जीरा भारत के प्रत्येक रसोई घर में पाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण मसाला है | इसका उपयोग लगभग सभी भारतीय करते है | इसमें वाष्पशील तेल की उपस्थिति होती है | जिसके कारण इसमें स्वाद आता है | जीरे में वाष्पशील तेल की मात्रा २. 5 से 3. 5 % तक पाया जाता है | जीरे का वैज्ञानिक नाम cuminum cyminum है | इसे भारत में जीरा कहा जाता है | जीरे का केवल मसाले के रूप में ही प्रयोग नही किया जाता बल्कि इसे औषधि के रूप में भी प्रयोग किया जाता है | इसका उपयोग मोटापे , पेट दर्द और कब्ज को ठीक करने के लिए किया जाता है | जीरे में कई तरह के पोषक तत्व मिलते है | जैसे प्रोटीन :- 17. 7 % , वसा 23 . 8 %, कार्बोहाइड्रेट 35 . 5 % , और 7. 7 % खनिज की मात्रा पाई जाती है | यह मानव शरीर में विटामिन ए. सी . इ की मात्रा को बनाये रखता है | यह पाचन शक्ति से जुडी परेशानियों को भी ठीक करता है | तो आज जीरे की खेती किस तरह से करनी है इस बात की जानकारी आपको दे रहे है | भारत में जीरे की खेती मुख्य रूप से गुजरात , राजस्थान और पश्चिमी भारत के इलाके में की जाती है |
जीरे की खेती के लिए जलवायु :- हल्की ठण्ड और शुष्क जलवायु इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी होती है | इसके पौधे उच्च आद्रता और भारी बारिश में सीधे खड़े नही रह सकते | जीरे को उप उष्णकटिबंधीय जलवायु में उगाया जाता है | इस तरह की जलवायु इसकी खेती के लिए अति उत्तम होती है | जीरे की खेती करने के लिए भूमि का चुनाव :- जीरे की खेती करने के लिए सुखी हुई बलुई मिटटी उत्तम मानी जाती है | यदि मिटटी में कार्बनिक पदार्थ उपस्थित है तो बेहतर होता है | जीरे की खेती उस भूमि पर की जानी चाहिए जिस भूमि पर पिछले तीन सालो तक जीरे की फसल ना ली गई हो | इसलिए जीरे की खेती करने से पहले हमे भूमि का अच्छी तरह से चुनाव कर लेना चाहिए |
जीरे के लिए उचित बीज दर
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जीरे की किस्मं निम्न है :-
1. RZ 19 :- जीरे की यह किस्म सीधी उपज देंने वाली होती है |यह किस्म बुआई करने के 120 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इसकी खेती करने से हमे एक हेक्टेयर भूमि पर से लगभग 5 से 6 किवंटल उपज की प्राप्ति होती है |
2. RZ 209 :- जीरे की इस किस्म में विल्ट और तुषार नामक रोग का प्रभाव कम होता है |यह बुआई के 140 से 160 दिन में पककर तैयार हो जाती है | इसकी खेती करने से हमे एक हेक्टेयर भूमि पर से 6 से 7 किवंटल तक की अच्छी उपज मिल जाती है |
3. जीसी -1 :- यह एक सीधे बढ़ने वाली फसल है | जिसमे गुलाबी रंग के फूल निकलते है | यह रोग प्रतिरोधी किस्म है | जीरे की यह फसल कम से कम 100 से 110 दिन में पकर तैयार हो जाती है | इसकी खेती करने से हमे लगभग 7 से 7.5 किवंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज मिलती है |
· जीरे की बुआई करने का उचित समय :- जीरे की बीजों को नवम्बर के मध्य से दिसंबर के महीने में बोया जाता है |
· बीज की मात्रा :- जीरे के बीजों को एक हेक्टेयर भूमि पर बोने के लिए कम से कम 10 से 15 किलोग्राम बीज पर्याप्त है |
· बुआई का तरीका :- जीरे के बीजों की बुआई कतारों में करनी चाहिए | इसके बीजों को 10 सेंटीमीटर की गहराई में बोया जाता है |
Jire Ki Buaai Ka Shi Smay |
जीरे की फसल में उपयोग होने वाले खाद और उर्वरक :- जीरे की बुआई करने के लिए खेत को तैयार करते समय 10 से 15 टन प्रति एक हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद को भूमि में मिला दें | इसके बाद जुताई करें ताकि मिटटी और खाद आपस में अच्छी तरह से मिल जाये | इसके बाद उर्वरक खाद के रूप में २० किलोग्राम फास्फेट की मात्रा को बुआई करते समय प्रयोग करें | इसकी मात्रा को बार प्रयोग करना चाहिए एक बार बुआई करते समय और दूसरी बार बुआई के 30 से 40 दिन के बाद पौधे की ड्रासिंग करते समय प्रयोग करें |
खरपतवार की रोकथाम करने के लिए उपाय :- जीरे की फसल में छोटे अनचाहे खरपतवार उग जाते है | यह इसकी खेती के लिए एक गंभीर समस्या है | खेत में से खरपतवार को दूर करने के लिए निराई – गुड़ाई करें | इसकी पहली निराई बुआई के 30 दिन के बाद करें और दूसरी निराई 60 दिन के बाद करें | इसके आलावा खेत से खरपतवार को निकालने के लिए आप रासायनिक दवा का भी उपयोग कर सकते है | जैसे OXCADIAZONE की 0. 5 से १ किलोग्राम की मात्रा को एक हेक्टेयर भूमि पर डालें | इसके प्रयोग से खरपतवार जल्द से जल्द खेत से नष्ट हो जाते है |
सिंचाई :-
इसकी फसल में सिंचाई मिटटी के आधार और जलवायु के अनुसार की जाती है | आमतौर पर जीरे की पहली सिंचाई बुआई करने से पहले और दूसरी सिंचाई बुआई करने के बाद करनी चाहिए | जब जीरे की फसल की पहली सिंचाई की जाती है उसके 7 से 10 दिन के अंदर दूसरी सिंचाई करें | इसके बाद महीने में दो बार सिंचाई अवश्य करें | जब इसके पौधे में बीज भरने लगे तो उस समय सिंचाई से बचें | नही तो फसल में खस्ता , फफूंदी और तुषार रोग लग जाते है |
जीरे की फसल का प्रबंधन |
फसल के पकने के बाद कटाई :- जीरे की फसल की कटाई दराती की मदद से करनी चाहिए | इसके बाद पौधे को धुप में सुखाने के लिए स्वच्छ खिलहान से रख देना चाहिए | जब इसके पौधे अच्छी तरह से सुख जाये तो इसके बीजों को सूप के द्वारा या लाठी के साथ प्रकाश पिटाई से अलग किया जाता है |
जीरे का प्रबंधन :- जीरे के बीजों को अच्छी तरह से सुखाकर उसे गुरुत्वाकर्षण विभाजक की मदद से साफ़ किया जाता है | इसके स्व्च्छ बीजों को नम रहित दुकानों में बोर में भरकर संग्रहित किया जाता है |
उपज की प्राप्ति :- जीरे की व्यवसायिक खेती करने से हमे 5 से 7 किवंटल प्रति हेक्टेयर की दर से उपज प्राप्त होती है |
जीरे की फसल के
बारे में कुछ जरूरी जानकारी | Jire
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