आंवले की खेती करने का तरीका :-
आंवले में पौषक तत्वों की मात्रा अधिक पाई जाती है | यदि इसकी खेती करते है तो इसका उत्पादन भी बहुत अधिक मात्रा में होता है | आंवले को एक अद्वितीय औषधि गुणों वाला पौधा भी कहा जाता है | इसमें शर्करा और भी अन्य पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा पाई जाती है | यह विटामिन सी का प्रमुख स्त्रोत है | इसके प्रयोग करने से मानव के शरीर में विटामिन सी की कमी पूरी हो जाती है | आंवला भारत का प्रमुख पौधा माना जाता है | आंवले के ताज़े रस और इसके फल को धूप में सुखाकर प्रयोग किया जाता है | आंवले को दोनों प्रकार से प्रयोग किया जाता है | हमारे भारत में आयुर्वेदिक औषधि का प्रयोग बहुत किया जाता है जिसमे आंवले को प्रमुख स्थान दिया गया है | इसमें एक आयुर्वेदिक औषधि के सभी गुण विद्यमान है |इसलिए आयुर्वेद में इसकी मांग हमेशा से रही है | आज कल के भाग दौड़ की जिन्दगी में मनुष्य एलोपेथिक दवाओं को छोडकर आयुर्वेदिक दवाओं से बिमारियों का इलाज कराते है | इसके उपयोग से मनुष्य को कोई हानी नहीं होती है | आंवला एक सबसे अच्छा और गुणकारी औषधि है इसलिए आंवले की मांग बढती ही जा रही है | इसी वजह से भारत की बड़ी – बड़ी कम्पनियियाँ इसकी मांग करने लगे है | आंवले में औषधि गुण के साथ – साथ विटामिन सी की मात्रा भी अधिक पाई जाती है | आंवले के इसी गुण के कारण इससे कई तरह की दवाईयां तैयार की जाती है | जैसे त्रिफला चूर्ण में मिलाकर च्वयनप्रश् , ब्रम्हा रासयन मधुमेधा चूर्ण आदि | इन सभी औषधि के आलावा बालों के लिए टॉनिक अथवा शैम्पू , दांतों को साफ करने के लिए दन्त मंजन और चहरे की सुन्दरता को बढाने के लिए क्रीम भी बनवाई जाती है | आंवले का सेवन करने से स्कर्वी रोग , पेशाब में कमी , जैविक रोधी आदि रोग ठीक हो जाते है और साथ ही साथ लीवर को भी ठीक रखता है | आंवले का मुरब्बा भी तैयार करके बाजारों में बेचा जाता है | जिसके खाने से आँखों का रोग ठीक हो जाता है | इसलिए इसकी खेती करने में किसान को बहुत लाभ मिलता है | आज हम इस अध्याय में आंवले की खेती किस प्रकार से करनी चाहिए| इस बात की पूरी जानकारी हम आपको दे रहे है | जिसका उपयोग करके आप आंवले की एक अच्छी फसल तैयार करके अपनी आमदनी को बढ़ा सकते है |
.आंवले की फसल को बोने के लिए उपयुक्त जलवायु का वर्णन :- :- आंवला उषण जलवायु का पौधा होता है इसलिए इसे शुष्क प्रदेशो में उगाया जाता है | इस पौधे का एक गुण यह है की इसे उपोषण जलवायु में आसानी से और सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है | यह पौधा 0. 46 डिग्री सेल्सियस तापमान को भी सहन कर सकता है | आंवले के पौधे में जब फुल उगने लगे तो इसके लिए गर्म जलवायु होनी चाहिए | गर्म जलवायु इसके बढ़ने में बहुत उचित होती है | इसके पेड़ को लू लगने और पाले पड़ने का कोई असर नहीं होता है |
आंवला की खेती करने का तरीका |
