मूली की
खेती करने का तरीका :- मूली को लगभग सभी स्थानों पर उगाया जाता है | इसका उपयोग
सभी के आलावा ज्यादातर सलाद के रूप में किया जाता है | मूली को सर्व प्रथम भारत और
चीन में बोया गया था इसलिए इस देश को इसकी उत्पत्ति का स्थान माना जाता है | मूली
की खेती सम्पूर्ण देश में की जाती है लेकिन ग्रह उद्यानों में भी इसे उगाया जाता
है | मूली में सल्फर तत्व की उपस्थिति के कारण गंध आती रहती है | मूली का सलाद में
एक अहम स्थान है | यह मनुष्य के स्वाथ्य के लिए भी बहुत लाभकारी और गुणकारी है | इसे
हर स्थान पर बड़ी ही आसानी से उगाया जाता है | मूली को क्यारियों की मेड़ों पर उगाया
जाता है | इसके बीज बोने के लगभग एक महीने में यह तैयार हो जाती है | इसकी फसल
अवधि 40 से 70 दिन की होती है |
इसकी
खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :- मूली की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए और सफल खेती के लिए
10 से 15 डिग्री सेल्सियस का तापमान सबसे अच्छा माना गया है | मूली को उगाने के
लिए हमे किसी भी मौसम का इंतजार नहीं करना पड़ता क्योंकि इसे किसी भी मौसम में
उगाया जा सकता है | इसलिए मूली हमे हर
मौसम में प्रयोग करने के लिए मिल जाती है | मूली गर्मी के अधिक तापमान को भी सहन
क्र सकता है लेकिन इसकी खशबू और आकार के लिए ठंडी जलवायु की आवश्कता होती है |
गर्मी के ज्यादा तापमान के कारण मूली के जड़ें चरपरी और कठोर हो जाती है | इसलिए
ज्यादातर किसान मूली की खेती सर्दी के मौसम में करते है |
Muli ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi |
मूली की खेती के लिए उपयुक्त भूमि :- मूली के
बीज को बोने के लिए हमे एक ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए जिसमे पानी के निकास की
अच्छी व्यवथा हो और फसल के उत्पादन के लिए उचित मात्रा में जैविक पदार्थ उपस्थित
हो | हमे ऐसे खेत का चुनाव करना चाहिए जिसमे एक साल में बोई जाने वाली किस्म के
इलावा कोई दूसरी फसल ना उगाई गई हो | मूली की सफल खेती करने के लिए मिटटी का पी.
एच. मान 6 या 7 का होना चाहिए | मटियार भूमि मूली को उगाने के लिए अच्छी नहीं होती
क्योंकि इसमें मूली की जड़ों का समुचित विकास नहीं हो पाता | इसलिए मूली की अच्छी
फसल प्रप्ति के लिए दोमट मिटटी या रेतीली दोमट मिटटी अधिक उपयोगी होती है | हमे
खेत में किसी भी तरह के कीटों को नहीं पनपने देना चाहिए क्योंकि कीटों के कारण ही
मिटटी रोगों का घर बन जाती है और हमारी फसल ख़राब हो जाती है | फसल को उगाने के बाद
खेत मे किसी भी तरह के खरपतवार नहीं होना चाहिए साथ ही साथ पानी के निकास के लिए
उचित प्रबंध होना चाहिए |
खेत की
तैयारी :- जिस खेत में मूली की खेती की जा रही हो उस खेत में गहरी जुताई करनी
चाहिए | क्योंकि मूली की जड़ें बड़ी होती है जो धरती के अंदर गहराई तक जाती है | गहरी
जुताई के लिए मिटटी पलटने वाले हल या ट्रक्टर का उपयोग करना चाहिए | 5 या 6 जिताई
के बाद खेत तैयार हो जाता है | जुताई करने के बाद दो बार केल्टिवेटर चलायें |
जुताई करने के बाद पाटा जरुर लगायें | इस प्रकार से खेत को तैयार करके हमे मूली के
बीजो को बोना चाहिए |
