जीरे की फसल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी | Jire Ki Fasal Ke Bare Mein Kuch Mahtvpurn Jankaari



जीरा में होने वाले रोग और उनका उपचार :- जीरे में लगने वाले रोग के बारे में जानने से पहले जीरे के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त कर लें |
 जीरे की फसल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
 जीरे की फसल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी 

जीरा :-  जैसा की हम जानते है की मसालों के निर्यात में भारत का प्रथम स्थान है | इसी कारण भारत को मसालों का घर भी कहा जाता है | इनकी खेती करने से हमे अधिक से अधिक मुनाफा प्राप्त होता है | क्योकि इसके निर्यात से हमे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है | मसाले हमारे भोजन में एक अलग सी छाप छोड़ते है | इससे भोजन का टेस्ट बढ़ता है और साथ ही साथ रंग भी अच्छा आता है | इसलिए मसाले में जीरे का एक प्रमुख स्थान है | जीरा रबी की फसल होती है | इसकी फसल को पकने में कम समय लगता है और इससे हमे अधिक आमदनी प्राप्त होती है | जीरे का उपयोग मसाले के साथ साथ कई प्रकार की दवाईयों में भी किया जाता है | लेकिन इसकी फसल में कई तरह के रोग लग जाते है | जिससे सके उत्पादन और गुणवता में कमी आ जाती है | इन बिमारियों के कारण निर्यात पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है | यदि इन बिमारियों को सही समय पर पहचान लिया जाये और समय पर इसकी रोकथाम की जाये तो किसान इसकी खेती से अधिक से अधिक लाभ कमा सकता है |  
जीरे की फसल में निम्नलिखित तीन प्रकार के कीटों का कुप्रभाव होता है | जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
Jire Ki  Fasal Mein Hone Vale Rogon Ko Dur  Krne Ke Upchar
 Jire Ki  Fasal Mein Hone Vale Rogon Ko Dur  Krne Ke Upchar 
१.       उकठा :-
जीरे की फसल में होने वाला यह रोग बहुत भयंकर होता है | इसकी फसल में यह रोग फ्यूजेरियम ओक्सीस्पोरम कुमीनाइ oo नामक कवक के कारण होता है | जीरे के पौधे में यह किसी भी अवस्था में हो जाता है | चाहे वो प्रौढ़ अवस्था और या युवा अवस्था | यह रोग दोनों अवस्था में पौधे को नुकसान पंहुचाते है | इस बीमारी के प्रकोप से जीरे की सारी फसल नष्ट हो जाती है | पहले साल में यह बीमारी खेत के किसी – किसी हिस्से में होती है जो हर साल बढती जाती है | लगभग तीन साल के बाद तो उस खेत से जीरे की फसल लेना तो असम्भव हो जाता है |  इस बीमारी को विल्ट के नाम से भी जाना जाता है | पौधे में यह बीमारी भूमि के और बीज के साथ आती है | इस बीमारी की शुरुआत उगने वाले बीज से होती है | जिससे पौधा भूमि में से निकलने से पहले ही मर जाता है | इसके आलावा जब फसल भूमि से निकल जाये यदि उस समय इस बीमारी का प्रभाव होता है तो पौधा मुरझा जाता है और यदि इस बीमारी का प्रभाव फूल आने के बाद और बीज बनते समय होता है तो इसके कारण बीज आकार के छोटे और हल्के चिपके हुए होते है | रोगग्रस्त पौधे की बढ़वार कम हो जाती है जिससे पौधा बौना रह जाता है | इसके साथ ही साथ पौधे की पत्तियों का रंग पीला हो जाता है | अपनी फसल को इस बीमारी के प्रकोप से बचाने के लिए हमे निम्नलिखित उपाय करने चाहिए |
1.     जीरे की फसल की बुआई समय पे करें | इसकी बुआई 15 नवम्बर तक कर देनी चाहिए | रोग रहित फसल लेने के लिए स्वस्थ बीजों की बुआई करें |
2.     रोगग्रस्त खेत में जीरे की फसल ना बोयें | बीजो की बुआई करने से पहले उन्हें उपचारित कर लें | बीजों को उपचारित करने के लिए 200 से 250 लीटर गौमूत्र को एक किलोग्राम बीज के साथ उपचारित करें |
लगभग तीन साल तक फसल चक्र की विधि का अनुसरण करें | खेत में बुआई से पहले सरसों का भूसा या फलगटी को मिला दें | इससे रोग लगने की क्षमता कम हो जाती है |
3.     एक हेक्टेयर भूमि पर ट्राईकोडरमा विरिडी फफूंद की 2. 5 किलोग्राम को खाद में मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण को बीजों की बुआई से पहले भूमि में देने से रोग नही लगते | और साथ ही साथ रोग से लड़ने की क्षमता रखने वाले बीजों की ही बुआई करें |
·        झुलसा रोग :- पौधे में यह रोग अल्टरनेरिया नामक कवक के कारण फैलता है | फसल में जब फूल आने के बाद बदल छा जाएं तो इस बीमारी के लगने का खतरा बढ़ जाता है | इसलिए पौधे में फूल आने से लेकर फसल के पकने तक के समय में हमे फसल को बचा कर रखना चाहिए |  यदि मौसम अनुकूल परिस्थिति में होता है तो यह बीमारी बड़ी तेज़ी से फैलती है | इस बीमारी में पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है जो कुछ समय के बाद काले रंग में बदल जाते है | इस बीमारी का प्रभाव पौधे के सभी हिस्सों पर पड़ता है | जब पौधे में इस बीमारी का प्रकोप होता है और उस समय मौसम आद्र होता है तो यह रोग और भी अधिक बढ़ जाता है | इस बीमारी में पौधे की वृद्धि कम होती है और पौधे बौने रह जाते है | जो पौधा इस बीमारी से ग्रस्त है | उसका पौधा नीचे की और झुका हुआ लगता है | पौधे में यह बीमारी इतनी तीव्रता से फैलता है की यदि इसे समय रहते नही पहचाना गया और इस पर काबू नही पाया गया तो हम जीरे की फसल में होने वाले नुक्सान को बचा नही सकते | इसलिए इस रोग की समय पर रोकथाम करनी चाहिए | 
·        रोकथाम के उपाय :- जीरे के बीजों को बोने के लिए केवल स्वस्थ और बीमारी रहित बीजों का चयन करें | पौधे में जब यह रोग लग जाता है तो 10 लीटर गौमूत्र , नीम की पत्तियों के काढ़े की 2. 5 लीटर की मात्रा और लहसुन की 250 ग्राम काढ़े को आपस में मिलाकर एक अच्छा सा मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण का फसल पर छिडकाव करें | इस प्रकार के छिडकाव को हर 15 दिन के अंतर पर करें | इससे झुलसा नामक रोग का प्रभाव कम हो जाता है | इसके आलावा जीरे की फसल में अधिक सिंचाई ना करें |
·         छाछिया :- यह एक कवक जन्य रोग है | जिसे इरीसाईंफी पोलीगिनो नामक कवक फैलाता है | इसे पाउडरी मिल्ड्यू भी कहते है | जब यह बीमारी पौधे में लगती है तब पौधे की पत्तियां , टहनियों पर एक सफेद रंग का चूर्ण दिखाई देने लगता है | जो कुछ समय के बाद पुरे पौधे में फैल जाता है | इस बीमारी के अधिक प्रभाव के कारण पौधा कमजोर हो जाता है और साथ ही साथ उत्पादन और गुणवता में भी भारी कमी आ जाती है | 
Jire Ki Fasal ko keeton se Kis Trah Se Bachayen
Jire Ki Fasal ko keeton se Kis Trah Se Bachayen   