आंवले में पौषक तत्वों की मात्रा अधिक पाई जाती है | यदि इसकी खेती करते है तो इसका उत्पादन भी बहुत अधिक मात्रा में होता है | आंवले को एक अद्वितीय औषधि गुणों वाला पौधा भी कहा जाता है | इसमें शर्करा और भी अन्य पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा पाई जाती है | यह विटामिन सी का प्रमुख स्त्रोत है | इसके प्रयोग करने से मानव के शरीर में विटामिन सी की कमी पूरी हो जाती है | आंवला भारत का प्रमुख पौधा माना जाता है | आंवले के ताज़े रस और इसके फल को धूप में सुखाकर प्रयोग किया जाता है | आंवले को दोनों प्रकार से प्रयोग किया जाता है | हमारे भारत में आयुर्वेदिक औषधि का प्रयोग बहुत किया जाता है जिसमे आंवले को प्रमुख स्थान दिया गया है | इसमें एक आयुर्वेदिक औषधि के सभी गुण विद्यमान है |इसलिए आयुर्वेद में इसकी मांग हमेशा से रही है | आज कल के भाग दौड़ की जिन्दगी में मनुष्य एलोपेथिक दवाओं को छोडकर आयुर्वेदिक दवाओं से बिमारियों का इलाज कराते है | इसके उपयोग से मनुष्य को कोई हानी नहीं होती है | आंवला एक सबसे अच्छा और गुणकारी औषधि है इसलिए आंवले की मांग बढती ही जा रही है | इसी वजह से भारत की बड़ी – बड़ी कम्पनियियाँ इसकी मांग करने लगे है | आंवले में औषधि गुण के साथ – साथ विटामिन सी की मात्रा भी अधिक पाई जाती है | आंवले के इसी गुण के कारण इससे कई तरह की दवाईयां तैयार की जाती है | जैसे त्रिफला चूर्ण में मिलाकर च्वयनप्रश् , ब्रम्हा रासयन मधुमेधा चूर्ण आदि | इन सभी औषधि के आलावा बालों के लिए टॉनिक अथवा शैम्पू , दांतों को साफ करने के लिए दन्त मंजन और चहरे की सुन्दरता को बढाने के लिए क्रीम भी बनवाई जाती है | आंवले का सेवन करने से स्कर्वी रोग , पेशाब में कमी , जैविक रोधी आदि रोग ठीक हो जाते है और साथ ही साथ लीवर को भी ठीक रखता है | आंवले का मुरब्बा भी तैयार करके बाजारों में बेचा जाता है | जिसके खाने से आँखों का रोग ठीक हो जाता है | इसलिए इसकी खेती करने में किसान को बहुत लाभ मिलता है | आज हम इस अध्याय में आंवले की खेती किस प्रकार से करनी चाहिए| इस बात की पूरी जानकारी हम आपको दे रहे है | जिसका उपयोग करके आप आंवले की एक अच्छी फसल तैयार करके अपनी आमदनी को बढ़ा सकते है |
.आंवले की फसल को बोने के लिए उपयुक्त जलवायु का वर्णन :- :- आंवला उषण जलवायु का पौधा होता है इसलिए इसे शुष्क प्रदेशो में उगाया जाता है | इस पौधे का एक गुण यह है की इसे उपोषण जलवायु में आसानी से और सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है | यह पौधा 0. 46 डिग्री सेल्सियस तापमान को भी सहन कर सकता है | आंवले के पौधे में जब फुल उगने लगे तो इसके लिए गर्म जलवायु होनी चाहिए | गर्म जलवायु इसके बढ़ने में बहुत उचित होती है | इसके पेड़ को लू लगने और पाले पड़ने का कोई असर नहीं होता है |
आंवले की फसल को बोने के लिए उपयुक्त जलवायु का वर्णन :- :- आंवला उषण जलवायु का पौधा होता है इसलिए इसे शुष्क प्रदेशो में उगाया जाता है | इस पौधे का एक गुण यह है की इसे उपोषण जलवायु में आसानी से और सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है | यह पौधा 0. 46 डिग्री सेल्सियस तापमान को भी सहन कर सकता है | आंवले के पौधे में जब फुल उगने लगे तो इसके लिए गर्म जलवायु होनी चाहिए | गर्म जलवायु इसके बढ़ने में बहुत उचित होती है | इसके पेड़ को लू लगने और पाले पड़ने का कोई असर नहीं होता है |
