प्याज को उत्तरी भारत में रबी के फसल के रूप में उगाया जाता
है |प्याज की फसल को अक्टूबर के महीने में भंडारित नहीं किया जाता है क्योंकि इस
समय प्याज में कंद अंकुरित हो जाते है | भारत के उत्तरी भाग में प्याज की बहुत कमी
है | जिससे प्याज के दाम बढ़ जाते है | इसलिए
भारत के उत्तरी हिस्से के मैदानी भाग में इसे खरीफ की फसल के रूप में भी उगाया
जाता है | खरीफ की फसल के रूप में प्याज की निम्नलिखित किस्मों को उगाया जाता है |
1. एग्रीफाउंड डार्क
रेड एन. एच. आर. डी. एफ.
2. एन 53 आइ . ए. आर.
आइ.
बुआई का समय :- इन
किस्मों को मई के अंत से जून तक के समय में या अगस्त के महीने में मध्य के समय में
बुआई की जाती है |
प्याज की फसल पकने
के बाद कटाई और उपज की प्राप्ति :- प्याज की कटाई दिसंबर से जनवरी के महीने में की
जाती है | इस किस्म की खेती करने से हमे एक हेक्टेयर भूमि पर से लगभग 150 से 200
किवंटल की उपज मिल जाती है |
भारत के भोजन में
प्याज का एक महत्वपूर्ण स्थान है | क्योंकि आजकल के समय में प्याज की मांग और उसका
उपयोग काफी हद तक बढ़ गया है | आमतोर पर सब्जियों को गाढ़ा बनाने के लिए और स्वाद को
बढ़ाने के लिए प्याज का उपयोग किया जाता है | आज के समय में फास्टफूड को लोग बहुत
पसंद करते है फास्टफूड को बनाने के लिए प्याज का प्रयोग किया जाता है | इसी तरह से
मसाले , केचप , और सोस को बनाने में भी प्याज का उपयोग किया जाता है | प्याज का
सेवन करने से मानव शरीर को बहुत फायदा मिलता है | इससे दिल की बीमारी कोलेस्ट्रोल
आदि बिमारियों को नियंत्रित किया जाता है | कंद वर्गीय सब्जियों में व्यापारिक
दृष्टिकोण से भारत को बहुत फायदा मिलता है | प्याज को विदेशों में भेजने से हमे
1000 से 1200 करोड़ रूपये का लाभ मिलता है | प्याज को महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश ,
कर्नाटक , गुजरात के कुछ भागों में उगाया जाता है | इस भाग में प्याज की खेती करने
से हम प्याज की कमी को पूरा करते है | क्योंकि केवल महाराष्ट्र में प्याज का 15 %
उत्पादन होता है | भारत में खरीफ की फसल की उत्पादकता 8 टन एक हेक्टेयर जबकि रबी
की फसल में 12 टन एक हेक्टेयर की उपज मिल जाती है |
प्याज की खेती के लिए जलवायु |
प्याज की खेती के
लिए उपयुक्त जलवायु :- प्याज एक शीतकालीन की फसल है | इसलिए प्याज सूरज के प्रकाश
और तापमान के प्रति संवेदनशील होते है | जलवायु के अनुसार भारत में प्याज खरीफ पछेती
और रबी की फसल के रूप में उगाया जाता है | लेकिन भारत में प्याज की खेती के लिए
जलवायु रबी मौसम में उपलब्ध है | खरीफ की फसल में यदि मौसम में आद्रता है और
बादलों का घिराव है तो प्याज का विकास उचित प्रकार से नहीं होता है और साथ ही साथ
फसल में बिमारियों का प्रकोप बढ़ जाता है | वैसे प्याज की अच्छी वृद्धि के लिए शुरू
में रात का तापमान 10 से 24 डिग्री सेल्सियस का होना चाहिए , प्याज के कंद बढ़ते
समय 20 से 30 डिग्री सेल्सियस और 70 से 75 % आद्रता का होना बहुत जरूरी है | यदि
प्याज की खेती प्रतिकूल जलवायु में की जाती है तो प्याज की पैदावार पर बुरा असर
पड़ता है |
प्याज को बोने का
समय :- प्याज की सालभर खेती की जाती है | प्याज को मुख्य रूप से हमारे देश में
प्याज को तीन मौं में उगाया जाता है | महाराष्ट्र के पश्चिमी भाग और अन्य देशों
में वातावरण सौम्य होता है |
1.