मुली की किस्में |
मूली की उन्नत किस्मे :- मूली की भरपूर
पैदावार के लिए किसानों को उन्नत किस्म की जाति का का उपयोग करना चाहिए | इसकी
उन्नत किस्मों में निम्नलिखित नाम आते है :- पूसा रेशमी , पूसा हिमानी , पूसा
चेतवी , पंजाब सफेद , हिसार मूली नं :- 1, वाइट टिप , रैपिड रेड आदि मूली की ये
सभी किस्मे अपना विशेष महत्व रखती है | पूसा चेतवी किस्म मध्यम आकार की सफेद चिकनी
मुलायम जड़ वाली है | जिसे अधिक तापमान में भी उगाया जाता है | इसके आलावा पूसा
रेशमी को अगेती किस्म के रूप में उगाया जाता है और इसका उत्पादन भी अधिक होता है |
मूली की और एनी किस्म को हर मौसम में और किसी भी साथ पर उगाया जा सकता है |
मूली को
बोने के लिए समय :- मूली को व्यावसायिक रूप से भारत के मैदानी भागों में सितम्बर
से जनवरी के समय में उगाया जाता है | जबकि पहाड़ी इलाके में इसकी खेती के लिए मार्च
से अगस्त का समय उपयुक्त होता है मूली की जाति के अनुसार ही इसकी बुआई सालभर की
जाती है जैसे मूली की पूसा रेशमी और पूसा हिमानी की किस्म की बुआई सितम्बर के मध्य
में की जाती है जबकि पंजाब सफेद और वाइट आइसिकिल की खेती अक्तूबर के मध्य में की
जाती है | पूसा चेतवी को मार्च के अंतिम समय में बोया जाता है और पूसा की देशी
किस्म को अगस्त के मध्य के समय में बोया जाता है | इन सभी किस्मो के आधार पर मूली
को सालभर बोया जाता है | मूली को किसान अपने खेत में और घर के बगीचे में आसानी से
उगा सकता है |
मूली को
उगाने के लिए बीज की मात्रा :- किसानों को मूली के बीजो को बोने से पहले इसे
उपचारित करना चाहिए | बीजो को देसी गाय के 5 लीटर मूत्र में एक किलो बीज के हिसाब
से उपचारित करें | इसके बाद ही इसे खेत में बोयें | एक हेक्टेयर भूमि में 5 से 10
किलोग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है | मूली को खेत में मेड बनाकर बोया जाता
है | इन मेड़ो के बीच की दुरी 45 सेंटीमीटर की होनी चाहिए और ऊंचाई 22 से 25
सेंटीमीटर की रखे | मेड़ो के बीचों – बीच पानी की निकासी के लिए नाली का निर्माण
अवश्य करें |
मूली की
खेती में प्रयोग होने वाले खाद और उर्वरक :- मूली को बोने से पहले 50 किवंटल सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद
में 20 किलो नीम की खली को मिलाकर मिटटी में अच्छी तरह से मिला दें | खाद और मिटटी
को आपस में मिलाने के बाद ही मूली के बीजों को बोयें | बीज के बोने के लगभग 15 दिन
के लहसुन का पेस्ट और 15 ग्राम हिंग मिलाकर
4 दिन तक छाया में रख दें | 4 दिन के बाद इस मिश्रण को छानकर इसमें 200 लाल मिर्च
का पाउडर मिला दें | अब इन सभी के मिश्रण में 50 लीटर पानी डालकर फसलों पर छिडकाव
करें |
( ध्यान देने योग्य :- लाल मिर्च को छिडकाव करने
से 10 घंटे पहले मिलाएं )
Muli ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Rokne Ke Tarike |
रासायनिक
खाद :- खेत की तैयारी करते समय गोबर , गोबर और कचरे से बनी कम्पोस्ट खाद को खेत की भूमि में मिला
दें | इसके आलावा 75 किलोग्राम नत्रजन , 40 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम
पोटाश की मात्रा को भी मिटटी में मिला देना चाहिए | इन सभी खादों के मिश्रण को
मिटटी में मिलाने के बाद ही खेत की जुताई करें ताकि खाद आची तरह से मिटटी में मिल
जाए | खेत में अंतिम जुताई करते समय नत्रजन की 75 किलोग्राम में से आधी मात्रा को
और फास्फोरस , पोटाश की पूरी मात्रा को खेत में मिल दें | इससे फसल उत्पादन में
लाभ मिलता है |
सिंचाई
करने का तरीका :- गर्मी के मौसम की फसल में एक सप्ताह में एक बार जरुर सिंचाई करे
और सर्दी के मौसम की फसल में एक महीने में लगभग 2 बार सिंचाई करनी चाहिए | बारिश में
उगाने वाली फसलों में सिंचाई की कोई जरूरत नहीं होती |
खरपतवार की रोकथाम :- मुली की फसल में अनचाहे
उगे हुए खरपतवार को निराई – गुड़ाई करके बाहर निकाल देना चाहिए | खेत में निराई –
गुड़ाई करते समय फसलों की छटनी कर दें | मेड़ों पर मिटटी की परत चढाते रहे | इसके
आलावा मेड़ों से ऊपर निकली हुई जड़ों को
मिटटी से ढक दें | ऐसा करने से मुली की फसल को नुकसान नहीं होता और हमे एक अच्छी
उपज प्राप्त होती है |
कीटों की रोकथाम के लिए :- एफिड , सरसों की मक्खी , पत्ती को काटने वाली सुंडी मुली की फसल को अधिक नुकसान देती है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
कीटों की रोकथाम के लिए :- एफिड , सरसों की मक्खी , पत्ती को काटने वाली सुंडी मुली की फसल को अधिक नुकसान देती है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
उपाय
:- 5 लीटर देशी गाय के मूत्र में लगभग 15 ग्राम के बराबर आकार की हिंग को मिलाकर
बिल्कुल बारीक़ पीस लें | अब इसमें पानी मिलाकर एक घोल बना लें | बने हुए इस घोल की
2 लीटर की मात्रा को किसी पम्प की मदद से फसलों पर छिडकाव करें | इस छिडकाव से
मुली की फसल पर से कीटों का प्रभाव दूर हो जाता है |
बीमारी
की रोकथाम के लिए :- वैसे तो मुली एक ऐसी फसल है जिस पर कोई भी रोग नहीं लगता |
लेकिन कभी – कभी इस पर रतुआ नामक बिमारी का प्रकोप हो जाता है | इसकी रोकथाम के
लिए एक उपाय है |
:- उपाय :-
नीम
की पत्तियों का काढ़ा बनाकर इसमें गोमूत्र और तम्बाकू की पत्तियां मिलाकर एक मिश्रण बनाये | इस मिश्रण को किसी
पम्प की सहायता से फसलों पर छिडके | रतुआ नामक बीमारी से छुटकारा मिल जाएगा |
मूली की खुदाई |
मुली
की खुदाई :- मुली की खुदाई उसकी किस्म के आधार पर की जाती है | यूरोपियन किस्म की
मुली की जड़ों में पीथ बन जाता है | जिसके
कारण इसकी कीमत कम हो जाती है | मुली की इस किस्म को बोने के लगभग 25 से 30 दिन
में भूमि के अंदर से निकाल लेना चाहिए | जबकि एशिया किस्म की मुली को बुआई के बाद
45 से 50 दिन के बाद भूमि के अंदर से निकालना चाहिए | जब मुली पूरी तरह से विकसित
हो जाये तथा नर्म , कोमल हो तो ही इसकी खुदाई करें |
उपज की प्राप्ति |
उपज
की प्राप्ति :- मुली की उपज इसकी देखभाल ,
मिटटी की उर्वरक शक्ति और उसकी किस्म पर निर्भर करती है | यदि इसकी फसल की देखभाल
अच्छी तरह से हो रही है और इसकी किस्म यूरोपियन है तो लगभग 70 -100 किवंटल तक की
उपज मिल जाती है | इसके आलावा एशियाई किस्म में 280 से 300 किवंटल तक की अच्छी उपज
मिल जाती है |
मुली
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