बुआई का तरीका |
आंवले के पौधे को बोने के लिए गड्ढो की खुदाई और भराई :- पौधे को बोने से पहले जून के महीने में 1 से सवा मीटर तक का गड्ढा खोद लेना चाहिए | इन गड्ढो को कम से कम 9 या 10 मीटर की दुरी पर खोदें | यदि मिटटी की परत कठोर हो और इसमें कंकड़ पथर हो तो इसे खोदकर अलग निकाल लेना चाहिए | नहीं तो इनकी वजह से पौधे के बढने में बाधा आ सकती है | जब बारिश का मौसम आये तो खोदे हुए गड्ढो में पानी भर देना चाहिए | पानी भरने से पहले इन गड्ढो में पहले से जमे हुए पानी को बाहर निकालकर फेक देना चाहिए | खोदे गये हर एक गड्ढे में 55 से 60 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद , 10 से 20 किलोग्राम बालू , लगभग 10 किलोग्राम जिप्सम और आर्गनिक खाद को आपस में मिला ले | इस प्रकार से ये खाद का एक अच्छा मिश्रण बन जाता है | इस तैयार खाद के मिश्रण को हर एक गड्ढे में लगभग 5 किलोग्राम की मात्रा में भर दें | खाद को गड्ढो में भरने के 20 से 25 दिनों के बाद ही पौधा रोपण की क्रिया आरम्भ कर देना चाहिए | सामान्य रूप से पड़ी हुई भूमि के रह एक गड्ढे में लगभग 50 किलोग्राम सड़े हुए गोबर की खाद , 2 से 3 किलो नीम की सड़ी हुई खाद को आपस में मिलाकर गड्ढे में कम से कम 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई तक भर दें |
आंवले की फसल की जातियां :- आंवले की निम्नलिखित जातियां पाई जाती है |
चकिया , कृष्ण , फ़्रांसीसी , कंचन नरेंदर आंवला -5 ,4 , 7 एवं गंगा , बनारसी आदि जातियां व्यासायिक जातियां है | इन सभी में से चकैया और फ्रांसिस जातियां अधिक लाभकारी होती है | इसके आलावा बनारसी , कृष्ण , NA फ्रांसिस 7 NA , AA 6 चकैया ये सभी किस्म के अतिरिक्त आगरा में पैदा की जाने वाली किस्म बलवंत आंवला और गुजरात में विकसित – 1 आनन्द , आनन्द -2 , आनन्द 3 , भी उगाई जाती है
पौधा रोपण की विधि :- आंवले के पौधे को बोने के लिए भूमि में गड्ढो की खुदाई जून के महीने में की जाती है | इन गड्ढो को 1 गुना , 1 गुणा एक मीटर के आकार में खोदते है | आंवले की किस्म के अनुसार की गड्ढो की दुरी 9 से 10 मीटर की रखते है | पौधो को वर्गाकार विधि से लगाते है | भूमि में किये हुए गड्ढो की भराई करते समय 20 से 25 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद और पांच किलोग्राम नीम की खली और 2 किलो गड्ढे से निकली हुई मिटटी को खाद में मिलाकर मिश्रण बनाये | इस तैयार खाद के मिश्रण को गड्ढे में लगभग 10 सेंटीमीटर तक की ऊंचाई पर भर दें और साथ ही साथ इन सभी गड्ढे की सिंचाई भी कर दें | ताकि गढ़हे में मिटटी भली प्रकार से बैठ जाये | इस प्रकार से आंवले का पौधा रोपने के लिए गड्ढे तैयार किये जाते है | इन्ही गड्ढे में जुलाई से सितम्बर के महीने में या सिंचाई का उचित प्रबन्ध होने पर जनवरी से मार्च के बीच में पौधा रोपण का कार्य किया जाता है | पौधे रोपण का कार्य जनवरी या फरवरी में करने से पर अच्छा लाभ मिलता है | आंवले में स्वयम बंध्यता पाई जाती है | इसी कारण से इनकी दो तरह की फसले अवश्य लगाते है जो की एक दुसरे के लिए परागण का कार्य करते है | जिस भिमी पर आंवला लगाया जाता है उस भूमि में 5 % परागड की किस्मे अवश्य लगानी चहिये | इसके लगाने से हमे आंवले की अच्छी उपज प्राप्त होती है |
