खीरा की खेती करने का तरीका,Khira Ki Kheti Krne Ka Trika|

Khira  Ki Kheti Krne  Ka Trika
Khira  Ki Kheti Krne  Ka Trika

खीरे की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु :- खीरे को शीतोष्ण और उप्शीतोष्ण भागो में उगाया जाता है | खीरा एक ऐसी फसल है जो कम समय में पककर तैयार हो जाती है | इसकी फसल बोने के लगभग 60 से 70 दिनों में पकाकर तैयार हो जाती है | खीरा ठंड के मौसम में वृद्धि नही करता | यह पाले को भी सहन नही कर सकता | ज्यादा बारिश , आद्र मौसम और बादल के घेराव होने से इसकी फसल में कीटों और रोगों का आक्रमण बढ़ जाता है | इसके आलावा अधिक प्रकाश और तापमान के घटाव और बढ़ाव से खीरे की फसल को नुकसान होता है | जब प्रकाश और तापमान अधिक होता है तो खीरे के नर फूल अधिक निकलते है और मादा फूलो की संख्या कम हो जाती है | जिसके कारण खीरे ई हमे बहुत कम उपज प्राप्त होती है | इसकी खेति के लिए बारिश का मौसम बेहतर होता है | इस मौसम में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है |

खीरे की खेती करने के लिए भूमि का चुनाव :- खीरे की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है | लेकिन रेतीली दोमट मिटटी और दोमट मिटटी इसकी खेती के लिए सर्वोतम होती है | क्योंकि या जिवांश युक्त मिटटी होती है जिसमे उचित जल निकास की क्षमता होती है | खीरे को अधिक अम्लीय और क्षारीय भूमि पे नहीं उगाया जा सकता | लेकिन साधारण अम्लीय और क्षारीय भूमि में इसकी खेती संभव है |

Khira Ki Kheti Ke Liye Uchit Jalvayu
Khira Ki Kheti Ke Liye Uchit Jalvayu

खेत की तैयारी :- खेत को तैयार करने के लिए इसकी जाती मिटटी पलटने वाले हल से करें | हर एक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगायें | जब खेत की मिटटी समतल और भुरभुरी हो जाये तो खेत में बुआई कर सकते है |

खीरे की किस्में :- जापानी लौंग ग्रीन :- यह खीरे की अगेती किस्म है | इसके फल 30 से 40 सेंटीमीटर लम्बे होते है | इसका रंग हर होता है और इसका गुदा हल्का हरा और कुरकुरा होता है | यह बुआई के लगभग 45 दिन में  पककर तैयार हो जाती है |

1. चयन :- यह मध्यम पछेती और कठोर किस्म होती है | इस किस्म का हर एक फल की लम्बाई लगभग 40 सेंटीमीटर की होती है और इसका आकार सीधा, बेलनाकार होता है  | इस किस्म के खीरे का रंग हरा होता है जिस पर सफेद रंग का काटें होते है |  इसका गुदा सफेद और कुरकुरा होता है | चयन नामक किस्म से हमे सबसे अधिक उपज  प्राप्त होती है |

2. स्ट्रेट एट :- इस किस्म के फल का रंग हरा होता है | फल लम्बे और मोटे होते है | इसका आकार सीधा और बेलनाकार होता है | यह एक अगेती किस्म है |

Khira Ki Unnat Kismen
Khira Ki Unnat Kismen

3. पोइनसट :- इस किस्म के फल के छिलके  का रंग हरा होता है | यह लम्बे और सीधे आकार की होती है | इस किस्म में विशेष बात यह है की इसमें  मृदु रोमिल नामक रोग का प्रभाव नहीं होता |

4. भारतीय किस्मे :-पूना खीरा , पंजाब सलेक्शन और खीरा आदि 

खीरे की संकर किस्मे :- खीरे की इस किस्म के फल का आकार लम्बा और बेलनाकार होता है और इसका रंग गहरा हरा होता है जिस पर पीले रंग के काटें होते है | इस किस्म का गुदा कुरकुरा होता है | इस किस्म को बोने से हमे अधिक उपज प्राप्त होती है | जो किसानो के लिए लाभदायक होती है | इसे जापानी किस्म कागा ओमेगा पुशिनावी और इटावली किस्म ग्रीन लैंड ऑफ़ नेपल्स के संस्करण से निकाला गया है | यह खीरे की बहुत अच्छी किस्म मानी जाती है |

प्रिया :- खीरे की इस किस्म का विकास इंडो – अमेरिका हाईब्रिड सीड कम्पनी बंगलौर के द्वारा किया गया है | इस किस्म की खेती करने से हमे अधिक पैदावार मिलती है |  

