सोयाबीन तो भारत के प्रत्येक घर में सब्जी के रूप में
प्रयोग किया जाता है क्योंकि सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है जो हमारे
सेहत के लिए लाभकारी होती है | आज हम आपको सोयाबीन की खेती के बारे में
विस्तारपूर्वक जानकारी दे रहे है की सोयाबीन की खेती करने के लिए किस प्रकार की
भूमि का प्रयोग होता है , किस प्रकार के बीज , खाद का उपयोग करना चाहिए इसके आलावा
सोयाबीन को बोने का तरीका , सिचाई का तरीका , और फसल तैयार होने के बाद इसे किस
तरह से काटना है इसकी पूरी जानकरी हम आपको दे रहे है |
1.
सोयाबीन की खेती के
लिए उपयुक्त भूमि :-
सोयाबीन की खेती हर प्रकार की भूमि पर अच्छी तरह से की जा
सकती है | लेकिन रेतीली भूमि में सोयाबीन की खेती नहीं की जा सकती | चिकनी दोमट
मट्टी इसकी खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि इसमें पानी का निकास हो
जाता है | इसके अतिरिक्त हमे उस स्थान पर सोयाबीन की खेती कभी नहीं करनी चाहिए जिस
स्थान पर पानी जमा होकर रुक जाता है | जिस मिटटी में ढेले न हो और मिटटी भुरभुरी
हो वह भूमि भी सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है |
बुआई का तरीका |
सोयाबीन की किस्में |
बीज की किस्म और दर
:-
1.छोटे
दाने वाली किस्म :- 25 से 30 किलो प्रति एकड़
2.मध्यम
दाने वाली किस्म :- 28 से 32 किलो प्रति एकड़
3.बड़े
दाने वाली किस्म :- 32 से 40 किलो एकड़
बीज की दर का उपचार किस प्रकार से करना है :- सोयाबीन की
फसल को मिटटी के कीटाणु और बीज दोनों ही
नुकसान पहुचाते है | इसे बचाने के लिए बीज को थायराम या केप्टान की मात्रा कम से
कम 2 ग्राम , थायोफिनेट अथवा कार्बेडाजिम की कम से कम 1 ग्राम की मात्रा के मिश्रण
को एक किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए | इसके आलावा ट्राईकोडरमा कम से कम ४
ग्राम , कार्बेडाजिम की कम से कम 2 ग्राम
की मात्रा को प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए |
कल्चर का प्रयोग
:- बिजुपचार करने के बाद इसमें फफूंद नाशक
दवाओं का भी प्रयोग करना चाहिए | इसके उपचार करने के लिए कम से कम 5 ग्राम
रायजोबियम और 5 ग्राम पीएसबी कल्चर का प्रयोग करना चाहिए | इन दवाओं की मात्रा को
प्रति किलो बीज में प्रयोग करना चाहिए |
बीज का उपचार करने के बाद इन्हें छाया में सुखाकर जल्दी ही बोने में प्रयोग
करना चाहिए | बीज का उपचार करते समय इस बात का ध्यान रखे कि कल्चर और फफूंदी नाशक
दवा का एक साथ प्रयोग ना करे |
प्रजातियाँ :-
प्रजाति पकने का समय उपज
प्रतिस्ठा 95 से 105 दिन 20 से ३० ( किवंटल \ हेक्टेयर )
जे. एस . 335 90 से 100 दिन 20 से 30 ( किवंटल \ हेक्टेयर )
ऍम. ए . यु . एस
. 47 80 से 90 दिन 20 से 25 ( किवंटल \ हेक्टेयर )
पी . के.
१०२४ 100 से 120 दिन 25 से 35 ( किवंटल \ हेक्टेयर )
एन . आर. सी .
7 90 से 105 दिन 25 से 30 ( किवंटल \ हेक्टेयर)
एन . आर. सी
.37 90 से 100 दिन ३० से 35 ( किवंटल \ हेक्टेयर)
ऍम. ए. यु. एस.
