टमाटर की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु :- टमाटर की सफलतापूर्वक खेती करने के लिए
मौसम का तापमान 12 डिग्री सेल्सियस से 26 डिग्री सेल्सियस के बीच का होना चाहिए | वैसे
टमाटर गर्मियों के मौसम की फसल होती है | यह ज्यादा पाला सहन नहीं कर सकता | रात
के समय जब मौसम का तापमान 25 से 20 डिग्री सेल्सियस का तापमान बेहतर होता है |
टमाटर की खेती करने के लिए उपयुक्त
मिटटी :- टमाटर की खेती के लिए पौषक तत्व वाली दोमट मिटटी सबसे उत्तम होती है | यदि
जल में पानी के निकासी की अच्छी व्यवस्था हो तो अच्छी होती है | इसलिए टमाटर को
मटियार और तलहटी दोमट मिटटी में उगाया जाता है | टमाटर की अगेती फसल के लिए बलुई
दोमट मिटटी और बलुई मिटटी बहुत अच्छी मानी जाती है |
टमाटर को अलग – अलग जगह में स्थान के अनुरूप विभिन्न किस्मों को उग्य जाता है
| जिसकी जानकारी हम आपको दे रहे है
पूसा रूबी :- इस किस्म के फलों का रंग लाल होता है | ये फल बहुत हल्के धरी
वाले और चपटे आकार के होते है | यह टमाटर की अगेती किस्म है जो बुआई के लगभग 65 से
70 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इस किस्म की खेती करने से हमे एक अच्छी उपज
मिल जाती है |
1.
पूसा 120 :- इस किस्म की सब्सी बड़ी विशेषता यह
है की इसमें सूत्र कृमि जैसा रोग नहीं लगता | इसका फल न ज्यादा बड़ा होता है और ना
ही ज्यादा छोटा होता है | इन टमाटरो का रंग लाल और आकर्षक होता है | टमाटर की इस
किस्म से अधिक पैदावार मिलती है |
2.
पूसा शीतल :- यह टमाटर की अगेती किस्म है | जो
बसंत ऋतु के मौसम में उगाई जाती है | इसकी फसल को तैयार होने के लिए मौसम का
तापमान लगभग 8 डिग्री सेल्सियस का होना चाहिए | पूसा शीतल नामक किस्म के फसल का
आकार मध्यम होता है | इसके फल चपटे और गोल गोल रूप में मिलते है |
3.
पूसा गौरव :- इस किस्म को खरीफ की फसल के रूप
में उगाया जाता है | लेकिन इसकी खेती बसंत के मौसम में भी सफलतापूर्वक की जा सकती
है | ये टमाटर जल्दी खराब नही होते | इसलिए इन्हें दूर स्थित बाजारों में भेजा
जाता है | इस किस्म के फलों का आकार अंडाकार चिकना और मोटी परत वाले होते है | टमाटर
की इस किस्म का रंग लाल होता है |
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Tmater ki Kismen |
4.
पूसा सदाबहार :- इस किस्म को उगाने के लिए मौसम
का तापमान 6 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस का होना चाहिए | इस किस्म को
उत्तरी भारत में जुलाई और सितम्बर के मौसम में उगाया जाता है | इसके आलावा इसकी
खेती सारे साल की जाती है | पूसा सदाबहार के फल का आकार न ज्यादा बड़ा होता है और
ना ही ज्यादा छोटा होता है | इसके फल अंडाकार गोल होते है | रत के समय का तापमान
इसके फलों की वृद्धि के लिए उत्तम माना जाता है |
5.
पूसा उपहार :- इस किस्म के फल एक साथ गुच्छों
में लगते है | इसकी फसल जल्दी बढ़ने वाली होती है| इसकी खेती करने से हमे अधिक उपज
प्राप्त होती है | इसके फल मध्यम आकार के होते है | ये टमाटर लाल रंग के गोल आकार
में मिलते है |
6.
पूसा संकर -1 :- इस किस्म के फल चिकने , आकर्षक
लाल रंग , और गोल आकार में होते है | पूसा संकर 1 जून – जुलाई जैसे अधिक तापमान के
मौसम में भी फल दे सकती है | यह किस्म
अधिक लाभदायक होती है | इससे हमे अधिक पैदावार मिली है |
7.
पूसा संकर -2 :- इसके फल गोल , चिकने और चमकदार
होते है | इस किस्म में सूत्र कृमि जैसे रोग का प्रकोप नहीं होता है | इन फलों की
मोटी परत होती है और ये एक समान रूप में पकती है | पूसा संकर की खेती करने से हमे
अधिक उपज प्राप्त होती है |
8.
