कुंदरू की
जैविक खेती करने का तरीका :-
Kundru Ki Labhdaayk Kheti Ka Trika |
कुंदरू की खेती के लिए भूमि का चुनाव
:- कुंदरू की खेती किसी भी प्रकार की भूमि में की जा सकती है | लेकिन इसे भारी
भूमि में नही उगाया जाता | कुंदरू के लिए रेतीली या दोमट मिटटी बेहतर मानी जाती है
| क्योंकि यह मिटटी जिवांशयुक्त और उचित जल निकास वाली होती है | इसकी खेती ऊँचे
जगहों पर करनी चाहिए | क्योंकि वंहा जल निकास की अच्छी व्यवस्था होती है | कुंदरू
की लताएँ पानी के बहाव को सहन नहीं कर पाती |
भूमि की तैयारी :- कुंदरू की खेती यदि
ऊँची भूमि पर करना है तो खेत को 2 या 3 बार देशी हल से जोते | जुताई के बाद पाटा
अवश्य लगाये | कुंदरू को बोने से पहले भूमि में 30 सेंटीमीटर लम्बा , 30 सेंटीमीटर
चौड़ा और 30 सेंटीमीटर गहरा गड्डा खोदकर इसमें लगभग 4 से 5 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर
की खाद भर दें | कुंदरू को हमेशा कतारों
में लगायें | कतारों में दुरी का ध्यान रखे | एक कतार से दुसरे कतार की बीच की
दुरी लगभग 1. 5 मीटर की रखे और एक पौधे से दुसरे पौधे के बीच की दुरी भी 1. 5 मीटर
की रखे | इस प्रकार से कुंदरू को बोने से हमे इसकी बहुत अच्छी फसल प्राप्त होती है
|
Kundru Ki Kheti Ke Liye Uchit Bhumi, |
कुंदरू की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु :-
कुंदरू की खेती करने के लिए गर्म और आद्र जलवायु में की जा सकती है | इसके
आलावा कुंदरू की खेती उन सभी हिस्सों में सफलतापूर्वक की जा सकती है जंहा वार्षिक
वर्षा लगभग 100 से 150 सेंटीमीटर तक की होती है | सबसे पहले इसकी खेती पश्चिमी
बंगाल और उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में उगाया गया था | लेकिन धीरे – धीरे इसकी
खेती पुरे भारत में की जाने लगी | खेती करने के नई तकनीकों का इस्तेमाल करके हम
कुंदरू की एक अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है |
कुंदरू की किस्म :- कुंदरू की अभी तक किसी भी प्रकार की किस्म को नहीं देखा
गया है | इसकी केवल स्थानीय किस्मे ही उगाई जाती है | कुंदरू के फल के आधार पर
इसकी किस्म दो प्रकार की है |
1.
गोल या अंडाकार
किस्म :- इसके फल हल्के पीले रंग के होते है | इस प्रकार की किस्म के फल का आकार
अंडाकार होता है |
2.
लम्बे आकार वाली
किस्म :- इसका रंग हल्का पीला होता है | और इस किस्म के फल का आकार बड़ा और लम्बा
होता है |
कुंदरू के बीज बोने का तरीका :- जिस तरह से परवल की लता को उगाया जाता है उसी
तरह से कुंदरू को भी उगाया जाता है | कुंदरू की लता की कलम को काटकर इसे भूमि के
अंदर लगाया जाता है | इसकी कलम काटने के लिए जुलाई के महीने में 4 या 5 महीने से क
साल पुरानी लताओं की 5 से 6 गांठ की 15 से 20 सेंटीमीटर लम्बी और आधे सेंटीमीटर
मोटाई की कलमे काट ली जाती है | इन सभी कलमो को समतल भूमि में या सड़ी हुई गोबर की
खाद और मिटटी के मिश्रण को बनाकर भरे हुए थैलों में लगाया जाता है | कलमों को
लगाने के बाद इसकी समय – समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए | अच्छी प्रकार से देखभाल
करने के बाद इसकी जड़ें 50 से 60 दिन में अंकुरित होने लगती है |
Kundru, Ki Unnat Kismen |
पौधे को बोने का समय और विधि :- पहले से तैयार की हुई कलमो को थैले में से
मिटटी के साथ निकाल लेना चाहिए | फिर इन
कलमो को गड्डा खोदकर बोना चाहिए | कुंदरू में नर और मादा पौधे अलग – अलग होते है |
इसलिए हर 10 पौधे के बीच में एक नर का पौधा जरुर लगाना चाहिए | अगर आप कुंदरू को
घर में बनाये हुए बगीचे में लगाना चाहते है तो 1 या 2 पौधे के साथ एक नर का पौधा
जरुर लगायें |
Kundru Mein Lagne Vale Rog |
कुंदरू की खेती में प्रयोग होने वाली खाद :- एक साल पहले लगाये हुए कुंदरू की
लता लगभग 2 से 3 साल तक रहती है | इसकी लताएँ ठंड के मौसम में शुष्क हो जाती है और
फरवरी – मार्च के महीने में इस बेल में से शाखाएं निकलने लगती है | जब इसमें से
शाखाएं निकलने लगे तो इसकी बेल में 1 से 2 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद , 1 किलो भू
पावर , 1 किलो माइक्रो फर्ट सिटी कम्पोस्ट , 1 किलो माइक्रो नीम , एक किलो सुपर