खरीफ की फसल :- खरीफ मौसम की खेती प्याज के कुल
क्षेत्रफल के 20 % क्षेत्र में होती है | खरीफ की फसल लेने के लिए मई – जून में
बुआई की जाती है | , जुलाई से अगस्त के महीने में रोपाई की जाती है और अक्टूबर –
नवम्बर के महीने में फसल पककर तैयार हो जाती है |
2.
रबी की फसल :- प्याज की रबी की फसल लेने के लिए
इसकी बुआई अक्टूबर या नवम्बर के महीने में की जाती है | बुआई करने के बाद प्याज
की खेत में रोपाई दिसंबर से जनवरी महीने
के समय की जानी चाहिए | यह मौसम प्याज की खेती के लिए उत्तम है | यह प्याज गर्मी
के मौसम में आते है | इसलिए इसे ग्रीष्मकालीन प्याज कहते है | प्याज का 60 % की
खेती इस मौसम में की जाती है |
3.
प्याज की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- प्याज जड़
वाली फसल होती है जो भूमि के अंदर पकाकर तैयार होती है | प्याज की खेती विभिन्न
प्रकार की भूमियों में की जाती है | लेकिन अच्छे उत्पादन और पैदावार के लिए बलुई
दोमट मिटटी और भुरभुरी मिटटी उत्तम मानी जाती है |क्योंकि इस मिटटी में जल के
निकास अच्छी तरह से हो जाता है | प्याज की जड़ें भूमि मे 20 से 25 सेंटीमीटर की
गहराई में होती है | इसकी जड़ों की अच्छी बढ़वार के लिए भूमि में पर्याप्त मात्रा
में नमी और हवा की आवश्कता होती है | प्याज की खेती के लिए भारी भूमि अच्छी नहीं
होती क्योंकि इस भूमि में जल का निकास उचित प्रकार से नही हो सकता | हल्की रेतीली
भूमि में यदि सड़ी हुई गोबर की खाद मिला दिया जाये तो प्याज का अच्छा उत्पादन हो
सकता है | क्षारीय भूमि प्याज की खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती क्योंकि इस भूमि
में पानी का निकास नहीं हो पाता | जिससे प्याज के कंद भूमि में सड़ जाते है और पौधे
में बिमारियां बढ़ जाती है |
1.
बसवंत 870 :- इस किस्म के प्याज का रंग आकर्षक
लाल होता है | इस किस्म के प्याज गोलाकर
और तने के पास से शंक आकार का होता है | प्याज की इस किस्म को महात्मा फूल
विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित किया गया
है | यह बुआई के 100 से 120 दिन के बाद पककर तैयार हो जाती है | इसे लगभग 3 से 4
महीने तक भंडार गृह में सुरक्षित रखा जा
सकता है | इस किस्म की खेती करने से हमे
एक हेक्टेयर भूमि पर से लगभग 25 से 30 टन की उपज ई प्राप्ति होती है |
2.
एन -43 :- इसके शल्ककंद गोलाकार , चपटे , होते है | इन
प्याजों का रंग बैंगनी , लाल रंग का होता है जिसमे थोडा सा तीखापन उपस्थित होता है
| प्याज की इस किस्म का विकास नासिक जिले के स्थानीय किस्मों में से किया गया है |
बुआई के लगभग 90 से 120 दिन में इसकी फसल पककर तैयार हो जाती है | एन. 43 नामक
किस्म की खेती करने से हमे एक हेक्टेयर भूमि पर से 20 से 25 टन की पैदावार प्राप्त
हो जाती है |
3.
