचाई जरुर कर दें | यदि बारिस के मौसम में ज्यादा समय तक बारिश ना हो और मिटटी में नमी कम हो तो सिंचाई करनी चहिये |
v      खरपतवार की रोकथाम करने के लिए :- जिमीकंद की फसल में अनचाहे छोटे – छोटे खरपतवार उग जाते है | जिसके कारण भूमि में से पोषक तत्व और नमी में कमी आ जाती है | और साथ ही साथ यह स्थान और धुप आदि के लिए जिमीकंद के पौधे से प्रतिस्पर्धा करते है | इन सभी खरपतवार को हटाने के लिए समय – समय पर निराई – और गुड़ाई करनी चाहिए | इसकी पहली निराई बोने के 40 से 60 दिन के बाद करे और दूसरी बार 60 से 90 दिन के बाद करनी चाहिए | फसल में निराई और गुड़ाई करने के बाद पौधे पर मिटटी की परत चढ़ा देनी चहिये | ताकि पौधा मजबूती से जमीन में लगा रहें |
Jimikand ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Kaese Roken
Jimikand ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Kaese Roken
·      पलवार :- भूमि में नमी को बनाये रखने के लिए जिमीकंद की बुआई करने के बाद सूखे पुआल , भूसा ,और सुखी पत्तियों को भूमि पर बीचा देना चाहिए | ऐसा करने से खेत में खरपतवार कम निकलते है और साथ ही साथ भूमि में नमी अधिक समय तक बनी रहती है | 
जिमीकंद की फसल में लगने वाले कीट :-
1.               जिमीकंद भृंग :- यह कीट हल्के लाल भूरे रंग का होता है और इसका आकार एक सुंडी की भांति होता है | जिमीकंद भृंग लगभग 8-से 9 मिलीमीटर लम्बे होते है | यह कीट पौधे की हरी – हरी पत्तियों और डंठल को खाकर उन्हें नुकसान पंहुचाते है | इसकी रोकथाम करना बहुत आवश्यक है |
इस कीट से बचने का उपाय :-  नीम के पेड़ की कुछ पत्तियों को लेकर इसका काढ़ा तैयार करें | काढ़ा तैयार करने के बाद इसमें माइक्रो झाझम मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस दवा को बनाने के लिए आप नीम के काढ़े के स्थान पर गौमूत्र का भी प्रयोग कर सकते है |  इस छिडकाव करने के जिमीकंद भृंग नामक कीट से छुटकारा पाया जाता है |
2.                तम्बाकू की सुंडी :- इस कीट की लम्बाई 35 से 40 मिलीमीटर की होती है | इस कीट का अधिकतर प्रभाव जुलाई से सितम्बर के महीने में होता है | यह कीट पौधे की हरी पत्तियों को खाकर उसे नुकसान पंहुचाते है | यह कीट एक छोटी सी सुंडी के आकार में होता है जिसका रंग हल्का हरा भूरा होता है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
3.               रोकथाम का उपाय :- नीम के पेड़ की कुछ पत्तियों को लेकर इसका काढ़ा तैयार करें | काढ़ा तैयार करने के बाद इसमें माइक्रो झाझम मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस दवा को बनाने के लिए आप नीम के काढ़े के स्थान पर गौमूत्र का भी प्रयोग कर सकते है |  इस छिडकाव करने के तम्बाकू की सुंडी नामक कीट से प्रभावित पौधों को बचाया   जा सकता है |
4.               जिमीकंद की फसल में लगने वाले रोग  और पर नियंत्रण करने के लिए उपाय की जानकारी हम आपको दे रहे है | जिससे आप अपने पौधों को बचा सकते है | इसकी फसल में मुख्य रूप से दो प्रकार की बीमारी का अधिक प्रभाव होता है | जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
Jimikand Ki Fasal Ko Keeton Se Kaese  Bachaayen
Jimikand Ki Fasal Ko Keeton Se Kaese  Bachaayen
·      पत्ती और घनकन्द विगलन :- इस बीमारी में पौधे की पत्तियां और कंद गलकर सड़ जाते है | जिमीकंद के पौधे में यह बीमारी पिथ्यम एफेनिडरमेटम और स्केलेरोसियाम नामक कीट के द्वारा होता है | इस कीट के प्रभाव से पौधे की वृद्धि रुक जाती है | पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिए एक उपाय है | जिसका वर्णन इस प्रकार है |
·      रोकथाम का उपाय :- नीम की पत्तियों का काढ़ा तैयार करके इसमें गौमूत्र को अच्छी  तरह से मिला कर एक एक अच्छा सा मिश्रण बनाये इसमें माइक्रो झाझम को भी मिला दें |  इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस छिडकाव के प्रभाव से पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक हो जाती है |
·      झुलसा की बीमारी :- झुलसा जैसे की नाम से मालूम होता है की इस बीमारी में पौधे की पत्तियां  झुलस जाती है | पत्तियों के साथ – साथ इसका तना भी सड़ जाता है | इस बीमारी में जिमीकंद के कंदों की बढवार रुक जाती है | पौधे में यह रोग एक फफूंदी के कारण होता है | इस फफूंदी को फाईटोप्थोरा कोलोकेसी कहते है | पौधे में जब इस बीमारी का प्रकोप बढ़ जाता है तो इससे जिमीकंद की पैदावार पर बुरा प्रभाव पड़ता है | पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिए एक उपाय है जो बहुत सरल और सधारण है |
·      रोकथाम का उपाय :- नीम के पेड़ की कुछ पत्तियों को लेकर इसका काढ़ा तैयार करें | काढ़ा तैयार करने के बाद इसमें माइक्रो झाझम मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस दवा को बनाने के लिए आप नीम के काढ़े के स्थान पर गौमूत्र का भी प्रयोग कर सकते है |  इस छिडकाव करने के पौधे में लगी हुई बीमारी को दूर किया जाता है |
·      फसल के तैयार होने के बाद खुदाई :- जिमीकंद का उपयोग दीपावली के त्यौहार पर किया जाता है | इसलिए जिमीकंद की फसल नवम्बर या दिसंबर के महीने में पककर तैयार हो जाती है | इसके कंदों की खुदाई नवम्बर या दिसंबर के महीने के पहले सप्ताह में कर लेनी चाहिए | जिमीकंद की खुदाई करने से  लगभग 15 से 20 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए |
भंडारण :- जिमीकंद के कंदों की खुदाई करने के बाद इसके कंडों को पानी से अच्छी तहसे धोकर साफ कर लें और इन्हें हवादार जगह पर या मचान पर भंडारित करना चाहिए |
बीज का उपचार :- जिमीकंद के बीजों को बोने से पहले बीजों को नीम के तेल या कैरोसिन से उपचारित करना चाहिए | केवल उपचारित बीजों का ही उपयोग करना चाहिए |
उपज की प्राप्ति
उपज की प्राप्ति 
 
उपज की प्राप्ति :- इसकी उपज फसल की अच्छी देखभाल और मिटटी की किस्म पर निर्भर होती है | यदि फसल से 500 ग्राम के भार के बीज के कंद का उपयोग करना है तो एक हेक्टेयर भूमि पर से हमे 400 किवंटल तक की उपज प्राप्त हो जाती है | 


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