81 90 से 96 दिन 22 से 30 ( किवंटल \ हेक्टेयर)
सोयाबीन के बीज को बोने का तरीका और उपयुक्त समय :- इसके बीज को गर्मी के मौसम में जून के माह के
आखरी सप्ताह में या जुलाई के माह के पहले सप्ताह में बोना चाहिए | यह समय इसकी
बूआई के लिए उप्रुक्त होता है | पौधा अछि तरह से अंकुरित हो इसके लिए बीज को बोते
समय भूमि में कम से कम 8 से 10 सेंटीमीटर मीटर तक की गहराई में नमी होनी चाहिए |
बीजों को कतारों में बोना चाहिए | इन कतारों की दूरी कम से कम 30 से 35 सेंटीमीटर
की होनी चाहिए | इन बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर का गड्ढा खोदकर बोंये और साथ ही साथ
मिटटी में नमी बनाये रखने के लिए और जल की निकासी के लिए जगह खाली छोड़ दें |
सोयाबीन के साथ हम और भी दूसरी फसल भी बो सकते है जैसे :-
सोयाबीन और अरहर की दाल , सोयाबीन और तिल , सोयाबीन और ज्वार , मक्का और सोयाबीन |
इन सभी फसलों की हम एक साथ खेती के सकते है | इस प्रकार से दो फसलो को एक साथ बोने
की विधि को अंतरवर्तिये फसल कहा जाता है |
फसलों के पोषण
हेतु खाद का प्रयोग :- किसान को एक अच्छी सोयाबीन की फसल प्राप्त करने के लिए
अच्छी किस्म की खाद का प्रयोग करना चाहिए | सड़ी हुई गोबर की खाद जिसे हम कम्पोस्ट
कहते है | इस खाद की कम से कम 2 टन की मात्रा को बखरनी के समय एक एकड़ खेत में भली –
भांति मिला दें | इसके बाद जब बीज को बोते समय नत्रजन की 9 किलोग्राम की मात्रा ,
32 किलो स्फुर 8 किलो पोटाश और कम से कम 8 किलो गंधक की मात्रा को आपस में मिलाकर
एक एकड़ की भूमि पर छिड़क दें | इस खाद की
मात्रा को मिटटी के परीक्षण के आधार पर बढ़ाया भी जा सकता है और घटाया भी जा सकता
है | यदि संभव हो तो किसान को फासको कम्पोस्ट को अधिक प्रयोग करना चाहिए | यदि
गहरी काली मिटटी है तो इसमें 25 से ३० किलोग्राम जिंक सल्फेट की मात्रा को एक एकड़
भूमि पर छिड़क दें | लेकिन इसका प्रयोग कम से कम 4 से ६ फसलों को बोने के बाद करना
चाहिए | खेती करने वाले किसान को रासायनिक उर्वरकों को सभी कूड़े के साथ गहरा गड्ढा
खोदकर दबा देना चाहिए |
खरपतवार की रोकथाम के लिए |
फसलों के बीच
उगने वाले खरपतवार की रोकथाम के लिए उपाय :- किसी भी प्रकार की फसल बोने के बाद
किसान को शरुआत के कम से कम 35 से 45 दिनों तक खरपतवार पर नियंत्रण रखना चाहिए | बीजों
को बोने के बाद जब छोटी – छोटी घास उग जाये तो इन्हें खुरपी या डोरा चलाकर साफ कर
देना चाहिए | यदि 15 से 20 दिन की फसल में घास के साथ और दुसरे छोटे खरपतवार उग
जाये तो उन्हें नष्ट करने के लिए 400 मिलीलीटर क्युज्लेकोप इथाइल को घास पर छिड़क
दें | इससे सभी खरपतवार समाप्त हो जांयेंगे | इसके आलावा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
पर इमाजेथाफायर की कम से कम 350 मिलीलीटर की मात्रा का छिडकाव करें | बीजों को
भूमि पर बोने से पहले फ्लूक्लोरेलिन की 850 मिलीलीटर की मात्रा को एक एकड़ भमि पर
अंतिम बखरनी करने से पहले खेत में छिड़क दें | इसके छिडकने के बाद ही खेत में जुताई
करे इससे जुताई करते समय दवा सारे खेत में मिक्स हो जाएगी | बीज को बोने के बाद और
बीजों के अंकुरण से पहले के समय में एलाक्लोर की 2 लिटर की मात्रा अथवा
पेंडीमेथलिन की 1 . 5 लिटर को प्रति एकड़ भमि पर छिड़काव करें | इसके आलावा 500 से
800 मिलीलीटर मेटोलाकलोर की मात्रा को 250 लिटर पानी में मिलाकर पूरे खेत में
छिडकाव करने से फालतू के उगे उगे हुए पौधे नष्ट हो जाते है | इस दवा का छिडकाव
किसी नोजल की मदद से करें | फसल बोने से पहले और बीज के अंकुरण होने से पहले खरपतवार
को नष्ट करने के लिए मिटटी में भुरभुरापन और नमी होनी चाहिए | ऐसा करने से हमे एक
अच्छी और रोग रहित फसल प्राप्त होती है
सिंचाई करने के
