अश्वगंधा एक औषधीय फसल | Ashvgandha Ek Aushdhiy Fasal

अश्वगंधा कि खेती

·        अश्वगंधा कि खेती करने का तरीका :- अश्वगंधा कि खेती करने से पहले आप इसके बारे में कुछ जरूरी बातों को जान लें | जैसे कि अश्वगंधा क्या है और इसका उपयोग क्यों और किस लिए किया जाता है | आदि | इस बात कि जानकरी हम आपको दे रहे है |

अश्वगंधा एक आयुर्वेदिक औषधि है | जिसका उपयोग मनुष्य अपनी बीमारी को ठीक करने के लिए करता है | पुराने समय से ह वैद्य , हकीम इस औषधि से लोगो का उपचार कर रहे है | अश्वगंधा दिखने में टमाटर कि तरह लगता है | जिसमे कई औषधि तत्व शामिल होते है | तो आज हम अश्वगंधा कि खेती के विषय में आपको जानकारी दे रहे है | अश्वगंधा का वनस्पतिक नाम विथानिया सोमनीफेरा है | भारत में इसे अश्वगंधा या असगंध के नाम से जाना जाता है | इसे और भी कई नामों से जाना जाता है जैसे :-

संस्कृत में :- अष्वगंधा
हिंदी में :- असगंध
अंगेजी में :- विंटरचेरी इन्डियनगिनसेंग आदि |

यह एक महत्वपूर्ण औषधि के साथ – साथ दूसरी फसल के साथ बोई जाने वाली नकदी फसल भी है | भारत के सभी ग्रंथों में अश्वगंधा कि महत्ता के बारे में दर्शाया गया है | इसकी ताज़ी पत्तियों और जड़ों में से गोदे कि मूत्र कि गंध आती है | इसी कारण इसका नाम अश्वगंधा रखा गया है |आयुर्वेद में इस गुणकारी औषधि कि मांग बढती ही जा रही है | पूरी दुनिया में अश्वगंधा कि कुल 10 प्रजातियाँ पाई जाती है और अकेले भारत में स्की केवल दो प्रजातियों को ही उगाया जाता है | इस पौधे को किसी भी ठंडे भाग में नहीं उगाया जाता है |

अश्वगंधा कि खेती किस भाग में कि जाती है :- भारत में अश्वगंधा कि खेती निम्नलिखित भागों में कि जाती है :- हिमाचल प्रदेश , पंजाब , गुजरात , राजस्थान , उत्तर प्रदेश , हरियाणा , मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आदि | यह औषधि भूमध्य सागरीय के भाग से अफ्रीका , भारत और श्रीलंका तक के भाग तक पंहुच गई है |  भारत के हिमालय पर्वत कि तटों में 1000 मीटर कि ऊंचाई पर अश्वगंधा कि औषधि पाई जाती है |

·        अश्वगंधा कि संरचना :- अश्वगंधा का पौधा एक सदाबहार पौधा होता है|यह एक सीधा और रोंयदार पौधा होता है जिसके सभी भाग का रंग सफेद होता है | इसकी पत्तियों का आकार पतला और पूरी तरह से अंडाकार होता है | इसके फूल का रंग हरा या अंधकारमय पीला होता है |इस पौधे के फूल जुलाई से सितम्बर के महीने में खिलते है | और फल दिसंबर के महीने में बनते है | इसका फल टमाटर या बेरी के रूप में होता है | जिसका आकार 7 मिलीमीटर का होता है | अश्वगंधा के फल गोलाकार , चिकने और लाल रंग के होते है | जब इसके फल पूरी तरह से पक जाते है तो इसका रंग नारंगी लाल हो जाता है | अश्वगंधा के बीजों का रंग पीला होता है |
अश्वगंधा एक औषधीय फसल
अश्वगंधा एक औषधीय फसल 
·        अश्वगंधा कि खेती करने के लिए जलवायु उचित जलवायु :- यह उष्णकटिबंध और समशीतोष्ण जलवायु का पौधा है | इसके लिए शुष्क मौसम अच्छा रहता है | यह एक पछेती खरीफ कि फसल है | जिसे वर्षाऋतु के महीने के आखिरी के दिनों में बोया जाता है | जिस जगह पर कम से कम 660 से 750 मिलीमीटर कि वर्षा होती है वह जगह अश्वगंधा के लिए उपयुक्त होती है  |इसके आलावा अश्वगंधा कि अच्छी तरह से वृद्धि के लिए वार्षिक वर्षा लगभग 650 से 700 मिलीलीटर कि होनी चाहिये | ठण्ड के मौसम में यदि एक या दो बार बारिश हो जाती है तो इसकी जड़ों का पूरी तरह से विकास हो जाता है | अश्वगंधा कि फसल के लिए शुष्क मौसम अच्छा माना जाता है | 

