धनिया की फसल कि खेती करने का तरीका :-
·
धनिया :- धनिये को सब्जी की सजावट और ताज़े मसाले के रूप
में प्रयोग किया जाता है | धनिये में से एक अच्छी सी सुंगंध आती है जिससे सब्जी का
स्वाद बढ़ जाता है | धनिये का प्रयोग हर भारतीय के घरों में किया जाता है | यह बहुत
ही आसानी से पाया जाता है | इसकी कीमत सस्ती होती है जिसके कारण इसे काफी उपयोग
किया जाता है | यह भोजन के स्वाद को बढ़ाने के कारन पूरी दुनिया में जाना जाता है |
तो आज हम हरे धनिये कि खेती के विषय में जानकारी दे रहे है |
· हरे धनिये कि खेती के लिए भूमि का चुनाव :- इसकी
खेत सभी प्रकार कि भूमियों में कि जाती है | लेकिन सभी मिट्टियों में जैवक खाद कि
मात्रा मिली हुई होनी चाहिए और साथ ही साथ पानी के निकास का उचित प्रबंध होना
चाहिए | हरे धनिये के अच्छे
उत्पादन के लिए रेतीली दोमट मिटटी अच्छी मानी जाती है | क्योकि इसमें जल निकास का
सही तरह से होता है | इसके आलावा हल्की बलुई मिटटी और क्षारीय मिटटी में इसका
उत्पादन कम होता है | धनिये का अच्छा
उत्पादन लेने के लिए हमे अच्छी भूमि का चुनाव करना चाहिए |
खुशबूदार धनिये की खेती |
·
हरे धनिये कि खेती के लिए
उपयुक्त जलवायु :- धनिये
के सफल उत्पादन और अच्छी गुणवत्ता के लिए शुष्क और ठंडी जलवायु उत्तम होती है | इसकी
फसल को खुली धुप कि जरूरत होती है |
· बुआई करने से पहले खेत की तैयारी :-
खेत को अच्छी तरह से जोतकर मिटटी को भुरभुरा बना लें | खेत में नमी कि कमी को पूरा
करने के लिए पेलवा कि विधि को अपनाना चाहिए | खेत में आखिरी कि जुताई करने से पहले इसमें 15
से 20 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद और कम्पोस्ट को बराबर मात्र में मिला
दें | इसके बाद जुताई करें और बुआई करें |
· धनिये की प्रजाति :- हमारे भारत में धनिये कि बहुत सी किस्मों कि खेती
की जाती है | लेकिन किसानों को केवल उन्नत किस्म का ही चुनाव करना चाहिए | हरे धनिये की उन्नत किस्मों में से निम्नलिखित
के नाम लिए जाते है |
१.
आर. सी.
आर 41
२.
आर. सी.
आर 20
३.
गुजरात
धनिया (जी.२)
४.
पूरा
चयन 360
५.
स्वाति
लाम चयन सी. एस. 2
६.
साधना
७.
राजेन्द्र
स्वाति
८.
सी. एस.
287
९.
को . 1
१०.
को.3
११.
आर. सी.
आर.684
१२.
आर. सी.