अर्का कल्याण :- इस किस्म के प्याज स्वाद में
बहुत तीखे होते है | ये प्याज गोलाकार लाल रंग के होते है | प्याज की यह किस्म
बहुत जल्दी ही पककर तैयार हो जाती है | इसे पकने में कुल 100 दिन का समय लगता है |
इसकी खेती करने से हमे एक हेक्टेयर भूमि
से 25 से 29 टन की उपज प्राप्त होती है | प्याज की इस किस्म का विकास बंगलौर में
स्थित भारतीय बागवानी अनुसंधान के द्वारा किया गया है | यह प्याज की एक अच्छी
किस्म मानी जाती है |
4.
एग्रीफाउंड डार्क रेड :- प्याज की इस किस्म का
विकास नासिक में स्थित बागवानी अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान के द्वारा किया गया
है | यह किस्म बहुत जल्द पककर तैयार हो जाती है | इसे तैयार होने में कम से कम 90
से 100 दिन का समय लगता है इसके कंदों का आकार गोल होता है और प्याज का रंग आकर्षक
लाल होता है | प्याज की इस किस्म की खेती करने से हमे 25 से 30 टन की अच्छी
पैदावार प्राप्त होती है |
5.
भीमा सुपर :- इस किस्म को रबी और खरीफ दोनों ही
फसल के रूप में उगाया जा सकता है | इस किस्म के प्याज एक समान आकार के होते है | भीमा
सुपर प्याज का विकास राष्ट्रीय प्याज व् लहसुन अनुसंधान केंद्र के द्वारा किया गया
है | इस प्याज की खेती करने से हमे एक हेक्टेयर की भूमि पर से लगभग 25 से 30 टन की
अच्छी उपज मिल जाती है | इन्हें बाजार में अच्छी कीमत पर बेचा जाता है |
रबी की किस्में :-
1.
एन – 2- 4- 1 :- इस किस्म को पिपलगांव बसवंत
स्थित प्याज अनुसंधान केंद्र के द्वारा विकसित किया गया है | इस किस्म के प्याज का
रंग लाल ईट की तरह है | इसका स्वाद बहुत तीखा होता है | इस किस्म के प्याजों को
बाजार में उचित मूल्यों पर बेचा जाता है | इस किस्म के प्याज पर बैगनी धब्बा
थिरप्स की बीमारी का कोई प्रकोप नहीं होता | इसकी खेती करने से हमे एक अच्छा उत्पादन
मिल जाता है | इस प्याज की एक हेक्टयर भूमि पर से कम से कम 30 से 35 टन की अच्छी
उपज मिल जाती है जो हर किसान भाई के लिए अच्छी आमदनी का साधन है |
Pyaj ki Kismen |
2.
अर्का निकेतन :- प्याज की इस किस्म के कंद
गुलाबी रंग में पतली गर्दन वाले होते है | इसका आकार गोल होता है | अर्का निकेतन
को भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बंगलोर के द्वारा विकसित किया गया है | इसके
कंदों को समान्य तापमान पर लगभग 5 से 6 महीने तक भंडारित किया जाता है | इसलिए इस
किस्म को भण्डारण की दृष्टि से उत्त्न्म किस्म माना जाता है | यह रोपाई के लगभग
100 से 120 दिन में तैयार हो जाती है | इसकी खेती करने से हमे 30 से 35 टन प्रति
हेक्टेयर की दर से अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है |
3.
पूसा रेड :- प्याज की इस किस्म का विकास भारतीय
कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के द्वारा विकसित किया गया है | इस किस्म के हर एक कंदों का वजन कम से कम 75 से 90 ग्राम का
होता है | इस प्याज का आकार गोलकर चपटा होता है | इस किस्म की खेती करने से हमे
लगभग 30 से 35 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी उपज मिल जाती
है | यह किस्म रोपाई के 120 से १४० दिन के अन्तराल में तैयार हो जाती है | यह
प्याज की लाभदायक किस्म है |
4.
