काली मिर्च की लता एक सदाबहार लता है | इसकी बेल बारहमासी है | इसकी
खेती भारत के आलावा दुसरे देशों में भी की जाती है | काली मिर्च को सबसे पहले भारत
के दक्षिण भाग में उगाया गया था | इसलिए इस स्थान को इसकी जन्मस्थली कहा जाता है | इस स्थान पर इसकी खेती
हर घर में की जाती है | भारत के आलावा यह
इंडोनेशिया , बोर्नियो , मलय , लंका और स्याम आदि देशों में उगाया जाता है | काली मिर्च का पौधा मालाबार के जंगलो में अधिक
संख्या में पाया जाता है | इसकी खेती कोचीन , असम के सिलहट आदि पहाड़ी में में भी
सफलतापूर्वक की जाती है | काली मिर्च का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है | लेकिन
इसमें आयुर्वेदिक गुण पाए जाते है जिससे आप कई बीमारी का इलाज कर सकते है | काली
मिर्च बाजार में अधिक मूल्य पर बेचीं जाती है | इसलिए इसकी खेती करने से हमे अधिक मुनाफा
मिलता है | काली मिर्च के पौधे की पत्तियां आयताकार होती है
| इसकी पत्तियों की लम्बाई 12 से 18
सेंटीमीटर की होती है और 5 से 10 सेंटीमीटर की चौड़ाई होती है | इसकी जड़ उथली
हुई होती है | इसके पौधे की जड़ २ मीटर की
गहराई में होती है | इस पर सफेद रंग के फूल निकलते है | आज हम आपको काली मिर्च की
खेती के विषय में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे है |
v काली मिर्च की खेती के लिए उचित जलवायु :- यह उष्णकटिबंधीय फल है | काली मिर्च की बेल अधिक
ठण्ड सहन नही कर सकता | इसके लिए हल्की ठण्ड वाली जलवायु उत्तम होती है | यदि मौसम
का तापमान 10 से 12 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है तो ऐसे मौसम में इसका पौधा
वृद्धि नहीं कर सकता | काली मिर्च की फसल में 2000 mm की वार्षिक वर्षा का होना
जरूरी होता है | दक्षिण अफ्रीका में काली मिर्च की फसल में समय – समय पर हल्की
सिंचाई करनी चाहिए |
v काली मिर्च की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- काली मिर्च की खेती के
लिए लाल लेटेराइट मिटटी और लाल मिटटी उत्तम मानी जाती है | जिस भूमि में काली
मिर्च की खेती की जाती है उस खेत की मिटटी में जल धारण करने की क्षमता होनी चाहिए |
इस भूमि में रूट सड़ांध जैसी बीमारी को रोकने की क्षमता होनी चाहिए | यदि भूमि का
पी. एच. मान 5 से 6 के बीच का हो तो अच्छा होता है |
v काली मिर्च के रोपण का तरीका :- काली मिर्च के पौधे के विस्तार करने
के लिए कलमों का उपयोग किया जाता है | इसकी एक या दो कलमों को काटकर सितम्बर के
मध्य में रोपित किया जाता है | काली मिर्च के कलमों को एक कतार में लगाना चाहिए | कलमों
को लगाते समय इनके बीच की दुरी का ध्यान रखे | एक हेक्टेयर भूमि पर 1666 पौधे होने
चाहिए | काली मिर्च की बेल चढ़ाई जाती है | ऊँचे पेड़ पर ये 30 से 45 मीटर तक की
ऊंचाई पर चढ़ जाते है | लेकिन इसके फलों को आसानी से लेने के लिए इसकी बेल को केवल 8
से 9 मीटर की ऊंचाई तक ही बढ़ने दिया जाता है | काली मिर्च का एक पौधा कम से कम 25
से 30 साल तक फलता – फूलता है | इसकी फसल को कोई छाया की जरूरत नही होती |
Kali Mirch Ke liye Jlvayu
v काली मिर्च की फसल में प्रयोग होने वाली उर्वरक :- काली मिर्च के फसल
में जैविक खाद और kraal खाद की 5 किलोग्राम की मात्रा को मिलाना चाहिए | भूमि में
पी. एच. मान के अनुसार अमोनिया सल्फेट और
नाइट्रोजन को मिलना चाहिए | इसकी फसल में 100 ग्राम पोटाशियम की मात्रा को मिलाना
चाहिए | मैग्नीशियम सल्फेट की 750 ग्राम की मात्रा को भूमि में मिलाना चाहिए | जिस
भूमि एम एसिड होता है | उसमे 500 ग्राम 0001 करने के लिए dolomitic चुना को २ साल में
