अरबी की खेती करने का तरीका |
अरबी की खेती करने
का तरीका :- अरबी की खेती पूरे भारत में की जाती है | अरबी के पत्तो और इसके फलों
को सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है | अरबी दो तरह की होती है | एक एडिन और दूसरी डेसिन आदि | इसमें से एडिन को
अरबी कहा जाता है और डेसिन को बणडा कहा जाता है | अरबी की सबसे अधिक खेती अफ्रीका
में की जाती है | अरबी में चिडचिडाहट या एक्रीडीटी पाई जाती है | जो पकने के बाद
खत्म हो जाती है | अरबी को कच्चा नहीं खाया जाता | आज हम आपको अरबी की खेती के
विषय में जानकारी दे रहे है |
अरबी की खेती के लिए
उत्तम जलवायु :-
अरबी की खेती के लिए
शीतोष्ण और सम शीतोष्ण जलवायु उत्तम मानी जाती है | इसके आलावा अरबी को नम जगहों
पर भी उगाया जाता है |
अरबी के लिए भूमि का
चुनाव :- अरबी को पहाड़ी और मैदानी दोनों ही भागों में उगाया जाता है | इसकी खेती
करने के लिए बलुई दोमट मिटटी अच्छी होती है | इसे भारी किस्म की मिटटी में भी
उगाया जा सकता है | लेकिन उस मिटटी में उचित जल निकास की सुविधा होनी आवश्यक है | तभी
उसमे सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है | जिस भूमि में अरबी की खेती की जा रही हो उस
भूमि का पी. एच . मान 5. 5 से 7 के बीच का हो तो उत्तम माना जाता है | अरबी की फसल
ने पानी का भराव नहीं होना चाहिए | इससे अरबी की फसल खराब हो सकती है |
अरबी के लिए भूमि का चुनाव |
अरबी की किस्में :- अरबी की निम्नलिखित किस्मे भारत में पाई जाती है |
1. सतमुखी
2. श्री रश्मि
3. श्री पल्लवी
4. सफेद गौरिया
5. काका कंचु
6. ए. एन. डी. सी. 1
7. ए. एन. डी. सी. 2
8. ए. एन. डी. सी. 3
9. सहर्षमुखी कदमा
10.
मुक्ता काशी
11.
नदिया
12.
लोकल
13.
अहिना
14.
लोकल तेलिया
15.
सी. 9
16.
सी. 135
17.
सी. 149
18.
सी. 266
19.
इस. 3
20.
इस. 11
21.
पंजाब गौरिया
22.
बिहार
23.
फैजाबादी
24.
बंसी
25.
लाधरा
आदि उन्नतशील किस्म
पाई जाती है | इन सभी किस्मों की अलग –
अलग स्थान पर खेती की जाती है |
अरबी की विभिन्न किस्में |
अरबी की खेती करने
के लिए खेत की तैयारी :- खेत की मिटटी पलटने वाले हल से जुताई करें | इसके बाद
देसी हल का प्रयोग करके लगभग 3 या 4 बार खेत को जोते | इसके आलावा आप इसमें
केल्टिवेटर का भी प्रयोग कर सकते है | इससे मिटटी भुरभुरी हो जायेगी | खेत में
अंतिम जुताई करते समय में 100 से 150 किवंटल सड़ी हुई खाद को मिला दें | इसके बाद
ही खेत की जुताई करें | ताकि मिटटी और खाद आपस में अच्छी तरह से मिल जाये | खाद की
यह मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है | भूमि के अनुसार इसकी मात्रा को
घटाया और बढ़ाया जा सकता है |
अरबी के लिए बीच की
मात्रा :- अरबी की खेती के लिए मध्यम आकार के कंदों का चुनना चाहिए | इसके लिए
लगभग 7. 5 से 9. 5 किवंटल बीज एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है |
अरबी की खेती करने
का उचित समय :- अरबी को उत्तर भारत में दो बार बुआई की जाती है | पहली बुआई मार्च
से अप्रैल के महीने में कंदों की बुआई या रोपाई की जाती है | बारिश के मौसम में या
