मटर की खेती करने का तरीका, Matar ki Kheti Karne ka Tarika|

मटर की वैज्ञानिक खेती :-
Matar ki Kheti Karne ka Tarika
 Matar ki Kheti Karne ka Tarika

 मटर की खेती पूरे भारत में व्यावसायिक रूप से की जाती है | मटर को सर्दी के मौसम में उगाया जाता है  मटर का सब्जियों में एक महत्वपूर्ण स्थान है |सर्दियां शुरू होते ही बाजारों में मटर बिकने लगती है | मटर को डिब्बो में पैक करके भी बेचा जाता है इसकी खेती हरी फली और दाल प्राप्त करने के लिए की जाती है | मटर की दाल की जरूरत को पूरा करने के लिए पीले मटर की खेती की जाती है | पीले मटर का प्रयोग बेसन के रूप में , दाल के रूप में और छोले के रूप में किया जाता है | मटर में प्रोटीन , कार्बोहाइड्रेट , फास्फोरस , रेशा , पोटाशियम और विटामिन की जैसे मुख्य पोषक तत्व पाए जाते है | ये सभी तत्व हमारे शरीर के लिए लाभदायक होती है |
मटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :- हमारे देश में अधिकतर जगहों पर मटर की खेती रबी की ऋतु में की जाती है | मटर की सफल खेती के लिए नम और ठंडी जुलाई का मौसम बहुत अच्छा माना जाता है | 22 डिग्री सेल्सियस का तापमान मटर के अनुकरण के लिए उत्तम होता है | मटर की वृद्धि और विकास में लिए तापमान 15 से 18 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए | जिस स्थान पर वार्षिक वर्षा 70 से 80 सेंटीमीटर की होती है उस स्थान पर मटर को सफलतापूर्वक उगाया जाता है | लेकिन मटर की वृद्धि के समय में अधिक बारिश का होना नुकसानदायक होता है | इससे हमारी मटर की फसल खराब हो सकती है | इसके आलावा मटर में जब फलियाँ बनने लगे और मौसम गर्म और शुष्क हो जाये तो मटर की गुणवत्ता और उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है |
मटर की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- दोमट मिटटी और मटियार दोमट मिटटी मटर की खेती के लिए अति उत्तम है | उचित जल निकास वाली भूमि और जिवांश युक्त भूमि में मटर की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है | गुजरात के कच्छ के क्षेत्र में भूमि में पानी सुख जाता है इसी कारण इस भाग में मटर की खेती नहीं की जाती है | जिस खेत में मटर की खेती की जा रही है उस खेत की मिटटी का पी. एच. मान यदि 6 या 7. 5 का हो तो बेहतर माना जाता है | बलुआर दोमट मिटटी में भी इसकी खेती की जा सकती है लेकिन इस भूमि में सिंचाई का प्रबंध होना चाहिए | तभी इस भूमि पर मटर की अच्छी खेती की जा सकती है |
    :- मटर की प्रजातियाँ :-
Matar, मटर  ki Kismen
Matar, मटर  ki Kismen
फील्ड मटर :- मटर की इस किस्म में मुख्य रूप से रचना , स्वर्ण रेखा , अपर्णा , हंस , विकास , शुभार , अम्बिका , पारस , और जे. पी.-885 आदि का नाम आता है | मटर की इस सभी किस्मों का उपयोग दाल के लिए , साबुत मटर के लिए और पशुओं के चारे के लिए किया जाता है |
2. गार्डन मटर :- मटर की इस किस्म की खेती केवल सब्जियों के लिए की जाती है |
  मटर की अगेती किस्म :-
