कुल्थी की खेती
कुल्थी एक तरह की दाल होती है | जिसे खाने
से फायदा मिलता है | आयुर्वेद में इस दाल
का सेवन मनुष्य के लिय फायदेमंद साबित होती है | इसे अलग – अलग भाषा में अलग – अलग
नाम दिया गया है |
जैसे :-
· हिंदी भाषा में :- कुल्थी या कुल्थ, खरथी, गराहट
· संस्कृत भाषा :- कुल्थिका , कुल्थ
· गुजरती भाषा :- कुलथी
· गढ़वाली में :- फंणु
· मराठी में :- डूलगा , कुल्थी
भारत को कुल्थी की दाल कि जन्मस्थली मानी
जाती है | क्योकि कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के कुछ हिस्से में खुदाई करने के बाद हमे
2000ई. वी. पुरानी कुल्थी के अवशेष प्राप्त हुए है | कुल्थी की दाल खाने से हमे कुछ ऐसे रोग है जिसे
हम कम कर सकते है | जैसे :- पित्त और रक्त विकार नाशक , उष्ण वीर्य , पसीने को
रोकना, श्वास सम्बन्धी रोग , कृमि , बुखार , पीनस , कास , कफ, पथरी , हिचकी ,
शुक्र और दाह आदि
· कुल्थी में रासायनिक गुण :- इसके बीज में प्रोटीन 22 % स्नेह 0. 5
%खनिज ३.१ % रेशा 5 . 3 % कार्बोहाइड्रेट
57. 3 % खटिक 0. 28 % और फास्फोरस 0. 39 %पाया जाता है |
· कुल्थी के पौधे की संरचना :- इसका क्षुप झाड़ीनुमा होता है लेकिन पतला
और धूसर होता है | इसके पौधे की ऊंचाई 30 से 45 सेंटीमीटर कि होती है | इसकी जड़ों
में अनेक शाखायें निकली हुई होती है | इसके पौधे के पत्ते त्रिपत्रक होते है | इसके
पत्ते आकार में लम्बे और वृंतयुक्त हल्का पीला रंग लिए हुए हरे रंग का होता है | कुल्थी
के बीज हल्के लाल काले , चितकबरे , चपटे और चमकीले होते है | कुलथी कि दाल उड़द के
समान दिखते है |
· कुल्थी की खेती के लिए भूमि कि तैयारी :- खेत को तैयार करने के लिए दो या तीन बार
देशी हल से अच्छी तरह जुताई करें | हर एक जुताई करने के बाद पाटा अवश्य लगाये | कुलथी
के बीजों को ज्यादा गहराई में नही बोया जाता | इसे उपर कि सतह पर बोया जाता है
जिसमे पानी का भराव नहीं होना चाहिए |
· कुल्थी कि किस्में :- इसकी निम्नलिखित किस्मों को
उगाया जाता है |
१. बिरसा कुलथी :- इस किस्म को पकने में 90 से 110 दिन का समय
लगता है | इसकी खेती करने से हमे 10 से 12 किवंटल प्रति हेक्टेयर की दर का अच्छा उत्पादन
प्राप्त होता है |
२. मधु और बी. आर. 10 :- देरी से
बुआई कि जाती है और यह किस्म बहुत उपयुक्त होती है |
·
कुल्थी कि बुआई का उचित समय :- कुलथी कि दाल को अगस्त
के महीने में बोना चाहिये | यह समय इसकी अच्छी उपज के लिए उत्तम होता है |
बीज कि दर :- कुलथी की 20
किलोग्राम बीज कि मात्रा को एक हेक्टेयर भूमि पर बोया जा सकता है|
·
उर्वरक का प्रयोग :- कुलथी की
फसल में निम्नलिखित उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है |
1.यूरिया कि 44 किलोग्राम कि
मात्रा को एक हेक्टेयर भूमि पर उपयोग किया जाता है |
कुल्थी की खेती कैसे करें |
2.सिंगल सुपर फास्फेट कि 250
किलोग्राम को एक हेक्टेयर भूमि पर डाला जाता है | इसके आलावा मयूरीट ऑफ़ पोटाश की
34 किलोग्राम की मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए काफी है |
3.विशेष बात :- बुआई करने से पहले
बीजों को जीवाणु युक्त खाद से उपचारित करना चाहिए |
4.खरपतवार कि रोकथाम करने के लिए
:- कुल्थी कि फसल में कम से कम दो बार निराई और गुड़ाई करनी चाहिए | पहली बार बुआई
के 15 से २० दिन के बाद और दूसरी बार 30 से ३५ दिन के अंतर पर निराई – गुड़ाई करनी
चाहिए | इससे खेत में उगे हुए खरपतवार
नष्ट हो जाते है |
5.फसल कि कटाई और भंडाराण :- कुल्थी
कि फसल कि फलियाँ एक बार में पककर तैयार हो जाती है | पकने के उपरांत इसकी फलियों
का रंग भूरा हो जाता है | इसके पौधे का रंग पीला हो जाता है |
इसके पके हुए पौधे को हसुए से काट कर धुप में सुखा लिया जाता है | इसके बाद दौनी
प्रिक्रिया का प्रयोग करके इसके बीजों को फलियों में से अलग कर लिया जाता है |
6. भंडारान :- कुलथी के बीजों को
धुप में सुखाकर भंडाराण किया जाता है |
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