गंगा का उद्गम स्थल गंगोत्री :- यह
स्थान उत्तरकाशी से 100 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है | इसी स्थान से गंगा नदी
बहती है | जिसे भागीरथी के नाम से भी जाना जाता है | यंहा पर माता गंगा का मन्दिर
भी उपस्थित है | जो समुंदर तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है | जिस स्थान पर
भागीरथी नदी बहती है उसके दाहिने ओर का दृश्य बहुत ही मनमोहक और आकर्षक है | इस
स्थान पर गंगा मैया के दर्शन करने के लिए हर साल मई से अक्तूबर के महीने में लाखों
भक्तगण तीर्थ यात्रा पर आते है | गंगोत्री का पवित्र मंदिर अक्षय तृतीय के अवसर पे
खुलता है | और दीपावली के शुभ अवसर पर इस मन्दिर के दरवाजों को बंद कर दिया जाता
है |
MAA GANGA KA MANDIR |
पुरानी कथा के अनुसार भगवान
श्रीराम के पूर्वज महाराजा भागीरथ ने यंहा एक बड़े पत्थर पर बैठकर भगवान शिव की
कठोर तपस्या की थी | माना जाता है कि देवी भागीरथी ने इस स्थान पर धरती का स्पर्श
किया | इसी पवित्र स्थान पर गंगा माता के मंदिर का निर्माण किया गया | यह पवित्र
मन्दिर सफेद ग्रेनाइट के चमकदार २० फीट ऊँचे पत्थर से बनाया गया है | यह मन्दिर
देखने में बहुत ही सुंदर लगता है | इस
स्थान पर पांडवों ने अपने मरे हुए परिजनों आत्मिक शांति के लिए एक महान यज्ञ
करवाया था |
भागीरथी नदी |
भागीरथी नदी में एक शिवलिंग भी
विराजमान है | जो इस नदी के अंदर उपस्थित है | भगवाव शिव अपनी जटाओं को इस स्थान
पर फैलाकर बैठ गये और उन्होंने माता गंगा को अपनी जटाओं में लपेट दिया | जब सर्दी
का मौसम आता है तो गंगा का पानी कम हो जाता है | उस समय आप भगवान शिव के लिंग के
दर्शन कर सकते है |
गंगोत्री शहर :- पहले गंगोत्री के
आस – पास किसी भी गाँव का कोई नाम नही था | लेकिन जब इस स्थान पर मंदिर का निर्माण
हुआ तो चारों धाम की यात्रा पर आये हुए तीर्थ यात्री इस स्थान पर कठिन चढाई करते
हुए जाते थे | इसके बाद इस स्थान पर सड़क का निर्माण हुआ और आस – पास शहर बनने लगा
|
माउंटेन पर्वत |
जैसा कि आप जानते है कि इस स्थान
पर पहले कोई मन्दिर नही था | उस समय भागीरथी नदी के पास एक मंच था जंहा यात्रा के
दौरान कुछ महीनों के लिए विभिन्न गांवों से देवी – देवताओं की मूर्तियों को रखा
जाता था | जब यात्रा का समय समाप्त हो जाता था तो न मूर्तियों को वापिस उन्ही गांव
में भेज दिया जाता था | 18 वी सदी में जब गंगा मैया के मन्दिर का निर्माण हुआ तो
यंहा अनेक भगवान की मूर्तियों की स्थापना की गई | इस मन्दिर में पूजा – अर्चना करने के लिए एक
ब्रह्मपुजारी भी रख दिया गया |
गंगोत्री का ग्लेशियर |
गंगोत्री का मौसम :- गंगोत्री में
गर्मी के मौसम में दिन सुहावना होता है लेकिन रात ठंडी होती है | और सर्दी के शुरू
के दिनों में दिन का समय सुहावना और रात का समय अधिक ठंडा होता है | दिसंबर से
मार्च के समय में तापमान शून्य से भी कम हो जाता है | और चारों और बर्फ ही बर्फ
दिखाई देती है | गंगोत्री का मन्दिर भोज पेड़ों से घिरा हुआ है | इसके आस – पास देवदार
के जंगल है और उनके बीच एक सुंदर सी घाटी है | भागीरथी घाटी से बहकार निकलती है और
