दालचीनी की खेती करने का तरीका :-
दालचीनी का उपयोग मसाले के
रूप में किया जाता है | यह एक प्रकार की छाल होती है | दालचीनी का वृक्ष एक
सदाबहार वृक्ष है | दालचीनी का पुराने समय से ही व्यवसाय किया जा रहा है | यह सबसे
पहले भारत के पश्चिमी घाट के जंगलों में पाई गई थी | इसके बाद दालचीनी की व्यवसाय
के रूप में खेती की जाने लगी | इसकी खेती केरल , कर्नाटक और तमिलनाडू में की जाती
है | दालचीनी का वनस्पतिक नाम सीनामोन है | दालचीनी की छाल थोड़ी सी मोटी और चिकनी
होती है | जिसे भोजन में पीसकर डाला जाता है | यह बाजार में आसानी से मिल जाता है
| तो आज हम फायदेमंद दालचीनी की खेती के बारे में चर्चा करेंगे |v दालचीनी की खेती के लिए
जलवायु कैसी होनी चाहिए :- दालचीनी का पेड़ 1000 मीटर की ऊंचाई वाले भाग पर सही तरह
से बढ़ता है और विकसित होता है | जिस स्थान पर 200 से 250 सेंटीमीटर की वार्षिक
बारिश होती है वह स्थान दालचीनी की कहती करनी लिए उतम होती है| यह एक वर्षा आधारित
फसल है |
v दालचीनी की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- दालचीनी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिटटी अच्छी होती है | इसके आलावा पोषक तत्व से भरपूर बलुई मिटटी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है |
v दालचीनी की किस्म :-
i. कोंकण तेज़ yercaud -1
ii. नवश्री iii. nithyashreeआदि किस्मों की व्यावसायिक रूप से खेती की जाती है | नवश्री नामक किस्म से हमे अच्छी उपज की प्राप्ति होती है | इस किस्म से हमें 4 साल में 56 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपज की प्राप्ति होती है | इसके आलावा हमे 73 % छाल , oleoresin की 8 % और पत्ती से 2. 8 % तेल की प्राप्ति होती है | इस किस्म से हमे अच्छी गुणवता वाली उपज मिलती है | भारत में दालचीनी की नवश्री किस्म की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है |
v प्रचार :- इसका प्रसार कलमों और हवा परतों के मध्यम से किया जा रहा है |
v नर्सरी बनाने का समय :- भारत के पश्चिमी घाट में दालचीनी के फूल और फल निकलने का समय जनवरी से अगस्त का होता है | फलों को पेड़ से इक्कठा कर लिया जाता है इसके बाद बीजों को निकाला जाता है | बीजों को साफ़ करके बोया जाता है |इन बीजों को पोलीथीन में में बोया जाता है | पोलीथीन में रेत मिटटी और गोबर के मिश्रण को भर दिया जाता है | इसके बाद ह्क्ली सी सिंचाई करके बीजों को बोया जाता है | इसमें नियमित रूप से पानी दिया जाना चाहिए | दालचीनी के बीज 15 से २० दिन के अंदर अंकुरित होने लगते है | इसके पोलिबैग को छाया में रखना चाहिए |
v दालचीनी पेड़ की खेती :- दालचीनी के पौध लगाने के लिए 50 *50* 50 के आकार का गड्डा खोद लें | एक गड्डे से दुसरे गड्डे के बीच की दुरी कम से कम 3 मीटर की होनी चाहिए | पौध को बोने से पहले गड्डे में सड़ी हुई गोबर की खाद और मिटटी के मिश्रण को भर दें | इसके बाद पौध लगायें | एक गड्डे में लगभग 4 या 5 अंकुरित पौध लगायें | जब तक पौध भूमि में पूरी तरह से जम नही जाते तब तक उन्हें छाया में ही रखे |
v खरपतवार को रोकने के लिए :- दालचीनी की रोपाई के बाद मिटटी के आस –
पास हल्की निराई करनी चाहिए |
