घिया की खेती करने का तरीका, |
लौकी को कद्दू के नाम से भी जाना जाता है |
इसकी खेती भारत के सभी हिस्सों में की जाती है | कद्दू एक बेल पर लगने वाली सब्जी
है | यह कुछ ही दिनों में काफी बड़ी हो जाती है | लौकी की सब्जी मनुष्य स्वास्थ्य
के लिए लाभदायक होती है | इसे सब्जी के रूप में ही प्रयोग किया जाता है | इसके
उपयोग से हमारे शरीर की कई बीमारियाँ दूर हो जाती है | ज्यादतर किसान गर्मी के
मौसम में लौकी की खेती करते है |
लौकी की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- लौकी को किसी भी तरह की भूमि में
उगाया जा सकता है | लेकिन हल्की दोमट मिटटी में इसकी सफल खेती की जा सकती है | जो
मिटटी उचित प्रकार से जलधारण कर सकती है और जो जीवांश युक्त है वह मिटटी अच्छी
मानी जाती है | टिंडे को अम्लीय भूमि में भी उगाया जा सकता है | जिस खेत में लौकी
उगाया जा रहा हो उस खेत की मिटटी का पी. एच मान यदि उदासीन है तो बेहतर होता है |
नदियों के किनारे वाली मिटटी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है |
खेत की तैयारी :- खेत को मिटटी पलटने वाले हल से करें | खेत की जुताई करने के
बाद केल्टिवेटर चलायें | मिटटी जब भुरभुरी हो जाये तो खेत में बुआई करें |
Ghiya Ki Vibhinn Kismen |
इसकी खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु :- लौकी की खेती के लिए आद्र और गर्म
जलवायु अच्छी होती है | लौकी को गर्म और तर दोनों ही मौसम में उगाया जा सकता है | लौकी
की अच्छी वृद्धि करने के लिए पाले से रहित 4 महीने का मौसम बहुत जरूरी है | इसके
लिए वातावरण का तापमान 18 से 30 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए | इसकी बुआई गर्मी और
बारिश के मौसम में की जा सकती है | ज्यादा बारिश और बादल वाले दिनों में इसकी बुआई
नहीं करनी चाहिए | अन्यथा कीटों और रोगों का प्रभाव बढ़ जाता है | लौकी पाले को सहन
नहीं कर सकता |
लौकी की किस्मो के नाम निम्नलिखित है |
1.
पूसा समर प्रोलिफिक लौंग
2.
संकर पूसा मेघदूत
3.
पंजाब लम्बी
4.
हिसार सेलेक्शन लम्बी
5.
गोल किस्म
6.
पंजाब कोमल
7.
पूसा संदेश
8.
संकर पूसा मंजरी
9.
हिसार सेलेक्शन गोल
10.
पूसा समर प्रोलिफिक राउंड
लौकी की आधुनिक किस्में निम्नलिखित है : -
1.अर्का बहार
2.पन्त संकर लौकी
3. क्योम्बुर – 9
4. आजाद नूतन
5. नरेंद्र संकर लौकी -4
6. पूसा संकर - 3
Ghiya Ki Kheti Ke Liye Uchit Bhumi |
लौकी को बोने का समय :- गर्मी की फसल लेने के लिए जनवरी से मार्च के महीने में
इसकी बुआई करनी चाहिए | जबकि बारिश की फसलों के लिए लौकी की बुआई जून से जुलाई के
महीने में करनी चाहिए |
बोने का तरीका :- लौकी को कतारों में बोना चाहिए | इसकी एक कतार से दुसरे कतार
के बीच की दुरी लगभग 1 . 5 मीटर की होनी चाहिए और एक पौधे से दुसरे पौधे के बीच की
दुरी 1 मीटर की होनी चाहिए | इस प्रकार से यदि लौकी को बोया गया तो इससे अच्छी उपज
मिल जाती है |
लौकी के बीज की मात्रा :- लौकी के बीज की मात्रा इसकी बुआई के समय पर निर्भर
होती है | जनवरी से मार्च के समय की बुआई के लिए 4 से 6 किलोग्राम बीज की मात्रा
को एक हेक्टेयर भूमि पर बोया जा सकता है | जबकि जून – जुलाई में बोई जाने वाली फसल
के लिए 3 से 4 किलोग्राम प्रति एक
हेक्टेयर बीज की मात्रा काफी होती है |
लौकी की बुआई :- कछारी मिटटी जो की नदियों के किनारे पाई जाती है | उसमे लौकी
को बोने के लिए 1 मीटर गहरी और 60 सेंटीमीटर चौड़ी नालियाँ बनाएं | खेत की खुदाई
करते समय ऊपर आधी बालू का एक ढेर लगा लें | इक्कठी की हुई बालू को खोदकर उसमे
नालियों को 30 सेंटीमीटर तक भर दें | इन्ही नालियों में 1. 5 मीटर की दुरी पर छोटे
– छोटे जगह बनाकर उसमे बीज बो दें | पौधे को ठंड और पाले से बचाने के लिए उत्तर पशिम दिशा में टट्टिया लगा देनी
चाहिए | दो नालियों के बीच की दुरी कम से कम 3 मीटर की होनी चाहिए |
लौकी की खेती में प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक का प्रयोग :- लौकी की अच्छी