|आंवले की खेती में प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- इसकी खेती में 50 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद , 20 किलो नीम की खली , 40 से 50 किलो ग्राम अरंडी की खली आदि की आवश्कता पड़ती है | इन सभी खादों को आपस में मिलाकर खाद का एक अच्छा सा मिश्रण तैयार करें | आंवले का जो पौधा 6 से 12 साल का हो उसके लिए लगभग 2 किलो ग्राम खाद एक पौधे के लिए प्रयोग किया जाता है | इसके आलावा जो पौधा एक से तीन साल का होता है उसके लिए 3 से 5 किलो ग्राम खाद की जरूरत होती है | खाद को आंवले की फसल में साल में कम से कम दो बार अवश्य डालनी चाहिए | एक बार जनवरी या फरवरी के समय और दूसरी बार जुलाई के महीने में जब आंवले के पौधे में फलो का विकास हो रहा हो | जो पेड़ 12 साल से ऊपर का होता है उसके लिए खाद उसकी उम्र के अनुसार ही डालनी चाहिए | जैसे कोई – कोई पौधा 20 साल का भी होता है उसके लिए कम से कम 10 किलो खाद की आवश्कता होती है | आंवले की फसल में फूल आने से कम से कम 15 या 20 दिन पहले ही एमिनो एसिड फोल्विक , एसिड पोटाशियम होमोनेट की 1 : 2 : 2 के अनुपात में मिलाकर एक मिश्रण बनाये | इस मिश्रण को लगभग 250 से 300 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर २० लीटर पानी में मिलाकर पूरे खेत में छिडकाव करना चाहिए | इसके छिडकाव करने से पौधे में होने वाले हानिकारक कीट भी नष्ट हो जाते है | और पौधे का अच्छा विकास होता है | आंवले की खेती में सिंचाई करने का तरीका :- आंवले के पौधे की गर्मी के मौसम में एक सप्ताह के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए और सर्दी के मौसम में एक महीने में कम से कम दो बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए | टपक सिंचाई करने से आंवले की पैदावार अच्छी होती है और इसके साथ ही साथ अन्य खरपतवार भी कम उगते है | फरवरी और मार्च में जब आंवले में फूल आने लगे तो इसकी सिंचाई नहीं करनी चाहिए | जबकि अप्रैल से जून तक के समय में विशेष रूप से सिंचाई करनी चाहिए | इस प्रकार से सिंचाई करने से इसकी उपज अच्छी प्राप्त होती है |
रासायनिक खाद की दशा में :-
नाईट्रोजन :- 90225 किलोग्राम
फास्फोरस :- 120300 किलोग्राम
पोटाश :- 48120 किलोग्राम एक एकड़
पौधे की कटाई और छटाई :- आंवले की पौधे की कटाई और छटाई दिसम्बर के महीने में करनी चाहिए | छटाई करते समय इस पौधे के चार अच्छे और स्वस्थ मुख्य तनों को छोड़ दें | इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए पौधे की समय – समय पर निराई और गुड़ाई करते रहना रषे ताकि इसमें उगी हुई खरपतवार दूर जाये | जंहा पर आंवले की खेती की जा रही है वंहा पर थाले के चारों और से पलवार बिछा देना चहिए | इससे खरपतवार कम हो जाते है और भूमि में नमी बनी रहती है |