एग्रीफाउंड लाइट रेड :- प्याज की इस किस्म का राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान और विकास
प्रतिष्ठान के द्वारा किया गया है |इसके
कंद मध्यम गोलाकार के होते है | यह रबी की फसल के लिए उत्तम किस्म मानी जाती है | इस
किस्म के प्याज में तीखापन बहुत होता है | यह किस्म रोपाई के 120 से 125 दिन में
तैयार हो जाती है | इसे कई महीनों तक समान्य तापमान पर भंडारित किया जा सकता है | भण्डारण
करने की दृष्टि से यह बहुत अच्छी किस्म है | इस किस्म की खेती करने से हमे एक
हेक्टेयर की भूमि पर से 30 से 35 टन की अच्छी उपज मिल जाती है |
5.
इन सभी किस्मो के आलावा प्याज की और भी कई
किस्मो की खेती की जाती है | जिसके नाम निम्नलिखित है :-
1, पूसा व्हाइट
राउंड
2, पूसा व्हाइट
पूसा व्हाइट फ्लेट
व्ही -12
उदयपुर 102
आदि इन सभी किस्मो
के साथ – साथ कुछ संकर किस्मों को भी
उगाया जाता है | प्याज की फसल के लिए
नर्सरी बनाना :- एक हजार वर्ग किलोमीटर से1200 वर्गमीटर की जमीन पर प्याज की बुआई
करनी चाहिए | प्याज की नर्सरी उस जगह पर बनानी चाहिए जंहा पर सिंचाई करने का
स्त्रोत भूमि के पास हो | इसके आलावा दुब या अन्य बहुवर्षीय खरपतवार की भूमि पर नर्सरी
नहीं बनानी चाहिए | प्याज के स्वस्थ पौध तैयार करने से प्याज का अच्छा उत्पादन
होता है | पौधशाला की समय – समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए | खरीफ की फसल लेने के
लिए भूमि का चुनाव बहुत ही ध्यान से करना चाहिए | जंहा पर दोपहर के समय छाया होती
है और आस – पास पर झाड़ियाँ हो वह भूमि प्याज की नर्सरी बनाने के लिए उत्तम होती है
| रबी की फसल लेने के लिए प्याज की नर्सरी को खुले स्थान पर बनाएं | इस भूमि में
पहले सड़ी हुई गोबर की खाद डालकर जुताई करें | और अनचाहे रूप में उगे हुए खरपतवार
निकाल दें | इसके बाद ही नर्सरी में बुआई करें |
बुआई का तरीका |
पौध लगाने का तरीका
:- प्याज के पौध लगाने के लिए समतल या थोड़ी सी उठी हुई क्यारियां बनानी चाहिए | थोड़ी
सी उठी हुई क्यारियों में पौध की वृद्धि एक समान रूप में होती है और अच्छी तरह से
होती है | इस प्रकार से क्यारियों में या समतल भूमि पर पौध लगाने से प्याज के पौधे
स्वस्थ और जल्दी तैयार हो जाते है | इन पौधे के तैयार होने के बाद रोपाई के लिए
इसे आसानी से उखाड़ा जा सकता है | इन क्यारियों की जमीन से उंचाई लगभग 15 सेंटीमीटर
की होनी चाहिए | प्याज की क्यारियों की भूमि बनाने से पहले 20 से 25 किलोग्राम सड़ी
हुई गोबर की खाद और 50 ग्राम सफूला को प्रति क्यारी के हिसाब से मिटटी में अच्छी
तरह से मिला दें | और भूमि को समतल कर लें और कतारों में बुआई करें | बुआई करने के
तुरंत बाद सिंचाई करें | बुआई करने के बाद पहली सिंचाई हजारे से करनी चाहिए
क्योंकि इससे बीज पानी के बहाव से नहीं बहते | बीज अपने स्थान पर ही रहते है | यदि
पौधशाला भूमि के अधिक भाग पर है तो हजारे से सिंचाई करना थोडा मुश्किल होता है | इसलिए
इस भाग में सिंचाई करते समय पानी का प्रभाव कम रखे | पानी के बहाव को कम करने के
लिए पानी देने वाले स्थान पर बोरा या घास लगा दें |
प्याज की फसल को
खरपतवार से मुक्त रखने के लिए उपाय :- प्याज
के बीज लगाने से पहले क्यारियों में पेंडामिथिलिन की 2 मिलीलीटर की मात्रा में एक
लीटर पानी मिलाकर कर एक घोल बनाएं | इस प्रकार से तैयार घोल क्यारियों में छिडक
दें | इससे खरपतवार के बीज नहीं निकलते और प्याज की अच्छी फसल मिले | छोटी – छोटी
दुब या मोथा जैसे खरपतवार पर इस दवा का कोई प्रभाव नहीं होता है | इसलिए इन्हें
किसान को अपने हाथों से निकालना चाहिए |
प्याज के पौधे में
लगने वाले रोग :-
1.