गोल्ड कैल्सी फर्ट , एक किलो माइक्रो भू
पावर और एक से दो किलो अरंडी की खलो को आपस में मिलाकर खाद का अच्छा मिश्रण तैयार
करे | इस खाद के मिश्रण को कुंदरू की हर एक बेल में डाल दें |
सिंचाई करने का तरीका :- कुंदरू को कलमो में लगाने के बाद इसमें हल्की सिंचाई
करनी चाहिए | इसके बाद वृद्धि के लिए समय – समय पर सिंचाई करते रहे | ठंड के मौसम
में जब कुंदरू की बेल शुष्क हो जाते है तो इसमें सिंचाई की जरूरत नहीं होती | गर्मी
के मौसम में इसकी फसल में एक सप्ताह में एक बार सिंचाई करनी चाहिए | बारिश के
दिनों में इसकी सिंचाई वर्षा पर निर्भर
होती है | यदि बारिश कम होती है तो सिंचाई की आवश्कता पड़ती है | एक विशेष बात का
धयन अवश्य रखे की इसकी बेल के पास पानी इक्कठा नहीं होना चाहिए | यदि पानी इक्कठा
हुआ तो बेल सड़ सकती है |
Kundru Ki Fasal Mein Pryog Hone Vali Khad, |
कुंदरू की फसल में उगे हुए खरपतवार को दूर करने के लिए :- कुंदरू की लताओं की
अच्छी वृद्धि करने के लिए इसकी समय – समय पर निराई गुड़ाई करनी चाहिए | किसी भी
थाले में यदि खरपतवार उग जाये तो उन्हें खुरपी की मदद से निकाल देना चाहिए | इसके
पौधे के पास ह्क्ली – हल्की निराई – गुड़ाई करना चाहिए | इससे पौधे में हवा का संचार अच्छा होता है |
जिससे पौधे की वृद्धि तेज़ी से होती है |
कीटों की रोकथाम करने के लिए :-
कुंदरू की फसल में बहुत सारे कीड़े – मकौड़े हानि पंहुचाते है | जिससे इसकी फसल
खराब हो जाती है | लेकिन फल की मक्खी और फली भ्रंगी नामक कीट इसको बहुत नुकसान
पंहुचाते है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरुर
है |
फल की मक्खी :- 3.फल को नुकसान पंहुचाने वाली मक्खी :- यह मक्खी फलों के अंदर
छेद करके घुस जाती है और वंही अंडे दे देती है | इसके अंडो में से सुंडी निकल जाती
है | जो फल से बाहर निकल जाती है | कभी –
कभी यह मक्खी फूलो को भी हानि पंहुचाते है | इसके कारण फल बेकार हो जाता है | इस
मक्खी का अधिकतर प्रभाव खरीफ वाली फसलों पर होता है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी
है |
रोकथाम एक उपाय :- :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ
मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी
पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस फफूंदी का प्रभाव दूर हो जाता है |
2 फली भ्रंग :- यह कीट पौधे की पत्तियों में छेद करके हानि पंहुचाता है | इस
कीट का रंग धूसर गुब्रेला होता है | इसकी
रोकथाम करने के लिए एक उपाय है जिसका
वर्णन इस प्रकार से है |
रोकथाम एक उपाय :- :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ
मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी
पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस कीट का प्रभाव दूर हो जाता है |
FASL KO NUKSAAN DENE VALA KIDA |
कुंदरू की फसल में चूर्णी नामक फफूंदी का प्रकोप अधिक होता है | इस कीट के
कारण पौधे की पत्तियों को तनो पर आटे की तरह फफूंदी लग जाती है | जिसके कारण
पत्तियों का हरा रंग पीला हो कर मुरझा जाता है | पौधे में यह रोग एक फफूंदी की वजह
से होता है |
रोकथाम एक उपाय :- :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ
मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी
पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस फफूंदी का प्रभाव दूर हो जाता है |
Kundru KI Kheti Se Prapt Upaj |
कुंदरू की तुड़ाई :- कुंदरू जब पूरी तरह से विकसित हो जाये तो इसे कच्ची अवस्था
में ही तोड़ना चाहिए | नहीं तो इसके फल कठोर हो जाते है और अंदर का भाग लाल रंग का
हो जाता है | जिसे सभी के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता | कुंदरू की बेल में मार्च
– अप्रैल के महीने में फल लगना शुरू हो जाता है जो मई के महीने में पककर तैयार हो
जाती है | कुंदरू की बेल से प्राप्त उपज अक्टूबर के महीने तक चलती है |
उपज की प्राप्ति :- कुंदरू की उपज इसकी किस्मो पर आधारित होती है | वैसे कुंदरू की एक हेक्टयर भूम से हमे लगभग 200 से
250 किवंटल तक की अच्छी उपज मिल जाती है |
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