गंगा में जा मिलती है | इस घाटी के अंतिम छौर पर एक मंदिर है |
गंगोत्री में पाए जाने वाले
जीवजन्तु :- गंगोत्री में मुख्य रूप से लाल बंदर , लंगूर , भूरे भालू , लोमड़ी ,
चीते , हिरन , साम्भर बर्फीले चीते , कस्तूरी मृग , सेरो , बरड मृग साही और तहर है
| इन जीवजन्तुओ के आलावा यंहा विभिन्न प्रकार के कीट और तितलियाँ पाई जाती है | यह
क्षेत्र हर तरह के जानवरों से भरा हुआ है |
गंगोत्री में पाई जाने वाली
वनस्पति :- इस स्थान पर दुनिया की सबसे
अधिक वनस्पति प्रजाति पाई जाती है | यंहा पर बलूत बुरांस , सफेद सेरों स्व्च्छ पेड़
, सदाबहार पेड़ और नीले देवदार आदि पाए जाते है |
गौमुख :- गंगोत्री से 19 किलोमीटर
की दुरी पर गौमुख स्थित है | गौमुख गंगोत्री ग्लेशियर का मुहाना है और साथ ही साथ
भागीरथी नदी का उद्गम स्थल भी है | माना जाता है कि यंहा के बर्फीले पानी से नहाकर
आपके सारे पाप धुल जाते है | गंगोत्री की यात्रा पैदल चलाकर या पिट्टू की सवारी से
पूरी की जाती है | इस स्थान की चढ़ाई अधिक कठिन नही है | इस गौमुख के ग्लेशियर में से भागीरथी एक छोटी गुफा
में से निकलकर आती है | इस बर्फानी नदी में पानी 5000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक
बेसिन में से आता है |
मुखबा गाँव |
मुखबा गाँव :- इस गाँव में
गंगोत्री मंदिर के पुजारी रहते है | यंहा एक मुख्पीठ मंदिर भी है | प्रत्येक साल
जब गंगोत्री के मन्दिर के दरवाजे जब बंद हो जाते है तो देवी गंगा को गाने – बाजे
के साथ इस गाँव में लाया जाता है | इस गाँव में देवी गंगा की 6 महीने तक पूजा की
जाती है | जब बसंत का मौसम आता है तो गंगा की मूर्ति को वापिस गंगोत्री में
विस्थापित कर दिया जाता है | इस गाँव से जुड़ा हुआ मार्कण्डेयपुरी है
| इस स्थान पर ऋषि मार्कण्डेय ने यंहा बिना कुछ खाएं – पीये यंहा कठोर
तपस्या की थी |
भैरों घाटी :- यह घाटी जान्हवी
गंगा और भागीरथी के संगम का स्थान है | यह स्थान गंगोत्री से 9 किलोमीटर की दुरी
पर स्तिथ है | इस स्थान पर तेज़ बहाव से भागीरथी नदी गहरी घाटियों में बहती है | इस
बहती हुई नदी की आवाज कानों में गूंजती है | पुराने समय में तीर्थयात्री लंका से
भैरो घाटी तक ऊँचे – ऊँचे देवदारों के पेड़ के बीच में से पैदल यात्रा करते हुए
गंगोत्री तक जाते थे | भैरों घाटी का दृश्य अत्यंत सुंदर और मन को लुभाने वाला है
|यंहा से आप चिद्वासा चोटी के दर्शन भी कर सकते है |
गंगोत्री की भैरों घाटी |
गंगोत्री का नंदनवन :- यह तपोवन गंगोत्री से 25
किलोमीटर की दुरी पर है | यंहा जाने के लिए कठिन ग्लेशियर के रास्ते को पार करना
पड़ता है | यंहा का वातावरण अत्यंत मनोरम है | यह स्थान पशुओं की चरागाहों के लिए
प्रसिद्ध है | इस स्थान से शिवलिंग की छोटी का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है |
चिरबासा पर्वत |
गंगोत्री चिरबासा :- यह एक कैम्प
स्पॉट है | जो 3600 फीट की ऊंचाई पर स्थित है | इस स्थान पर पंहुचने में कम से कम
3 या 4 घंटे का समय लगता है | इस स्थान से गौमुख ग्लेशियर के विशाल भाग का हैरान
करने वाला दृश्य दिखाई देता है | चिरबासा से आप मांडा की चोटी हनुमान तिब्बा ,