·        अश्वगंधा कि खेती के लिए भूमि का चुनाव :- अश्वगंधा कि खेती करने के लिए रेतीली दोमट मिटटी अच्छी होती है | इसके आलावा हल्की मिटटी में यदि कार्बनिक पदार्थ कि मात्रा पाई जाती है वह मिटटी भी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है | क्योकि इन दोनों मिट्टियों में पानी के निकास कि उचित व्यवस्था होती है | जिस मिटटी का पि. एच, मान 7.5 से 8 के बीच का होता है तो वह मिटटी इसकी खेती के लिए बेहतर होती है |

·        अश्वगंधा के बीज कि मात्रा :- एक हेक्टेयर भूमि पर कम से कम 10 से 12 किलोग्राम बीज कि आवश्कता पड़ती है |

·        खेत कि तैयारी :- जिस खेत में अश्वगंधा कि फसल कि बुआई करनी है उस खेत को अगस्त या सितम्बर के महीने में जब बारिश हो जाती है तो उसके बाद जुताई करें |खेत कि जुताई केल्टिवेटर के साथ कम से कम दो बार करें | हर एक जुताई के बाद पाटा अवश लगायें | अश्वगंधा कि अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिय पौधे को कतारों में लगाना चाहिय | एक कतार से दुसरे कतार के बीच कि दुरी लगभग २० सेंटीमीटर कि रखे और एक पौधे से दुसरे पौधे कि बीच कि दुरी 5 सेंटीमीटर कि रखें | इस प्रकार कि विधि के उपयोग से बुआई करें तो आपको अच्छी पैदावार प्राप्त होती है |

·        अश्वगंधा कि किस्में :- भारत में अश्वगंधा कि निम्नलिखित किस्मों कि खेती कि जाती है |
१.     पोषिता 
२.     जवाहर असगंध – 134
३.     जवाहर असगंध – 20

·        बीज का प्रवर्धन :- अश्वगंधा के पौधे में जुलाई – सितम्बर के महीने में फूल आने लगते है | जो दिसंबर के महीने में फल में प्रवर्तित हो जाते है | अश्वगंधा के फल में से बीज को निकाल लें | और धुप में सुखा लें | अश्वगंधा के बीजों को खेत में बोने से लगभग 24 घन्टे पहले ठंडे पानी में भिगोकर रख दें | इसके बाद बीजों को पानी से निकालकर खेत में बिखेर कर सीधे खेत में बो दिया जाता है | अश्वगंधा कि खरीफ कि फसल लेने के लिए इसकी बुआई जुलाई से सितम्बर के महीने में कि जाती है और रबी के फसल के लिए अश्वगंधा को अक्तूबर से जनवरी के महीने में बोया जाता है|बुआई के बाद इसके बीजों का 80 %अंकुरण ६ से 7 दिनों में हो जाता है|अश्वगंधा कि अच्छी फसल लेने के लिए इसकी बुआई क्यारियों में करें | बीजों कि बुआई करने के लिय बीजो कि दुरी का ध्यान रखे | बीजों को क्यारियों में 5 सेंटीमीटर कि दुरी पर बोयें | 

