रजनीगंधा के फूल की खेती करने का उत्तम तरीका | Rajnigandha ke Phul ki Kheti Karne ka Uttam Tarika

रजनीगंधा की खेती करने का तरीका :- 

रजनीगंधा एक फूल का नाम है | यह एक खुशबूदार फूल है | जो भारत में हर राज्य हर गाँव में पाया जाता है |रजनीगंधा का फूल मनमोहक हल्की – हल्की खुशबु और अधिक समय तक ताज़ा रहने के कारण से इसका फूलों में एक महत्वपूर्ण स्थान है | इसे दूर स्थानों तक ताज़ी अवस्था में पहुँचाया जा सकता है | रजनीगंधा को अलग – अलग भाषा में अलग – अलग नामों से जाना जाता है | 

जैसे :-
1.उर्दू में :- गुल- ए – शब्बो
2.अंग्रेजी और जर्मन भाषा में :- रजनीगंधा को ट्युबेरोजा
3.फ्रेंच में - ट्युबेरेयुज 
4.इतावली और स्पेनिश भाषा में :- टयूबेरुजा के नाम से जाना जाता है | कंही इसे अनजानी और सुगंध्राज के नाम से भी जाना जाता है |
रजनीगंधा के फूल की खेती करने का उत्तम तरीका
रजनीगंधा के फूल की खेती करने का उत्तम तरीका
·     रजनीगंधा का बाह्य स्वरूप :- रजनीगंधा का फूल फनल के आकार का होता है और इसके फूल का रंग सफेद होता है | तो आज रजनीगंधा के फूल की खेती के विषय में जानकारी दे रहे है |

·     रजनीगंधा  की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :- रजनीगंधा एक शीतोष्ण जलवायु का पौधा है |लेकिन ओसत जलवायु में इसकी खेती सालभर कि जा सकती है |  रजनीगंधा के उचित विकास और वृद्धि के लिए मौसम का तापमान 20 से 30 डिग्री का होना चाहिए | ऐसे स्थान जंहा दिन और रात के तापमान में अधिक अंतर ना हो उन स्थानों पर सारे साल इसकी खेती की जाती है | रजनीगंधा को व्यावसायिक रूप से पश्चिमी बंगाल , कर्नाटक , तमिलनाडू , महाराष्ट्र . उत्तरप्रदेश , हरियाणा , पंजाब और हिमाचल प्रदेश में खेती कि जाती है | भारत के मैदानी भागों में इसे अप्रैल से सितम्बर के महीने में उगाया जाता है | जबकि पहाड़ी भागों में जून से सितम्बर के महीने में फूल निकलने लगते है | रजनीगंधा के पौधे को कंद द्वारा उगाया जाता है | इसके पौधे पर  80 से 90 दिनों के बाद फूल आने लगते है |

·     रजनीगंधा की  खेती करने के लिए उपयुक्त भूमि का चुनाव :- रजनीगंधा को हर किस्म कि मिटटी में उगाया जा सकता है | लेकिन दोमट मिटटी और बलुई दोमट मिटटी में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है | जिस खेत कि भूमि में इसकी खेती की जाती है उस खेत की भूमि में वायु का संचार अच्छा होना चाहिए और साथ ही साथ जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए|  यदि खेत की भूमि का पि. एच . मान 6.5 से लेकर 7.5 का हो तो इसकी खेती के लिए अति उत्तम होता है | रजनीगंधा की खेती करने के लिय भूमि का चुनाव करते समय निम्नलिखित दो बातों का ध्यान अवश्य रखे |

१, खेत या उसमे बनी हुई क्यारी पर किसी भी प्रकार की छाया नहीं होनी चाहिए | खेत में सुबह से शाम तक भरपूर मात्रा में सूरज का प्रकाश होना चाहिए |