  इस बीमारी की रोकथाम करने के लिए निम्न उपाय है :-
1)    नीम के तेल में गौमूत्र को मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण की 500 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में भरकर फसलों पर छिडकाव करें | इस मिश्रण का छिडकाव समय – समय पर करें जैसे :- पहला छिडकाव बीजों की बुआई करने के लगभग ३० से 35 दिन के बाद , दूसरा छिडकाव 40 से ५० दिन के बाद और इसका तीसरा छिडकाव दुसरे छिडकाव करने के 10 से 15 दिन के बाद करें | फसल में तीसरा छिडकाव करने से पहले गंधक के 25 किलोग्राम चूर्ण को खेत की मिटटी में बिखेर दें | इससे पौधे में होने वाले रोग पर नियंत्रण पाया जाता है |
2)    तम्बाकू की एक किलोग्राम पत्तियां और लकड़ी की २० किलोग्राम राख़ को आपस में मिला लें | इसके बाद खेत में बीजों की बुआई करने से पहले  या पौध रोपण से पहले इस मिश्रण को खेत की भूमि पर बिखेर दें |
3)    केराथेन एल. सी. की एक मिलीलीटर की मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर एक घोल बनाएं इस घोल का छिडकाव महीने में कम से कम दो बार फसलों पर छिडकाव करें | इसके आलावा  एक हेक्टेयर भूमि पर गन्धक चूर्ण की २० से २५ किलोग्राम की मात्रा का छिडकाव करें या पानी में घुलनशील गन्धक की 2 ग्राम की मात्रा को एक लीटर पानी में मिलाकर फसलों पर छिडकाव करें | 
जीरे की फसल के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी, Jire  ki fasal ke Bare Mein Kuch Mahatvapurn Jankari , जीरे,  Jire Ki  Fasal Mein Hone Vale Rogon Ko Dur  Krne Ke Upchar | Jire Ki Fasal ko keeton se Kis Trah Se Bachayen   

No comments:

Post a Comment


http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/09/pet-ke-keede-ka-ilaj-in-hindi.html







http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/08/manicure-at-home-in-hindi.html




http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/11/importance-of-sex-education-in-family.html



http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/10/how-to-impress-boy-in-hindi.html


http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/10/how-to-impress-girl-in-hindi.html


http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/10/joint-pain-ka-ilaj_14.html





http://ayurvedhome.blogspot.in/2015/09/jhaai-or-pigmentation.html



अपनी बीमारी का फ्री समाधान पाने के लिए और आचार्य जी से बात करने के लिए सीधे कमेंट करे ।

अपनी बीमारी कमेंट करे और फ्री समाधान पाये

|| आयुर्वेद हमारे ऋषियों की प्राचीन धरोहर ॥

अलर्जी , दाद , खाज व खुजली का घरेलु इलाज और दवा बनाने की विधि हेतु विडियो देखे

Allergy , Ring Worm, Itching Home Remedy

Home Remedy for Allergy , Itching or Ring worm,

अलर्जी , दाद , खाज व खुजली का घरेलु इलाज और दवा बनाने की विधि हेतु विडियो देखे

Click on Below Given link to see video for Treatment of Diabetes

Allergy , Ring Worm, Itching Home Remedy

Home Remedy for Diabetes or Madhumeh or Sugar,

मधुमेह , डायबिटीज और sugar का घरेलु इलाज और दवा बनाने की विधि हेतु विडियो देखे