खीरे की कुछ आधुनिक किस्मे :-

 पी. सी.यू. एच. -1 :-           

पूसा उदय :- खीरे की इस किस्म  को बसंत , गर्मी और वर्षा ऋतु में उगाया जा सकता है | इसके फल चिकने और हल्के हरे रंग के होते है | पोइन सट नामक किस्म से हमे 36 प्रतिशत से अधिक उपज मिलती है | इस किस्म की खेती करने से हमे लगभग 100 से 110 किवंटल प्रति एक हेक्टेयर की उपज मिलती है | पूसा उदय नामक किस्म का विकास कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के द्वारा किया गया है |

स्वर्ण पूर्णा :- इसका फल कठोर और मध्यम आकार का होता है | स्वर्ण पूर्णा में चूर्णी फफूंदी का रोग का प्रयोग कम होता है | इस किस्म का विकास केन्द्रीय बागवानी परिक्षण केंद्र रांची के द्वारा किया गया है |  इस किस्म की खेती करने से हमे 300 से 350 किवंटल प्रति हेक्टयर की उपज प्राप्त होती है |

स्वर्ण शीतल :- खीरे की इस किस्म पर चूर्णी फफूंदी और एन्थ्रोक्नोज नामक रोग का प्रकोप नहीं होता |  इस किस्म का विकास केन्द्रीय बागवानी परिक्षण केंद्र रांची के द्वारा किया गया है |  इस किस्म की खेती करने से हमे 250  से 300  किवंटल प्रति हेक्टयर की उपज प्राप्त होती है |
Khira Mein Lagne Vale Rog or bachaav
Khira Mein Lagne Vale Rog or bachaav

खीरे की बीज की मात्रा :- एक हेक्टेयर भूमि पर 2. 5 से 3. 5 किलोग्राम बीज की मात्रा काफी होती है |

बीज की गहराई :- खीरे के बीज को कम से कम 1. 0 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए |

एक कतार से दुसरे कतार की बीच की दुरी कम से कम 150 सेंटीमीटर की होनी चाहिए और  एक पौधे से दुसरे पौधे के बीच की दुरी 50 से 60 सेंटीमीटर की रखे |

खीरे की बुआई :- खीरे की खेती इसकी किस्मो के आधार पर की जाती है | इसकी किस्मों को मुख्य रूप से दो भागों में बाटा गया है | गर्मी के मौसम की फसल और बारिश के मौसम की फसल | गर्मी के मौसम की किस्मों के पौधे बहुत अधिक फैलते है | जिसे घ्रनिक कहते है | जबकि बारिश के मौसम की किस्मों के फल बड़े होते है | ये किस्मे पुरे भारत में उगाई जाती है | भारत के उत्तर मैदानी भागों में गर्मी के मौसम की फसल की बुआई जनवरी से मार्च के महीने में की जाती है | वर्षा ऋतु की फसल लेने के लिए इसकी बुआई के लिए जून या जुलाई का महिना उत्तम माना जाता है | भारत के जिस भाग में पाला नहीं पड़ता उस क्षेत्र में खीरे की बुआई अक्टूबर के महीने में की जाती है | इससे हमे मार्च की अगेती फसल प्राप्त होती है | खीरे की बुआई के लिए ये सभी समय उपयुक्त होते है |

खीरे की खेती करने के लिए खाद का प्रयोग :-

आर्गनिक खाद :- खीरे की अच्छी पैदावार और अच्छे उत्पादन करने के लिए इसकी खेती में कम्पोस्ट खाद और आर्गनिक खाद का प्रयोग करना बहुत जरूरी होता  है | इसके लिए लगभग 40 से 50 किवंटल अच्छी तरीके से सड़ायी गई गोबर की खाद , आर्गनिक खाद , 2 बैग भू पावर 40 किलोग्राम , 2 बैग माइक्रो फर्ट सिटी कम्पोस्ट 40 किलोग्राम 2 बैग माइक्रो नेम 20 किलो , 2 बैग सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट की 10 किलोग्राम की मात्रा ,2 बैग माइक्रो भू पावर की 10 किलोग्राम की मात्रा और 40 किलोग्राम अरंडी की खली आदि | इन सभी खादों को आपस में अच्छी तरह से मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | खाद के इस मिश्रण को खेत में आखिर की जुताई करने से पहले एक समान मात्रा में बिखेर दें | इसके बाद जुताई करें | ताकि खाद मिटटी में अच्छी तरह से मिक्स हो जाये | इसके बाद ही खेत में बुआई करें | बीज बोने के 20 से 25 दिन के बाद माइक्रो झाझम की 400 मिलीलीटर और दो किलो सुपर गोल्ड मैग्नीशियम 500 ग्राम को आपस में मिला लें | इस मिश्रण में 400 लीटर पानी मिलाकर फसलों पर छिडकाव करें | इस प्रकार के छिडकाव को महीने में दो बार करें |
Khira Ki Fasal Mein Pryog Hone Vali Khad
Khira Ki Fasal Mein Pryog Hone Vali Khad 