२, खेत की क्यारियों में जल निकास का उचित प्रबंध होना चाहिए |

खेत की तैयारी करना  :- रजनीगंधा की खेती करने से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लें और साथ ही उसमे जल निकासी के लिए उचित प्रबंध करें | इसके लिए सबसे पहले खेत , क्यारी और गमले की मिटटी को मुलायम और बराबर कर लें |  जैसा कि हम जानते है कि रजनीगंधा के पौधे कंद के द्वारा उगते है तो इसके कंद के समुचित विकास के लिए खेत की तैयारी विविध प्रकार से करनी चाहिए |  रजनीगंधा के खेत में खरपतवार नहीं होना चाहिए | यदि खरपतवार उग जाते है तो निराई करते समय कठनाई हो सकती है | इसलिए रजनीगंधा के खेत को खरपतवार से मुक्त रखे |


·     रजनीगंधा की किस्में :- रजनीगंधा के पौधे के फूल , आकार , - प्रकार और रंग के आधार पर इसकों तीन भागों में बांटा गया है |

·     सिंगल :- इसके फूलों का रंग सफेद होते है और पंखड़ियों की केवल एक ही लाइन होती है | इस किस्म में मेक्सिकन सिंगल , कलकत्ता सिंगल , और मेक्सिकन एवरब्ल्युमिंग के नाम से भी जाना जाता है |

·     डबल :- इसे कलकत्ता डबल के नाम से पहचान मिली है | इसके फूल का रंग सफेद है और पंखड़ियाँ कई लाइनों में सजी हुई होती है | इससे फूल का केंद्र बिंदु दिखाई नहीं देता |  इन  पंखड़ियों का उपरी सिरा हल्का गुलाबी रंग का होता है |  

·     अर्ध डबल :- यह डबल किस्म कि तरह ही होती है | इस किस्म को स्वर्णलता और रजतरेखा भी कहते है | इस किस्म में पंखड़ियों कि संख्या कम होती है |  और पंखड़ियों कि केवल 4 या 5 लाइन ही होती है | यह अपने आकर्षक रंग और विविधता के कारण बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय है |

·     रजनीगंधा के बीजों की बुआई करने का तरीका :- रजनीगंधा के कंदों का रोपण मार्च – अप्रैल या मई के महीने में किया जाता है | बुआई के लिए हमेशा स्वस्थ और ताज़े कंद ही उपयोग करना चाहिए | रजनीगंधा की सालभर फूल लेने के लिए हर 15 दिन के बाद कंद का रोपण करना चाहिए | कंद के २ सेंटीमीटर के व्यास के आकार या उससे बड़ा हिस्सा काट कर रोपण के लिए प्रयोग करें | भूमि की संरचना के अनुसार 5 से 8 सेंटीमीटर की गहराई में कंदों की बुआई करें | इसकी बुआई करते समय दूरी का ध्यान रखे | एक कतार से दुसरे कतार की दुरी 25 से 30 सेंटीमीटर कि रखें और एक कंद से दुसरे कंद की  बुआई 10 से 12 सेंटीमीटर की दुरी पर करें |  रोपण करते समय भूमि में नमी होनी चाहिए | इसलिए खेत में रोपण करने से पहले ये सुनिश्चित कर लें कि भूमि में पर्याप्त मात्रा में नमी है या नहीं |
Rajnigandha ke Phul  ki Kheti Karne ka Uttam Tarika
Rajnigandha ke Phul  ki Kheti Karne ka Uttam Tarika
·     रोपण के लिए कंदों कि मात्रा :- रजनीगंधा को एक हेक्टेयर भूमि पर बोने के लिए  लिए कम से कम 1200 से 1500 किलो कंद की अवश्यकता होती है |

·     रजनीगंधा की फसल में खाद और उर्वरक का प्रयोग :- रजनीगंधा के फूलों की  अच्छी उपज लेने के लिए इसके पौधे में आर्गनिक खाद और कम्पोस्ट खाद का डालना बहुत आवश्यक है | इसके लिए एक एकड़ भूमि पर 25 से 30 टन सड़ी हुई गोबर की खाद भूमि में एक समान मात्रा में बिखेर दें | इसके आलावा कम्पोस्ट खाद , फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा को रजनीगंधा के रोपण के समय ही खेत में डाल दें |  इसके बाद नाइट्रोजन को तीन हिस्सों में बाँटकर प्रयोग करें | नाइट्रोजन को पहली बार रोपाई से पहले खद के साथ मिलाकर भूमि में डालें | दूसरी बार लगभग 60 दिन के बाद और तीसरी बार नाइट्रोजन का प्रयोग उस समय करें जब पौधे पर फूल आने लगे |