इसकी खेती को नुकसान पंहुचाने वाले कीटों पर नियंत्रण :-
1. छाल खाने वाले कीट :- जंहा आंवले की खेती करके छोड़ देते है और इसकी देख – रेख नहीं करते है | उन खेतो में इन कीटों का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है | ये कीट पौधे के तने और शाखाओं के अंदर छेद करके पौधे को हानि पंहुचाते है | इसके नियंत्रण के लिए पौधे के प्रबावित भाग को खुरच कर साफ़ कर देना चाहिए | पौधे में कीट के द्वारा बनाये हुए छिद्र में मिटटी का तेल डालकर उपर से गीली मिटटी लगा दें | इससे पौधे सुरक्षित रहते है | पौधों में गांठ बनाने वाला कीट :- जुलाई और सितम्बर के महीने में यह कीट टहनी के आगे ( शीर्ष ) के भाग में छेद बनाकर बैठ जाता है जिससे पेड़ का अग्रिम भाग बाहर की और निकल जाता है जो एक गांठ के रूप में दिखाई देने लगता है | इस बनी हुई गांठ के कारण शीर्ष की कलिका मर जाती है और पौधे की वृद्धि रुक जाती है | इसे नियंत्रित करने के लिए जिस पौधे की टहनी में गांठ बन जाये तो उन्हें काटकर हटा दें और साथ ही साथ बारिश के मौसम में नीम के पत्तों का उबला हुआ पानी को ठण्डा करके पौधे पर छिडकाव करें | ताकि गांठ पूरी तरह समाप्त हो जाये |
आंवले की विभिन्न किस्मे |
आंवले की फसल की जातियां :- आंवले की निम्नलिखित जातियां पाई जाती है |
चकिया , कृष्ण , फ़्रांसीसी , कंचन नरेंदर आंवला -5 ,4 , 7 एवं गंगा , बनारसी आदि जातियां व्यासायिक जातियां है | इन सभी में से चकैया और फ्रांसिस जातियां अधिक लाभकारी होती है | इसके आलावा बनारसी , कृष्ण , NA फ्रांसिस 7 NA , AA 6 चकैया ये सभी किस्म के अतिरिक्त आगरा में पैदा की जाने वाली किस्म बलवंत आंवला और गुजरात में विकसित – 1 आनन्द , आनन्द -2 , आनन्द 3 , भी उगाई जाती है
खाद और उर्वरक |
|आंवले की खेती में प्रयोग होने वाली खाद और उर्वरक :- इसकी खेती में 50 किलो सड़ी हुई गोबर की खाद , 20 किलो नीम की खली , 40 से 50 किलो ग्राम अरंडी की खली आदि की आवश्कता पड़ती है | इन सभी खादों को आपस में मिलाकर खाद का एक अच्छा सा मिश्रण तैयार करें | आंवले का जो पौधा 6 से 12 साल का हो उसके लिए लगभग 2 किलो ग्राम खाद एक पौधे के लिए प्रयोग किया जाता है | इसके आलावा जो पौधा एक से तीन साल का होता है उसके लिए 3 से 5 किलो ग्राम खाद की जरूरत होती है | खाद को आंवले की फसल में साल में कम से कम दो बार अवश्य डालनी चाहिए | एक बार जनवरी या फरवरी के समय और दूसरी बार जुलाई के महीने में जब आंवले के पौधे में फलो का विकास हो रहा हो | जो पेड़ 12 साल से ऊपर का होता है उसके लिए खाद उसकी उम्र के अनुसार ही डालनी चाहिए | जैसे कोई – कोई पौधा 20 साल का भी होता है उसके लिए कम से कम 10 किलो खाद की आवश्कता होती है | आंवले की फसल में फूल आने से कम से कम 15 या 20 दिन पहले ही एमिनो एसिड फोल्विक , एसिड पोटाशियम होमोनेट की 1 : 2 : 2 के अनुपात में मिलाकर एक मिश्रण बनाये | इस मिश्रण को लगभग 250 से 300 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर २० लीटर पानी में मिलाकर पूरे खेत में