आद्र गलन :- पौधे में यह बीमारी बीज के अन्कुरंन
के बाद और पौधे की वृद्धि के समय लगती है | यह कवक जन्य रोग है जिसे स्केलेरोशियम
राल्फ्सी नामक कवक कहते है | इस कवक के तन्तु वाला भाग पौधे के जड़ वाले भाग में
प्रवेश कर जाता है और पौधे को नुकसान पंहुचाता है | इससे पौधे का रंग पीला हो जाता
है | और धीरे – धीरे वह पूरी तरह से सुख जाता है | कवक ज्यादातर खरीफ की फसल को
नष्ट कर करते है क्योंकि नमी वाले स्थान में इसकी वृद्धि होती है | जिस खेत में
प्याज की रोपाई की जा रही है उस भूमि में पानी का निकास अच्छी तरह से होना चाहिए |
अन्यथा पौधे में इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है |
इसकी रोकथाम करने के
लिए एक उपाय है जिसकी जानकारी हम आपको दे रहे है |
प्याज की बुआई से
पहले इसके बीजों को डायथायोकार्बामेट या डेल्टान से उपचारित करें |
पौधशाला उठी हुई
क्यारियों में बनानी चाहिए | जिससे पानी का निकास उचित प्रकार से हो सके |
पौधे में होने वाले रोग और बचाव के तरीके |
बीज की एक किलो की मात्रा
को ट्राईकोडर्मा विहरिडस की 4 ग्राम की मात्रा से उपचारित करें |
बिमारियों का प्रकोप होने पर डेल्टान या
कार्बोस्फ्सिन की 2 ग्राम की मात्रा में एक लीटर पानी मिलाकर एक घोल बनाएं | इस
तैयार घोल का भूमि पर छिडकाव करें |
हर साल नर्सरी बनाने
की जगह बदलते रहे |
श्याम वर्ण :- पौधे में यह रोग कोलेटोट्रायकम
ग्लेओस्पोराइडम नामक कवक के द्वारा फैलता
है | इस रोग में पत्तियों के बाहरी भाग पर राख के धब्बे बन जाते है | जो बाद में बढ़ जाते है और सारी पत्तियों पे
फैल जाते है | इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तिया मुरझाकर मुड़ जाती है | धीरे –
धीरे इस रोग से प्रभावित पौधा की वृद्धि रुक जाती है और पौधा सुख जाता है | खरीफ
की फसल में इस बीमारी का प्रकोप अधिक होता है | यह रोग बारिश की वजह से एक पौधे से
दुसरे पौधे में बड़ी ही आसानी से फैल जाते है | इसके आलावा खेत में पानी का भराव
नहीं होना चाहिए |
प्याज की फसल को खरपतवार मुक्त बनाएं |
इस बीमारी से अपने पौधे को बचाने के लिए हमे
निम्नलिखित विधियों का उपयोग करना चाहिए |
1.
प्याज के पौध को खेत में बोने से पहले पौध की
जड़ों को कार्बोडजिम या क्लोरोथलोनिल की 0. 2 : के घोल में कुछ घंटे के लिए डूबकर
रख दें | इसके बाद ही रोपाई करें |
2.
नर्सरी में थोड़ी सी उठी हुई क्यारियां बनानी
चाहिए |
3.