आर्केल :- मटर की इस किस्म का बीज झुरिदार होता है | इसके दाने का स्वाद मीठा होता है | इस किस्म की मटर को बोने के लगभग 55 से 66 दिन में यह तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है | इसकी फलियाँ 8 से 10 सेंटीमीटर की होती है हर एक फली एक बराबर होती है और हर एक फली में कम से कम 5 या 6 दाने निकलते है | यह एक यूरोपीयन अगेती किस्म है | इसलिए इसकी फलियों को कम से कम तीन बार तोड़ा जा सकता है | मटर की इस किस्म से हमे लगभग 80 से 100 किवंटल तक की उपज मिल जाती है |
बोनविले :- मटर की इस किस्म का भी बीज झुरीदार होता है | इसकी ऊंचाई मध्यम होती है और इसका पौधा सीधा उगता है | इसकी फुल की शाखा पर केवल दो फलियाँ ही लगती है | मटर की इस प्रजाति को अमेरिका से लाया गया है | बुआई के बाद 80 से 85 दिन में यह तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है | मटर की इस किस्म से हमे 150 से 180 किवंटल तक की अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है |
अर्ली बैजर :- इसकी फलियों का रंग हल्का होता है और इसकी लम्बाई 8 सेंटीमीटर की होती है और आकार मोटा होता है | इसके दाने आकार में भी बड़े होते है स्वाद में मीठे और झरीदार होते है | यह एक अगेती किस्म है मटर की यह किस्म संयुक्त राज्य अमेरिका से लाई गई है | इसकी फलियाँ बुआई के लगभग 65 से 80 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है | इसकी 80 से 100 किवंटल तक की उपज मिल जाती है |
अर्ली दिसंबर :- यह अगेती किस्म है यह किस्म अर्ली बैजर  संस्करण से तैयार की गई है | इसकी फलियों का रंग गहरा हरा होता है और हर एक फलियों की लम्बाई 6 से 8 सेंटीमीटर की होती है | बुआई के लगभग 55 से 60 दिन में यह तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है | मटर की इस किस्म से हमे 80 से 100 किवंटल तक की उपज प्राप्त हो जाती है |
असौजी  :-  मटर की इस किस्म की फलियों का रंग गहरा हरा होता है और प्रत्येक फली की लम्बाई 5 से 6 सेंटीमीटर की होती है | फलियों के दोनों सिरे नुकीले और आकार में लम्बे होते है | इसकी फलियाँ बुआई के बाद लगभग 55 से 65 दिन में तोड़ने के लिए तैयार हो जाती है | यह अगेती बौनी किस्म है | मटर की प्रत्येक फली में 5 या 6 दाने होते है | मटर की इस किस्म से हमे कम से कम 80 से 100 किवंटल तक की अच्छी उपज मिल जाती है |
जवाहर मटर :- यह एक मध्यम किस्म है | इसकी फलियाँ बुआई के बाद लगभग 75 से 80 दिन में तोड़ने योग्य हो जाती है | इसकी फलियों की लम्बाई 6 से 8 सेंटीमीटर की होती है | इसकी फलियों में दाने पूरी तरह भरे हुए होते है | हर एक फली में कम से कम 5 से 6 दाने निकल जाते है | जवाहर मटर नामक किस्म की खेती करने से हमे 150 से 180 किवंटल तक की अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है |
पन्त उपहार :- मटर की इस किस्म को अक्टूबर के अंतिम समय से लेकर नवम्बर के अंत तक के समय में इसकी बुआई की जाती है | बुआई के कम से कम 70 से 85 दिन में इसे उपयोग के लिए तोड़ा जा सकता है | मटर की इस किस्म से हमे 80 से 100 किवंटल की उपज मिल जाती है |
       :- मध्यम किस्मे :-