उपज लेने के लिए इसकी फसल में कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना बहुत जरूरी है | इसके
लिए हमे एक हेक्टेयर भूमि पर लगभग 40 से 50 किवंटल सड़ी हुई गोबर की खाद , 15 से 20
किलो नीम की खली और 25 से 30 किलो अरंडी की खली को पास में मिलाकर एक मिश्रण बनाएं
| इस तैयार मिश्रण को एक समान मात्रा में बुआई से पहले खेत में बिखेर दें | इसके
बाद जुताई करें | ताकि खाद मिटटी में अच्छी तरीके से मिल जाये | इस प्रकार से खेत
को तैयार करके लौकी को बोयें | बुआई के 20 से 25 दिन के बाद नीम का काढ़ा और गौमूत्र
को मिलाकर एक मिश्रण बनाकर फसलों पर छिडकाव करें | इस छिडकाव को हर 15 दिन के बाद
करें |
Ghiya Ki Fasal Mein Pryog Hone Vali Khad |
रासायनिक खाद का प्रयोग :- खेत को तैयार करते समय जब हम आखिर की जुताई करते है
तो उस समय गोबर की सड़ी हुई खाद की 100 से
300 किवंटल की खाद को मिटटी में मिला दें | इसके साथ – साथ नत्रजन की 80 किलोग्राम
, फास्फोरस की 70 से 80 किलोग्राम और 40
किलोग्राम पोटाश को मिलाकर खेत में डाल दें | फास्फोरस की और पोटाश की पूरी मात्रा
के साथ नत्रजन की आधी मात्रा को खेत की तैयारी करते समय डालें | बाकि नत्रजन की
आधी मात्रा को टाप ड्रासिंग के रूप में प्रयोग करें |नत्रजन को पहली बार खेत की
तैयारी करते समय डाले और दूसरी बार पौधे में फूल आने के बाद प्रयोग करें |
सिंचाई करने का तरीका :- लौकी की खेती में एक सप्ताह में एक बार सिंचाई जरुर
करनी चाहिए | लेकिन खरीफ और वर्षा ऋतु की फसल में सिंचाई की जरूरत नहीं होती | वर्षा
ऋतु में जब बारिश कम होती है तो इसकी फसल में कम से कम 8 से 10 दिन के अंतर पर
सिंचाई अवश्य करनी चाहिए |
खरपतवार की रोकथाम :- लौकी की फसल में खरपतवार को दूर करने के लिए हल्की –
हल्की निराई – गुड़ाई करनी चाहिए | यदि इसकी निराई गहरी करते है तो पौधे की जड़े
कटने का डर रहता है | इसकी फल को हमेशा खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए |
Ghiya Mein Lagne Vale Rog Se bachaav |
पौधे में लगने वाले रोग और उस पर नियंत्रण करने का तरीका :-
लालड़ी नामक कीट :- यह कीट पौधे की हरी पत्तियों और फूलो को खाकर
नुकसान पंहुचाता है | जब पौधे पर दो
पत्तियां निकल जाती है | उसी समय इस कीट का कुप्रभाव शुरू हो जाता है | लालड़ी नामक
कीट की सुंडी भूमि के अंदर होती है | जो भूमि के अंदर रहकर पौधे की जड़ों को नुकसान
देता है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
उपाय :- देसी गाय के पेशाब की 15 लीटर की मात्रा को कम से कम 45 से 50 दिन के
लिए किसी ताम्बे के बर्तन में रख दें | जब यह मूत्र पुराना हो जाये तो इसमें 5
किलो धतूरे की पत्त्तियाँ और तना मिलाकर अग्नि पर पकाएं | पकाते हुए जब इस मिश्रण
की आधी मात्रा रह जाये तो इसे ठंडा होने के लिए रख दें | ठंडा होने के बाद इसे छान
कर तीन लीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस प्रकार
के छिडकाव करने से पौधे में हुए हानिकारक प्रभाव को दूर कर सकते है |
3.फल को नुकसान पंहुचाने वाली मक्खी :- यह मक्खी फलों के अंदर छेद करके घुस
जाती है और वंही अंडे दे देती है | इसके अंडो में से सुंडी निकल जाती है | जो फल
से बाहर निकल जाती है | इसके कारण फल बेकार हो जाता है | इस मक्खी का अधिकतर
प्रभाव खरीफ वाली फसलों पर होता है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी है |
रोकने का उपाय :- गाय के पेशाब की 15 लीटर की मात्रा को कम से कम 45 से 50 दिन
के लिए किसी ताम्बे के बर्तन में रख दें | जब यह मूत्र पुराना हो जाये तो इसमें 5
किलो धतूरे की पत्त्तियाँ और तना मिलाकर अग्नि पर पकाएं | पकाते हुए जब इस मिश्रण
की आधी मात्रा रह जाये तो इसे ठंडा होने के लिए रख दें | ठंडा होने के बाद इसे छान
कर तीन लीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस प्रकार