छिडकाव करना चाहिए | इसके छिडकाव करने से पौधे में होने वाले हानिकारक कीट भी नष्ट हो जाते है | और पौधे का अच्छा विकास होता है | आंवले की खेती में सिंचाई करने का तरीका :- आंवले के पौधे की गर्मी के मौसम में एक सप्ताह के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए और सर्दी के मौसम में एक महीने में कम से कम दो बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए | टपक सिंचाई करने से आंवले की पैदावार अच्छी होती है और इसके साथ ही साथ अन्य खरपतवार भी कम उगते है | फरवरी और मार्च में जब आंवले में फूल आने लगे तो इसकी सिंचाई नहीं करनी चाहिए | जबकि अप्रैल से जून तक के समय में विशेष रूप से सिंचाई करनी चाहिए | इस प्रकार से सिंचाई करने से इसकी उपज अच्छी प्राप्त होती है |
रासायनिक खाद की दशा में :-
नाईट्रोजन :- 90225 किलोग्राम
फास्फोरस :- 120300 किलोग्राम
पोटाश :- 48120 किलोग्राम एक एकड़
पौधे की कटाई और छटाई :- आंवले की पौधे की कटाई और छटाई दिसम्बर के महीने में करनी चाहिए | छटाई करते समय इस पौधे के चार अच्छे और स्वस्थ मुख्य तनों को छोड़ दें | इसकी अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए पौधे की समय – समय पर निराई और गुड़ाई करते रहना रषे ताकि इसमें उगी हुई खरपतवार दूर जाये | जंहा पर आंवले की खेती की जा रही है वंहा पर थाले के चारों और से पलवार बिछा देना चहिए | इससे खरपतवार कम हो जाते है और भूमि में नमी बनी रहती है |
इसकी खेती को नुकसान पंहुचाने वाले कीटों पर नियंत्रण :-
कीटनाशक दवाओं का प्रयोग |
1. छाल खाने वाले कीट :- जंहा आंवले की खेती करके छोड़ देते है और इसकी देख – रेख नहीं करते है | उन खेतो में इन कीटों का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है | ये कीट पौधे के तने और शाखाओं के अंदर छेद करके पौधे को हानि पंहुचाते है | इसके नियंत्रण के लिए पौधे के प्रबावित भाग को खुरच कर साफ़ कर देना चाहिए | पौधे में कीट के द्वारा बनाये हुए छिद्र में मिटटी का तेल डालकर उपर से गीली मिटटी लगा दें | इससे पौधे सुरक्षित रहते है | पौधों में गांठ बनाने वाला कीट :- जुलाई और सितम्बर के महीने में यह कीट टहनी के आगे ( शीर्ष ) के भाग में छेद बनाकर बैठ जाता है जिससे पेड़ का अग्रिम भाग बाहर की और निकल जाता है जो एक गांठ के रूप में दिखाई देने लगता है | इस बनी हुई गांठ के कारण शीर्ष की कलिका मर जाती है और पौधे की वृद्धि रुक जाती है | इसे नियंत्रित करने के लिए जिस पौधे की टहनी में गांठ बन जाये तो उन्हें काटकर हटा दें और साथ ही साथ बारिश के मौसम में नीम के पत्तों का उबला हुआ पानी को ठण्डा करके पौधे पर छिडकाव करें | ताकि गांठ पूरी तरह समाप्त हो जाये |
1. अनार की तितल :- ये ज्यादातर अनार के पौधे को नुकसान पंहुचाते है लेकिन कभी – कभी ये आंवले के पौधे को भी हानि पंहुचाते है | ये कीट फलों के अंदर छेद बनाकर इन्हें नुकसान पंहुचती है | इसके कारण फल जमीन पर गिरकर नष्ट हो जाते है | इस प्रकार के प्रभावित फलों को इक्कठा करके नष्ट कर देना चाहिये | आंवले के बगीचे को अनार के बगीचे से दूर ही लगाना चाहिए| प्रभावित पौधे पर नीम के उबले हुए पानी का छिडकाव करना चाहिए |