T 9 :- मटर की इस किस्म का बीज झर्रीदार हल्का हरा रंग लिए हुए सफेद रंग का होता है | इसके पौधे का रंग गहरा हरा होता है और फुल का रंग सफेद होता है | यह मटर की मध्यम किस्म है | बुआई के लगभग 65 दिन के बाद इसे उपयोग करने के लिए तोड़ा जा सकता है | लेकिन इसकी फसल का समय 120 दिन का होता है | T 9 किस्म की खेती करने से हमे 8- से 100 किवंटल की उपज प्राप्त हो जाती है |
T56 :- मटर की इस किस्म के बीज झर्रीदार होते है बीजो का रंग सफेद होता है | यह मध्यम समय की किस्म है | इसके पौधे का रंग हल्का हरा होता है | मटर की बुआई के लगभग 65 दिन के बाद हम इसकी फलियों को तोड़ सकते है | T 56 की किस्म से हमे 70 से 90 किवंटल तक की उपज प्राप्त हो जाती है |
NP 29 :- इसकी किस्म की फसल अवधि 100 से 120 दिन की होती है | यह एक अगेती किस्म है | बुआई के 65 दिन के बाद इसे हम तोड़ सकते है मटर की इस किस्म को बोने से हमे 100 से 120 किवंटल तक की उपज प्राप्त हो जाती है |
देरी से तैयार होने वाली किस्मे :- पछेती किस्मों में आजाद , मटर -2 और जवाहर मटर -2 आदि का नाम लिया जाता है | मटर की इन किस्मों को बोने के 100 से 120 दिन के बाद उपयोग करने के लिए तोड़ा जा सकता है |
Matar ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi
 Matar ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi 
बीज की मात्रा :- मटर के बीजो को हमेशा उपचारित करके बोना चाहिए | बीजो को बोने से पहले गौमूत्र , कैरोसिन , और नीम के तेल से उपचारित करें | मटर की अगेती किस्मो के लिए एक हेक्टेयर भूमि पर 100 किलोग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है | इसके आलावा मध्यम और पछेती किस्मों के लिए 80 किलोग्राम बीज ही काफी होते है |
बीज के बोने का तरीका :- मटर को शुद्ध फसल के रूप में या मिश्रित रूप में लगाया जाता है | इसके अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए बीजो को बोते समय इसकी कतारों की दुरी का ध्यान रखे | इसकी कतारों की दुरी 30 से 45 सेंटीमीटर की होनी चाहिए और एक पौधे से दुसरे पौधे की दुरी 10 से 15 सेंटीमीटर की होनी चाहिए | मटर की बुआई सीड ड्रिल से या हल के पीछे वाले हिस्से से की जा सकती है | मटर के बीजों को 5 से 6 सेंटीमीटर का गड्ढा खोदकर बोयें |
बुआई का समय :- भारत के उत्तरी हिस्से में  दाल वाली मटर की बुआई अक्टूबर के मध्य के समय से लेकर अक्टूबर के अंतिम समय तक की जाती है | यह समय मटर की बुआई के लिए अति उत्तम होता है | इसके आलावा सब्जी के लिए इसकी खेती 20 अक्टूबर से 15 नवंबर तक के समय में की जा है |
मटर की खेती में प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- मटर की अच्छी पैदावार लेने के लिए इसकी फसल में खाद का प्रयोग करना अति लाभदायक माना जाता है | इसके लिए हमे 10 से 15 किवंटल सड़े हुए गोबर की खाद , और 5 किलोग्राम नीम की खली को आपस में मिलाकर खाद का एक मिश्रण बनाये | इसी खाद के मिश्रण को एक एकड़ भूमि में जुताई करते समय भूमि में अच्छी तरीके से बिखेर दें | इसके आलावा ट्राईकोडरमा की 25 किलोग्राम की मात्रा को क एकड़ भूमि में मिल दें | जिस खेत में मटर की खेती की जा रही हो