खरीफ की फसल लेने के लिए इसकी बुआई जून से जुलाई के महीने में की जाती है | यह समय
इसकी खेती के लिए उपयुक्त होता है |
अरबी की बुआई का
तरीका :- अरबी की बुआई कतारों में करनी चाहिए | इसकी बुआई करते समय कतारों की दुरी
का ध्यान रखे | एक कतार से दूसरी कतार के बेच की दूरी लगभग 45 सेंटीमीटर की होनी
चाहिए | और एक पौधे से दुसरे पौधे को 30 सेंटीमीटर की दुरी पर ही लगायें | अरबी के
कंदों को 6 से 7 सेंटीमीटर का गड्डा खोदकर बोना चाहिए | इस प्रकार की विधि को
अपनाकर बुआई करने से अंकुरण और पौधे की वृद्धि सही प्रकार से होती है |
Arbi ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Rokne Ke Tarike |
अरबी की खेती में
प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- अरबी की अच्छी उपज लेने के लिए इसमें खाद का
प्रयोग करना अति आवश्यक है | इसके लिए 100 से 150 किवंटल अच्छी प्रकार से सड़ायी
हुई गोबर की खाद को मिटटी में मिलाना चाहिए | इसके साथ 80 किलोग्राम नत्रजन , 60
किलोग्राम फास्फोरस और 50 से 60 किलोग्राम पोटाश के तत्व को मिटटी में मिला देना
चाहिए | नत्रजन की 80 किलोग्राम की मात्रा में से आधी मात्रा और पोटाश की आधी
मात्रा का ही प्रयोग करना चाहिए | लेकिन फास्फोरस की पूरी मात्रा को भूमि में मिला
दें | बाकि बची नत्रजन और पोटाश की मात्रा को खेत में दो बार फसलों में डालना
चाहिए | पहली बार 10 दिन के बाद और दूसरी बार क महीने के बाद प्रयोग करें | अरबी
की फसल में टॉपड्रेसिंग करने के बाद पौधे पर मिटटी अवश्य चढ़ा दें |
अरबी की फसल में
सिंचाई करने का तरीका :- अरबी की बुआई के 4 या 5 दिन के बाद सिंचाई करनी चाहिए | यदि
अरबी के कंदों में अंकुरण भलीभांति हो रहा हो तो इसकी सिंचाई 8 से 10 दिन के अंतर
पर करनी चाहिए | सिंचाई करते समय इस बात का ध्यान जरुर रखे की इसकी फसल में पानी
का भराव नहीं हों |
अरबी की फसल में
खरपतवार को दूर करने के लिए :- अरबी की बुआई के एक या दो दिन के बाद पेंडामेथलिन
की 3 .3 लीटर की मात्रा में 600 से 800 लीटर पानी की मात्रा मिला दें | इस मिश्रण
की किसी पम्प में डालकर स्प्रे करें | स्प्रे करने के एक दिन के बाद मलीचिंग करनी
चाहिए | ऐसा करने स खरपतवार को दूर किया जा सकता है | मलच को हटाने के बाद एक या
दो बार हल्की – हल्की निराई गुड़ाई करनी चाहिए |
ताकि छोटे – छोटे खरपतवार नष्ट हो जाये | निराई करने के बाद पौधे पर मिटटी
चढ़ा देनी चाहिए | इससे अरबी के कंद अच्छे
बनते है और उपज भी अच्छी प्राप्त होती है |
Arbi Ki Fasl Mein Keeton Se Bachaav| |
अरबी की फसल में
लगने वाले रोग और उस पर नियंत्रण के उपाय :- अरबी की फसल में लीफ ब्लाइट या पिथियम
गलन जैसी बीमारी लगती है | जो अरबी के कंदों को नुकसान पंहुचाती है | इसकी रोकथाम
करने के लिए डाईथेंन एम. 45 की 8 से 10 ग्राम की मात्रा में 10 लीटर पानी मिलाकर
के घोल बनाएं | इस घोल को किसी पम्प में डालकर फसलों पर तर – बतर करके छिडकाव करें
| इसके आलावा अरबी की रोग प्रतिरोधी किस्मों की बुआई करें | पिथियम गलन नामक रोग
से बचने के लिए भूमि को फफूंदी नाशक दवा से शोधन करना चाहिए | और अच्छी किस्मों की