v दालचीनी की फसल में उर्वरक का प्रयोग :- इसकी फसल में पहले साल में २० से 25 ग्राम यूरिया २० से 25 ग्राम अधिभास्विए और 50 ग्राम पोटाश की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए | इन उर्वरक की मात्रा को मई – जून और सितम्बर – अक्तूबर के महीने में दो बराबर मात्रा में बाँटकर प्रयोग करना चाहिए |
v दालचीनी की फसल में सिंचाई :- जैसा की हम जानते है कि दालचीनी एक वर्षा आधारित फसल है | इसके लिए कम से कम 200 से 250 सेंटीमीटर की वर्षा का होना अति आवश्यक है | दालचीनी की पहले २ या 3 साल में सप्ताह में दो बार सिंचाई करनी चाहिए | गर्मियों के मौसम में इसकी फसल में सिंचाई समय – समय पर करनी चाहिए | इससे भूमि में नमी बनी रहती है | क्योकि भूमि में नमी का स्तर पौधे की विकास पर आधारित होती है |
v प्रबंधन :- दालचीनी के दो साल पुराने पौधे को 15 सेंटीमीटर स्टंप की ऊंचाई से जून या जुलाई के महीने में काटा जाता है | इसके बाद मुख्य तने पक्ष शूटिंग का एक गुच्छा पैदा करता है | लगभग 4 साल के बाद फसल को छिलने के लिए उपयुक्त माना जाता है | इसकी फसल छिलने का कार्य चौथे और पांचवे साल में किया जाता है | कटाई के काम के लिए सितम्बर से नवम्बर का महिना उचित होता है | थोड़ी मोटी और भूरे रंग के दालचीनी की कटाई करनी चाहिए | इसकी कटाई के लिए तेज़ धार वाले चाकू का उपयोग करना चाहिए | इसकी मदद से पेड़ में से छाल को आसानी से अलग कर लिया जाता है | इसके बाद इसे आगे पोस्ट हार्वेस्ट के लिए पैक हॉउस में भेजा जाता है |
v दालचीनी के भीतरी छाल को
छिलने के लिए :- यह कार्य पैक हाउस में किया जाता है | इस कायर को करने के लिए
कुशल और अनुभवी व्यक्ति की आवशयकता होती है | छाल को भीतर से छिलने का कार्य एक विशेष प्रकार से बनाये हुए
चाकू के द्वारा किया जाता है | इस काम के
किसी न किसी बाहरी छाल को सबसे पहले हटायाजाता है | इसके बाद एक अनुदैर्ध्य भट्टा का एक छौर से दुसरे
छोर के लिए प्रयोग किया जाता है | इससे छाल का अंदर का भाग जल्दी फट जाता है | इसके
बाद सभी छिलकों को इक्कठा कर लिया जाता है और रात भर छाया में रखा जाता है | v दालचीनी की गोलियों को
सुखाना :- इसकी गोलियों को एक दिन छाया में सुखाना चाहिए | इसके बाद 4 से 5 दिन तक
धुप में सुखाएं | सूखने के बाद छाल ढेके या कलम के आकार में बदल जाते है | v दालचीनी का पाउडर तैयार
करना :- दालचीनी के रोल को ग्रेड जमीन दालचीनी के लिए उपयोग किया जाता है |ग्राउंड दालचीनी या दालचीनी पाउडर के लिए दालचीनी के रोल का उपयोग
किया जाता है | इसे पीसकर तैयार किया जाता है |
v दालचीनी की चाय:- इसकी चाय के लिए शहद के २ छोटे चम्मच , दालचीनी पाउडर के 3 छोटे चम्मच और हरी चाय की 16 ओंस को आपस में मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण का सेवन करने से कोलेस्ट्रोल कम हो जाता है | यह इस परेशानी से बचने के लिए सर्वश्रेष्ठ औषधि का काम करता है |
v वजन घटाने के लिए शहद और दालचीनी पाउडर :- मधुमक्खियों से प्राप्त
शुद्ध शहद का एक भाग और दालचीनी के दो भाग को लें | इसके बाद दालचीनी पाउडर में
पानी को उबालकर एक छोटे कप से डाल दें | इसके बाद इसमें शहद मिलाकर एक मिश्रण
बनाएं | इस तैयार मिश्रण को 25 से 30 मिनट तक छोड़ दें | इस मिश्रण का सेवन सुबह के
समय खाली पेट करें और रात एक समय सोने से
पहले करें | इस तरह की विधि के अनुसरण करने से एक या दो महीने के अंदर वजन को
घटाया जा सकता है | दालचीनी का सेवन मोटापे को कम करता है |