उस खेत की मिटटी में यदि नमी हो तो बेहतर होगा | मटर की बुआई के 15 से 20 दिन के बाद पौधे पर वार्मिवाश का छिडकाव करें | ताकि पौधा अच्छी तरीके से वृद्धि कर सके | फसल में से खरपतवार को हटाने के बाद जीवामृत का छिडकाव करें | जब मटर की फसल पर फूल आने लगे तो इसकी फसल पर गौमूत्र में करंज और नीम के मिश्रण का छिडकाव करें | पौधे पर फूल आने के बाद इस पर एमिनो एसिड और पोटाशियम होमोनेट के मिश्रण को किसी पम्प के द्वारा तर बतर करके छिडकाव करें | इसके छिडकाव के 15 दिन के बाद इस मिश्रण में फोल्विक एसिड मिलाकर फसल पर छिडकाव करें | खेत में छिडकाव करते समय भूमि की नमी का ध्यान रखे |
Matar ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Rokne Ke Tarike,
Matar ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Rokne Ke Tarike
रासायनिक खाद का प्रयोग :-   यदि हमे मटर की फसल में रासयनिक खाद का प्रयोग करना है | तो खेत को तैयार करते समय इसमें सड़ी हुई गोबर की खाद और कम्पोस्ट खाद को भूमि में मिला दें | मटर एक दलहनी फसल है | इसलिए इस फसल में नाइट्रोजन का उपयोग कम किया जाता है | बीज बोने के 15 से 20 दिन के बाद 20 से 25 किलोग्राम  नाइट्रोजन , 45 से 50 किलोग्राम फास्फोरस और 25 से 30 किलोग्राम पोटाश की मात्रा को आपस में मिलाकर मटर की फसल की कतारों में डाल दें | अगर किसान रासायनिक खाद की मात्रा को यूरिया , सिंगल सुपर फास्फेट और म्यूरेट को पोटाश के माध्यम से देना चाहता है तो एक हेक्टेयर भूमि के लिए एक बोरी यूरिया , 5 बोरी सिंगल सुपर फास्फेट और 1 बोरी म्यूरेट ऑफ़ पोटाश की मात्रा काफी होती है |मटर  की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इन सभी खादों का प्रयोग लाभदायक होता है |
    सिंचाई करने का तरीका :- मटर की फसल में हमेशा हल्की हल्की सिंचाई करनी चाहिए | मटर की उन्नत किस्म और उन्नत शील प्रजातियों में दो बार सिंचाई की जरूरत होती है | सर्दियों के मौसम में यदि एक बार बारिश हो जाये तो मटर की फसल में दूसरी बार सिंचाई की जरूरत नहीं होती | मटर की फसल में पहली सिंचाई फूल निकलते समय और दूसरी सिंचाई फली बनते समय करें |
खरपतवार पर नियंत्रण :- मटर की फसल में अनचाहे खरपतवार उग जाते है |जिसमे गजरी , चटरी मटरी , बथुआ , अंकारी , और सैजी नामक खरपतवार का नाम लिया जाता है | इन सभी खरपतवारों को निराई और गुड़ाई करके फसल से बाहर निकाल देना चाहिए | जरूरत के अनुसार मटर को बोने के बाद एक या दो बार निराई  करनी चाहिए | मटर की फसल को बोने के 35 से 40 दिन तक खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए |
पौधे में होने वाले रोग और उसकी रोकथाम के लिए :-
1.     तना छेदक :- पौधे में यह रोग एक मक्खी के कारण होता है | इस मक्खी का रंग काला होता है | यह मक्खी मटर की फसल के अंदर छेद कर देती है और इसे अंदर ही अंदर खा जाती है | जिसकी वजह से मटर का पौधा सुख कर मर जाता है | पौधे को इस मक्खी के प्रकोप से बंचाने के लिए एक प्रयोग है जिसका विवरण इस प्रकार से है |
2.         उपाय :-