·        पौधे रोपण की विधि :- रोपण करने के लिए २० से २५ दिन के बाद पौधों का विरलीकरण करके उसे २० हजार से 25 हजार पौधे कि संखया को एक हेक्टेयर भूमि पर बोयें | पौधो को कतारों में बोये | एक कतार से दुसरे कतार कि बीच कि दुरी ५०सेंटीमीटर कि होनी चाहिए |जब पौधे 6 से 7 दिन के हो जाते  है तो उन्हें रोपण करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है |

·        खरपतवार के लिए :- अश्वगंधा कि फसल में से अनचाहे रूप से उगे हुए खरपतवार को निराई करके बाहर निकाल देना चाहिए | खेत में 25 से ३० दिन के अंतराल पर एक बार निराई करनी चाहिए | 

·        अश्वगंधा कि फसल में प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- अश्वगंधा कि फसल में किसी भी तरह के खाद और उर्वरक कि जरूरत नहीं होती | इसके लिए केवल सड़ी हुई गोबर कि खाद ही पर्याप्त होती है | यह इस औषधि कि सबसे बड़ी विशेषता है | पिछले फसल के अवशेषों को उर्वरक के रूप में प्रयोग किया जाता है |
Ashvgandha Ek Aushdhiy Fasal
Ashvgandha Ek Aushdhiy Fasal
·        सिंचाई करने के लिए :- अगर बारिश नियमित रूप से होती है तो सिंचाई करने कि आवश्कता नहीं होती | अश्वगंधा कि बुआई करने के बाद हल्की सिंचाई करें | इसकी दूसरी बार सिंचाई १५ से २० दिन के अतराल पर करें | बारिश होने पर सिंचाई कि जरूरत नहीं पड़ती | लेकिन बाकि के कुछ महिनों में एक या दो बार संचाई करते रहना चाहिए | अश्वगंधा कि सिंचाई यदि खारे पानी से कि जा रही है तो इससे अश्वगंधा कि पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता लेकिन इसकी गुणवत्ता २ से २.5 गुना बढ़ जाती है | यदि किसी कारणवश बारिश कम होती है तो सिंचित पानी से सिंचाई करें | अधिक बारिश और अधिक सिंचाई से इसकी फसल को नुकसान हो सकता है |

·        फसल की  सुरक्षा :- अश्वगंधा कि फसल में तना में छेद करने वाले कीट और माइट नामक कीटों का प्रभाव अधिक रहता है |इसके आलावा अश्वगंधा  कि फसल में बीजों का सड़ना , झुलसा की बीमारी और अंगमारी नामक रोग भी लग जाते है |  जिससे इसकी फसल खराब हो जाती है और पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव होता है | इन सभी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए निम्नलिखित उपाय करना चाहिए|

·        रोकथाम करने के लिए :-  तने में छेद करने वाले कीट से बचने के लिए नीम के पेड़ कि 25 ग्राम  पत्तियों को तोडकर कुचल लें | अब इसे ५० लीटर पानी में मिलाकर काढ़ा बनाने के लिए धीमी आंच पर प्क्यें | पकते – पकते जब इस पानी की मात्रा आधी शेष रह जाती है तो इसे आंच से उताकर ठंडा होने के लिए रख दें | काढ़ा जब ठंडा हो जाये तो इसकी १ लीटर कि मात्रा में 15 लीटर पानी मिला लें और किसी पम्प में भरकर अश्वगंधा कि फसलों पर छिडकाव करें | इस छिडकाव से पौधे पर किसी भी तरह की कीट – पतंग – मक्खी , मच्छर या झिल्ली का कोई बुरा असर नही होता है | इससे पौधा स्वस्थ और निरोग रहता है |