v दालचीनी के पाउडर का मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए लाभ :- दालचीनी और शहद के मिश्रण को बनाकर कीट घाव पर लगाने से कीड़े मर जाते है और घाव शीघ्र भर जाते है |
· शहद और दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाकर सेवन करने से कोलेस्ट्रोल को कम किया जाता है | इसका उपयोग एक जाम की तरह किया जाता है |
· गर्म पानी में शहद और दालचीनी के पाउडर को डालकर पीने से गठिया रोग ठीक हो जाता है | लेकिन इसका सेवन नियमित रूप से लम्बी अवधि तक करना चाहिए |
· नहाने से पहले अपने बालों में जैतून के तेल में शहद और दालचीनी के मिःर्ण को लगा लें | लगभग 15 से २० मिनट के बाद सिर को धो लें | इस विधि से बाल झड़ने की समस्या दूर हो जाती है |
· मूत्राशय के संक्रमण को दूर करने के लिए रोजाना गर्म पानी में शहद और दालचीनी पाउडर मिलाकर सेवन करें | इसके आलावा इन दोनों का पेस्ट बनाकर सेवन करने से पेट का दर्द और दांत का दर्द भी ठीक हो जाता है |· दालचीनी और शहद के मिश्रण का सेवन करने से जुकाम , प्रजजन में होने वाले विकार , वजन कम करना और साँस जैसी बिमारियों को दूर किया जाता है | यह हमारे स्वास्थ्य के लिए अति लाभदायक है |
दालचीनी की लाभदायक खेती |
दालचीनी की उन्नत किस्म |
v दालचीनी की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- दालचीनी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिटटी अच्छी होती है | इसके आलावा पोषक तत्व से भरपूर बलुई मिटटी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है |
v दालचीनी की किस्म :-
i. कोंकण तेज़ yercaud -1
ii. नवश्री iii. nithyashreeआदि किस्मों की व्यावसायिक रूप से खेती की जाती है | नवश्री नामक किस्म से हमे अच्छी उपज की प्राप्ति होती है | इस किस्म से हमें 4 साल में 56 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपज की प्राप्ति होती है | इसके आलावा हमे 73 % छाल , oleoresin की 8 % और पत्ती से 2. 8 % तेल की प्राप्ति होती है | इस किस्म से हमे अच्छी गुणवता वाली उपज मिलती है | भारत में दालचीनी की नवश्री किस्म की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है |
v प्रचार :- इसका प्रसार कलमों और हवा परतों के मध्यम से किया जा रहा है |
v नर्सरी बनाने का समय :- भारत के पश्चिमी घाट में दालचीनी के फूल और फल निकलने का समय जनवरी से अगस्त का होता है | फलों को पेड़ से इक्कठा कर लिया जाता है इसके बाद बीजों को निकाला जाता है | बीजों को साफ़ करके बोया जाता है |इन बीजों को पोलीथीन में में बोया जाता है | पोलीथीन में रेत मिटटी और गोबर के मिश्रण को भर दिया जाता है | इसके बाद ह्क्ली सी सिंचाई करके बीजों को बोया जाता है | इसमें नियमित रूप से पानी दिया जाना चाहिए | दालचीनी के बीज 15 से २० दिन के अंदर अंकुरित होने लगते है | इसके पोलिबैग को छाया में रखना चाहिए |
v दालचीनी पेड़ की खेती :- दालचीनी के पौध लगाने के लिए 50 *50* 50 के आकार का गड्डा खोद लें | एक गड्डे से दुसरे गड्डे के बीच की दुरी कम से कम 3 मीटर की होनी चाहिए | पौध को बोने से पहले गड्डे में सड़ी हुई गोबर की खाद और मिटटी के मिश्रण को भर दें | इसके बाद पौध लगायें | एक गड्डे में लगभग 4 या 5 अंकुरित पौध लगायें | जब तक पौध भूमि में पूरी तरह से जम नही जाते तब तक उन्हें छाया में ही रखे |
दालचीनी का प्रबंधन कैसे करें |
