लौंग का प्रयोग पुराने समय से ही भारत में मसालों के रूप में किया जाता रहा है इसका भारतीय खाने में एक विशेष स्थान है | इसमें औषधिय तत्वों भी पाए जाते है | लौंग की तासीर बहुत गर्म होती है इसलिए इसका उपयोग सर्दी के मौसम में अधिक किया जाता है | तो आज लौंग की खेती के विषय में कुछ आवश्यक बाते आपको बता रहे है | यह एक सदाबहार पेड़ है | इसे नम कटिबंध में उगाया जाता है | लौंग की खेती देश के सभी हिस्सों में की जाती है | लेकिन तटीय रेतीले इलाके में इसकी खेती करना सम्भव नही है | केरल की लाल मिटटी और पश्चिमी घाट के पर्वत वाले इलाके में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है |
लौंग की खेती के लिए भूमि का चुनाव :-
नम कटिबंध की बलुई मिटटी इसकी खेती के लिए सबसे उत्तम होती है |
लौंग के बीज :- इसके बीज माता पेड़ से पके हुए कुछ फलों को इक्कठा करके निकाले जाते है | इसके बाद बीजों की बुआई करने के लिए रात भर इसे भिगोकर रख दें | बीज फली को बुआई करने से पहले हटा दें | बीजो की बुआई नर्सरी बनाकर करें |
Loung Ki nrsri bnana |
नर्सरी निर्माण :- बीजो को ढीली मिटटी रेत के मिश्रण में १ मीटर चौड़ा और लम्बाई अपनी आवशयकता अनुसार रखकर एक बेड बनाएं | फिर इसमें २ सेंटीमीटर की दुरी पर बीजों को बोयें | इसके बेड को छाया में रखे |
इसके आलावा :- इसके पौध को हम पोलीबैग्स में भी उगा सकते है | इसके लिए पहले पोलिबैग में मिटटी और गोबर की खाद के मिश्रण को भर दिया जाता है | फिर उसमे बीजों को बोया जाता है | इन पोलिबैग को किसी छायादार और ठन्डे स्थान पर रखा जाता है | जिससे लौंग की उचित प्रकार से वृद्धि हो सके | इन बीजों के अंकुरण 10 से 15 दिन के बाद शुरू हो जाता है | इसके आलावा पोलीथीन बैग में उगाये गये बीजो का अंकुरण कुछ देर से शुरू होता है | इसके पौध 18 से २० महीने में तैयार हो जाते है | जिसे हम मुख्य क्षेत्र में रोप सकते है | इसकी नर्सरी को हमेशा छायादार स्थान पर बनाना चाहिए |
रोपण करने का तरीका :- लौंग के पौध का रोपण मानसून के आने के समय पर किया जाता है | इसके पौध का रोपण जून या जुलाई के महीने में करना उचित रहेगा | इसके पौध को रोपने के लिए 75 सेंटीमीटर लम्बा , 75 सेंटीमीटर चौड़ा और 75 सेंटीमीटर गहरा एक गड्डा खोद लें | एक गड्डे से दुसरे गड्डे के बीच की दुरी लगभग 6 से 7 सेंटीमीटर की होनी चाहिए | इन गड्डे में खाद , हरी पत्तियां , और पशु खाद से भर दें | इन सभी खादों को मिटटी की एक परत से ढक दिया जाता है | लौंग की फसल के लिए उचित मात्रा में छाया की जरूरत होती है जो की मानसून के मौसम में उपलब्ध होती है | लौंग को हम अखरोट या नारियल के बगीचे में एक मिश्रित फसल के रूप में बो सकते है | इस विधि का अनुसरण करने से हमे लाभ मिलता है |
लौंग की फसल में खाद और उर्वरक |
लौंग की फसल में प्रयोग होने वाली उर्वरक :- इसकी फसल में पेड़ के अनुसार खाद का प्रयोग किया जाता है | लौंग के असर पेड़ में एक साल में 50 से 55 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करें | जबकि खाईयों पेड़ के चारों तरफ से जैविक खाद का प्रयोग करें | इन खाद को बारिश के मौसम में डालें | उर्वरक खाद में हम 430 ग्राम यूरिया , 110 ग्राम अधिभास्वीय , ५० ग्राम पोटाश की मात्रा का प्रयोग कर सकते है |उर्वरक खाद की मात्रा को हम प्रति वर्ष बढ़ाते है | इसका प्रयोग २ बार किया जाता है | पहली बार मई जून के महीने में और दूसरी बार सितम्बर – अक्तूबर के महीने में | लौंग की फसल को हमेशा खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए |
सिंचाई :- लौंग की फसल में पहले 3 – 4 साल सिंचाई की जरूरत होती है | इस समय में लौंग की फसल में लगातार सिंचाई करते रहना चाहिए जिससे भूमि में नमी बनी रहे | गर्मी के मौसम में मिटटी में नमी को बनाये रखने के लिए सिंचाई करनी आवश्यक है |
Loung Ka Prbandhan |
फसल तैयार होने के बाद कटाई :- लौंग के पेड़ में चौथे साल में फल आने शुरू हो जाते है | इसकी फसल से हमे 15 साल तक फल मिलते है | देश के मैदानी भाग में सितम्बर – अक्तूबर या दिसंबर – जनवरी के महीने में मौसम के अनुसार फूल निकलते है | इन फूल का रंग शुरू में गुलाबी होता है | जब इसकी कलियों को काटा जाता है तो उस समय फल २ सेंटीमीटर से लम्बे नही होते | इसके फसल को कटाने के लिए सीढियों का उपयोग करना चाहिए | ताकि फसल की शाखाओं को किसी तरह का नुकसान न पंहुचे |
लौंग का प्रबंधन :- लौंग के फूल कलियों को हाथ से अलग कर दिया जाता है | इसके बाद इन्हें सुखाने के लिए यार्ड में फैला दिया जाता है | जब कली के भाग काले भूरे रंग का हो जाये तो तो उस समय उन्हें इक्कठा कर लें | सुखाने के बाद लौंग का वजन थोडा कम हो जाता है | लौंग की बाजार में कीमत अधिक है | इसी कारण से यह मंहगा बिकता है | इसकी खेती करने से हमे अधिक से अधिक मुनाफा मिलता है |
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