तरीके :- सोयाबीन एक खरीफ की फसल होती है | इसलिए इस फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं
होती | सितम्बर का महीना आते – आते जब सोयाबीन की फलियों में दाने भरने लगे और खेत
में अगर नमी न हो तो जरूरत पड़ने पर एक या दो बार सिंचाई कर सकते है | सोयाबीन के
और अधिक उत्पादन के लिए ये बहुत लाभदायक माना जाता है |
सोयाबीन की फसल
को सुरक्षा देने के लिए हमे क्या – क्या उपाय करना चाहिए इसका वर्णन इस प्रकार से
है |
सोयाबीन से निर्मित तेल |
सोयाबीन की फसल
पर बीज और पौधे को हानि पंहुचाने वाला कीट नीलाभृंग जिसे ब्लूबीटल भी कहते है इसके
आलावा पत्ते खाने वाली झिलियाँ , तने को नुकसान पंहुचाने वाले कीट जैसे चक्रभृंग
और मक्खियाँ ( गर्दल बीटल ) होती है | कीटों के इस आक्रमण और प्रकोप की वजह से सोयाबीन
की पैदावार में 10 से 50 %की कमी आ जाती है | इस लिए इन कीटों पर नियन्त्र्ण रखने
के लिए और अपनी फसल को बचाने के लिए हमे निम्नलिखित उपय करने चाहिए |
खेती करने से
पहले नियन्त्रण :-
गर्मी के मौसम
में खेत को अच्छी तरह से जोत लेना चाहिए | खेत की जुताई गहरी करें | सोयाबीन की
बूआई बारिश के मौसम में करनी चाहिए | मानसून के आने से पहले हमे इसके बीज को नहीं
बोना चाहिए | जिस खेत में सोयाबीन की फसल बोई है उसमे किसी प्रकार का खरपतवार न
रहने दें और मेंढो यानि कतारों की सफाई रखे | सोयाबीन की फसल के साथ मक्का या
ज्वार की फसल साथ में बोए |
रासायनिक
नियन्त्रण :- सोयाबीन के बीजों को बोने से पहले थयोमिथोक्जाम की 65 से 70 ग्राम और डब्ल्यू . एस की कम से कम 3 से ४ ग्राम
की मात्रा को एक किलो बीज की दर से उपचारित करें | इससे आरम्भ मर उत्पन्न होने
वाले कीट समाप्त हो जाते है | इसके आलावा जब पौधे में अंकुरण होने लगता है तो
नीलाभृंग नामक कीट इन्हें नुकसान पहुंचाते है इसे रोकने के लिए मिथाइल और
क्युनालफोस की 2 % की मात्रा का पूरे खेत में भुरकाव करना चाहिए | इससे सभी कीट दूर हो जाते है | कई तरह की
झिल्लियाँ सोयाबीन के पौधे के तने और पत्तियों को खाकर खराब कर देते है इनसे
छुटकारा पाने के लिए पानी में घुलनशील दवाओं का उपयोग करना चाहिए | हरी झिल्ली
प्रजाति जिसका सिर पतला होता और पिछला भाग
चौड़ा होता है ये कीट सोयाबीन की पत्तियों , फूलों और फलियों को खा जाते है और
इन्हें नष्ट करके फली से रहित बना देते है जिससे फसल बाँझ होने लगती है उनमे फल
लगने की उम्मीद बहुत कम हो जाती है | सोयाबीन की फसल पर मक्खी , चक्रभृंग और हरी
झिल्ली का प्रकोप एक साथ होता है |
इसलिए कीट को समाप्त करने के लिए हमे पहला
छिडकाव कम से कम 30 दिन यानि एक महीने पर और दूसरा छिडकाव कम से कम 45 दिनों पर
करना चाहिए | इससे हम अपनी फसल को नुकसान देने वाले कीटों को समाप्त जर सकते है |
यह अत्न्यंत आवश्यक होता है |
सोयाबीन की फली |
जैविक नियन्त्रण
:- कृषि योग्य भूमि पर जब कीटो का प्रारंभिक आक्रमण होता है तो इसे दूर करने के
लिए बी. टी. और व्युवेरिया बेसियाना जैविक कीट नाशक की 400 ग्राम या 400 मिलीलीटर
की मात्रा को एक एकड़ भूमि पर 40 से 45 दिन में और 55 से 60 दिन के बाद छिडकें |
इसके आलावा एन. पि. वी. की 250 लीटर और एल. इ. की 200 ग्राम की मात्रा को पानी के
साथ घोल लें और इस मिश्रण को अपने खेत में छिडकें | इससे सारे कीटाणु दूर हो जाते
है | किसान को केवल रासायनिक कीटनाशक दवाओं का ही प्रयोग नहीं करना चाहिए बल्कि
जैविक कीटनाशक का भी प्रयोग करना चाहिए | यदि सालभर किसान इन दोनों दवाओं को बदल –
बदलकर उपयोग करें तो उन्हें एक अच्छी फसल मिल सकती है | यह उपाय किसी भी किसान के
लिए लाभकारी होती है |
१. जिस खेत में
गर्द्ल बीटल का कुप्रभाव हो तो उस खेत में जे. एस.335 , जे. एस. 80- 21 , जे. एस.