भृगु पर्वत और भागीरथी के सभी भागों को अच्छी तरह से देख सकते है | इस स्थान पर
चिर के पेड़ बहुत मात्रा में पाए जाते है | इसलिए इस जगह का नाम चिरबासा पड़ गया | इसकी
पहाड़ियों पर भेड़ों के झुण्ड विचरण करते हुए दिखाई देते है|
केदारताल |
केदारताल :- यह एक बहुत ही सुंदर
झील है | जो गंगोत्री से 14 किलोमीटर दूर स्थित है | इस झील तक जाने के लिए उबड़ –
खाबड़ रास्तो पर से जाना पड़ता है | रास्ते में किसी भी प्रकार की कोई सुविधा
प्राप्त नही होती | इसलिए अपनी जरूरत का सामान अपने साथ लेकर जाएँ | इस झील का
पानी बिल्कुल साफ़ है | इस स्थान पर एक थलयसागर चोटी है | इस स्थान से आप गंगोत्री
की प्रमुख चोटियों तक जाने का रास्ता मिल जाता है | केदारताल जाने के लिए जून से
अक्तूबर का महिना सबसे अच्छा होता है | इस समय केदारताल का ग्लेशियर पिघलता है
जिससे पानी झील की तरह निकलता है जो भागीरथी में जा मिलती है | इस स्थान की चढ़ाई
थोड़ी मुश्किल जरुर है लेकिन यंहा के वातावरण को देखकर आप अपनी सारी थकान भूल
जायेंगे |
देवी गंगा को लेन का उत्सव |
गंगोत्री में मनाये जाने वाले
उत्सव :-गंगोत्री में जब ग्लेशियर पिघलता है तो उस समय गंगोत्री के मन्दिर के
दरवाजे पूजा करने के लिए खोल दिए जाते है | देवी गंगा मैया का मन्दिर अप्रैल महीने
के अक्षय तृतीया को खुलता है | हिन्दुओं के लिए यह दिन बहुत ही शुभ होता है | जब
सर्दी का मौसम आता है तो देवी गंगा को अपने निवास स्थान मुखबा नामक गाँव में
स्थापित कर दी जाती है | देवी गंगा के गंगोत्री वापिस लौटने की यात्रा बड़े धूम –
धाम से मनाया जाता है | देवी को वापस लेन की ख़ुशी में जुलुस निकाला जाता है | इस
जुलुस में आस – पास के देवी – देवताओं की डोली भी शामिल की जाती है | जो अपने
क्षेत्र तक ही रह जाते है |
इस जुलुस में गंगा और सोमेश्वर देवता की सजी हुई पालकी को एक साथ लेकर यंहा के
लोग नाचते हुए चलते है | जब दोनों की यात्रा शुरू होती है तो रास्ते के लोग देवी –
देवतों की पूजा करते है और भक्तगण को खाने – पीने की चीजे देते है | धराली गाँव
में सोमेश्वर देवता की यात्रा समाप्त हो जाती है | ओए देवी गंगा की यात्रा जारी
रहती है | यह यात्रा गंगोत्री तक जाता है |
जब देवी गंगा गंगोत्री आ जाती है
तो मंदिर के दरवाजे खोल दिए जाते है | जिसमे देवी गंगा को स्थापित किया जाता है |
तीर्थयात्री देवी गंगा के दर्शन करके उनकी पूजा – अर्चना करते है |
सड़क मार्ग :- गंगोत्री तक जाने के
लिए आप ऋषिकेश से बस , कार , टैक्सी का प्रयोग कर सकते है | यह रास्ता 259
किलोमीटर लम्बा है | फूलचट्टी तक जाने के लिए 8 किलोमीटर तक का रास्ता तय करना
होता है | इसके बाद बस या टैक्सी के द्वारा गंगोत्री तक जाया जा सकता है |
वायु मार्ग :- गंगोत्री तक जाने
के लिए निकटतम हवाईअड्डा देहरादून में स्थित जौलीग्रांट हवाईअड्डा है | यह
गंगोत्री से 226 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है |
गंगोत्री माँ गंगा का एक पवित्र तीर्थ स्थल
|Ganga Ka
Udhgam Sthal Goumukh,Gangotri Ke Jivjantu Or Ynha Ka Mousam , Gangotri Mein
Ghumne Ka Sthan |
No comments:
Post a Comment