सप्तम नवदुर्गा: माता
कालरात्रि -
नौरात्रे के सातवे दिन माँ जगदम्बा की ही कालरात्रि या
काली माता के रूप में पूजा अर्चना की जाती है | एक समय ऐसा था जब शम्भु - निशम्भु
और रक्तबीज ने पृथ्वी पर उत्पात मचा रखा था सभी देवी – देवता रक्षसों के भय से
भगवान शंकर के पास गये तब माता पार्वती ने दुर्गा का अवतार धारण किया और शम्भु
निश्म्बू का वध किया | और जैसे ही माता दुर्गा ने रक्तबीज को अपने त्रिशूल से मारा
वैसे ही (कालान्तर में रक्तबीज को यह वरदान प्राप्त था की उसके शरीर की जितनी बुँदे पृथ्वी पर गिरेगी उसके खून की हर
बूंद से उसी के समान महाबली पराक्रमी राक्षस पैदा हो जायेगा ) तब माँ दुर्गा ने युद्ध भूमि पर रक्त बीज नामक
राक्षस का संहार करने के लिए अपने तेज से प्रकट किया था इनका रंग रात्री के समान
काला है इसलिए इन्हें काल रात्रि कहा जाता है | माता काल रात्रि के केश (बाल) काले
घने और बिखरे हुए है | इनकी तीन आँखे और बड़े बड़े अंगारे के समान लाल होती है और
क्रोध करने की वजह से इनकी सांसो में से अग्नि निकलती है | और ये अपने गले में
बिजली के जैसी चमकने वाली माला धारण करती है | जिसकी वजह से ये और भी ज्यादा भयानक
और डरावनी लगती है | यह काली शक्तियों का विनाश करती है और जो व्यक्ति पूरे
श्रद्धाभाव, विश्वास और प्रेम से माता
कालरात्रि की पूजा आराधना करता है तो माता काल भी अपने भक्तो की रक्षा करती है |
कितनी भी काली शक्ति, असुर, दानव, भूत - प्रेत क्यों न हो कितनी भी बड़ी मुश्किल
में आप क्यों न फंसे हो, सिर्फ माता काल रात्रि के नाम लेने से दूर चली जाती है या
भस्म हो जाती है | उनके भक्त को किसी भी भय से डरने की आवयश्कता नहीं होती| माता
कालरात्री गधे (गर्दभ)
की सवारी करती है ये अपने सीधे हाथ से अपने भक्तजनों को वरदान देती है और नीचे
वाले हाथ से कहती है की हमेशा निडर और भयमुक्त रहो | उलटे हाथ में ऊपर की तरफ लोहे की कटार और नीचे
के हाथ में खड्ग धारण करती है | माता काल रात्रि का रूप जितना भी भयानक हो पर अपने भक्तो पर
हमेशा ममता दया और आशीर्वाद की वर्षा करती है और उनकी पूजा अर्चना से सदा
अपने भक्तों को शुभ फल प्रदान करती है और कल्याण करती है और ग्रह बाधा या ग्रह दोष
को भी दूर करती है | सप्तम नौरात्रे को
देवी कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाना चाहिए | इस कथा को पढने के बाद दुर्गा सप्तशती के
सातवा का अध्याय को भी पढना चाहिए | माँ
भगवती के 108 नाम और साथ ही दुर्गा चालीसा भी पढ़े बाद में आरती करे |
उसके बाद जल सूर्य को अर्पित करे | और भक्तजनों में प्रसाद बांटें |
|| एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना
खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी
वामपादोल्लसल्लोहलता कण्टक भूषणा।
वर्धन मूर्ध ध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकर ||
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