91 – 40 को लगायें |
२. खेत की सफ़ाई और
निंदाई करते समय कीटाणु से प्रभावित टहनियों को कटकर हटा देना चाहिए |
३. फसल तैयार होने
के बाद जब इनकी कटाई करते है तो तैयार बंडलों को किसी गहरे स्थान पर ले जाएँ |
४. जब फसल के तने
पर मक्खी का कुप्रभाव बढ़ जाये तो इसे पर दवा का छिडकाव जल्द ही करें |
५. कीटनाशक प्रति एकड़ की मात्रा कीटनाशक
प्रति एकड़ मात्रा
1. क्लोरोपायरीफ़ॉस20
इ.सी. 600 m.l. 5इथोंफेनपोक्स40 ई.सी. 400 m.l.
2. इथियान50ई.सी. 600 m.l. 7 -8 नीम बीज का घोल 5 % 15 किलोग्राम
3. क्युनालफोस25
ई.सी. 600 m.l. 7 मिथोमिल 10 ई.सी. 400 m.
l.
4. ट्रायजोफोस 40 इ. सी.
350 मिलीलीटर 8 थयोमिथोक्जाम 25 डब्लू.जी.की 45 ग्राम की मात्रा
यदि किसान के
पास छिडकाव का यंत्र न हो तो उस स्थिथि में एक पाउडर डस्ट का प्रयोग 10 किलोग्राम
प्रति एकड़ भूमि पर करें |
क्युनालफोस :- १.5 %
फसलों में होने वाले रोग ( बीमारियाँ ) :- खेत में फसल बोने
के बाद से ही फसल पर नजर रखनी चाहिए और
समय – समय पर उसकी देखभाल करनी चाहिए | यदि आवश्कता पड़े तो लाइट ट्रेप और फेरोमेन
टूब का उपयोग करना चाहिए | बीजों को बोने से पहले इनका उपचार अवश्य कराना चाहिए |
फसल में फफूंदी के आक्रमण से बीज को सड़ने से बचाने के लिए और रोगों पर नियन्त्रण
रखने के लिए कार्बेडाजिम की 1 ग्राम की मात्रा और कम से कम 2 ग्राम की थीरम की
मात्रा को आपस में मिलाकर बीज को उपचारित करना चाहिए | ये मात्रा एक किलो बीज के
लिए है | थीरम के जगह पर केप्टान और कार्बेडाजिम के जगह पर थायोफिनेट मिथाइल का
उपयोग भी किया जा सकता है | इस दवा के प्रयोग से भी हम कीटाणु और रोगों पर
नियन्त्र्ण पा सकते है |
जब फसल अंकुरित होने लगते है और पत्ते निकल जाते है तो उस
पर कई तरह के काले – काले धब्बे और फफूंदी वाले रोग लग जाते है | इन रोगों से
छुटकारा पाने के लिए कार्बेडाजिम 50 डब्ल्यू. पी. या थायोफेनेट मिथाइल 70
डब्ल्यू.पी. 0. 05 से 0.1 %से १ या 2 ग्राम की दवा को प्रति एक लीटर पानी में
मिलाकर अपने खेत में छिडकें | इस दवा का पहला छिडकाव 35 से 40 दिनों के अंदर करना
चाहिए और दूसरा छिडकाव कम से कम 45 से ५० दिनों के अंदर करना चाहिए | इससे पत्ती
में होने वाले रोग दूर हो जाते है | फसलो में एक बैक्टीरियल पश्य्चुल नामक रोग
पाया जाता है जिसे नियंत्रित करने के लिए कासुगामाइसीन की 250 पीपीएम 200
मिलीग्राम की दवा को एक लीटर पानी में घोलें और इसके साथ कोपर ओक्सिक्लोराइड की 2
ग्राम की मात्रा को मिला दें | इस दवा को प्रयोग करने के लिए 10 लीटर पानी में एक
ग्राम कसुगामाइसीन और 25 ग्राम कोपर ओक्सिक्लोराइड का घोल मिला सकते है | बैतूल सिवनी और छिंदवाडा में गेरुआ के प्रभाव के
लिए सहनशील जातियां लगाये | इस बीमारी या रोग के पहले लक्षण दीखते के साथ ही
