तुलसी की खेती कैसे
करें
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शाखाओं के द्वारा :- तुलसी का प्रसारण बीज के आलावा तुलसी की टहनी को काटकर भी किया जाता
है | तुलसी की टहनी की 10 से 15 लम्बी शाखाओं को काटकर उन्हें छाया में रखकर सुबह –
शाम के समय हजारे से पानी दें | केवल; एक महीने में तुलसी के पौधे की जड़ें भूमि
में विकसित हो जाती है | जब तुलसी के पौधे की जड़ें और पत्तियां निकलने लगे तो हम
इसकी रोपाई कर सकते है |
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पौधों की रोपाई करने
का तरीका :- तुलसी के पौधे को जुलाई के पहले सप्ताह में बोना
चाहिए | यह समय इसकी बुआई के लिए अच्छा होता है | जब तुलसी के पौध तैयार हो जाते
है तो उन्हें 45 *45 सेंटीमीटर की दुरी पर
रोपाई करें | पौधे की रोपाई करने के बाद हल्की
सिंचाई करें | यदि हम आर. आर. एल. ओ. सी
नामक उन्नतशील किस्मों की रोपाई कर रहे है तो इसे 50 *50 सेंटीमीटर की दुरी की
दुरी रखे | तुलसी की रोपाई के लिए केवल स्वस्थ पौधे का चुनाव करना चाहिए | ताकि
पैदावार अच्छी हो |
तुलसी की खेती करने का सही तरीका |
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खाद और उर्वरक का
प्रयोग :- तुलसी की अच्छी वृद्धि और उपज के लिए इसकी
फसल में खाद और उर्वरक का उपयोग करना चाहिए | इसके लिए 200 से 250 किवंटल अच्छी
तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद को पहली जुताई के समय खेत में बराबर
मात्रा में बिखेर दें | इसके बाद ही खेत की जुताई करें ताकि खाद अच्छी तरह से मिटटी
में मिल जाये| इसके आलावा तुलसी की बुआई करते समय 50 किलो गोबर की खाद में 1
किलोग्राम ट्राईकोडरमा मिलाकर खेत में बिखेर दें और बुआई करें | ऐसा करने से हमे
तुलसी की अच्छी फसल और अधिक उपज की प्राप्ति होती है|
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तुलसी के रासायनिक
खाद का प्रयोग :- खेत में आखिर की जुताई करते समय 100
किलोग्राम यूरिया , 500 किलोग्राम सुपर फास्फेट और 125 किलो म्यूरेट ऑफ़ पोटाश को
एक हेक्टेयर के हिसाब से भूमि मे मिला दें | यूरिया की 150 किलोग्राम की मात्रा को
तीन बार खेत में डालना चाहिए | पहली बार 50 किलोग्राम की मात्रा को रोपाई के 20
दिन के बाद , दूसरी बार 25 दिन के बाद और
तीसरी बार कटाई के बाद एक समान मात्रा में डालें | यूरिया की खाद को बड़ी ही
सावधानी से डाले | इसे पौधे की पत्तियों पर नही डालें | और खेत की भूमि में नमी
बनी रहनी चाहिए |
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तुलसी की फसल में
सिंचाई :- तुलसी की फसल में नियमित रूप से सिंचाई करना
बहुत आवश्यक होता है | पौध रोपण के तुरंत बाद ही हल्की सिंचाई करनी चाहिए | इसके
बाद एक सप्ताह में एक बार सिंचाई करें | गर्मी के मौसम में अधिक गर्मी होने के
कारण भी एक महीने में कम से कम दो बार सिंचाई अवश्य करें | फसल तैयार होने के बाद
और फसल कटने से पहले कम से कम 10 दिन पहले फसलों में सिंचाई करना बंद कर दें | ताकि
फसल को आसानी से काटा जा सके | फसल की कटाई के तुरंत बाद ही खेत में अच्छी तरह से
सिंचाई कर दें |
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खरपतवार को दूर करना
:- तुलसी की फसल में अनचाहे रूप से छोटे – छोटे
खरपतवार उग जाते है | जो भूमि से उर्वरक शक्ति को अवशोषित कर लेती है | इन उगे हुए