10 लीटर देशी गाय के मूत्र में 2 किलो 500 ग्राम नीम की पत्तियाँ मिलाकर 15 दिनों के लिए रख दें | जब यह मिश्रण सड़ जाये तो इसे छान लें | छानने के बाद इसे किसी पम्प के द्वारा फसल पर तर बतर करके छिडकाव करें | इससे पौधे में होने वाली तना छेदक का रोग दूर हो जाती है
पौधे की पत्ती  में सुरंग करने वाला कीट :- इस कीट का कुप्रभाव पौधे के शुरुआत में ही दिखने लगते है | यह कीट पौधे की पत्तियों में सुरंग बनाकर इसकी टहनियों को खा जाती है | इस कीट का कुप्रभाव पत्तियों पर साफ दिखाई देता है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी है |
रोकथाम का उपाय :- 15 लीटर देशी गाय के मूत्र को किसी ताम्बे के बर्तन में डालकर 40 से 50 दिन तक रख दें | जब यह गौमूत्र पुराना हो जाये तो तो इसमें 5 किलो धतूरे की पौधे की पत्तियां और तना मिलाकर अग्नि पर पका लें | पकते पकते जब इसकी मात्रा आधी शेष रह जाये तो इसे आग से नीचे उतारकर ठंडा होने के लिए रख दें | ठंडा होने के बाद इसे छान लें और इसे किसी पम्प की मदद से फसलों पर छिडकाव करें | इस छिडकाव से पौधे में हुए इस रोग को समाप्त कर सकते है |
Matar Ki Fasl Mein Keeton Se Bachaav
Matar Ki Fasl Mein Keeton Se Bachaav 
फली छेदक :-इस कीट में सुंडी होती है जिसके कारण वह फली में छेद करके उसके अंदर घुस जाते है और पौधे की शाखाओ को खा जाते है | देर से बोई गई फसल में इस कीट का कुप्रभाव अधिक होता है | इसकी रोकथाम के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
   रोकथाम का उपाय :- 15 लीटर गौमूत्र में 5 किलो मदार की पत्तियां डालकर उबालें | उबलते हुए जब इसकी मात्रा आधी रह जाये तो इसे छानकर फसल पर तर बतर करके छिडकाव करें |
माहू : मटर की फसल पर  इस कीट का प्रभाव जनवरी महीने के बाद होता है इसकी रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपाय है |
रोकथाम के उपाय :- 15 लीटर देशी गाय के मूत्र में 2 किलो 500 ग्राम नीम की पत्तियों को मिलाकर लगभग 15 दिन के लिए रख दें | 15 दिन के बाद इस मिश्रण को छान लें | इससे किसी पम्प की मदद से अपनी फसल पर छिडकाव करें | इस छिडकाव से माहू नामक कीट का प्रभाव दूर हो जाता है |
बुकनी :- इस रोग में पौधे की फलियों और तनों पर सफेद रंग का चूर्ण फैल जाता है | कुछ दिनों के बाद पत्तियों का रंग काला हो जाता है और पत्तियाँ मर कर नीचे गिर जाते है | पौधे में होने वाले इस रोग को चूर्णी  या  चित्ती रोग भी कहते है |
 रोकथाम के लिए उपाय :- 15 लीटर देशी गाय के मूत्र में 2 किलो 500 ग्राम नीम की पत्तियों को मिलाकर लगभग 15 दिन के लिए रख दें | 15 दिन के बाद इस मिश्रण को छान लें | इससे किसी पम्प की मदद से अपनी फसल पर छिडकाव करें |पौधे में हुए इस रोग का प्रभाव ठीक हो जाता है |
उकठा :- पौधे में यह रोग बीज के कारण होता है | इसमें मटर के पौधे में फलियाँ नहीं बनती | पौधे में जब यह बीमारी लगती है तो पत्तियों का रंग पीला हो जाता है | धीरे – धीरे पूरा पौधा सुख जाता है | पौधे को इस रोग से बचाने के लिए उपाय का वर्णन इस प्रकार से है |
