गुणों के भण्डार आंवले की खेती | Gunon ke Bhandar Aavanlen ki kheti

आंवला

·        आंवले की खेती करने का तरीका :- आंवला एक अद्वितीय औषधी है | जिसमे अनेकों पौषक तत्व विद्यमान होते है | आंवले में विटामिन सी मात्रा अधिक पाई जाती है | जो हर मनुष्य के शरीर के लिए बहुत जरूरी है | इसके कई लाभकारी गुणों के कारण ही भारतीय साहित्य में इस फल को जीवन दात्री के रूप में माना गया है | अमले का फल एक अमृत के समान होता है | आंवला त्रिदोष होता है यह वात , पित्तनाशक और कफनाशक होता है | इसके उपयोग से शरीर की त्वचा , सिर ,बालों के रोग , आँखों के रोग , दांत , मसूड़े , कब्ज , पेट की बीमारियों को ठीक किया जाता है | अमले का फल औषधियों के गुणों से परिपूर्ण होता है | इससे च्वयनप्राश और त्रिफला जैसी औषधी बनाई जाती है | जिसके उपयोग  से मनुष्य हमेशा बीमारियों से बचा रहता है | आंवले के फल से आचार , मुरब्बा , चटनी , सुखी चिप्स , टाफी और पाउडर आदि सामान तैयार किया जाता है | जिसे मनुष्य रोजाना किसी न किसी रूप में प्रयोग करता है | इसके आलावा आंवला के फल से आमले का तेल और शैम्पू भी बनाया जाता है |जो हमारे बालों को सुंदर बनाता है | आंवले के कम रख रखाव में भी अधिक उत्पादन और आय की प्राप्ति होती है | और दुसरे फलों की तुलना में इसमें मौसम की विपरीत परिस्थिति को सहन करने की क्षमता होती है | आंवले के खेत को कीड़ों से मुक्त रखना चाहिए | आंवले के खेत में लगने वाले कीट और उस पर नियन्त्रण करने के उपाय के बारे में जानकारी दे रहे है |

·        आंवले में लगने वाले कीट :- आंवले की फसल में छाल भक्षी यानि पौधे की छाल खाने वाले कीट , सुंडी , शूट गाल मेकर , स्केल कीट और दीमक आदि कीटों का प्रभाव होता है | इन सभी कीटों के प्रभाव से पौधे को बचाना बहुत आवश्यक है |

1.     छाल खाने वाला कीट ( छाल भक्षी ) :- आंवले की फसल की यदि उचित प्रकार से देखभाल नहीं की जाती तो छाल खाने वाले कीटों का कुप्रभाव इसकी फसल पर पड़ जाता है | इस कीड़े की झिल्ली पौधे की तने और मुख्य शाखाओं में घुस जाती है और अंदर ही अंदर पौधे की छाल को ख़ैर उसमे छेद बना देती है | इसकी पहचान शाखाओं में होने वाले अनियमित छेद को देख कर की जाती है | इसके आलावा इस कीड़े के प्रभाव से पौधे के छेद में रेशमी जालों में चबाई हुई छाल के टुकड़े और बुरादे जैसा चौकलेटी रंग के अवशेष पाए जाते है | इन अवशेषों में इन कीटो के मल भी मिले हुए होते है | इसे पौधे में हुए छेदों द्वारा देखा जा सकता है | इस कीट के कारण आंवले के पौधे की शाखाएं सुख जाती है और पौधा मरा हुआ प्रतीत होता है |
Gunon ke Bhandar Aavanlen ki kheti
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2.     इस कीट की रोकथाम करने का उपाय :- छाल भक्षी कीट के कुप्रभाव को रोकने के लिए सबसे पहले पौधे में हुए छेदों ककी सफाई करें और उसमे एक बारीक़ तार डालकर कीड़ों को मार देना चाहिए | यदि इस कीड़े का अधिक प्रभाव पड़ता है तो छेदों को साफ कर रुई के फोहे को डाईक्लोरवास की 0. 025 % की मात्रा में भिगोकर छेदों में डाल दें | इसके आलावा 10 भाग मिटटी का तेल और एक भाग मेटासिस्टोकस में मिलाकर तैयार घोल को पौधे के छेदों में डालकर गीली मिटटी से छेद को बंद कर दें |
3.     मोनोक्रोटोफास की 0. 05 % या क्लोरपाईरीफास की 0. 05 % की मात्रा के घोल को किसी इंजेक्शन वाली सुई द्वारा डाल दें | और गीली मिटटी से बंद कर दें |

·        शूट गाल मेकर :- इस कीट की छोटी – छोटी झिल्लिया होती है | जो पौधे और पुराने फलदार पेड़ों की शाखाओं के सिरे वाले भाग में छिद्र बनाकर उसके अंदर घुस जाती है | इस कीट के प्रभाव पौधे के जिस भाग पर होता है वह भाग फूल कर एक गांठ के रूप में दिखाई देने लगता है | इस बनी हुई गांठ में काले रंग का कीड़ा पाया है | पौधे में इस बीमारी के  आरंभ में तनो और शाखाओं के आगे वाले भाग में हल्की सी सुजन आ जाती है | जो धीरे – धीरे बड़ी होकर गोलाकार में एक गांठ बन जाती है | इस अवस्था में पौधे की वृद्धि रुक जाती है | जिसके कारण पौधे में पुष्पं और फलं पर बुरा प्रभाव पड़ता है | पौधे में हुई इस बीमारी की रोकथाम करने के निम्नलिखित उपाय है |