आर. 436
· धनिये की बुआई करने का तरीका :- हमारे भारत के कई भागों में यह फसल बारिश के आधार पर उगाई जाती है | धनियाँ मुख्य
रूप से रबी कि फसल के रूप में मानी जाती है | इसलिए इसे शुद्ध या मिश्रित फसल के
रूप में उगाया जाता है | भारत के दक्षिण भाग में ठंडे और गर्मी के मौसम में इसकी खेती कि जाती है
|इन स्थानों में इसे मई से अगस्त के महीने में उगाया जाता है और दूसरी बार अक्तूबर
से जनवरी तक के समय में उगाया जाता है | लेकिन उत्तर प्रदेश में इसकी खेती ठन्डे
मौसम में की जाती है | लेकन धनिये की बुआई का उपयुक्त समय अक्तूबर के मध्य से
नवम्बर के मध्य का समय अच्छा होता है |क्योकि इस समय अधिक ठंड नहीं पड़ती |
Khusbudar Dhaniye Ki Kheti |
· बुआई के लिए बीज की दर :- बीज की मात्रा उसकी बुआई पर निर्भर करती है |यदि इसे समतल भूमि पर
छिडकाव के द्वारा बुआई करनी है तो इसके लिए 22 किलोग्राम बीज काफी होते है | सके
आलावा यदि इसकी बुआई कतारों में करना है तो 22 से 25 किलोग्राम बीज की अवश्यकता
पड़ती है |
·
बुआई करने से पहले बीजों का उपचार
:- धनिये कि फसल में किसी भी प्रकार का रोग ना हो इसके लिए
हमे धनिये के बीजों को उपचारित करके बुआई करनी चाहिए | इसके लिए नीम के तेल ,
गौमूत्र कैरोसिन से बीजों को उपचारित करें |
· बुआई
करने का तरीका :- धनिये कि बुआई हमेशा कतारों में करनी चाहिए | बुआई
करने से पहले पौधे और कतारों कि बीज कि दुरी का ध्यान रखना अनिवार्य है | एक कतार
से दुसरे कतार कि बीच की दुरी कम से कम 30 से 35 सेंटीमीटर कि होनी चाहिए | जबकि
एक पौधे से दुसरे पौधे के बीच कि दुरी 10 से 12 सेंटीमीटर की रखे | धनिये के बीजों
को 3 से 5 सेंटीमीटर का गहरा गड्डा खोदकर बोना चाहिए |इससे बीजों का अंकुरण अच्छी तरीके से होता है | यदि बीजों को अधिक
गहराई में बोया जाता है अतो इसे अंकुरण भी देरी से होता है और उत्पादन भी कम
प्राप्त होता है | इस विधि के द्वारा धनिये की बुआई करने से हमे अच्छा लाभ मिलता है
| लेकिन कई किसान धनिये को छिडकाव के द्वारा बुआई करते है | जो कि एक गलत विधि है
| इस प्रिकिया में समय कम लगता है और बहुत सारे भाग में इसकी बुआई हो जाती है | इस
विधि में कंही – कंही बीज अधिक गिरते है तो कंही – कंही कम गिरते है | जिससे कृषि
कार्यों में बहुत मुश्किल होती है | इस विधि में अधिक बीज कि अवश्यकता होती है |
कतारों के द्वारा बुआई करने में कम बीजों की जरूरत होती है |
· धनिये की फसल में आर्गनिक खाद का प्रयोग :- धनिये कि अच्छी उपज लेने के लिए इसकी फसल में खाद का प्रयोग करना बहुत
जरूरी है | इसके लिए एक एकड़ भूमि पर 12 से 15 टन अच्छी तरह से सड़ाई हुई खाद को
पहली जुताई के समय सारे खेत में एक समान मात्रा में बिखेर दें | इसके बाद मिटटी
पलटने वाले हल से जुताई करें | ताकि खाद और मिटटी आपस में अच्छी तरह से मिल जाये |
खेत कि तैयारी के बाद बुआई करें | जब धनिये कि फसल को २० से 25 दिन हो जाये तो
इसकी फसल में जीवामृत का छिडकाव करें | ताकि इसकी फसल में कीटों और रोगों का
प्रभाव ना पड़े |
· खरपतवार को दूर करने के लिए :- धनिये की फसल के साथ बहुत से अन्य खरपतवार उग जाते है |जिससे इसकी फसल
पर बुरा प्रभाव पड़ता है | खरपतवार उगने से पौधे के विकास और वृद्धि दोनों ही कम
होते है और हमे उपज भी कम मिलती है | धनिये कि वृद्धि अच्छी तरीके से हो सके लिए
हमे खेत से इसकी फसल में से खरपतवार को निकाल देना चाहिए |
· खरपतवार की रोकथाम करने के लिए :- खरपतवार को रोकने के लिए इसकी फसल में समय – समय
पर निराई – गुड़ाई करते रहना चाहिए |इसकी पहली निराई 30 से 40 दिन के बाद और दूसरी निराई लगभग 60 से
70 दिन के बाद करनी चाहिए | धनिये कि फसल
में जिस जगह पर पौधे की संख्या अधिक हो उस स्थान पर पहली निराई करते समय पौधे को
हटकर एक पौधे से दुसरे पौधे के बीच की दूरी 12 से 15 सेंटीमीटर की कर दें | और उगे
हुए खरपतवार को निकाल दें | निराई करने के बाद पौधे पर मिटटी की परत चढ़ा दें |
इससे पौधे मिटटी में मजबूती से टिके रहते है |
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