फूल गोभी की खेती भारत के
सभी हिस्से में की जाती है | सब्जियों में फूलगोभी का मुख्य स्थान है | फूलगोभी का
ज्यादातर उपयोग सभी बनाने में , सूप बनाने में और आचार बनाने में किया जाता है | इस
सब्जी में विटामिन बी. की अधिक मात्रा पाई जाती है | इसके आलावा इस सब्जी में और
दूसरी सभी के मुकाबले प्रोटीन की अधिक मात्रा पाई जाती है | जो हर मनुष्य के शरीर
के लिए लाभदायक माना जाता है | फूल्गोही की खेती करके कोई भी किसान अधिक से अधिक
लाभ प्राप्त कर सकता है |
फूलगोभी की खेती के
लिए उपयुक्त जलवायु :- फूलगोभी सर्दियों
के मौसम की फसल है | इसकी अच्छी उपज और सफल खेती करने के लिए ठंडी और आद्र जलवायु
का होना बहुत जरूरी है | क्योंकि सर्दियों के दिन बहुत छोटे होते है जो की फूलगोभी की बढ़ोतरी के लिए बेहतर मानी जाती
है | जब गोभी के फूल के फुल बनाने लगते है तो उस समय तापमान ज्यादा नहीं होना
चाहिए | यदि वातावरण का तापमान अधिक होता है तो फूल पत्तेदार और पीले रंग के हो
जाते है | फूल गोभी की खेती हमेशा जुलाई से अप्रैल के महीने तक इसकी बुआई करें | फूल
गोभी को गर्मी के मौसम में नहीं उगाना चाहिए क्योंकि इस मौसम में इस सब्जी की
स्वाद कड़वा ( तीखा ) हो जाता है | फूलगोभी की अगेती किस्म के लिए ज्यादा तापमान और
बड़े दिन की जरूरत होती है | इसके लिए 20. 22 – से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान
सबसे अच्छा होता है | इस तापमान पर फूलगोभी का अच्छी तरह से विकास और वृद्धि होती
है और साथ ही साथ इसके गुणों में भी बढ़ोतरी होती है |
फूलगोभी की खेती के लिए भूमि का चुनाव |
फूलगोभी की खेती के
लिए भूमि का चुनाव :- फूलगोभी की खेती किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है |
इसकी अगेती किस्म की खेती करने के लिए बलुई दोमट मिटटी अच्छी मानी जाती है | इस
भूमि में अच्छी तरह से जल का निकास हो जाता है | जबकि फूलगोभी की पछेती किस्म के
लिए चकनी मिटटी या दोमट मिटटी अच्छी होती है | हल्की रचना वाली मिटटी में भी इसकी
खेती की जा सकती है लेकिन इस मिटटी में जैविक खाद की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए |
तभी इस भूमि पर फूलगोभी की सफल खेती की जा सकती है | किसी भी प्रकार की भूमि में जैविक खाद की मात्रा उपलब्ध होनी चाहिए
| इससे खेती अच्छी होती है | जिस खेत में फूलगोभी की खेती की जा रही हो उस खेत की
मिटटी का पी. एच. मान यदि 6 से 7 के मध्य का हो तो बेहतर होता है | इसमें फूलगोभी
की अच्छी उपज मिल जाती है
फूलगोभी की उन्नत
किस्में :- फूलगोभी की किस्मों को मौसम के आधार पर तीन भागों में बांटा गया है |
1. अगेती किस्म , 2. मध्यम किस्म 3. पछेती किस्म आदि |
अगेती किस्म :-
अर्ली कुवारी , पूसा दीपाली , पन्त गोभी – 2 , पटना , सेलेक्शन 327 , सेलेक्शन 328
, अर्ली सेंथेटिक , पटना अगेती , और पूसा कार्तिक आदि किस्मों की कहती की जाती है
|
मध्यम जातियां :-
पन्त शुभ्रा , इम्प्रूव जापानी , एस. 1 , हिसार 114 , पूसा अगहनी , पटना मध्यम ,
अर्लि स्नोबोल , नरेंद्र गोभी -1 , पंजाब जॉइंट और पूसा हाइब्रिड आदि किस्मों की
खेती की जाती है |
पछेती जातियां :-
पूसा स्नोबोल -1 , स्नोबोल 16 पूसा स्नोबोल – 2 , बनारसी मागी जोइंट स्नोबोल्ल्ड ,
पूसा के. – 1 दनिया स्नोकिंग , पूसा सेंथेटिक , और विश्व भारती आदि किस्मों का नाम
लिया जाता है |
खेत की तैयारी :-
खेत की जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें | जब सारे खेत की जुताई हो जाये तो कम
से कम दो बार केल्टिवेटर चलायें और हर जुताई के बाद पाटा जरुर लगायें | खेत की जुताई
करने से पहले खेत में पानी से सिंचाई करें | ताकि जो भी फसल बोये उसके लिए
भूमि तैयार हो जाये | इस विधि को हम पलेवा कहते है |