के छिडकाव करने से पौधे में हुए हानिकारक प्रभाव को दूर कर सकते है |
चूर्णी फफूंदी :- यह एक फफूंदी जन्य रोग होता है | इस रोग में पौधे की
पत्तियों और तनों पर सफेद दरदरा और गोलाकार जाल दिखाई देता है | धीरे – धीरे इसका
आकार बढ़ जाता है | जब इसका आकार बढ़ जाता है तो इसका रंग कथई हो जाता है | पौधे की
हरी – हरी पत्तियाँ सुख कर पीली हो जाती है | और पौधे की वृद्धि रुक जाती है |
पौधे में यह रोग ऐरीसाईफी सिकोरेसीएरम नामक फफूंदी के कारण होता है | इसकी रोकथाम
के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
इसकी रोकथाम करने का उपाय :- देसी गाय में मूत्र की 5 लीटर की मात्रा में लगभग
15 ग्राम के आकार की हिंग मिलाकर बारीक़ पीस कर एक घोल बनाएं | इस प्रकार से तैयार
किये हुए घोल की 2 लीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर खड़ी फसलों पर छिडकाव
करें |
सफेद ग्रब :- यह कीट भूमि के अंदर होता है| जो पोधे की जड़ों को खाता है | यह
कीट कददू की किस्मो को हानि पंहुचाता है | इस कीट के प्रभाव को दूर करने के लिए
हमे निम्नलिखित उपाय है |
रोकथाम का उपाय :- इस कीट से बचने के लिए बुआई करने से पहले मिटटी में
नीम की खाद का प्रयोग करें |
मृदु रोमिल फफूंदी :- पौधे में यह रोग एक फफूंदी के कारण होता है | इसद रोग
में पत्तियों की निचली सतह पर कोणा आकार के धब्बे बन जाते है | जो ऊपर से पीले या
लाल भूरे रंग के होते है | पौधे में यह रोग स्यूडोपरोनोस्पारो क्युबेनिसिस नामक
फफूंदी के कारण होता है |
रोकने का उपाय :- गाय के पेशाब की 15 लीटर की मात्रा को कम से कम 45 से 50 दिन
के लिए किसी ताम्बे के बर्तन में रख दें | जब यह मूत्र पुराना हो जाये तो इसमें 5
किलो धतूरे की पत्त्तियाँ और तना मिलाकर अग्नि पर पकाएं | पकाते हुए जब इस मिश्रण
की आधी मात्रा रह जाये तो इसे ठंडा होने के लिए रख दें | ठंडा होने के बाद इसे छान
कर तीन लीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस प्रकार
के छिडकाव करने से पौधे में हुए हानिकारक प्रभाव को दूर कर सकते है |
एंथ्रेक्नोज :- इस रोग में पौधे की हरी पत्तियों और फलों पर लाल – काले धब्बे
बन जाते है | जो बाद में आपस में मिलकर एक बड़ा धब्बा बन जाता है | पौधे में यह रोग
बीज के कारण होता है | इस रोग को फैलाने वाले कीट का नाम कोलेटोट्राईकम स्पिसिज है
| इसे रोकने के लिए एक आसान तरीके से किया जा सकता है |
रोकथाम के लिए :- इस रोग से बचने के लिए बीज को बोने से पहले बीजों को गौमूत्र
या नीम के तेल से उपचारित करें | जिस खेत में फसल बोई गई हो उस खेत को खरपतवार से
मुक्त रखना चाहिए | इसके आलावा किसानों को फसल चक्र की विधि अपनाना चाहिए |
6.मौजेक :- पौधे में यह रोग क विषाणु के कारण होता है | इस रोग में पौधे की
पत्तियों की वृद्धि रुक जाती है और वे मुड़ जाती है | यह रोग चेंपा के द्वारा फैलता
है | इस रोग में फल छोटे लगते है और उपज भी कम मिलती है | इसकी रोकथाम करना बहुत
जरूरी होता है |
Ghiya Ko Khrpatvaar Se Mukt Krne Ka Trika |
रोकथाम के उपाय :- नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाएं | इस काढ़े में तम्बाकू मिलाकर किसी पम्प में
डालकर फसलों पर छिडकाव करें | आप काढ़े के आलावा गौमूत्र का भी प्रयोग कर सकते है |
उपज की प्राप्ति :- इसकी उपज बुआई पर निर्भर करती है | यदि इसकी बुआई जनवरी –
मार्च के महीने में की गई है तो इसकी लगभग 150 से 200 किवंटल प्रति एक हेक्टेयर की
उपज मिल जाती है | जबकि जून – जुलाई की फसलो से हमे 80 से 100 किवंटल प्रति
हेक्टेयर की उपज प्राप्त हो जाती है |
घिया की खेती करने का
तरीका,Ghiya Ki Kheti Ka
Trika , Ghiya Ki Vibhinn Kismen,Ghiya Ki Kheti Ke Liye Uchit Bhumi, Ghiya Mein Lagne Vale Rog Se bachaav,Ghiya Ki Fasal Mein
Pryog Hone Vali Khad,Ghiya Ko Khrpatvaar Se
Mukt Krne Ka Trika |
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