Shreemad Bhagwat Geeta Adhyay 16 | श्रीमद भागवत गीता अध्याय १६

सोलहवाँ अध्याय


श्री कृष्ण बोले-हे भारत! निर्भय शुद्ध सतोगुणी होना, ज्ञान योग, निष्ठा, दान, इन्द्रिय दमन, यज्ञ करना, तप, सरलता, अहिंसा, सत्य, क्रोध, त्याग, शांति, चुगली न करना सब प्राणियों पर दया, तृष्णा से बचना, कोमल स्वभाव, लज्जा चपलता का त्याग, तेज, क्षमा धृति, पवित्रता, द्वेष रहित अभिमान न करना, दैंवी सम्पत्ति के सन्मुख जन्म धरने वालों को यह सब गुण मिलते हैं, हे पार्थ! दम्भ, दर्प अभिमान क्रोध, कटु भाषण और अज्ञान ये सब आसुरी सम्पत्ति के सन्मुख जन्म लेने वालों को प्राप्त होते हैं, हे पाण्डव! दैवी सम्पत्ति मोक्ष और आसुरी सम्पत्ति बंधन का कारण होती है|
Shreemad Bhagwat Geeta Adhyay 16
Shreemad Bhagwat Geeta Adhyay 16
 तुम शोक न करो क्योंकि तुम उत्तम दैवी सम्पत्ति के भोग के हेतु जन्में हो, हे पार्थ! इस लोक में देव और आसुर ये दो प्रकार के प्राणी उत्पन्न किए गए हैं, दैवी का विस्तार पूर्व में वर्णन कर चुके अब आसुरी को सुनो, धर्म में प्रवृति और अधर्म से निवृति असुर लोग नहीं जानते उनमें न शौच (पवित्रता) न आचार और न सत्य ही है| वे संसार को असत्य निराधार और अनीश्वर कहते हैं, उनके मन में जगत की उत्पत्ति का कारण काम से प्रेरित स्त्री पुरुषों के संभोग के अतिरिक्त कुछ नहीं है,मलिन आत्मा अल्पबुद्धि दारुण कर्म करने वाले इस संसार को नष्ट करने के हेतु पैदा होते हैं और दूषित काम के आश्रित होकर वे दम्भी, मानी और मद से युक्त पुरुष नीच कर्मों में प्रवृत होते हैं, वे मृत्युपर्यन्त चिंता से ग्रसित हैं, कामोपभोग ही सब कुछ है, इसी को सर्वस्व मानते हैं,
श्रीमद भागवत गीता अध्याय १६
श्रीमद भागवत गीता अध्याय १६
 अनेक आशा रूप पाशों से बंधे काम क्रोध में तत्पर कामोपभोग के लिए अन्याय से अर्थ संचय की इच्छा करते हैं, मैंने आज यह पाया, इस मनोरथ को पाऊँगा, यह है और यह धन भी मेरा हो जाएगा यह शत्रु तो मैंने मारा दूसरे को भी मारूँगा| मैं ईश्वर , भोगी, बलवान और सुखी हूँ मैं धनी कुलीन हूँ, मेरे समान दूसरा कौन है मैं यज्ञ करूँगा, दान भी करूँगा, आनन्द करूँगा, इस प्रकार अज्ञान से मोहित हुए हैं, अनेक कल्पनाओं से मोह रूपी बंधन में फंसे हुए विषय भोग में आसक्त लोग केवल नरक में गिरते हैं, अपनी बड़ाई आप करते हैं, धन धाम के मद में चूर रहते हैं, शास्त्रोक्त विधि छोड़कर केवल नाम के लिए यज्ञ करते हैं, ये अहंकार, बल, धमण्ड, काम और क्रोध से युक्त हैं, अपनी तथा औरों की देह में स्थित मुझमें द्वेष रखते हैं तथा मेरी निंदा करते हैं, इन द्वेष करने वाले क्रूर और अधम पापियों को मैं संसार की आसुरी योनियों में डालता हूँ, 
shree gita chapter 16
shree gita chapter 16
हे कौन्तेय! जन्म- जन्म में आसुरी योनी पाकर वह मुर्ख मुझको पाए बिना ही अंत में अधोगति को प्राप्त होते हैं, काम, क्रोध और लोभ ये तीन नरक के द्वार हैं जो आत्मा का नाश करते हैं, इस कारण तीनों को त्यागना चाहिए, हे कौन्तेय! उन तीन नरक द्वारों से छूटा हुआ मनुष्य अपने कल्याण को सुकृत (सत्कर्म) करता है, तब उत्तम गति को पाता है जो शास्त्रोक्त विधानों को छोड़ स्वेच्छानुसार कर्म करता है वह सिद्धि को नहीं पाता, सुख को नहीं पाता और परमगति को नहीं पाता अतएव कार्य और अकार्य इनको जानने के लिए शास्त्र प्रमाण है, शास्त्रोक्त विधान जानकर उसी अनुसार कर्म करना चाहिए |

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