फूलगोभी के किस्में |
फूलगोभी के पौधे
तैयार करना :- स्वस्थ पौधे जो की बीमारी से रहित होते है | इस प्रकार के पौधे की
तैयारी करने के लिए 0. 75 मीटर चौड़ी , 5 से 10 मीटर लम्बी और 15 से 20 सेंटीमीटर
की ऊँची क्यारियां तैयार करें | दो कतारों के बीच में 50 से 60 सेंटीमीटर की चौड़ी
नाली बनाएं | ताकि खेत में पानी जमा ना हो | क्यारियों में पौधा डालने से पहले 5
किलोग्राम गोबर की खाद की मात्रा के हिसाब से हर एक क्यारी में मिला दें | इसके
आलावा 10 ग्राम म्यूरेट ऑफ़ पोटाश , और 5 किलोग्राम यूरिया को एक वर्ग मीटर की
क्यारी में मिला दें | पौधे को बोते समय इसकी दुरी का ध्यान रखे | एक पौधे से
दुसरे पौधे की दूरी 2. 5 से 5 सेंटीमीटर की होनी चाहिए | क्यारियों में बीज के
बोने के बाद गोबर की खाद से बीजों को ढक देना चाहिए | सारे खेत में जब बीज की बुआई
हो जाये तो 1 या 2 दिन के बाद खेत में बनी हुई नालियों में पानी लगा देना चाहिए | नाली में पानी डालने के आलावा
आप क्यारियों की हल्की – हल्की सिंचाई भी
कर सकते है |
खेत में बीज की
मात्रा :- बीज को बोने से पहले बीजो कोकीटनाशक दवा से उपचारित करें | 2 से 3 ग्राम
कैप्टान या बैरेसिकोल की मात्रा से एक किलोग्राम बीज को उपचारित करें | फूलगोभी की
450 से 500 ग्राम की मात्रा के बीजो को हम एक हेक्टेयर भूमि पर बो सकते है | फूलगोभी
की नर्सरी बनाने से पहले नर्सरी का भी शोधन करना चाहिए | इसके लिए 160 से 175
मिलीलीटर में 2. 5 लीटर पानी की मात्रा को मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को
एक वर्ग मीटर की भूमि पर डालकर भूमि का शोधन करें |
फूलगोभी की बुआई का
तरीका :- गोभी को किस्म के अनुसार ही बोना
चाहिए | जैसे :- अगेती किस्म और मध्य किस्मो की बुआई जून के महीने से लेकर जुलाई
के महीने के पहले सप्ताह तक करें | गोभी
के पौध को नर्सरी में तैयार करके इसे खेत में एक कतारों में लगायें | एक कतार से
दुसरे कतार की दूरी लगभग 45 सेंटीमीटर की होनी चाहिए | क्यारी में पौध डालने में
30 दिन के बाद रोपाई करनी चाहिए | जबकि मध्यम किस्मो के पौध लगाने के लिए एक
क्यारी से दुसरे क्यारी के बीच की दुरी ५० सेंटीमीटर की होनी चाहिए | इतनी ही दूरी
एक पौधे से दुसरे पौधे की होनी चाहिए |
बुआई का तरीका |
पछेती किस्म की
फसलों को बोने के लिए अक्टूबर के मध्य से नवम्बर तक के समय में भूमि में पौध डाल
देना चाहिए | नर्सरी में पौध डालने के 30 दिन के बाद जब पौधे तैयार हो जाये तो इसे
कतारों में बोयें | एक कतार से दुसरे कतार की दुरी 60 सेंटीमीटर की होनी चाहिए और
एक पौध से दुसरे पौध की दुरी 60 सेंटीमीटर की होनी चाहिए | इस प्रकार की विधि से फूलगोभी को बोने से हमे एक
अच्छी उपज प्राप्त होती है |
इसकी खेती में
प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- फूलगोभी की सफल खेती और अच्छी उपज प्राप्त करने
के लिए मिटटी में सही मात्रा में खाद का प्रयोग करना चाहिए | जिस फसल को मौसम के
अनुसार लगाया जाता है | उस फसल के लिए मिटटी में अधिक पोषक तत्व की जरूरत होती है
| फूलगोभी को बोने से पहले खेत में 40 से 50 किवंटल सड़ी हुई गोबर की खाद और एक
किलोग्राम नीम की खली को आपस में मिलाकर खेत में मिला दें | इसके बाद खेत की जुताई
करें ताकि खाद अच्छी तरह भूमि में मिल जाये | रुपाई के 15 दिन के बाद वार्मि वाश
का प्रयोग करें |
रासायनिक खाद का
प्रयोग :- यदि हमे फूलगोभी की फसल में रासायनिक खाद का प्रयोग करना है तो लगभग 120
किलो नाइट्रोजन , 50 से 60 किलो फास्फोरस
और 55 से 60 किलो पोटाश की मात्रा को मिलाकर खाद के रूप में प्रयोग कर सकते है |
सिंचाई करने का
तरीका :- फूलगोभी की सिंचाई इसकी किस्म पर निर्भर होती है | यदि हमे अगेती किस्म