v दालचीनी की फसल में उर्वरक का प्रयोग :- इसकी फसल में पहले साल में २० से 25 ग्राम यूरिया २० से 25 ग्राम अधिभास्विए और 50 ग्राम पोटाश की मात्रा का प्रयोग करना चाहिए | इन उर्वरक की मात्रा को मई – जून और सितम्बर – अक्तूबर के महीने में दो बराबर मात्रा में बाँटकर प्रयोग करना चाहिए |
v दालचीनी की फसल में सिंचाई :- जैसा की हम जानते है कि दालचीनी एक वर्षा आधारित फसल है | इसके लिए कम से कम 200 से 250 सेंटीमीटर की वर्षा का होना अति आवश्यक है | दालचीनी की पहले २ या 3 साल में सप्ताह में दो बार सिंचाई करनी चाहिए | गर्मियों के मौसम में इसकी फसल में सिंचाई समय – समय पर करनी चाहिए | इससे भूमि में नमी बनी रहती है | क्योकि भूमि में नमी का स्तर पौधे की विकास पर आधारित होती है |
v प्रबंधन :- दालचीनी के दो साल पुराने पौधे को 15 सेंटीमीटर स्टंप की ऊंचाई से जून या जुलाई के महीने में काटा जाता है | इसके बाद मुख्य तने पक्ष शूटिंग का एक गुच्छा पैदा करता है | लगभग 4 साल के बाद फसल को छिलने के लिए उपयुक्त माना जाता है | इसकी फसल छिलने का कार्य चौथे और पांचवे साल में किया जाता है | कटाई के काम के लिए सितम्बर से नवम्बर का महिना उचित होता है | थोड़ी मोटी और भूरे रंग के दालचीनी की कटाई करनी चाहिए | इसकी कटाई के लिए तेज़ धार वाले चाकू का उपयोग करना चाहिए | इसकी मदद से पेड़ में से छाल को आसानी से अलग कर लिया जाता है | इसके बाद इसे आगे पोस्ट हार्वेस्ट के लिए पैक हॉउस में भेजा जाता है |
Dalchini Ko Kaese Taiyar |
v दालचीनी की चाय:- इसकी चाय के लिए शहद के २ छोटे चम्मच , दालचीनी पाउडर के 3 छोटे चम्मच और हरी चाय की 16 ओंस को आपस में मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण का सेवन करने से कोलेस्ट्रोल कम हो जाता है | यह इस परेशानी से बचने के लिए सर्वश्रेष्ठ औषधि का काम करता है |
दालचीनी के लाभ |
v दालचीनी के पाउडर का मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए लाभ :- दालचीनी और शहद के मिश्रण को बनाकर कीट घाव पर लगाने से कीड़े मर जाते है और घाव शीघ्र भर जाते है |
· शहद और दालचीनी पाउडर का पेस्ट बनाकर सेवन करने से कोलेस्ट्रोल को कम किया जाता है | इसका उपयोग एक जाम की तरह किया जाता है |
· गर्म पानी में शहद और दालचीनी के पाउडर को डालकर पीने से गठिया रोग ठीक हो जाता है | लेकिन इसका सेवन नियमित रूप से लम्बी अवधि तक करना चाहिए |
· नहाने से पहले अपने बालों में जैतून के तेल में शहद और दालचीनी के मिःर्ण को लगा लें | लगभग 15 से २० मिनट के बाद सिर को धो लें | इस विधि से बाल झड़ने की समस्या दूर हो जाती है |
· मूत्राशय के संक्रमण को दूर करने के लिए रोजाना गर्म पानी में शहद और दालचीनी पाउडर मिलाकर सेवन करें | इसके आलावा इन दोनों का पेस्ट बनाकर सेवन करने से पेट का दर्द और दांत का दर्द भी ठीक हो जाता है |· दालचीनी और शहद के मिश्रण का सेवन करने से जुकाम , प्रजजन में होने वाले विकार , वजन कम करना और साँस जैसी बिमारियों को दूर किया जाता है | यह हमारे स्वास्थ्य के लिए अति लाभदायक है |
Dalchini ki labhdayk kheti, दालचीनी की लाभदायक खेती |
दालचीनी की उन्नत किस्म,Dalchini Ka Pauder Kaese taiyar kren,दालचीनी का प्रबंधन कैसे करें ,Dalchini Ko Kaese Taiyar , दालचीनी के लाभ |
No comments:
Post a Comment