एक बार जरुर प्रयोग करना चाहिए |
v सिंचाई करने का तरीका :- इसकी सिंचाई वर्षा पर आधारित होती है | यदि
किसी कारण से बारिश कम हो जाती है तो अवश्यकता पड़ने पर इसमें फसल में सिंचाई करें |
v फल की प्राप्ति :- काली मिर्च के गहरे रंग के घने पौधे पर जुलाई महीने
के बीच सफेद और हल्के पीले फूल निकलते है | जनवरी से मार्च के बीच में फल पककर
तैयार हो जाते है | फल गोल आकार में 3 से 6 mm व्यास के होते है | दक्षिण अफ्रीका
में इसकी फसल नवम्बर से जनवरी के महीने में पककर तैयार हो जाती है | सूखने पर हर
एक पौधे में से 4 से 6 किलोग्राम गोल काली
मिर्च प्राप्त हो जाती है | इसके हर एक गुच्छे में ५० से 60 दाने रहते है | पकने
के बाद इन गुच्छों को उतारकर भूमि में या चटाईयां बिछाकर रख दें | इसके बाद
हथेलियों से दानों को रगड़कर इलाज किया जाता है | दानों को अलग करने के बाद इन्हें
5 या 7 दिन तक धूप में सुखा दें | जब काली मिर्च के दाने पूरी तरह से सुख जाते है
तो इन पर सिकुड़ जाती है और झुरियां पड़ जाती है | इन दानों का रंग गहरा काला हो
जाता है |
v सफेद काली मिर्च तैयार करना :- भारत के आलावा कई देशों में पके हुए
फलों को उतारकर पानी में भिगोकर छोड़ दिया जाता है | इससे पके हुए फल का छिलका उतर
जाता है और यह सफेद मिर्च में बदल जाती है | इसका स्वाद काली मिर्च की अपेक्षा कम
कडवा और तेज़ होता है | लेकिन इसका स्वाद अच्छा होता है | सफेद और काली मिर्च एक ही
पौधे से प्राप्त होते है |लेकिन सफेद काली मिर्च को पकने से पहले उतार लिया जाता
है और काली मिर्च लेने के लिए पके हुए फलों को पौधे पे से उतारा जाता है | सफेद
मिर्च का प्रयोग ठंडाई बनाने के लिए सलाद में , सूप में और कई तरह से पकवान बनाने
में इसका प्रयोग किया जाता है | काली
मिर्च और सफेद मिर्च का निर्यात दुसरे देश में किया जाता है | जिससे हमे विदेशी
मुद्रा मिलती है |
काली मिर्च में लगने वाले रोग |
v काली मिर्च की फसल में लगने वाले रोग :- इसकी फसल में मुख्य रूप से जड़
सड़ांध जैसी बीमारी लग जाती है | इस बीमारी में पौधे की पत्तियां कमजोर हो जाती है
| यह रोग गीली और खराब मिटटी में अधिक फैलता है | पौधे में यह बीमारी कवक के कारण
होती है | इस बीमारी से प्रभावित पौधा 10 दिन के अंदर मर जाता है |
v काली मिर्च की फसल में लगने वाले कीट :- काली मिर्च की फसल में कई
परजीवी नेमाटोड के कारण जड़ को हानि होती है | जड़ गांठ नीमेटोड , सर्पिल नीमेटोड ,
चाकू नीमेटोड , और अंगूठी जैसे कीट का प्रभाव होता है |इनकी रोकथाम नर्सरी बनाते
समय ही शुरू कर देनी चाहिए | काली मिर्च की कलमों को नीमेटोड मुक्त मिटटी में ही प्रतिरोपित करना चाहिए |
Kali mirch ka upyog
काली मिर्च का उपयोग :- काली मिर्च एक ऐसा मसाला है जिसका उपयोग
दुनिया भर में किया जाता है | काली मिर्च का 75 % भाग घरेलू कार्य में किया जाता
है | जबकि सफेद मिर्च का केवल 25 % भाग का ही उपयोग किया जाता है | मांस उद्योग
में काली मिर्च का 35 से 40 % भाग ही उपयोग किया जाता है | काली मिर्च के बीजों का
उपयोग सॉस और मेज सॉस में भी किया जाता है | इसमें 2 % वाष्पशील तेल की मात्रा
होती है |
काली मिर्च के गुण :- काली मिर्च एक सख्त मसाला है | इसमें सूखने के
बाद 12 से 15 % नमी होती है | इससे अधिक नमी काली मिर्च में नही होती |
इस प्रकार की विधि और जानकारी के आधार पर आप काली मिर्च की खेती सफलतापूर्वक
की जाती है और इससे हमे एक लाभदायक उपज की प्राप्ति होती है |
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