सौंफ की फसल में लगने वाले रोग और उनके उपाय
मसाले का उपयोग :- हमारे भारत में हर तरह के मसाले पाए जाते है जिसका अधिक उपयोग सब्जियों में किया जाता है | यदि किसी भी सब्जी में मसाले का उपयोग नही किया जाता तो सब्जी का बनना संभव नही है | खाने में रंग लाने के लिए और उसमे स्वाद लाने के लिए मसाले का उपयोग किया जाता है | कभी – कभी मसाले का उपयोग दुसरे फ्लेवर को छुपाने के लिए भी किया जाता है | सब्जी में मिलाये जाने वाले मसालों में जीरा , काली मिर्च , सोंफ , नमक , हल्दी , मिर्च और भी अन्य मसाले का नाम लिया जाता है | ये मसाले कोई जड़ी बूटी से नही बनते | ये जड़ी – बूटी से बिलकुल अलग है | जिनका उपयोग सब्जी में फ्लेवर देने के लिए या उन्हें सजाने के लिए किया जाता है | सूखे बीज , फल , जड़ , छाल और सब्जियों को मसाला कहा जाता है | बहुत सारे मसालों में सूक्षम जीवाणुओं को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है | जिसमे से सोंफ एक है तो आज हम सोंफ के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे है |
सौंफ की फसल के बारे में विशेष जानकारी |
सौंफ के प्रमुख रोग एवं उनका जैविक उपचार :-
सोंफ के उत्पादन में भारत का पहला स्थान है | सोंफ का अधिकतर निर्यात भारत से किया जाता है | इसके निर्यात से हमे बहुत सारी विदेशी मुद्रा मिलती है | सोंफ एक मुख्य फसल है | इसका मसाले में प्रमुख स्थान है | इससे खाद्य पदार्थों में स्वाद बढ़ता है | लेकिन सोंफ की फसल में अनेक रोग लग जाते है | जिसके कारण इसके उत्पादन और गुणवता में भारी कमी आ जाती है | इससे निर्यात पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है | इस फसल पर लगने वाले रोग और उसकी रोकथाम करने के लिए उपाय के बारे में वर्णन इस प्रकार से है |
छाछिया :- यह एक कवक जन्य रोग है | जिसे इरीसाईंफी पोलीगिनो नामक कवक फैलाता है | इसे पाउडरी मिल्ड्यू भी कहते है | जब यह बीमारी पौधे में लगती है तब पौधे की पत्तियां , टहनियों पर एक सफेद रंग का चूर्ण दिखाई देने लगता है | जो कुछ समय के बाद पुरे पौधे में फैल जाता है | इस बीमारी के अधिक प्रभाव के कारण पौधा कमजोर हो जाता है और साथ ही साथ उत्पादन और गुणवता में भी भारी कमी आ जाती है |
इस बीमारी की रोकथाम करने के लिए निम्न उपाय है :-
1. एक हेक्टेयर भूमि पर गन्धक चूर्ण की २० से २५ किलोग्राम की मात्रा का छिडकाव करें या पानी में घुलनशील गन्धक की 2 ग्राम की मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर फसलों पर छिडकाव करें |
Sounf ke Bare Mein Vishesh Jankari |
2. केराथेन एल. सी. की एक मिलीलीटर की मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर एक घोल बनाएं इस घोल का छिडकाव महीने में कम से कम दो बार फसलों पर छिडकाव करें |
जड़ और तना गलन :- सोंफ के पौधे में यह रोग कवक के कारण फैलता है | पौधे में यह रोग स्केलेरेराटियोरम और फ्यूजेरियम सोलेनाई o नामक कवक के कारण फैलता है | इस बीमारी में पौधे की जड़ गलने लगती है और तना नीचे से मुलायाम हो जाता है | जड़ों पर छोटे – छोटे काले रंग के निशान हो जाते है | पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिए निम्न उपाय है |
सोंफ के बीजों को खेत में बुआई करने से पहले उन्हें उपचारित कर लेना चाहिए | बीजों को उपचारित करने के लिए एक किलोग्राम बीज को 250 लीटर गौमूत्र से उपचारित करें |
एक हेक्टेयर भूमि पर ट्राईकोडरमा विरिडी फफूंद की 2. 5 किलोग्राम को खाद में मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को बीजों की बुआई से पहले भूमि में देने से रोग नही लगते |
झुलसा रोग :- सोंफ के पौधे में झुलसा नामक रोग एक कवक जन्य रोग है | इस रोग को फैलाने वाले कवक का नाम रेमोलेरिया और अल्टरनेरिया है | इस बीमारी में पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है जो कुछ समय के बाद काले रंग में बदल जाते है | इस बीमारी का प्रभाव पौधे के सभी हिस्सों पर पड़ता है | जब पौधे में इस बीमारी का प्रकोप होता है और उस समय मौसम आद्र होता है तो यह रोग और भी अधिक बढ़ जाता है | इस बीमारी में पौधे की वृद्धि कम होती है और पौधे बौने रह जाते है | जो पौधा इस बीमारी से ग्रस्त है उस पर बीज पर नही बनते | इस बीमारी के कारण सोंफ के बीजों की गुणवता में भी कमी आ जाती है | इस रोग को ब्लाइट भी कहा जाता है | पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिए निम्नलिखित उपचार करने चाहिए |
Sounf mein Lagne Vale Rogon ke liye Upchar |
रोकथाम के उपाय :- सोंफ के बीजों को बोने के लिए केवल स्वस्थ और बीमारी रहित बीजों का चयन करें | पौधे में जब यह रोग लग जाता है तो 10 लीटर गौमूत्र , नीम की पत्तियों के काढ़े की 2. 5 लीटर की मात्रा और लहसुन की 250 ग्राम काढ़े को आपस में मिलाकर एक अच्छा सा मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण का फसल पर छिडकाव करें | इस प्रकार के छिडकाव को हर 15 दिन के अंतर पर करें | इससे झुलसा नामक रोग का प्रभाव कम हो जाता है |
रोगप्रतिरोधी किस्मों की बुआई करें |
· सौंफ की विभिन्न किस्में
जैसे :-
1. आर. एफ. -15 ,
2. आर. एफ.18 ,
3. आर. एफ.21 ,
4. आर. एफ. 31
5. जी. एफ. 2 आदि |
· सोंफ को कीट व्याधियों से बचाने के लिए निम्नलिखित उपाय करें |
1. तम्बाकू की एक किलोग्राम पत्तियां और लकड़ी की २० किलोग्राम राख़ को आपस में मिला लें | इसके बाद खेत में बीजों की बुआई करने से पहले या पौध रोपण से पहले इस मिश्रण को खेत की भूमि पर छिडकाव कर दें |
2. नीम के तेल में गौमूत्र को मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण की 500 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में भरकर फसलों पर छिडकाव करें | इस मिश्रण का छिडकाव समय – समय पर करें जैसे :- पहला छिडकाव बीजों की बुआई करने के लगभग ३० से 35 दिन के बाद , दूसरा छिडकाव 40 से ५० दिन के बाद और इसका तीसरा छिडकाव दुसरे छिडकाव करने के 10 से 15 दिन के बाद करें | फसल में तीसरा छिडकाव करने से पहले गंधक के 25 किलोग्राम चूर्ण को खेत की मिटटी में बिखेर दें | इससे पौधे में होने वाले रोग पर नियंत्रण पाया जाता है |
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