मनकोजैव की 30 ग्राम की मात्रा या कार्बोडजिमकी
20 ग्राम की मात्रा में 10 लीटर पानी मिलाकर 15 से 20 दिन के अंतर पर छिडकाव करें |
4.
प्याज की पौधशाला में पतला बीज बोना चाहिए |
5.
पौधशाला की आवश्कता के अनुसार निराई – गुड़ाई
करनी चाहिए |
सफेद विगलन :- :- यह
कवक जन्य रोग है जिसे स्केलेरोशियम राल्फ्सी नामक कवक कहते है | पौधे में यह
बीमारी जड़ों के अंदर क=फैलती है | जिससे पौधा पीला पड़ जाता है और धीरे – धीरे पौधा
सुख जाता है | इस बीमारी में पौधे के नीचे वाला भाग सड़ जाता है जिससे वह बड़ी ही
आसानी से जमीन से उखड़ जाता है | इस बीमारी में पौधे की हरी – हरी पत्तियाँ मुड़
जाती है | इस बीमारी का बुरा प्रभाव खरीफ और रबी की फसलों पर समान रूप से पड़ता है
|
पौधे को इस बीमारी
से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय है :-
एक खेत में बार –
बार प्याज की फसल नहीं लेनी चाहिए |
गर्मियों के मौसम
में गहरी जुताई कर मिटटी को धुप से तपने देना चाहिए |
खरीफ की फसल लेने के
लिए उचित जल निकास वाली भूमि का चुनाव करना
चाहिए |
प्याज की रोपाई से
पहले प्याज की जड़ों को 2 ग्राम कर्बोडाजिम की मात्रा में 10 लीटर पानी मिलाकर बनये
हुए घोल में 10 से 15 मिनट के लिए डूबा कर रख दें | इसके बाद ही पौध की रोपाई करें
|
बैंगनी धब्बा :- भारत
के सभी भागों में उगने वाले प्याज की फसल में इस बीमारी का प्रकोप होता है | इस
बीमारी का प्रकोप पौधे की किसी भी अवस्था में हो सकता है | इस रोग के प्रभाव से
पौधे की पत्तियों और फूल की डंडी पर छोटे –
छोटे दबे हुए बैगनी रंग और सफेद रंग के डब्बे बन जाते है | कुछ दिनों के बाद यह
रोग बढ़ जाता है जो आपस में मिलकर एक बड़ा आकार होकर काले रंग के हो जाते है | इस
बीमारी में पौधे का 50 से 70 % भाग प्रभावित होता है | इससे पौधे की पत्तियां पीली
होकर सुख जाती है | फूलों की डंडियाँ मुड़ जाती है | पौधे में यह बीमारी
अल्टरनेरिया पोरी नामक कवक के द्वारा होता है | खरीफ की फसल में इस रोग का अधिक
प्रभाव पड़ता है | पौधे में इस बिंरी का प्रकोप बुआई के बाद और पौधे की वृद्धि के
समय होता है | इसके आलावा रबी की फसल में बारिश होने और आकाश में बादल वाले
वातावरण में इस बीमारी का प्रकोप अधिक होता है |
प्याज में लगी बीमारी से बचाने के लिए उपाय |
पौधे में लगी हुई इस
बीमारी को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय है :-
1.
फसल चक्र की विधि को अपनाना चाहिए |
2.
बुआई करने से पहले बीज को 2 से 3 ग्राम
डायथायोकार्बामेट को एक किलो बीज की दर से उपचारित करें |
3.
नेत्रजन और उर्वरको का प्रयोग उचित समय पर करना
चाहिए |
4.
