वमन चिकित्सा प्रणाली
जिस रोगी के आमाशय या गुर्दे में मल इक्कठा हो गया है , तो
ऐसे रोगी को भूख लगनी बंद हो जाती है , शरीर का विकास रूक जाता है और body में energy
level नीचे आ जाता है , अत इस मल को बाहर निकालने के लिए उल्टी लाने
वाली औषधियों का प्रयोग किया जाता है | इस प्रक्रिया को वमन तकनीक कहा जाता है | वमन करने से आमाशय की उचित व प्राकर्तिक प्रकार से शुद्धी हो जाती है |
उलटी करना भी एक limit के अंदर ही होना चाहिए , आवश्कता से अधिक उलटी या वमन करने से हमारे शरीर को नुकशान भी हो सकता है, अत ये क्रिया किसी आयुर्वेदाचार्य की निगरानी में ही करना उत्तम होगा. हमने कई बार देखा
होगा की जानवर जैसे बिल्ली या कुत्ता भी कई बार घास फूस खाकर उलटी करके अपनी
अमास्य या गुर्दों को साफ करते है , इस उपचार का प्रयोग अधिक गर्मी और सर्दी के
समय को छोडकर किया जाता है |
इस उपचार का प्रयोग उन रोगियों के लिए किया जाता है
जो पित्त और कफ ( बलगम ) के रोग से घिरे हुए है | इन बीमारियों के आलावा कुछ और
बीमारी है जो व्यक्ति को हो जाती है | जैसे :- खांसी , श्वास या साँस से सम्बंधित
बीमारी , नाक से सम्बंधित रोग - जुकाम , जी मचलना , कफज ज्वर , भूख न लगना , बदहजमी
, खाना न पचना , एनीमिया , जहर का प्रभाव , शरीर में अवांछित भारीपन , शरीर के
निचले अंग से खून निकलना , कुष्ठ या अन्य चर्म रोग गांठे या गिल्टी , हाथों और
पैरों में भारी सुजन , नाक की हड्डी का बढना , पेशाब में जलन व दुसरे रोग ,
ग्रेह्नी की बीमारी , ज्यादा नींद आना , शरीर में हड्डियों या फिर दूसरे अंगों का
आवशकता से अधिक बढना , मिर्गी , उन्माद , पतले दस्त होना , कान का बहना , शरीर की
चर्बी का बढना , और उससे होने वाले रोग , नाक , तालु और होंटों का पकना आदि रोगों को इस तकनीक के द्वारा इलाज किया जाता है
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