एलोवेरा
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एलोवेरा की खेती करने का तरीका :- एलोवरा को धृतकुमारी या ग्वारपाठा के
नाम से भी जाना जाता है | यह दिखने में एक कांटेदार पौधा लगता है | हमारे भारत में
पुराने समय के वैद्य , हकीम इस चमत्कारी
औषधी से कई बिमारियों का उपचार करते थे | आज के समय में भी एलोवेरा से रोगों को
ठीक किया जाता है | हर व्यक्ति ने एलोवेरा का सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से एलोवेरा
का उपयोग किया है | आयुर्वेदिक औषधी में इसे संजीविनी का नाम दिया गया है | एलोवेरा
यानि धृतकुमारी के गुणों को हम अच्छी तरह से जानते है | इसलिए आयुर्वेद की दुनिया
में इसकी मांग बढ़ती ही जा रही है | इसमें बहुत सारी बीमारियों का इलाज करने के गुण
होते है | इससे त्वचा सम्बन्धीत रोग और बालों से जुडी हुई
समस्या दूर हो जाती है | एलोवेरा के जूस का निरंतर सेवन करने से हमारे शरीर में
स्फूर्ति आती है , और हीमोग्लोबिन की मात्रा भी बढती है हमे एक निरोगी शरीर की
प्राप्ति होती है जिससे हम आना जीवन सुख से व्यतीत करते है | तो आज हम आपको
एलोवेरा की खेती के विषय में जानकारी दे रहे है |
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एलोवेरा
की खेती :- एलोवेरा को एक
बार लगाने पर आप तीन से पांच साल तक इसकी उपज ले सकते है | आप एलोवेरा को खेत में
मेंढ़ बनाकर लगा सकते है | एलोवेरा के पौधे को कोई जानवर नहीं खाता | इससे आपको यह
लाभ है कि इसकी खेती से आप एक अच्छी आमदनी कम सकते है |
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एलोवेरा
की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :- एलोवेरा
को किसी भी प्रकार की जलवायु की आवश्यकता नही है | इसे किसी भी मौसम में उगाया जा
सकता है | लेकिन इसकी फसल में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए |
एलोवेरा उगायें जीवन खुशहाल बनाएँ |
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एलोवेरा
के लिए मिटटी का चुनाव :- एलोवेरा
को अधिकतर अनुपजाऊ भूमि में उगते हुए देखा
है | इसकी खेती किसी भी प्रकार की मृदा में की जा सकती है | लेकिन एलोवेरा
के अच्छे उत्पादन के लिए इसे बलुई दोमट मिटटी में उगाना चाहिए | इसके आलावा एलोवेरा
की उन्नतशील किस्मों को परिक्षण के आधार पर खेतों में उगाया जाता है | जिससे हमे अधिक जैल की प्राप्ति होती है | इसलिए
एलोवेरा को व्यावसायिक रूप से खेतो में उगाया जाता है | जिससे किसानों को अच्छी
आमदनी मिल सके |
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एलोवेरा
के पौधे की रोपाई :- जिस खेत में एलोवेरा
की खेती करनी है उस खेत की मिटटी की कम से कम दो या तीन बार जुताई करें | जुताई
करने के बाद खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल बना लें | भूमि समतल बनाने के बाद इसमें ऊँची उठी हुई क्यारियां बना लें | हर
क्यारियों में 50 * 50 सेंटीमीटर की दुरी पर पौध को रोपे | पौध को रोपते समय इस
बात का ध्यान रखे की हर एक पौध में चार से पांच पत्तियां अवश्य से निकली हुई होनी
चाहिए | एक कतार से दुसरे कतार के बीच की दुरी कम से कम 50 सेंटीमीटर की होनी
चाहिए | एक हेक्टेयर भूमि पर कम से 40,000 से 45,000 पौधो
की जरूरत होती है | एलोवेरा को आप किसी भी मौसम में लगा सकते है | लेकिन यदि आप
इसे फरवरी के महीने में लगत है है तो यह समय इसकी खेती के लिए उत्तम होगा |
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एलोवेरा
की फसल में उर्वरक और खाद का प्रयोग :- एलोवेरा की उत्तम और अच्छे उत्पादन के लिए इसकी फसल में खाद और
उर्वरक का प्रयोग करना बहुत जरूरी होता है | इसके लिए 8 से 10 टन अच्छी तरह से सड़ी
हुई गोबर की खाद को खेत की जुताई करने से पहले डालें | इसके बाद ही खेत की जुताई
करें ताकि खाद मिटटी में अच्छी तरह से मिल जाये | इसके बाद 120 किलोग्राम यूरिया ,
150 किलो फास्फोरस और 33 किलोग्राम पोटाश को एक हेक्टेयर भूमि पर एक समान रूप में
बिखेर दें | नाइट्रोजन का फसलों पर छिडकाव करना अच्छा होता है |
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एलोवेरा