बुआई करें | जो रोगों से लड़ने में सक्षम हों |
अरबी की फसल में
लगने वाले कीट :- अरबी की फसल पर लीफ हापर और लीफ ईटर नामक कीटों का प्रकोप होता
है | लीफ होपर नामक कीट से पौधे को बचाने के लिए बी. एच. सी. डस्ट की एक % की
मात्रा को पानी में मिलाकर फसलों पर छिडकें | जबकि लीफ इटर के रोकने के लिए लेड
एनिसेट का छिडकाव करना चाहिए |
अरबी की फसल की
खुदाई :- अरबी की बुआई के 120 से 150 दिन
के बाद पककर तैयार हो जाती है | जब इसके फसल की पत्तियां पीली होकर जमीन पर गिरने
लगें तो उसी समय अरबी की खुदाई करनी चाहिए |
अरबी की उपज की
प्राप्ति :- अरबी की उपज इसकी किस्मों पर आधारित होती है | परन्तु समान्य रूप से
150 से 200 किवंटल प्रति हेक्टयेर की एक अच्छी उपज मिल जाती है |
अरबी की आर्गनिक खेती करने का तरीका :-
अरबी की आधुनिक खेती करने का तरीका |
अरबी की खेती के लिए
उत्तम जलवायु :- अरबी की खेती के लिए गर्म और आद्र जलवायु उत्तम होती है | इसे
उष्ण और उपउष्ण दोनों ही देशो में उगाया जाता है | अरबी को साल में दो बार उगाया जाता है | गर्मी के मौसम में और
बारिश के मौसम में | उत्तरी भारत की जलवायु अरबी की खेती के लिए उत्तम मानी जाती
है | इस प्रकार की जलवायु में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है |
अरबी की खेती के लिए
भूमि का चुनाव :- अरबी की खेती के लिए रेतीली दोमट मिटटी अच्छी होती है | इसमें
जिवांश की मात्रा पाई जाती है और साथ ही साथ इसमें उचित जल निकास का प्रबंध होता
है | अरबी के कंदों के अच्छे विकास और वृद्धि क लिए गहरी भूमि का होना बहुत जरूरी
है |
अरबी की किस्मे :- अरबी
की निम्नलिखित किस्मो को उगाया जाता है |
1.
उन्नतशील किस्में :- देश के बहुत से क्षेत्र में
अरबी की स्थानीय किस्मे ही उगाई जाती है | लेकिन कुछ उन्नतशील किस्मे भी उगाई जाती
है |
2.
स्थानीय किस्में :-
फैजाबाद , बंगाली बड़ा , लाधरा वंशी ,
पञ्च मुखी , गुर्री कचु , देशी बड़ा , आस काचू , काका काचू , सर काचू आदि अरबी की
स्थानीय किस्में है |
उत्तर प्रदेश :- एन. डी . सी. -1 ,
:- एन. डी . सी. -2
अरबी की आधुनिक किस्में :- नरेंद्र अरबी – 1 , नरेंद्र अरबी – 2
अरबी की इन दोनों किस्मो का विकास नरेंद्र कृषि अनुसंधान के द्वारा किया गया
है | इन दोनों की खेती करने से हमे बहुत अधिक उपज प्राप्त होती है |
बीज की बुआई करने का उचित समय :- अरबी की एक साल में दो बार बुआई की जाती है |
पहली बार फरवरी या मार्च में और दूसरी बार जून या जुलाई के महीने में |
बीज की मात्रा :- अरबी की बुआई के लिए केवल अंकुरित बीजों का ही उपयोग करें | अरबी
को एक हेक्टेयर भूमि पर बोने के लिए लगभग 8 से 10 किवंटल बीज की मात्रा काफी होती
है |
अरबी को बोने का तरीका :- अरबी की बुआई हम दो तरीके से कर सकते है | 1. समतल
क्यारियों में और दूसरा मेंढे बनाकर |
समतल क्यारियों में :- खेत को अची तरह से तैयार करके अरबी को कतारों में बोयें
| एक कतार से दुसरे कतार की बीच की दुरी 45 सेंटीमीटर की होनी चाहिए जबकि एक पौधे
से दुसरे पौधे के बीच की दुरी 30 सेंटीमीटर की रखें | अरबी के कंदों को भूमि के 7
सेंटीमीटर की गहराई के नीचे बोयें |
3.