पूसा संकर -4 :- इस किस्म के टमाटरों को दूर
स्थित बाजारों में ले जाने के लिए उत्तम होती है |इसके फल गोल आकार के और आकर्षक
रंग के होते है | टमाटर की इस किस्म से
हमे टमाटर की एक अच्छी उपज प्राप्त होती है |
बीज की मात्रा :- टमाटर की नर्सरी तैयार करने के लिए एक हेक्टेयर भूमि में
लगभग 300 से 400 ग्राम बीज की मात्रा काफी होती है |
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बुआई का तरीका |
बुआई करने का तरीका :- नर्सरी में 65 सेंटीमीटर चौड़ी क्यारियां बना लें | क्यारिया बनाने के बाद बीजों को बोयें | इसके आलावा खरीफ की फसल लेने के लिए क्यारियों की चौड़ाई को
कम कर देना चाहिए | इसकी चौड़ाई कम से कम 60 सेंटीमीटर की रखे | बुआई के बाद जब पौधा 15 सेंटीमीटर का हो जाये तो इन्हें रोपा जा सकता है | संकर किस्मों को बोने के लिए एक हेक्टेयर में लगभग 200 ग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है |
टमाटर की फसल में
प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- जिस खेत में टमाटर की खेती जाने वाली है | उस
खेत को तैयार करते समय 25 से 30 टन सड़ी हुई गोबर की खाद को मिला दें | इसके आलावा
400 किलोग्राम सुपर फास्फेट और 60 से 100 किलोग्राम पोटाशियम सल्फेट की मात्रा को
अच्छी तरह से मिला दें | इसके बाद खेत की जुताई करें ताकि खाद और उर्वरक मिटटी में
भलीभांति मिल जाएँ | यह मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है | जरूरत और
भूमि के हिसाब से इसकी मात्रा को घटाई और बढाई जा सकती है | अमोनिया सल्फेट की 300
से 400 किलोग्राम की मात्रा को फसल में कम से कम दो बार प्रयोग करें | एक बार
रोपाई के 15 से 20 दिन के बाद और दूसरी बार
फसल में छिडकाव करने के 20 से 25 दिन के बाद प्रयोग करें |
सिंचाई करने का तरीका :- टमाटर की फसल में नियमित रूप से
सिंचाई करनी चाहिए | इसकी पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिये | बसंत और
गर्मी के मौसम में इसकी सिंचाई एक सप्ताह में एक बार अवश्य करनी चाहिए | इसके
आलावा सर्दियों के मौसम में इसकी फसल की सिंचाई 10 से 12 दिन के अन्तराल में करनी
चाहिए |
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Tmater ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Kaese Roken |
टमाटर की फसल में उगे हुए अनचाहे खरपतवार को दूर करने के
लिए :- जिस खेत में टमाटर की फसल लगी हुई हो उस खेत को हमेशा खरपतवार से मुक्त
रखना चाहिए | इससे हमारी फसल सफलता से वृद्धि कर पाती है | टमाटर की फसल की जरूरत
पड़ने पर ही निराई – गुड़ाई करनी चाहिए | अपने खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए
एक हेक्टेयर भूमि में 1. 5 लीटर की मात्रा में बासलिन नामक दवा का उपयोग करें |
फसल को नुकसान देने वाले कीट :- टमाटर की फसल को मुख्य रूप से सरसों सा फलाई और
माहू नामक कीट नुकसान पंहुचाते है | इसके
आलावा जौडिस , सफेद मक्खी और फल छेदक मक्खी का भी प्रकोप होता है |
1.
फल छेदक :- इस कीट की झिल्लियाँ टमाटर के हरे –
हरे फलों में घुस जाती है | इन कीड़ों के प्रभाव से फल सड़ जाते है | यह कीट टमाटर
के फलों के लिए हानिकारक होता है | इसके कुप्रभाव से टमाटरों के फलों में छेद हो जाते है |
2.
जौडिस :- यह कीट पौधे की पत्ते और शाखाओं का रस
चूस लेती है | जिसके कारण पौधे की हरी पत्तियां सूख जाती है | जौडिस नामक कीट आकार में बहुत छोटे होते है ओ इसका रंग हरा हरा
होता है |
3.
सफेद मक्खी :- यह मक्खी पौधे की पत्तियों से
उनका रस चूस लेती है जिसके कारण पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती है और कुछ ही दिनों
में पत्तियां पूरी तरह से मुरझाकर सूख जाती है | सफेद मक्खी का आकार छोटा होता है
| इसके कारण पौधे में बिमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है |
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Tmater Ki Fasal Ko Keeton Se Kaese Bachaayen |
इन कीटों से अपने पौधे को
बचाने के लिए एक उपाय है जिसकी जानकारी हम
आपको दे रहे है |
रोकथाम का उपाय :- 0.05
मेटासिस्टोकस और डाईमैथेएट का घोल बनाकर फसलों पर छिडकाव करें | यह छिडकाव पौधे की
वृद्धि की पहली अवस्था में करें | इससे सफेद मक्खी और जौडिस का बुरा प्रभाव दूर हो
जाता है और साथ ही साथ फल छेदक से घ्रसित फलों में से कीड़े को इक्कठा करके नष्ट कर
देता है | अगर फसलों में इस कीट का प्रभाव अधिक हुआ तो मैलाथियोन की 0 .05 की
मात्रा में 0.1 कर्बोरिल की मात्रा मिला दे | इन दोनों के मिश्रण के घोल को फसल पर
छिडकें | इसे 15 से 20 दिन के अन्तराल में फसलों पर दो या तीन बार छिडकें |
टमाटर की फसल में लगने वाली
बिमारियां :-
1.
