द्वितीय नवदुर्गा: माता ब्रह्मचारिण
हम नवरात्रे के दूसरे
दिने माता ब्रह्मचारणी की पूजा अर्चना करते है यह माता भगवती का दूसरा रूप है जैसे नाम से सी पता चलता है ये देवी योग और
ध्यान का आचरण करती है | ब्रह्म ऋषि नारद मुनि के उपदेश से देवी पार्वती ने भगवान
भोले शंकर को पति रूप में पाने के लिये वन में घोर तपस्या की थी| 100 साल तक धरती
पर रह कर सिर्फ सब्जी खा कर तप किया और 1000 साल तक माता पार्वती ने फल – फूल
ग्रहण करके तप किया था कुछ दिनों बाद वन में खुले आसमान के तले कठोर व्रत किया
सर्दी गर्मी बरसात और आंधी तूफान में कष्ट सहे इन सबके बाद भी जब शिव शंकर प्रसन्न
नहीं हुए तो माता पार्वती ने 3000 हजार साल तक पेड़ से टूटे हुए बिल्व पत्र ही
खायें और अपनी भक्ति में लीन रही | तब भी भोले नाथ ने माता को दर्शन नहीं दिए, तो
माता पार्वती ने सूखे बिल्व पत्र भी खाना छोड़ दिए तब माता पार्वती का नाम अर्पणा
पड़ा और उसके बाद कई हजार सालो तक निर्जल और सिर्फ हवा पर ही जीवित रह कर भोले नाथ
की आराधना करती रही | जिससे देवी पार्वती का शरीर क्षीण हो गया माता को इतना कठोर
तप करते देख सारे देवता यक्ष गन्धर्व ऋषि मुनि
ने ब्रह्मचारणी की तपस्या की सरहाना की और कहा की हे देवी हम तुम्हारी इतनी
कठोर तपस्या से प्रसन्न है क्योंकी आज तक सारे संसार में किसी ने भी इतनी कठोर तपस्या
नहीं की है शिव जी तुम्हारे तप से प्रसन्न हो कर तुम्हे जल्दी दर्शन देगे और
तुम्हारी सारी मनोकामना पूरी हो | तत्पश्चात भगवान भोले नाथ माता की परीक्षा लेने
के लिए एक साधू का वेश धारण में आयें और माता पार्वती से शिव जी के बारे में अप
शब्द कहने लगे कि तुम इतनी सुंदर हो, कहा उस अघोरी के पीछे अपना जीवन बर्बाद करने
पर तुली हो जंगलो में रहने वाला जिसका ना कोई घर है ना परिवार का अतापता, यह सुन
कर माता पार्वती क्रोध में भर कर साधू को श्राप देने लगी तभी भगवान शंकर अपने रूप
में आये और कहा की हे देवी मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हु माँगों जो इच्छा हो
तब देवी पार्वती ने उनसे विवाह की प्रार्थना की और भोले नाथ ने उन्हें विवाह का
वचन दे के अंतरध्यान हो गये | और कठोर तप करने कारण इन्हें ब्रह्मचारणी कहा जाता है माता ब्रह्मचारणी का रूप सादगी पूर्ण है दाहिने हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाहिने
हाथ में कमंडल धारण करती है | और श्रद्धा पूर्ण इनकी पूजा अर्चना करने तप,
वैराग्य, ध्यान, त्याग, शुद्ध आचरण और सयंम की प्राप्ति होती है |और इस दिन माता
को चीनी का भोग लगाना चाहिये| और हो सके तो चीनी का दान भी करे | इस कथा को पढने
के बाद दुर्गा सप्तशती के दुसरे का अध्याय
को भी पढना चाहिए माँ भगवती के 108 नाम और
साथ ही दुर्गा चालीसा भी पढ़े बाद में आरती
करे उसके बाद जल सूर्य को अर्पित करे | और परिवार जनों में पसाद बांटें |
इस कथा से हमे यह
शिक्षा मिलती है की आपके जीवन में कितनी ही मुश्किलें क्यों आये आपको कभी भी
हिम्मत नही हारनी चाहिए |
ब्रह्मचारिणी देवी | Maa Brahmacharini Pooja in Hindi , द्वितीय नवरात्र , Navratri Dwitiya |
माता ब्रह्मचरणी का मन्त्र :-
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