डौलों पर :- अरबी को हम डौलियाँ बनाकर बो सकते
है | हर एक डौली की बीच की दुरी कम से कम 45 सेंटीमीटर की रख्रे | डौलियों के
किनारों पर 30 सेंटीमीटर की दुरी पर अरबी की गांठो को बोयें |
अरबी की फसल में प्रयोग होने वाली खाद |
4.
अरबी की खेती में प्रयोग होने वाली आर्गनिक खाद
:- खेत में अंतिम जुताई करने से पहले सड़ी हुई गोबर की 25 से 30 टन की मात्रा को एक
समान मात्रा में बिखेर दें | इसके साथ – साथ आर्गनिक खाद 2 बैग भू पावर 50
किलोग्राम , 2 बैग माइक्रो फर्ट सिटी कम्पोस्ट 40 किलोग्राम , 2 बैग माइक्रो भू
पावर 10 किलोग्राम , 2 बैग सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट 10 किलोग्राम , 2 बैग माइक्रो
नीम की 20 किलोग्राम की मात्रा और अरंडी की खली की 40 से 50 किलोग्राम की खादों को
आपस में मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को एक एकड़ भूमि में एक समान मात्रा
में बिखेर दें | इसके बाद जुताई करके बुआई करें | बुआई के लगभग 20 से 25 दिन के
बाद 2 किलो सुपर गोल्ड मैग्नीशियम की 500 मिलीलीटर की मात्रा और माइक्रो झाझम 400
लीटर पानी की मात्रा मिलाकर के अच्छा सा मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को किसी पम्प
में डालकर फसलों पर तर – बतर करके छिडकाव करें | दूसरा और तीसरा छिडकाव 20 दिन के
अंतर पर करें |
5.
सिंचाई करने का तरीका :- जिस फसल को गर्मी के
मौसम में उगाया गया हो उस फसल में सिंचाई की बहुत जरूरत होती है | गर्मियों में
सिंचाई एक सप्ताह में एक बार या 10 से 12 दिन के अंतर पर करें | जबकि बारिश के मौसम
की फसल में सिंचाई की कम जरूरत होती है | बारिश वाली फसल में इसकी सिंचाई बारिश पर
निर्भर होती है | यदि बारिश कम होती है तो इसमें आवश्कता अनुसार सिंचाई करें | जूं
– या जुलाई के महीने के पहले सप्ताह में फसलों के तने पर मिटटी चढ़ा देनी चाहिए | और
साथ ही साथ तनो की छटाई भी कर देनी चाहिए |
6.