माहू :- यह कीट टहनी के मुलायम शाखाओं और पत्तियों का रस चूसकर पौधे को हानी पंहुचता है | इस प्रकार के कीट को नष्ट करने के लिए नीम के उबले हुए पानी का छिडकाव करना चाहिए |
पौधे के रोग पर नियंत्रण :-
१. रतवा :- इस रोग में पौधे की पत्तियाँ और फल दोनों ही प्रभावित होते है | पौधे की पत्ती और फलों पर भूरे – भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है और इस रोग से प्रबावित फल जमीन पर गिर जाते है | पौधे में यह रोग रेवेनेलिया इम्बिका नामक कवक से होता है | यदि इन्हें ना रोका गया तो ये कवक पौधे को बहुत ज्यादा हानी पंहुचा देते है | इसकी रोकथाम के लिए नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर किसी पम्प के द्वारा छिडकाव करें | जिससे ये रोग ठीक हो सके |
२. फलों में सडन :- फलों में यह रोग ज्यादातर बाजार भेजते समय या भंडार ग्रह में लगता है | इस रोग में फलों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है जो की धीरे – धीरे पूरे फल पर हो जाते है | जब ये निशान पुराने हो जाते है तो इसका रंग नीला हो जाता है | इस रोग को फैलाने वाले कवक का नाम है :- पेनिसिलियम आक्जेलिक्म और एस्प्र्जिलास नाइजर | इस कवक के कुप्रभाव से फलों को बचाने के लिए बोरेक्स की 4 % की मात्रा को नमक या सुहागा के साथ मिलाकर उपचारित करते है | इसे नियंत्रण करने के लिए जिस फल पर खरोंच लग जाये तो उन्हें बाजार में या भंडार गृह में ना रखे |
नीम का पानी बनाने का तरीका :- नीम के पेड़ की 25 से 30 पत्तियों को तोडकर लगभग 50 लीटर पानी में उबाल लें | पकाते हुए जब पानी की मात्रा 25 लीटर की रह जाये तो इसे ठण्डा करके किसी स्थान पर सुरक्षित रख लें | नीम के इस तैयार पानी के किसी भी प्रकार का कीट , मच्छर , झिल्ली या पौधे में किसी भी प्रकार का रोग हो इस पानी के छिडकाव से ठीक हो जाता है | नीम की पत्तियों का एक लीटर पानी बनाकर इसमें 15 लीटर सादा पानी मिलाकर रोग से प्रभावित पौधे पर छिडकाव करें | इससे सभी रोग ठीक हो जाते है |
आंवले की उपज :- सामान्य रूप से 10 से 12 साल के पुराने पेड़ से 200 से 250 किलो आंवले का फल प्राप्त किया जाता है | लेकिन इसकी उपज प्रयुक्त भूमि पर , प्रजाति पर , और पोषक तत्वों के प्रबन्ध पर आधारित है |
फल पकने के बाद तुड़ाई :- आंवले का फल नवम्बर से लेकर फरवरी तक के समय में पक जाते है | जब आंवले का फलों का छिलके का हरा रंग पीले रंग में बदल जाये तो इन फलों को हाथों से तोड़ना चाहिए | हाथों से तोड़ने पर फलों पर खरोंच नहीं आनी चहिये |
फलों के भंडारण के लिए :- आंवले के फलो के भंडारण के लिए कमरे का तापमान 1 .6 डिग्री से लेकर 85 से 90 % सापेक्ष आद्रता पर 15 से २० दिनों तक बढ़ाया जा सकता है | केवल कमरे के तापमान पर फलों को कम से कम एक सप्ताह या 10 दिन तक रख सकते है | आंवले के फल पर 10 से 15 % नमक के घोल पर लगभग 75 दिनों तक भंडारित कर सकते है |