सिंचाई करने का तरीका :- खीरे की फसल में गर्मी के मौसम में 2 से 3 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए |

खरपतवार की रोकथाम करने के लिए :- जब बेल की वृद्धि होने लगे तो निराई और गुड़ाई करनी चाहिए | इससे पौधे में अच्छा विकास और वृद्धि होती है और फलों का भी अच्छा विकास होता है | जब बेल की पूरी तरह से वृद्धि हो जाये तो उसमे उगे हुए बड़े – बड़े खरपतवार को हाथ से उखाड़कर फेक देना चाहिए |

कीट की रोकथाम के लिए :-

एफिड :- ये कीट बहुत ही छोटे आकार के होते है जिसका रंग हरा होता है | इन कीटों की संख्या बहुत जल्दी बढ़ जाती है | एफिड नामक कीट पौधे के कोमल भागों का रस चूस लेता है | इससे पौधे की हरी – हरी पत्तियाँ पीली पड़ जाती है | इसके कारण इसकी वृद्धि रुक जाती है | यह कीट विषाणु फैलाने का भी काम करते है | इसलिए इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी है |

रोकथाम का उपाय :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस एफिड नामक कीट का प्रभाव दूर हो जाता है |

रोग्रासत खीरा
रोग्रासत खीरा 

फल को नुकसान पंहुचाने वाली मक्खी :- इस मक्खी का आकार घर में पाई जाने वाली मक्खी की तरह होता है | यह फलों में छेद करके उसमे प्रवेश कर जाती है और उसी में अंडे दे देती है | जो फल के बाहर आकर फुट जाते है | उन अंडे में से निकले मैगेट फल के अंदर ही रह जाते है | जो धीरे – धीरे वृद्धि करते है | ये कीट फल के गुदे वाले भाग से अपना भोजन प्राप्त करते है | डेक्स वंश की कुछ मक्खियाँ बहुत से बेल के वर्ग की सब्जियों को नुक्स्सन पंहुचाता है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है |

रोकथाम का उपाय :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से फलों को हानि पंहुचाने वाली मक्खी  का प्रभाव दूर हो जाता है |

रेड पम्पकिन बीटल :- यह कीट अधिकतर बेलों को ही हानि पंहुचाता है | इस कीट का रंग लाल होता है | और इसकी लम्बाई लगभग 5 से 8 सेंटीमीटर की होती है | जब फसलों में पहला अंकुरण होता है उसी समय इस कीट का प्रभाव दिखने लगता है | यह पौधे की हरी पत्तियों के बीच का भाग खा जाता है | जिसके कारण पत्तियां मुरझा जाती है |

रोकथाम करने के लिए :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से रेड पम्पकिन बीटल का प्रभाव दूर हो जाता है |

एपिलैकेना बीटल :- यह कीट दो रूपों में पाया जाता है | शिशु और प्रौढ़ | ये दोनों ही अवस्थाओं में बेलों पर आक्रमण करते है | शिशु वर्ग पौधे की पत्तियों को खा जाते है | ज्यादतर इनका आक्रमण पौधे की पत्तियों पर ही होता है | यह पत्तियों को खाकर एक फीते के रूप में बना देते है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |

 रोकथाम का उपाय :-   गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से एपिलैकेना बीटल का प्रभाव दूर हो जाता है | इसमें आप गौमूत्र के स्थान पर नीम की पत्तियों का काढ़ा भी प्रयोग कर सकते है |
पौधे में लगने वाले रोग
पौधे में लगने वाले रोग 

पौधे में लगाने वाले रोगों की रोकथाम :-

1.   विषाणु रोग :- खीरे की फसल पर मौजेक नामक विषाणु का प्रभाव अधिक होता है | इसके कारण पौधे की पत्तियों पर पीले रंग के धब्बे पड़ जाते है | जिसके कारण पत्तियां सिकुड़ जाती है | धीरे – धीरे ये पत्तियाँ पीली होकर सुख जाती है | किसी भी फल पर इस विषाणु का प्रभाव होता है तो फल आकार में टेढ़े – मेढ़े और सफेद रंग के हो जाते है | इस रोग के कारण हमे खीरे की बहुत कम उपज प्राप्त होती है | पौधे में रह बीमारी मुख्य रूप से फल की मक्खी और एफिड नामक कीट के कारण होता है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी है |

2.   रोकथाम का उपाय :- गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक हो जाता है | इसमें आप गौमूत्र के स्थान पर नीम की पत्तियों का काढ़ा भी प्रयोग कर सकते है |