खरपतवार की रोकथाम करने के लिए :- फसलों में उगे
छोटे – छोटे खरपतवार को जड़ समेत उखाड़कर फेक देना चाहिए | अपनी जरूरत के अनुसार
सिंचाई के बाद हल्की निराई गुड़ाई करनी चाहिए | वैसे 3 या 4 बार निराई और गुड़ाई से
फसलों में खरपतवार समाप्त हो जाते है | लेकिन हमे फसल के पकने तक खेत को खरपतवार
से मुक्त रखना चाहिए |
फसल पर लगने वाले
कीटों की रोकथाम करने के लिए :-अरबी की फसल
को सुंडी और मक्खी आदि नुकसान पंहुचाती है | ये कीट पौधे की पत्तियों को खा
जाते है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है |
रोकथाम का उपाय :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को
माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250
मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इन कीटों का
प्रभाव दूर हो जाता है |
अरबी का झुलसा :- इसका
प्रकोप जुलाई से अगस्त के महीने में होता है | इस रोग में पौधे की पत्तियों पर
पहले गोल काले रंग के धब्बे पड़ जाते है | कुछ दिनों के बाद पत्तियां गलकर गिर जाती
है | इससे कंदों का निर्माण नहीं होता | पौधे में यह रोग फाईटोफ्थोरा कोलोकेसि
नामक फफूंदी के कारण होता है | पौधे में इस रोग को दूर करने के लिए निम्नलिखित
उपाय है |
रोकथाम करने के लिए
:- अरबी की फसल में जो पौधा रोगी हो गया हो उसे जड़ समेत उखाड़कर फेक दें | नीम की
पत्तियों का काढ़ा बनाकर इसमें माइक्रो झाझम मिला दें | इस मिश्रण को किसी पम्प में
डालकर फसलों पर तर – बतर करके छिडकाव करें | नीम के काढ़े के आलावा आप गौमूत्र भी
ले सकते है | उचित फसल चक्र को अपनाना चाहिए |
Arbi, अरबी ki Kismen, |
नीम का काढ़ा बनाने
की विधि :- नीम के पेड़ की लगभग 25 ग्राम ताज़ा पत्तियों के को तोडकर पीस लें | अब
इसमें 50 लीटर पानी मिलाकर अग्नि पर पकाएं | पकात हुए जब इस मिश्रण की आधी मात्रा
शेष रह जाये तो इसे आग से उतारकर ठंडा कर लें | तैयार किये हुए काढ़े की आधे लीटर
की मात्रा में पानी मिलाकर फसलों पर छिडकाव करें |
गौमूत्र :- देशी गाय
के 10 लीटर की मात्रा को किसी कांच के
बर्तन में या प्लास्टिक के बर्तन में डालकर कम से कम 15 दिन के लिए धुप में रख दें
| जब यह गौमूत्र सड़ जाये तो इसकी आधा लीटर की मात्रा में पानी मिलाकर पम्प में
डालकर फसलों पर छिडकाव करें |
अरबी की खुदाई :- अरबी
के कंदों की खुदाई इसकी किस्म , जलवायु , और भूमि की उर्वर शक्ति पर निर्भर करता
है | अरबी की बुआई के लगभग 3 महीने बाद फसल खुदाई के लिए तैयार हो जाती है | जब
अरबी के पौधे की पत्तियाँ सुख कर पीली हो जाये तो समझ ले की अरबी की फसल पक
गई है | तब उनकी खुदाई कर सकते है |
उपज की प्राप्ति :-अरबी
की एक हेक्टेयर भूमि पर से लगभग 350 से 400 किवंटल तक की अच्छी उपज मिल जाती है |
अरबी का भंडारण करने का तरीका |
भण्डारण :- अरबी की सभी गांठों को तोड़कर ऐसे कमरे में
रखना चाहिए जंहा पर गर्मी न हो | अरबी की सभी गांठों को कमर में फैला दें | इन्हें
कुछ दिन के अंतर पर पलटते रहे | जो गांठ सड़ गई हो उसे निकालकर फेक दें | ऐसा करने
से गांठो की मिटटी सुखकर झड़ जाती है | इसके बाद इन्हें बाजार में बेचने के लिए
निकाल सकते है | कुछ जगहों पर अरबी को सुखाकर बोरो में भर दिया जाता है और इन्हें
भंडार गृह में रख दिया जाता है |
अरबी की खेती करने का तरीका, Arbi ki Kheti Karne
ka Tarika, Arbi, अरबी ki Kismen, Arbi ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi, Arbi ki Fasal Mein Kharpatvar Ko Rokne Ke Tarike Arbi
Ki Fasl Mein Keeton Se Bachaav|
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