माहू :- यह कीट टहनी के मुलायम शाखाओं और पत्तियों का रस चूसकर पौधे को हानी पंहुचता है | इस प्रकार के कीट को नष्ट करने के लिए नीम के उबले हुए पानी का छिडकाव करना चाहिए |
पौधे के रोग पर नियंत्रण :-
१. रतवा :- इस रोग में पौधे की पत्तियाँ और फल दोनों ही प्रभावित होते है | पौधे की पत्ती और फलों पर भूरे – भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है और इस रोग से प्रबावित फल जमीन पर गिर जाते है | पौधे में यह रोग रेवेनेलिया इम्बिका नामक कवक से होता है | यदि इन्हें ना रोका गया तो ये कवक पौधे को बहुत ज्यादा हानी पंहुचा देते है | इसकी रोकथाम के लिए नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर किसी पम्प के द्वारा छिडकाव करें | जिससे ये रोग ठीक हो सके |
२. फलों में सडन :- फलों में यह रोग ज्यादातर बाजार भेजते समय या भंडार ग्रह में लगता है | इस रोग में फलों पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते है जो की धीरे – धीरे पूरे फल पर हो जाते है | जब ये निशान पुराने हो जाते है तो इसका रंग नीला हो जाता है | इस रोग को फैलाने वाले कवक का नाम है :- पेनिसिलियम आक्जेलिक्म और एस्प्र्जिलास नाइजर | इस कवक के कुप्रभाव से फलों को बचाने के लिए बोरेक्स की 4 % की मात्रा को नमक या सुहागा के साथ मिलाकर उपचारित करते है | इसे नियंत्रण करने के लिए जिस फल पर खरोंच लग जाये तो उन्हें बाजार में या भंडार गृह में ना रखे |
आंवले की फसल के लिए नीम का पानी |
नीम का पानी बनाने का तरीका :- नीम के पेड़ की 25 से 30 पत्तियों को तोडकर लगभग 50 लीटर पानी में उबाल लें | पकाते हुए जब पानी की मात्रा 25 लीटर की रह जाये तो इसे ठण्डा करके किसी स्थान पर सुरक्षित रख लें | नीम के इस तैयार पानी के किसी भी प्रकार का कीट , मच्छर , झिल्ली या पौधे में किसी भी प्रकार का रोग हो इस पानी के छिडकाव से ठीक हो जाता है | नीम की पत्तियों का एक लीटर पानी बनाकर इसमें 15 लीटर सादा पानी मिलाकर रोग से प्रभावित पौधे पर छिडकाव करें | इससे सभी रोग ठीक हो जाते है |
आंवले की उपज :- सामान्य रूप से 10 से 12 साल के पुराने पेड़ से 200 से 250 किलो आंवले का फल प्राप्त किया जाता है | लेकिन इसकी उपज प्रयुक्त भूमि पर , प्रजाति पर , और पोषक तत्वों के प्रबन्ध पर आधारित है |
फल पकने के बाद तुड़ाई :- आंवले का फल नवम्बर से लेकर फरवरी तक के समय में पक जाते है | जब आंवले का फलों का छिलके का हरा रंग पीले रंग में बदल जाये तो इन फलों को हाथों से तोड़ना चाहिए | हाथों से तोड़ने पर फलों पर खरोंच नहीं आनी चहिये |
फलों के भंडारण |
फलों के भंडारण के लिए :- आंवले के फलो के भंडारण के लिए कमरे का तापमान 1 .6 डिग्री से लेकर 85 से 90 % सापेक्ष आद्रता पर 15 से २० दिनों तक बढ़ाया जा सकता है | केवल कमरे के तापमान पर फलों को कम से कम एक सप्ताह या 10 दिन तक रख सकते है | आंवले के फल पर 10 से 15 % नमक के घोल पर लगभग 75 दिनों तक भंडारित कर सकते है |
आंवला
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Ki Fasl Mein Keeton Se Bachaav |
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