·     सिंचाई करने का तरीका :- रजनीगंधा की खेती जिस खेत में की जाती है उस खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए | कंदों के रोपण करने के बाद जब इसमें से आंखे निकलने लगे तो उस समय खेत में सिंचाई नहीं करनी चाहिए | रजनीगंधा के पौधे कि सिंचाई मौसम की दशा फसल की वृद्धि और भूमि के प्रकार को ध्यान में रखकर करनी चाहिए | गर्मी के मौसम में इसकी फसल में एक सप्ताह में एक बार सिंचाई अवश्य करें | जबकि ठण्ड के मौसम में 10 से 12 दिन के समय अंतराल पर एक बार सिंचाई करना अनिवार्य है |

·     रजनीगंधा की फसल को खरपतवार से मुक्त करने के लिए :- इसकी फसल में महीने में एक बार निराई करनी चाहिए | निराई करने के लिए खुरपी से छोटे – छोटे घास या पौधे को उखाड़ देना चाहिए | इससे रजनीगंधा की फसल का अच्छा उत्पादन मिलता है |

·     रजनीगंधा की फसल में लगने वाले कीट और उसकी रोकथाम के उपाय :- वैसे तो रजनीगंधा केपौधे पर किसी भी प्रकार का रोग और कीटों का प्रभाव नहीं पड़ता | लेकिन यदि प्रभाव होता भी हो इससे बचने के लिए एक उपाय  है जो बहुत सधारण और सरल है | जिसका वर्णन इस प्रकार से है |

·     रोकथाम का उपाय :- नीम का काढ़ा बनाकर उसमे गौमूत्र मिलाकर एक अच्छा सा मिश्रण तैयार करें | इस मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को एक लीटर पानी के साथ मिलाकर फसलों पर तर बतर करके छिड़काव करने से पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक हो जाती है | 

·     फसल पकने के बाद कटाई :- रजनीगंधा के पौधे में से 3 या 4 महीने में फूल आने लगते है |  इसके फूलों को प्राप्त करने के लिए पौधे की एक पूरी स्पाईक (यानि एक टहनी )   काटकर अलग कर ली जाती है | कटाई करने से पहले उस पर एक या दो जोड़े फूल खिले हुए होने चाहिए | यदि हमे लूज फूलों कि जरूरत है या उनसे तेल प्राप्त करना है तो उसके लिए स्पाईक को उस समय जोड़े जब फूल पूरी तरह से खिले हुए हों | प्रत्येक दिन रजनीगंधा के पौधे में से 3 या 4 स्पाईक तोड़े जा सकते है | इस तरह से एक हेक्टेयर भूमि पर से कम से कम 40 किलोग्राम स्पाईक प्राप्त हो जाती है |

·     उपज की प्राप्ति :- रजनीगंधा की खेती करने से हमे प्रति वर्ष बढकर फसल प्राप्त होती है | जैसे :- पहले साल में हमे 150 से 200 किवंटल एक हेक्टेयर भूमि पर से मिलते है और दुसरे साल में हमे इसकी मात्रा 200 से 250 किवंटल मिलती है | दुसरे साल के बाद रजनीगंधा की पैदावार घट जाती है | इसकी फसल से हमे एक हेक्टेयर भूमि पर से २ से 3 लाख  स्पाईक प्राप्त होती है | इसके आलावा 15 से २० टन कंद और 15 से २० टन लूज फ्लावर कि प्राप्ति होती है | जिससे हम अतिरिक्त आमदनी कमा सकते है | 
 Rajnigandha Ki Fasal ke liye Upyukt Bhumi
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