हेक्सकोनाजोल 5 ई. सी. की १ मिलिग्राम की मात्रा और प्रोपिकोनाजोल 25 ई. सी . को
पानी में घोलकर प्रयोग करें | इसके आलावा ओक्सिकर्बोदाजिम की 10 ग्राम की मात्रा
और ट्रायएडियम 25 डब्ल्यू.पी. के मिश्रण को पानी में घोलकर अपने खेत में गेरुआ
प्रभावित क्षेत्र में छिडकाव करें | फसलों
में कीटाणु के अतिरिक्त विषाणु जनित पीला मोजोक वायरस रोग एफ्रिड्स सफेद मक्खी
थ्रिप्स आदि के द्वारा फैलते है | इस प्रकार के रोगों से बचने के लिए हमे हमेशा
रोग रहित स्वस्थ बीजों का ही प्रयोग करना चाहिए | इसके आलावा रोग फैलाने वाले कीड़ो
के लिए थायोमेथेक्जोंन 70 डब्ल्यू. एस. की 3 ग्राम की मात्रा को एक किलो की दर से
उपचारित करें | इस विधि को ३० दिनों के समय के अन्तराल में दोबारा करें | जिस पौधे
को रोग लग जाये तो उसे खेत से उखाडकर फेक देना चाहिए | इथोफेंपोक्स 10 ई. सी. की
400 मिलीलीटर को एक एकड़ ,भूमि पर प्रयोग करें इसके आलावा मिथाइल डेमेंटान 25 ईसी
300 मिलीलीटर प्रति एकड़ , डायमिथोएट 30 ई.सी. 300 मिलीलीटर प्रति एकड़ और
थायोमिथेजेम 25 डब्ल्यू . जी. 400 ग्राम प्रति एकड़ भूमि पर प्रयोग करें |
जो क्षेत्र पीला मोजेक से प्रभावित है उस क्षेत्र में रोगों
से बचने के लिए ग्राही फसलों जैसे उड़द , मुंग और बरबटी आदि गर्मी के मौसम में
लगायें | गर्मी के दिनों में लगायें हुए इन फसलों पर सफेद मक्खी का कुप्रभाव बढ़ने
लगता है तो इसे जल्द ही नियंत्रण में लाना चाहिए | नहीं तो हमारी फसल नष्ट हो सकती
है |
विशेष बात :- इन मक्खियों को दूर करने के लिए नीम की
नेभ्बोली के पानी यानि अर्क दिफोलियेटर्स का उपयोग बहुत फायेदेमंद होता है |
सोयाबीन के बीज कैसे निकाले |
फसल तैयार होने पर उसकी कटाई और गहराई :- जब फसल सुख जाये ,
उसके पत्ते झड़ने लगे और फलियाँ अच्छी तरह सुखकर भूरी हो जाये तो ही फसलों की कटाई
करनी चाहिए | जब पंजाब 1 की फसल पक जाती है तो इसके पकने के कम से कम 5 या 6 दिनों
के अन्दर ही इस फसल की कटाई करनी चाहिए |इसके आलावा जे. एस. 335 , जे. एस. 76 –
205 , जेएस 75 – 46 और जे. एस. 72 – 44 आदि के सूखने के बाद कम से कम 10 दिन बाद
ही कटाई करें | क्योंकि फसल पकने के बाद जब चटकने लगती है | फसल की कटाई करने के बाद
जो गड्डे हो जाते है तो उसे 3 से 4 दिनों
तक अच्छी तरह से सुखाना चाहिए | कटी हुई फसलों को अच्छी तरह धूप में सूखने के
बाद सभी बंडलों की गहराई करके दोनों को
अलग कर देना चाहिए | इन दोनों को अलग – अलग करने के लिए थ्रसेर , ट्रेक्टर ,
बैलो या हाथ से लकड़ी के द्वारा पीटकर करना चाहिए | दोबारा उस भूमि पर कृषि करने के
लिए और अंकुरण को हानी से बचाने के लिए भूमि की गहराई लकड़ी से पीटकर करनी चाहिए |
सोयाबीन
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