रोकथाम का उपाय :- 10 लीटर गाय के मूत्र में तम्बाकू की 2 किलो 500 ग्राम पत्तियाँ , 2 किलो 500 ग्राम आक के पौधे की पत्तियाँ और 5 किलो धतूरे के पौधे की पत्तियों को मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को अग्नि पर पकायें | पकाते हुए इस मिश्रण की मात्रा आधी शेष रह जाये तो इसे आग पर से उतारकर ठंडा होने के लिए रख दें | ठंडा होने के बाद इसे छानकर पम्प के द्वारा फसल पर छिडकाव करें | जिस खेत की भूमि में इस रोग का प्रकोप होता है तो उस खेत में कम से कम 6 से 7 साल तक किसी भी फसल की खेती ना करें |
तुलसिता :- इस बीमारी के कारण मटर के पौधे की हरी – हरी पत्तियों के ऊपर पीले रंग के निशान हो जाते है | इस निशान के नीचे एक सफेद रंग की रुई के समान फफूंदी बन जाती है | कुछ समय में इस रोग का प्रकोप सारी पत्तियों पर हो जाता है |
रोकथाम के उपाय :- 10 लीटर गाय में मूत्र में 2 किलो 500 ग्राम नीम की पत्तियों को मिलाकर 15 दिन के लिए रख दें | गौमूत्र का यह मिश्रण जब सड़ जाये तो इसे छानकर मटर की फसल पर छिडकाव करें | तुलसिता नामक रोग से छुटकारा मिल जाएगा |

ROGO SE Bachaav ke upay
ROGO SE Bachaav ke upay 

सफेद विगलन :- इस रोग में पौधे के सभी भागों को नुकसान होता है | जिस भी पौधे में यह रोग लगता है वह पौधा सफेद रंग का होकर मर जाता है | इस बीमारी का ज्यादातर कुप्रभाव भारत में पर्वतीय भागो की फसलों  में होता है | पौधे के जिस भाग में यह बीमारी हुई है उस भाग पर सफेद रंग की फफूंदी जम जाती है | जिसके कारण मते के दाने काले रंग के हो जाते है | इसकी रोकथाम करना बहुत आवश्यक है |
रोकथाम के लिए उपाय :- 10 लीटर गाय के मूत्र में तम्बाकू की 2 किलो 500 ग्राम पत्तियाँ , 2 किलो 500 ग्राम आक के पौधे की पत्तियाँ और 5 किलो धतूरे के पौधे की पत्तियों को मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को अग्नि पर पकायें | पकाते हुए इस मिश्रण की मात्रा आधी शेष रह जाये तो इसे आग पर से उतारकर ठंडा होने के लिए रख दें | ठंडा होने के बाद इसे छानकर पम्प के द्वारा फसल पर छिडकाव करें | जिस खेत की भूमि में इस रोग का प्रकोप होता है तो उस खेत में कम से कम 6 से 7 साल तक किसी भी  दलहनी फसल की खेती ना करें |मटर के फसल की बुआई नवम्बर के पहले सप्ताह से पहले ना करें |
झुलसा रोग :- इस बीमारी में पौधे के सभी हिस्से पर प्रभावित होते है | लक्षण के तौर पर इस बीमारी में पौधे की पत्तियों की किनारी पर भूरे रंग के धब्बे हो जाते है |
रोकथाम का उपाय :- :- 15 लीटर गौमूत्र में 5 किलो मदार की पत्तियां डालकर उबालें | उबलते हुए जब इसकी मात्रा आधी रह जाये तो इसे छानकर फसल पर तर बतर करके छिडकाव करें |
उपज की प्राप्ति :- मटर की हरी फलियों की लगभग 80 से 120 किवंटल तक की उपज मिल जाती है | इसके आलावा फलियाँ तोड़ने के बाद 150 किवंटल तक का चारा पशुओं के लिए मिल जाता है |
भंडारण
भंडारण 
भंडारण :- ताज़ी और हरी – हरी मटर जिसको छिला ना गया हो उसे 0 डिग्री सेल्सियस के तापमान और 90 से 95 % तक की आद्रता पर कम से कम 2 सप्ताह तक भण्डार गृह में रखा जा सकता है |
  



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