·        रोकथाम के उपाय :-   पौधे में इस कीट के प्रकोप को रोकने के लिए पतझड़ ऋतु में या मार्च में महीने में जब पेड़ो के पत्ते पूरी तरह से झड़ जाते है तो इस बीमारी की पहचान आसानी से की जा सकती है | गांठ वाली शाखाओं को समय – समय पर काट कर कीड़ों शीत जला दें | इससे पौधे में रुकी हुई बढवार दोबारा शुरू हो जाती है |

·        सूट गाल मेकर :- इस कीट की मादाएं कई महीनों में रात के समय अंडा देकर भाग जाती है | इस अवस्था में डाईमेंक्रान की 3 मिलीलीटर की मात्रा में 10 लीटर पानी मिलाकर एक घोल बनाएं | इस घोल को पौधे पर छिडकने पर कीट द्वारा दिए गये अंडे और गिडारे समाप्त हो जाती है | भारत ,ए जिस भाग में इस बीमारी का अधिक प्रकोप रहता है | वंहा मौसम के शुरू होते ही मोनोक्रोटोफास या पेराथियान कीटनाशक दवा का 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में 10 लीटर पानी मिलाकर एक घोल तैयार करें | इस तैयार घोल को किसी पम्प में डालकर पौधे पर अच्छी तरह से छिडकाव करना चाहिए | यदि इसका एक बार छिडकाव करने से भी पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक नहीं होती है तो आवश्यकता पड़ने पर इस घोल का दूसरा छिडकाव कम से कम 15 दिन के अंतर पर करें |
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·        जुलाई – अगस्त के महीने में मोनोक्रोटोफ़ॉस की 1.25 मिलीलीटर की मात्रा में एक लीटर पानी मिलाकर घोल बनाये | या फास्फेमिडान 0. 6 मिलीलीटर में एक लीटर पानी मिलाकर घोल बनाये | इन दोनों घोल में से किसी एक घोल को किसी पम्प में भरकर पौधे पर छिडकाव करें | इस छिडकाव से काफी  हद तक पौधो को नुकसान से बचाया जाता है |

·        शल्य कीट - इस कीट का कुप्रभाव फरवरी – मार्च के महीने में अधिक होता है | इस कीट के प्रभाव से आंवले के पौधे की पत्तियों पर चीटे लग जाते है | इस कीट का आकार बहुत ही छोटा होता है और इसका रंग हल्का पीला होता है | ये कीट एक झुण्ड बनाकर पौधे को हानि पंहुचाते है | इस कीट के झुण्ड के झुण्ड पौधे की पत्तियों, टहनियों और फूलों पर छिपके रहते है | और उनका रस चूसते रहते है | ये कीट सफेद रुई जैसे किसी पदार्थ से ढके हुए रहते है | शिशु कीट में से एक मीठा तरल पदार्थ निकलता है जिससे काले रंग की फफूंदी जम जाती है | इस फफूंदी के जमने के कारण पौधों में प्रकाश संस्लेषण की प्रिकिया रुक जाती है | जिसके कारण पौधे की वृद्धि रुक जाती है | इसके अधिक प्रकोप होने से पौधा सुख जाता है और उपज की बहुत ही कम प्राप्ति होती है |  इस रोग को नियन्त्रण करने के लिए निम्नलिखित उपाय है |

1.     इस कीट की रोकथाम करने के लिए रोगर , डेमाक्रान में से किसी भी एक कीटनाशक दवा की 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में 10 लीटर पानी मिलाकर एक अच्छा सा घोल तैयार करें | तैयार् घोल का पौधो पर छिडकाव करने से कीट जमीन पर गिर जाते है | यदि दोबारा ये कीट पौधे पर आक्रमण करते है तो इस दवा का छिडकाव करें | छिडकाव करते समय पौधो की थालों एक पास कीटनाशक दवा का छिडकाव एक सप्ताह में एक बार जरुर करें | आंवले के खेत में खरपतवार को उगने ना दें | नहीं तो ये कीट पौधे को छोडकर इन खरपतवार पर चले जांएगे | जिससे कीटनाशक दवा का असर कम हो जाता है | और दोबारा इन कीटों का कुप्रभाव पौधों पर हो जाता है |

·        दीमक :- दीमक लगना बहुत बड़ी समस्या है | दीमक लगने के से छोटे – छोटे पौधों पर बुरा प्रभाव पड़ता है |इसलिए पौधे को लगाते समय  खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए | गड्ढो को भरते समय और पौधे को लगाते समय 50 मिलीलीटर कलोरपाईरिफस 20 ई. सी. को 5 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाये |  इसे प्रति गड्डे के हिसाब से सभी गड्डों में दाल दें | कीटनाशक दवाई का घोल डालने से पहले हर एक गड्डे में 2 या 3 बाल्टी पानी लगा दें | एक लीटर एंडोसल्फान 35 ई . सी. को एक एकड़ भूमि पर पौधे को लगाने के बाद डालकर सिंचाई करें | यदि आप इस प्रकार की विधि का उपयोग करके आंवले की खेती करते है तो आप अपनी फसल को कीटों के कुप्रभाव से बचा सकते है और एक अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते है | 
Aavanle ki Kheti Kaise Karen
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