आद्र विगलन :- पौधे में यह बीमारी जमीन की सतह
से लगना शुरू होता है | जिसके कारण पौधा जमीन पर गिर जाता है | यह बीमारी फसल की
क्यारियों में अधिक नुकसान पंहुचाता है | टमाटर की फसल में आद्र विगलन का रोग
ज्यादातर बारिश के मौसम में होता है |
इस बीमारी से पौधे को बचाने का उपाय :-
1.
बीजों को बोने से पहले उपचारित करनाचाहिए | इसके
लिए एक किलो बीज को 2 ग्राम थाईरम , कैप्टान या बाविस्टीन से अपचारित करें |
2.
क्यारियां बनाते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखे
की पानी की निकासी के लिए दो क्यारियों के बीच एक नाली जरुर हो | इसके आलावा पौध
तैयार करने के लिए थोड़ी सी उठी हुई क्यारियों का निर्माण करें |
3.
क्यारियों को बनाने के बाद इसकी मिटटी में थाईरम
, कैप्टान और दूसरी कीटनाशक दवाओं की 2 ग्राम की मात्रा का घोल तैयार करें | इस
तैयार घोल में पानी मिलाकर रोजाना शाम के समय छिडकाव करें | ताकि मिटटी की उर्वरक शक्ति
समाप्त ना हो |
पौधे में रोग की किस प्रकार
से पहचान करें इस बात की जानकारी हम आपको दे रहे है |
जब पौधा रोग से प्रभावित
होता है तो पौधे की पत्तियां नीचे की और मुड़ जाती है | मरोडिया नामक बीमारी का यह
लक्षण होता है | इस बीमारी में पौधे का आकार छोटा रह जाता है | उस पौधे की नीचे की
सतह खुरदरी हो जाती है | जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है | इन सभी लक्षणों के
आलावा पौधे में से और कुछ नई शाखाएं निकल जाती है | पौधे में यह बीमारी विषाणु के
द्वारा होता है | जिससे सफेद मक्खी फैलती है | बारिश के मौसम में होने वाली फसलों
में इस बीमारी का प्रकोप बहुत ज्यादा बढ़ जाता है |
पौधे को इस बीमारी से बचाने
के लिए हमे पौधे की रोपाई के बाद क्यारियों में से रोग से प्रभावित सभी पौधे को जड़
से उखाड़कर फेक देना चाहिए | इससे दुसरे पौधे रोग से बच जाते है | इसके आलावा पौध की अवस्था में सफेद मक्खियों से
बचाने के लिए हमे क्यारियों मे कपड़े से बनी हुई मसहरी लगा देनी चाहिए |
पौधे की जड़ों में सूत्र
कृमि का रोग :- इस बीमारी में पौधे की हरी पत्तियों का रंग पीला हो जाता है और
जड़ों में बड़ी – बड़ी गांठे हो जाती है | इसके कारण पौधे की वृद्धि रुक जाती है | धीरे
– धीरे इस बीमारी के प्रकोप से पौधा सूख जाता है |
पौधे में लगी इस बीमारी को
दूर करने का उपाय :- खेत में पौध की रोपाई से पहले इनकी जड़ों को 500 प्रति
दसलक्षांश वाले थियोनैसिन में कम से कम 15 मिनट तक डूबा रहने दें | इसके बाद ही
पौध की रोपाई करनी चाहियें | इसके आलावा फसल चक्र की विधि का अनुसरण करना चाहिए |
फसल चक्र में हमे मोटे अनाज वाली फसलों को ही उगाना चाहिए | सूत्रकृमि रोधक पूसा
-130 नामक किस्म को बोना चाहिय | गर्मियों के मौसम में खेत को खाली छोडकर कम से कम
2 से 3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए |
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Tmater ki Kheti Se Prapt Upaj |
टमाटर की खेती करने के बाद
उपज की प्राप्ति :- टमाटर की किस्म के अनुसार इसकी फसल को तैयार होने में 75 से
100 दिन का समय लगता है | जिस फसल को हम जुलाई या अगस्त के समय में बोते है वह फसल
नवम्बर या दिसंबर में पककर तैयार हो जाती है | टमाटर को दो अवस्थाओं में तोड़ा जाता
है | पहली जब टमाटर को हमे किसी दूर स्थित बाजार में भेजना हो तो उसे कच्चे पीले
रंग की अवस्था में तोड़ना चाहिए | ताकि टमाटर कुछ समय तक स्वस्थ रहें और इन्हें ले
जाने में टमाटरों का नुकसान न हों | यदि हमे डिब्बों में बंद करना हो तो टमाटरों
को अच्छी तरह से पकाकर तोड़ना चाहिए | जब टमाटरों का रंग पककर लाल हो जाये उसी
अवस्था में इन्हें तोड़ लें | इन टमाटरों को घर में भी उपयोग कर सकते है |
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Nice Kheti aise karen
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