की फसल में सिंचाई करने का तरीका :- एलोवेरा
की पतियों में जैल के अच्छे उत्पादन और गुणवत्ता लेने के लिए इसकी रोपाई के बाद
खेत में पानी से सिंचाई कर दें | एलोवेरा की फसल में साल भर में कम से कम 4 या 5
बार सिंचाई की आवश्यकता होती है | एलोवेरा की फसल में ड्रिप से सिंचाई करनी चाहिए
| इससे जैल की गुणवत्ता बनी रहती है |
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एलोवेरा
की फसल में रोग और कीट पर नियन्त्रण रखने के उपाय :- एलोवेरा की फसल में रोगों को कम प्रभाव होता है
| लेकिन कभी – कभी पत्तियों और तनों को सड़ने और धब्बे जैसी बीमारियों को देखा गया
है | एलोवेरा के पौधे में यह रोग फफूंदी के कारण होता है | पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिय हमे एक साधारण और सरल उपय करना
होता है | जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
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रोकथाम करने
के उपाय :- मैंनकोजेब
रिडोमिल , डाईथेन ऍम 45 की 2.0 से 2. 5 ग्राम की मात्रा में एक लीटर पानी
मिलाकर फसलों पर छिडकाव करें | इस छिडकाव
से पौधे में फफूंदी जनित बीमारी से मुक्ति मिल जाती है | धृतकुमारी के पौधे में
अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है | यदि
खेत में दरार पड़ जाती है तो एलोवेरा की पत्तियां सिकुडकर काली पड़ जाती है | इसलिए
खेत की मिटटी में दरारे नही पड़नी चाहिए | हमेशा खेत में हल्की नमी रहनी चाहिए | बारिश
के मौसम में खेत में पानी भर जाता है तो उसे तुरंत निकालने का प्रबंध करें | अगर खेत से पानी नही निकाला गया तो इसके तने और
जड़ के हिस्से पर एक चिकना पदार्थ जम जाता है जिससे पौधा गलने लगता है | इसे गलने
से बचाने के लिए खेत में पानी का भराव ना होने दें |
Aloe vera Ugayen Jivan Khushhal Bnayen |
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खरपतवार
की रोकथाम :- एलोवेरा के खेत
में समय – समय पर खरपतवार को निकालते रहना चाहिए |यदि खेत में खरपतवारों का प्रकोप
ज्यादा बढ़ने लगे तो खेत में खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करना चाहिए | इसके आलावा
उठी हुई क्र्यारियों में समय – समय पर मिटटी चढाते रहे | ताकि पौधा जमीन में
मजबूती से टिका रहे और पानी के रोकने कि सम्भावना कम हो जाये | मिटटी की परत चढ़ाने
से पौधे को जमीन पर गिरने से बचाया जा सकता है |
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फसल की
कटाई :- एलोवेरा की रोपाई
के लगभग 10 से 15 महीनों में इसकी पत्तियां पूरी तरह विकसित हो जाती है | जिसे हम
काट सकते है | एलोवेरा के पौधे की उपरी और नई पत्तियों की कटाई नहीं करनी चहिये | केवल
नीचे वाले हिस्से की कटाई करें | एलोवेरा की पहली कटाई के लगभग 45 दिन के बाद
दोबारा इसके नीचे वाले हिस्से ई कटाई करें
| इस तरह से एलोवेरा की फसल तीन या चार साल तक फसल ली जा सकती है |
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एलोवेरा
की उपज की प्राप्ति :- एक हेक्टेयर
भूमि पर से हमे एलोवेरा की कम से कम 50 से 60 टन ताज़ी पत्तियों की प्राप्ति होती
है | दुसरे और तीसरे साल में इसकी वृद्धि 16 से 20 % तक बढ़ जाती है | एलोवेरा के
स्वस्थ पौधे में से 400 ग्राम तक गुदा मिल सकता है | इसे बाजार में यदि 100 रूपये
किलो के हिसाब से बेचा जाये तो हमे लाखों रूपये का फायदा होता है |
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कटाई के
बाद प्रबंधन :- एलोवेरा के विकसित पौधे से निकाली हुई
पत्तियों की सफाई करने के बाद इसे साफ पानी से अच्छी तरह से धोकर मिटटी को निकाल लिया जाता है | इन पत्तियों के निचले सिरे को
कटकर कुछ समय के लिय छोड़ दिया जाता है |इसमें से पीले रंग का गाढ़ा रस निकलता है | इस
गधे तरल पदार्थ को किसी बर्तन में इक्कठा कर लिया जाता है | इसे वाष्पीकरण विधि का उपयोग करके उबला लिया जाता है | और घन रस किर्या के प्रयोग से सुखा लिया जाता है | इसके बाद एलोवेरा से बने हुए पदार्थों को
बाजारों में अलग – अलग नाम से बेचा जाता है |
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