छोटी इलायची की खेती पुरे भारत में की जाती है | इसकी भारत के मध्य – पूर्व भाग के बाजार में बहुत मांग बढ़ गई है | छोटी इलायची का जैविक खेती के रूप में भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है | भारत में इसकी खेती कर्नाटक , केरल और तमिलनाडू में की जाती है | इलायची को CARDAMON के नाम से भी जाना जाता है | छोटी इलायची का उपयोग पुराने समय से मसाले के तौर पर किया जाता रहा है | इलायची एक बहुत महंगा मसाला है | यह दिखने में बहुत छोटा होता है | लेकिन इसमें खुशबु अधिक होती है | इलायची के उपर एक छिलका होता है जिसके अंदर इलायची के बीज उपस्थित होते है | इसका उपयोग मसाले के रूप में ही नही बल्कि एक औषधि के रूप में भी किया जाता है |
·बीजों को उपचारित करना :- इलायची के बीजों की बुआई करने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए | उपचारित करने के लिए ट्राईकोडरमा 50 मिलीलीटर की मात्रा में 100 ग्राम बीज से उपचारित करें | इलायची की खेती करने के लिए पहले इसके पौध तैयार करने होंगे | पौध तैयार करने के लिए सबसे पहले एक पौधशाला बनाएं | पौधशाला में सड़ी हुई गोबर की खाद और वर्मी कोम्पोस्ट खाद मिला दें | इसके बाद उपचारित किये हुए बीजों की बुआई करें | | पौधशाला में पौध की वृद्धि भलीभांति हो और उसमे किसी तरह का कोई रोग ना लगे इसके लिए हमे वर्मीवोश का छिडकाव करना चाहिए | इस दवा का छिडकाव बुआई करने के एक महीने के बाद करें | नर्सरी में जब पौध अच्छी तरह से तैयार हो जाये तो रोपण की किर्या आरम्भ कर देनी चाहिए |
बीजों को उपचारित करना |
·इलायची के रोपण करने के लिए भूमि की तैयारी :-
इलायची के रोपण करते समय भूमि में जल संरक्षण करना बहुत आवश्यक है | कम बारिश वाले भाग में और ढलान वाली भूमि में जल संरक्षण करना जरूरी है |
·खाद डालना :-इसकी फसल में नीम की खली एक किलोग्राम मुर्गी की खाद , FARMYARD खाद , कम्पोस्ट खाद या वर्मी कम्पोस्ट खाद की २ किलोग्राम की मात्रा को जैविक खाद के रूप में प्रयोग करना चाहिए | इस खाद का प्रयोग एक साल में एक बार किया जा सकता है | यदि इस खाद को हम मई या जून के महीने में प्रयोग करते है तो बहुत फायदेमंद होता है |
·इलायची की फसल में लगने वाले रोग की रोकथाम करने के लिए :-इलायची की फसल में मुख्य रूप से फंगल रोग और पेड़ों की झुरमुट सड़ांध है | इस रोग से इलायची का पौधा बिलकुल बेकार हो जाता है | जिससे हमे उन्नत किस्म की उपज नही मिलती | इसकी रोकथाम करने के लिए हमे बीजों को ट्राईकोडरमा कीटनाशक दवा से उपचरित करके बोना चाहिए | इसके आलावा इलायची की बुआई उचित समय पर करनी चाहिए | इलायची का जो पौधा वायरस के प्रभाव में आ जाता है | उसके वायरस को और ना बढ़ने दें | रोगग्रस्त पौधे को उखाड़कर जलाकर नष्ट कर दें |
·इलायची की फसल में लगने वाले कीट की रोकथाम करने के उपाय :-इलायची की फसल मे मेकनिकल संग्रह और कीट के अंडे की जनता का विनाश , जड़ गर्ब और ब्रिंग के लार्वा आदि कीट का कुप्रभाव होता है | इसके पौधे में से सूखे पत्ते और शुष्क भागों को हटा देना चाहिए | इलायची की फसल में लगने वाले कीटों से पौधे को बचाने के लिए बेसिलस की 0. 5 % की मात्रा को 10 मिलीलीटर पानी में मिलाकर इंजेक्शन दें | इससे लार्वा का प्रभाव दूर हो जाता है | इसके पौधे को सफेद मक्खी से बचाने के लिए कास्टिक सोडा , नीम का पानी , और नर्म साबुन को आपस में मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को पानी में मिलाकर फसलों पर छिडकाव करें | इससे सफेद मक्खी का प्रकोप शांत हो जाता है | इलायची की फसल को कीटों से बचाने के लिए इस पर पूरी तरह से निगरानी रखनी पड़ती है |इससे हमे समय पर पता चल जाता है कि इस पर किस तरह के कीट का कुप्रभाव है | जिसका हम समय रहते इलाज कर सकते है | इलायची की मालाबार किस्म का चयन करना चाहिए | यह किस्म रोग प्रतिरोधी किस्म है |
Choti Ilaychi Ke Keet Se Bachav |
·पोस्ट हव्रेस्ट ओपरेशन :- फसल की कटाई करने के बाद हौसले कैप्सूल गंधगी को साफ करने की आवशयकता होती है | इस कैप्सूल का इलाज इलायची के रंग को बनाये रखने के लिए किया जाता है | इलायची को दो तरीको से ठीक किया जाता है |
Choti Ilaychi Taiyar Kren
धूप में सुखाकर :- इलायची को कम से कम एक सप्ताह तक धूप में सुखाना चाहिए | इसको सीधे धूप में सुखा सकते है | इस तरह की विधि को कर्नाटक के कुछ हिस्सों में किया जाता है | इस विधि का अनुसरण करने से हमे अच्छा रंग और उत्तम उपज मिलती है | इसे बारिश के मौसम में नही किया जाना चाहिए |
पारम्परिक इलाज :- इस इलाज को करने के लिए कमरे में एक लम्बी छत हो | छत के साथ और तार गेज के साथ लगे बीम पर भूमि तल के उपर दो डिब्बों में जगह बना लें | जस्ती लोहा शीट से बना 25 सेंटीमीटर के दायरे होने से ग्रिप पाइप छत से धुआं निष्काषित करने के लिए चिमनी का निर्माण करना चाहिए | आयताकार ट्रे पकड़े रैक भी इलायची की बड़ी मात्रा को समायोजित करता है | इस तरह की विधि को सबसे अधिक अपनाया गया है | इसे किसी अपार्टमेन्ट या किसी कमरे में भट्टी बनाकर किया जाता है | ट्रे एक परत में फैले हुए है | कमरा बंद कर दिया जाता है | और हिटिंग भट्टी में जलाऊ लकड़ी जल रही है | इससे कमरे में अधिक गर्मी हो जाती है | इसका गर्म धुआं कमरे के तापमान को 45 से 50 डिग्री सेल्सियस पर ले आता है | यह तापमान कमरे में कम से कम 3 या 4 घंटे तक बनाये | इससे किर्या से कैप्सूल से पसीना और नमी दूर हो जाती है | इस क्रिया को करने में दो से तीन दिन का समय लगता है | इस विधि के अनुसरण करने से हमे अच्छी गुणवत्ता की इलायची प्राप्त होती है | यह एक सस्ता और कम प्रदुषण वाली विधि है |
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की खेती |
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mujhe karni hai iski kheti
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