माइट नामक कीट कि रोकथाम करने के लिए नीम कि पत्तियों का काढ़ा बना एन | और उसकी एक लीटर पानी में मिलाकर एक अच्छा सा घोल तैयार कर लें और फसलों पर छिडकाव करें | इस तरहं  के छिडकाव से माइट नामक कीट से छुटकारा मिल जाता है | 

·        अश्वगंधा कि फसल में लगने वाले रोग को दूर करने के लिए :- इसकी फसल में बीज के सन्दे और अंगमारी नामक रोग लग जाते है | इसकी रोकथाम करने के लिए निम्नलिखित उपाय है |

·        उपाय :- बीजों को खेत में बोने से पहले बीजों को उपचारित कर लेना चाहिए | बीजो कि एक किलोग्राम कि मात्रा को २ लीटर गाय के मूत्र से उपचारित करें |

·        झुलसा के रोग कि रोकथाम के लिए उपाय :- मदार कि 5 किलोग्राम कि पत्तियों को 15 लीटर गाय के मूत्र में मिलाकर मंद अग्नि पर पकने के लिए रख दें | पकते – पकते जब स मिश्रण कि मात्रा अधि रह जाये तो इसे आंच से उतारकर ठंडा होने के लिए रख दें | ठंडा करने के बाद इसे किसी पम्प में भरकर फसल पर छिडकाव करें | इससे झुलसा नामक रोग ठीक हो जाता है | इस बीमारी को ठीक करने के लिए हम नीम के काढ़े का भी उपयोग कर सकते है |      

·        अश्वगंधा कि फसल कि कटाई :- अश्वगंधा के पौधे कि जड़ और पत्तियों का उपयोग किया जाता है | इसकी कटाई जनवरी के महीने से मार्च के महीने तक लगातार की जाती है | अश्वगंधा के पौधे को जड समेत उखाड़ लिया जाता है |  इसके बाद जड़ और पौधे के भाग को अलग – अलग कर लिया जाता है |इसकी जड़ों को 7 से 10 सेंटीमीटर कि लम्बाई तक काटकर छोटे – छोटे टुकड़े में काट लेते है | इन कटी हुई जड़ों को धुप में सुखा लिया जाता है | पौधे के बाकि बचे हुए हिस्से में से फल के बीज और सुखी हुई पत्तियां प्राप्त कर ली जाती है | जिसे औषधि बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है |

·        अश्वगंधा के उपज की प्राप्ति :- अश्वगंधा के 50 किलोग्राम बीज को एक हेक्टेयर भूमि पर लगाने से हमे इसकी 700 से 800 किलोग्राम जड़ कि प्राप्ति होती है |

औषधि के लिए प्रयोग में लेने वाले भाग :-
·        जड़ :-  अश्वगंधा कि जड़ों को सुखाकर उसका पाउडर तैयार किया जाता है | इस पाउडर का उपयोग दमा , कफ से जुडी हुई बीमारी  , अनिंद्रा , दिल की बीमारी , शरीर में कमजोरी , दुर्घटना होने पर लगने वाले चोट को ठीक करने के लिए किया जाता है | जड़ द्वारा तैयार किये हुए पाउडर को शहद या घी में मिलाकर खाने से शरीर कि कमजोरी दूर होती है | अश्वगंधा के पौधे की जड़ के चूर्ण को खाने से मनुष्य के शरीर में स्फूर्ति आती है , खून में कोलेस्ट्रोल कि मात्रा को कम होता है |अगर किसी व्यक्ति को कमर में दर्द है और घुटने में दर्द है तो उसे अश्वगंधा के पाउडर को शक्कर या घी के साथ मिलाकर सेवन करना चाहिए | इस औषधि को रोजाना खाने से कमर दर्द, घुटनों का दर्द ठीक हो जाता है | यह हमारे शरीर में रोगों से लड़ने कि क्षमता को बढ़ता है |
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