खरपतवार से उपज में भी बहुत कमी आती है | अतः इन्हें खेत में से निकालना बहुत आवश्यक
है | इसके लिए पौध की रोपाई करने से 15 से 20 दिन के बाद निराई – गुड़ाई करके खेत
को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए | दूसरी बार 50 दिन के बाद खेत में निराई और गुड़ाई
करें | यदि हमे तुल्सकी की फसल की एक बार कटाई करनी है तो फसल के पकने तक के समय
में 2 या 3 बार निराई – गुड़ाई करनी चाहिए | और यदि तीन बार कटाई करनी है तो 10 दिन
के बाद के बाद खेत से खरपतवार को निकालना चाहिए | जिस भूमि पर तुलसी की फसल उगाई
गई हो उस भूमि को हमेशा खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए |
Tulsi ki Kheti Karne ka Sahi Tarika |
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फसल की कटाई :- तुलसी के पौधे की कटाई उसके तेल की मात्रा पर प्रभाव डालती है | इसलिए
तुलसी की कटाई किस समय करनी चाहिए यह एक महत्वपूर्ण सवाल है | जब पौधे की पत्तियों
का रंग हरा होना शुरू हो जाये तो उस समय कटाई की जा सकती है | तुलसी के पौधे की
कटाई भूमि की सतह से 15 से 20 मीटर की ऊंचाई से करनी चाहिए | इस तरह से कटाई करने पर पौधे में नई शाखाएं जल्दी ही
निकल जाती है | तुलसी के पौधे को दरांती की मदद से काटना चाहिए | कटाई करते समय
यदि तने पर कुछ पत्तियां रह जाती है तो उन्हें छोड़ देना चाहिए | तुलसी के पौधे में
जब फूल आने लगते है तो इसमें तेल की मात्रा कम हो है | इसलिए जिस समय फूल आने लगे
तुलसी के पौधे की पहली कटाई कर दें | तुलसी की उन्नतशील किस्म जिसका नाम आर. आर .
एल . ओ. पी. है, इस किस्म की फसल की कटाई तीन बार की जाती है | पहली जून में दूसरी
सितम्बर में और तीसरी नवम्बर के महीने में | इस किस्म की फसलो की कटाई भूमि से 30 सेंटीमीटर
ऊपर से छोडकर काटना चाहिए |
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तुलसी की फसल की
आसवन विधि :- इस विधि से तुलसी का तेल निकाला जाता है | आसवन
विधि को ताज़ी अवस्था में करना चाहिए, नहीं तो इसके तेल की मात्रा और गुणवत्ता में
कमी आ जाती है | इस कारण से तुलसी का तेल निकालने के लिए बड़े पैमाने पर टैंकों के
मध्यम ने तेल निकाला जाता है | आसवन विधि में कटी हुई फसलों को अवन यंत्रों में
भरकर उसे 3 से 4 घंटों के लिए वाष्प देते है | इससे 0.5 से 0.6 %तेल की मात्रा
निकल आती है | इसके तेल की मात्रा तुलसी की किस्मो पर भी आधरित होती है | यदि
उन्नतशील किस्मों की फसलें ली है तो उन्हें 2 से 3 घंटे तक वाष्पीकरण करना चाहिए |
तेल की हरी फसल के वजन से 0. 45% या इससे अधिक तेल की प्राप्ति होती है | एक
हेक्टेयर की भूमि पर से तुलसी की फसल में से लगभग १६५ से १७० किलोग्राम तेल निकाला
जाता है | आसवन विधि के उपयोग के बाद बची हुई पतियों को खाद बनाने के रूप में
प्रयोग कर लिया जाता है | इससे हार्डबोर्ड बनाएं जाते है | इसके आलावा इसकी सुखी
हुई लकड़ियों को इंधन के रूप में जलाने के लिए प्रयोग कर लिया जाता है |
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उत्पादन :- तुलसी से हमे पहले साल में 400 किवंटल शाकीय उत्पादन मिलता है | और
बाद के सालों में 700 किवंटल शाकीय फसल एक हेक्टेयर भूमि से मिलता है | जो की हर
एक किसान की आमदनी के लिए लाभदायक है |
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