3.   मृदु रोमिल नामक कीट  :- यह एक फफूंदी जन्य रोग है | जिस स्थान पर अधिक गर्मी , नमी और बारिश होती है उस स्थान पर इस फफूंदी का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है | इस रोग में पौधे की पत्तियों के ऊपर वाले भाग पर पीले रंग के धब्बे पड़ जाते है और नीचे वाला भाग बैंगनी रंग का हो जाता है | यह तने और संजनी पर भी आक्रमण करता है | इससे पत्तियाँ सुखकर नीचे गिर जाती है | पौधे में यह रोग स्यूडोपरोनोस्पोरा क्यूबेनेसिस नामक फफूदी के कारण होता है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है | 

रोकथाम करने के लिए :-  नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से मृदु रोमिल नामक फफूंदी का प्रभाव दूर हो जाता है | 

एन्थ्रोक्नोज :- यह भी फफूंदी जन्य रोग है | इस रोग का अधिक प्रकोप गर्म और नए मौसम में होता है | इस रोग में फलों और पत्तों पर धब्बे पड़ जाते है | खीरे के फल में लाल भूरे सूखे धब्बे बन जाते है | जिसके कारण पत्तिय झुलस जाती है | पौधे में यह रोग कोलेटोट्राईकम नामक फफूंदी के कारण होता है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है |

रोकथाम करने के लिए :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से एन्थ्रोक्नोज नामक फफूंदी का प्रभाव दूर हो जाता है |

चूर्णिल असिता :- इस का आक्रमण मुख्य रूप से खीरा , लौकी , तरबूज , ककड़ी आदि पर होता हिया | इस रोग में पुराणी पत्तियों के नीचे वाली सतह पर सफेद धब्बे उभर जाते है | कुछ समय के बाद इसकी संख्या और आकार में वृद्धि होने लगती है | जिसके  कारण पत्तियों क एदोनो तरफ सफेद पाउडर जैसी तह जम जाती है | और पीली रंग की हो जाती है | पौधे की पत्तियों के आलावा तना , फूल और फल पर भी इस रोग का प्रभाव दिखाई देता है | पत्तियों की वृद्धि रुक जाती है | पौधे में यह रोग ऐरीसाइफी सिकोरेसिएरम नामक फफूंदी के कारण होता है | यह रोग सूखे मौसम में अधिक फैलता है |
रोगों की रोकथाम के उपाय
रोगों की रोकथाम के उपाय 

1इसकी रोकथाम करने के लिए :- गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक हो जाता है | इसमें आप गौमूत्र के स्थान पर नीम की पत्तियों का काढ़ा भी प्रयोग कर सकते है |

फसल तैयार होने के बाद तुड़ाई :- खीरे की फसल बुआई के लगभग दो महीने के बाद पककर तैयार हो जाती है | फसल के तैयार होने के 3 या 4 दिन के बाद तोड़ सकते है |
Khira Ki Kheti Se Prapt Upaj |
Khira Ki Kheti Se Prapt Upaj 

उपज की प्राप्ति :-  खीरे की खेती करने से हमे 80 से 100 किवंटल प्रति एक हेक्टेयर की उपज मिल जाती है | 



खीरा की खेती करने का तरीका,Khira  Ki Kheti Krne  Ka Trika,Khira Ki Unnat Kismen, Khira Ki Kheti Ke Liye Uchit Jalvayu, Khira Mein Lagne Vale Rog or bachaav, Khira Ki Fasal Mein Pryog Hone Vali Khad , Khira Ki Kheti Se Prapt Upaj | 


 

No comments:

Post a Comment


http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/09/pet-ke-keede-ka-ilaj-in-hindi.html







http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/08/manicure-at-home-in-hindi.html




http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/11/importance-of-sex-education-in-family.html



http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/10/how-to-impress-boy-in-hindi.html


http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/10/how-to-impress-girl-in-hindi.html


http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/10/joint-pain-ka-ilaj_14.html





http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/09/jhaai-or-pigmentation.html



अपनी बीमारी का फ्री समाधान पाने के लिए और आचार्य जी से बात करने के लिए सीधे कमेंट करे ।

अपनी बीमारी कमेंट करे और फ्री समाधान पाये

|| आयुर्वेद हमारे ऋषियों की प्राचीन धरोहर ॥

अलर्जी , दाद , खाज व खुजली का घरेलु इलाज और दवा बनाने की विधि हेतु विडियो देखे

Allergy , Ring Worm, Itching Home Remedy

Home Remedy for Allergy , Itching or Ring worm,

अलर्जी , दाद , खाज व खुजली का घरेलु इलाज और दवा बनाने की विधि हेतु विडियो देखे

Click on Below Given link to see video for Treatment of Diabetes

Allergy , Ring Worm, Itching Home Remedy

Home Remedy for Diabetes or Madhumeh or Sugar,

मधुमेह , डायबिटीज और sugar का घरेलु इलाज और दवा बनाने की विधि हेतु विडियो देखे