की फसल बोई है तो बुआई के एक सप्ताह के अंदर हमे इसकी सिंचाई करनी चाहिए | जबकि
देर से उगाये हुए फसलों की सिंचाई 10 से 15 दिन के अंदर करें |
घ्यान देने योग्य
बाते :- जब गोभी की फसल में फूल बनने लगे तो भूमि में नमी का ध्यान रखे | कि नमी
कम ना हो |
खरपतवार को रोकने के
लिए :- फूलगोभी की फसल को खरपतवार से मुक्त करने के लिए समय – समय पर निराई –
गुड़ाई करनी चाहिए | इसकी निराई – गुड़ाई अधिक गहरी नहीं करनी चाहिए | क्योंकि फूलगोभी
एक उथली जड़ वाली फसल होती है | फूलगोभी की फसल के साथ उगे हुए अनचाहे खरपतवार को
उखाड़ कर बाहर निकाल देना चाहिए |
कीटों की रोकथाम |
फसल पर लगने वाले
कीटों की रोकथाम :-
कैबेज मैगेट :- यह
कीट पौधे की जड़ो को खा जाता है जिसके कारण हरा – भरा पौधा सुख जाता है | इसकी
रोकथाम के लिए निम्न उपाय है :-
उपाय :- इस कीट से अपने पौधे को बचाने के लिए
खेत में नीम की खाद का प्रयोग करना चाहिए |
चेम्पा :- यह कीट
पौधे की पत्तियों और अन्य दुसरे कोमल भागो का रस चूस जाते है | जिसके कारण पौधे की
पत्तियों का रंग पीला हो जाता है | पौधे को इस कीट से बचाने के लिए एक उपाय है
जिसका वर्णन इस प्रकार है |
रोकथाम के उपाय :- नेम की पत्तियों का काढ़ा
बनाकर इसे देशी गाय के मूत्र में मिलाकर एक घोल तैयार करें | इस प्रकार के घोल की
750 मिलीलीटर की मात्रा को पम्प में डालकर फसल पर छिडकाव करें | चेम्पा नामक कीट
के हानिकारक प्रभाव से बचा जा सकता है |
ग्रीन कैबेज वर्म :-
यह कीट पौधे की पत्तियों को खा जाते है जिसके कारण पौधे की पत्तियों का सही आकार
नहीं रहता | इस कीट के प्रभाव को दूर करना
अति आवश्यक है |
रोकथाम का उपाय :- देशी गाय के मूत्र में नीम का तेल मिलाकर
फूलगोभी की फसल पर किसी पम्प की मदद से छिडकाव करें |
डाईमड बैक्मोथ :- यह
कीट एक सेंटीमीटर लम्बा होता है | यह सुंडी के आकार का होता है | क्योंकि इसकी
सुंडी भी एक सेंटीमीटर की होती है | इस कीट का रंग भूरा या कथई होता है और इसके
अंड्डे 0. 4 से 0. 8 मिलीमीटर के होते है | यह कीट पौधे की पत्तियों के किनारे
वाले भाग को खा जाती है |
इसकी रोकथाम का उपाय
:- देशी गाय के मूत्र में नीम का तेल मिलाकर
फूलगोभी की फसल पर किसी पम्प की मदद से छिडकाव करें | पम्प में के बार में 500
मिलीलीटर की मात्रा डालकर छिडकाव करें |
पौधे में होने वाली
बीमारियों की रोकथाम करने के लिए किसानों को बीज बोने से पहले गौमूत्र , कैरोसिन
या नीम के तेल के साथ बीजों को उपचारित करना चाहिए | बीजों को उपचारित करके हो इसे
बोना चाहिए |
गोभी की खेती सरसों
के खेत के पास ना करें | इसके आलावा गोभी की फसलों को ऐसे क्षेत्र में तो बिल्कुल
भी नही उगाना चाहिए जंहा पर बीमारियों का प्रभाव हो रहा हो |
cauliflower mein pryog khad, |
कटाई :- जब गोभी के
फूल पूरी तरह विकसित हो जाते है तो ही फूलगोभी की खाती करनी चाहिए | फूलगोभी की
किस्म के अनुसार इसकी कटाई की जाती है | यदि अगेती किस्म है तो बुआई के 60 से 80
दिन में फूलगोभी की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है | 2. मध्यम किस्मे :- बुआई
के 80 से 100 दिन के बाद इसकी कटाई की जा सकती है | 3. पछेती किस्म :- इस किस्म की
बुआई के 110 से 150 दिन के अंदर गोभी के फूल पूरी तरह ठोस हो जाते हो और विकसित हो
जाते है | तो हम इसकी कटाई क्र सकते है |
उप की प्राप्ति :-
फूलगोभी की 200 से 250 किवंटल प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त हो जाती है |
भण्डारण :- फूलगोभी
में पत्तियां लगे रहने पर इसे 80 - 85 %
की आद्रता और 15 से 22 डिग्री सेल्सियस के
तापमान पर कम से कम एक महीने तक रखा जा सकता है |
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