नवरात्र के प्रथम दिन की पूजा | Maa Shailputri Story in Hindi | माँ शैलपुत्री की कहानी

प्रथम नौरात्रा माता शैल पुत्री

माता शैल पुत्री हिमालय की बेटी है इसलिए इन्हें हम शैल पुत्री के नाम से जानते है  | नौरात्रे के पहले दिन इन्ही की पूजा उपासना की जाती है माता शैल पुत्री का रूप :- माँ भगवती शैल पूत्री  वृषभ सवारी करती है और इनके सीधे हाथ में त्रिशूल और उलटे हाथ में कमल का फूल लेती है |  नवरात्रे के पहले दिन इनके इसी रूप की पूजा अर्चना की जाती है माता शैल पूत्री की पूजा करने से योग साधना हासिल करना संभव है और माता प्रसन्न होकर अपने भक्तो को सफलता और अलग अलग तरह की उपलब्धिया प्रदान करती है | माता शैल पुत्री को मातृ की शक्ति , प्यार, दया  और ममता का स्वरूप मान कर इनकी पूजा की जाती है हवन करने के बाद माता शैल पुत्री से हाथ जोड़ कर विनम्र भाव से प्राथना करे की हे माता शैल पुत्री हमारे द्वारा की हुई इस पूजा अनुष्ठान में पधार कर हमें अनुग्रहित करे और हमें यह आशीर्वाद दे की हमारी पूजा सफल हो | फिर इस मन्त्र को बोले जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नामोस्तुते माता के पैर छूए | फिर दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय को पढ़े | साथ में आप यह कहानी भी पढ़ सकते है जैसा की आपको पता माता सती को हम को हम हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने कारण इन्हें शैलपुत्री  के नाम से भी जानते है | 

दक्ष प्रजापति की कई पुत्रीया थी फिर भी दक्ष को ऐसी कन्या की अभिलाषा थी जो जो बहुत शक्तिशाली और सर्व विजयी होने के साथ गुणवती और आलोंकिक सौन्दर्य की धनी हो | अपनी इच्छा पूर्ति हेतु दक्ष ने माँ भगवती के तप के लिए वन में चले गये वर्षो तक साधना करने के बाद माँ भगवती उनके तप से प्रसन्न हो कर यह वरदान दिया की मैं तुम्हारे घर में पुत्री रूप में जन्म लूगी यह सुन कर दक्ष प्रजापति बहुत अधिक खुश हुआ और अपने घर वापस आ गया | कुछ समय बाद दक्ष के घर एक अदभुत सुंदर कन्या ने जन्म लिया | कुछ सालो बाद कन्या बड़ी हुई तो दक्ष को अपनी पुत्री के विवाह की चिंता हुई ब्रह्मा जी के कहने पर दक्षप्रजापति ने अपनी कन्या का विवाह भगवान शिव से करने के लिए मान गये | क्योंकि वे जानते थे की सती आदिशक्ति माँ भगवती का अवतार थी और भगवान शिव आदि पुरुष है इसलिए वो इस विवाह से खुश थे | और विवाह के बाद देवी सती भगवान शंकर के साथ कैलाश पर्वत पर ख़ुशी रहने लगी |

नवरात्र के प्रथम दिन की पूजा , Maa Shailputri Story in Hindi , माँ शैलपुत्री की कहानी

एक बार ब्रह्मा जी ने एक सभा का आयोजन किया जिसमे सभी देवता यक्ष, गन्धर्व, और भगवान शंकर जी भी थे शामिल हुए | जब दक्ष प्रजापति आये तो अभी देवता उनके सम्मान में खड़े हुए और शिव जी ध्यान मुद्रा में अपने स्थान पर बैठे रहे और न ही उन्होंने दक्षप्रजापति को नमस्कार किया | यह सब देख कर दक्षप्रजापति ने अपना अपमान समझा और वह मन ही मन में शिव जी से दुश्मनी का भाव मानने लगे | सती को भी इस बात का धीरे धीरे आभास होने लगा कि दक्ष प्रजापति और शिव के बीच में मतभेद उत्पन्न हो गये है |  शिव जी को नीचा दिखाने और अपमानित करने हेतु दक्ष प्रजापति ने एक यज्ञ  आयोजन किया जिसमे सभी देवी देवता को बुलाया गया लेकिन शिव जी और सती को नही | जब सती ने देखा की सब देवी देवता सज धज कर अपने विमान के सवार होकर कनखल दक्ष प्रजापति के महल की ओर जा रहे है | तो उन्होंने भी शिव जी से आग्रह किया की हम यज्ञ में शामिल होने के लिए चलते है पर शिव जी ने कहा की बिन बुलाये हमे किसी के घर में जाना उचित नही होगा, इस पर सती जी ने कहा की वो मेरे पिता है | और पिता के घर जाने के लिए मुझे किसी निमन्त्रण की जरूरत नही है इस पर शिव जी ने कहा की एक पिता  पर पुत्री का जब तक ही अधिकार होता है जब तक उसकी शादी नही हो जाती |  पर सती ने हठ कर की मुझे तो जाना है अपने पिता के घर. वहाँ पर मेरी सारी बहने भी आयी होगी और मुझे अपने माता पिता और अपनी बहनों से मिले बहुत दिन हो गये है तो मैं जरुर अपने पिता के घर जाउगी | तब भगवान शंकर ने सती के साथ अपने गणों को भी भेज दिया |

 वहाँ जाकर सती ने देखा की उसे देख कर सिर्फ उसकी माता और बहने ही खुश है और उसके पिता ने देखने के बाद भी अनदेखा कर दिया | उसके बाद भी सती जब अपने पिता के पैर छूने गई तो पिता ने भगवान शिव और सती का घोर अपमान किया जिसे वो सहन नही पाई और उसी यज्ञ वेदी में कूद कर अपने आप को भस्म कर दिया | जब यह समाचार शिवजी के पास गया तो उन्होंने अपने गणों के साथ यज्ञ स्थल पर जा कर  विध्वंस कर दिया और दक्ष प्रजापति का त्रिशूल से सिर धड़ से अलग कर दिया | जब दक्ष प्रजापति को अपनी भूल का अनुभव हुआ तो भगवान शंकर जी से माफ़ी मांग ली  उस घटना के बाद सती के माता और दक्ष प्रजापति ने सारा जीवन भोले नाथ की भक्ति की को समर्पित कर दिया | और तब भोले नाथ माता सती के जले हुए शव को लेकर ब्रह्मांड में यह वह भटकने लगे तब भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन को आदेश दिया की तुम माता सती के शव को नष्ट कर दो | और जिस भी स्थान पर माता के शरीर का अंग कट कर गिरा वहाँ पर ही शक्ति पीठ बना भारत वर्ष में कुल 51 शक्ति पीठ है | उसके बाद माता सती  ने दोबारा हिमालय पर्वत के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया जिनका नाम शैलपुत्री पुत्री था और आगे चल कर माँ पार्वती के नाम से विख्यात हुई | इस कथा को पढने के बाद दुर्गा सप्तशती के प्रथम का  अध्याय को भी पढना चाहिए माँ भगवती के 108 नाम  और साथ ही दुर्गा चालीसा भी पढ़े बाद में  आरती करे उसके बाद जल सूर्य को अर्पित करे | और परिवार जनों में पसाद बांटें |

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