कार्बोडाजिम की 20 ग्राम की मात्रा या क्लोरोथलोनिल
की 20 ग्राम की मात्रा में 10 लीटर पानी मिलाकर एक घोल बनाएं | इस प्रकार से तैयार
किये हुए घोल को 12 से 15 दिन के अन्तराल में फसलों पर छिडकाव करें |
तना और कंद सड़ने
वाला रोग :- पौधे में यह रोग डीटीलिंक्स डीपससी नामक सूत्र कृमि के कारण होता है |
इस बीमारी में पौधे के कंद और तना सड़ने लगता है | यह रोग केवल प्याज की फसल में ही
नही बल्कि लहसुन , गोभी , आलू और रतालू जैसी फसलों पर भी इस रोग का बुरा असर पड़ता है | यह रोग पौधे की
किसी भी अवस्था में हो सकता है | यदि इस बीमारी का प्रकोप रोपाई के तुरंत बाद होता
है तो पौधे का आकार छोटा रह जाता है | और पौधे की पत्तियों का आकार टेढ़ा मेढ़ा हो
जाता है | कंदों की वृद्धि के समय इस बीमारी का असर होने से प्याज का गर्दन वाला
भाग नर्म हो जाता है और धीरे – धीरे प्याज नर्म होकर सड़ने लगता है जिसके कारण
प्याज में से बदबू आने लगती है | इस बीमारी का अधिक फैलाव प्याज के बीज , पत्तियां
और सड़े हुए प्याज के द्वारा होता है |
पौधे की इस बीमारी से बचाने के लिए निम्नलिखित
उपाय है|
1.
खेत में जल निकास का प्रबंध अच्छा होना चाहिए |
2.
खरीफ के मौसम में अच्छे जल निकास वाली हल्की
जमीन में प्याज की खेती करनी चाहिए |
3.
फसल चक्र की विधि को अपनाना चाहिए | इस फसल चक्र
में सरसों या गेंदें की खेती को अपनाना चाहिए |
रोग ग्रस्त प्याज का पौधा |
कटवा :- इस कीड़े की झिल्लियाँ पौधे को हानि पंहुचाते है | इन सुंडियों का आकार
30 से 35 मिलीमीटर की होती है और इसका रंग राख के रंग का होता है | रेतीली मिटटी
या हल्की मिटटी में इस कीड़े का प्रकोप बढ़ जाता है | यह पौधे के अंदर वाले भाग को कतर – कतर करके खा
जाती है | जिससे पौधा पीला पड़ने लगता है | कीड़े से प्रभावित पौधा आसानी से जमीन से
उखड़ जाता है |
इन कीड़ों से पौधे को बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय है |
1.
पिछली पुरानी फसल के अवशेषों को नष्ट कर देना
चाहिए |
2.
आलू के बाद प्याज की फसल कभी भी नहीं बोनी चाहिए
|
3.
उचित
फसल चक्र की विधि अपनाना चाहिए |
4.
रोपाई से पहले फोरेट 10 जी 4 किलोग्राम को एक
एकड़ भूमि में एक समान मात्रा में मिलाना चाहिए |
5.
दीमक :- कंकर युक्त मिटटी , रेतीली मिटटी या हल्की मिटटी
में दीमक का अधिक प्रकोप होता है | इसके आलावा कई बार खेत में दीमक की बाबी होती
है जिसके कारण प्याज की फसल को नुकसान होता है | ये दीमक पौधे की जड़ें और कंदों को
नष्ट कर देते है | जिससे पौधा सुख जाता है | दीमक को रोकने के लिए एक एकड़ भूमि में
40 से 50 किलोग्राम हेप्टाकलोर पाउडर को जमीन में मिला दें | ऐसा करने से खेत में
बनी हुई दिमंक की बम्बियाँ नष्ट हो जाती है |
Pyaj का bhandarn |
6.
प्याज को निकालना :- किस्म और मौसम के अनुसार
कंदों के पकने के बाद नई पत्तियां आनी रुक जाती है | पत्तियां पीली होने लगती है |
इस समय पौधे की गर्दन जमीन पे गिरने लगती है | प्याज को खुरपी या कुदान से भूमि
में से निकलना चाहिए | इससे प्याज की लागत भी बढती है |
7.
प्याज का भंडारण :- भारत में रोजाना खाने में
प्याज का उपयोग किया जाता है | इस कारण सालभर इसकी उपलब्धता की जरूरत होती है |
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