सोयाबीन की खेती :-
सोयाबीन तो भारत के
प्रत्येक घर में सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है क्योंकि सोयाबीन में
प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है जो हमारे सेहत के लिए लाभकारी होती है | आज हम
आपको सोयाबीन की खेती के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दे रहे है की सोयाबीन की
खेती करने के लिए किस प्रकार की भूमि का प्रयोग होता है , किस प्रकार के बीज , खाद
का उपयोग करना चाहिए इसके आलावा सोयाबीन को बोने का तरीका , सिचाई का तरीका , और
फसल तैयार होने के बाद इसे किस तरह से काटना है इसकी पूरी जानकरी हम आपको दे रहे
है |
1.
सोयाबीन की खेती के
लिए उपयुक्त भूमि :-
सोयाबीन की खेती हर प्रकार की भूमि पर अच्छी तरह से की जा
सकती है | लेकिन रेतीली भूमि में सोयाबीन की खेती नहीं की जा सकती | चिकनी दोमट
मट्टी इसकी खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है क्योंकि इसमें पानी का निकास हो
जाता है | इसके अतिरिक्त हमे उस स्थान पर सोयाबीन की खेती कभी नहीं करनी चाहिए जिस
स्थान पर पानी जमा होकर रुक जाता है | जिस मिटटी में ढेले न हो और मिटटी भुरभुरी
हो वह भूमि भी सोयाबीन की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है |
सोयाबीन की खेती कैसे करें | soyabin ki kheti kaise Karen |
जहाँ पर खेती करना है उस स्थान पर बारिश के मौसम
आने से पहले 2 या 3 बार जुताई जरुर करनी चाहिए जिससे फसल को ख़राब करने वाले कीट
अथवा कीड़े मर जाये | जुताई करने के लिए हमे पाटा या ट्रेक्टर का उपयोग करना चाहिए
| गर्मी के समय में कम से कम 3 साल में एक बार खेत की जुताई जरुर करनी चाहिए |
इससे मिटटी की उर्वरकता बरकार रहती है | जिस खेत में सोयाबीन की खेती की जा रही हो
उस खेत में पानी के निकास की व्वस्था होनी चाहिए क्योंकि पानी का भराव सोयाबीन की
फसल के लिए हानिकारक होता है | इसलिए इसके अधिक उत्पादन के लिए हमे खेत में पानी
के निकास का प्रबन्ध करना चाहिए | सोयाबीन को बोने से पहले हमे समय पर खेत में
जुताई कर लेनी चाहिये जिससे अंकुरित खरपतवार नष्ट हो जाये |
बीज की किस्म और दर
:-
1. छोटे
दाने वाली किस्म :- 25 से 30 किलो प्रति एकड़
2. मध्यम
दाने वाली किस्म :- 28 से 32 किलो प्रति एकड़
3. बड़े
दाने वाली किस्म :- 32 से 40 किलो एकड़
बीज की दर का उपचार किस प्रकार से करना है :- सोयाबीन की
फसल को मिटटी के कीटाणु और बीज दोनों ही
नुकसान पहुचाते है | इसे बचाने के लिए बीज को थायराम या केप्टान की मात्रा कम से
कम 2 ग्राम , थायोफिनेट अथवा कार्बेडाजिम की कम से कम 1 ग्राम की मात्रा के मिश्रण
को एक किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए | इसके आलावा ट्राईकोडरमा कम से कम ४
ग्राम , कार्बेडाजिम की कम से कम 2 ग्राम
की मात्रा को प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए |
कल्चर का प्रयोग
:- बिजुपचार करने के बाद इसमें फफूंद नाशक
दवाओं का भी प्रयोग करना चाहिए | इसके उपचार करने के लिए कम से कम 5 ग्राम
रायजोबियम और 5 ग्राम पीएसबी कल्चर का प्रयोग करना चाहिए | इन दवाओं की मात्रा को
प्रति किलो बीज में प्रयोग करना चाहिए |
बीज का उपचार करने के बाद इन्हें छाया में सुखाकर जल्दी ही बोने में प्रयोग
करना चाहिए | बीज का उपचार करते समय इस बात का ध्यान रखे कि कल्चर और फफूंदी नाशक
दवा का एक साथ प्रयोग ना करे |
प्रजातियाँ :-
प्रजाति पकने का समय उपज
प्रतिस्ठा 95 से 105 दिन 20 से ३० ( किवंटल \ हेक्टेयर )
जे. एस .
335 90 से 100 दिन 20 से 30 ( किवंटल \ हेक्टेयर )
ऍम. ए . यु . एस
. 47 80 से 90 दिन 20 से 25 ( किवंटल \ हेक्टेयर )
पी . के.
१०२४ 100 से 120 दिन 25 से 35 ( किवंटल \ हेक्टेयर )
एन . आर. सी .
7 90 से 105 दिन 25 से 30 ( किवंटल \ हेक्टेयर)
एन . आर. सी
.37 90 से 100 दिन ३० से 35 ( किवंटल \ हेक्टेयर)
ऍम. ए. यु. एस.
81 90 से 96 दिन 22 से 30 ( किवंटल \ हेक्टेयर)
ऍम. ए. यु. एस. 93 90 से 95 दिन 20 से २५( किवंटल \ हेक्टेयर)
सोयाबीन के बीज को बोने का तरीका और उपयुक्त समय :-
इसके बीज को गर्मी के मौसम में जून के माह के
आखरी सप्ताह में या जुलाई के माह के पहले सप्ताह में बोना चाहिए | यह समय इसकी
बूआई के लिए उप्रुक्त होता है | पौधा अछि तरह से अंकुरित हो इसके लिए बीज को बोते
समय भूमि में कम से कम 8 से 10 सेंटीमीटर मीटर तक की गहराई में नमी होनी चाहिए |
बीजों को कतारों में बोना चाहिए | इन कतारों की दूरी कम से कम 30 से 35 सेंटीमीटर
की होनी चाहिए | इन बीजों को 2 से 3 सेंटीमीटर का गड्ढा खोदकर बोंये और साथ ही साथ
मिटटी में नमी बनाये रखने के लिए और जल की निकासी के लिए जगह खाली छोड़ दें |
सोयाबीन के साथ हम और भी दूसरी फसल भी बो सकते है जैसे :-
सोयाबीन और अरहर की दाल , सोयाबीन और तिल , सोयाबीन और ज्वार , मक्का और सोयाबीन |
इन सभी फसलों की हम एक साथ खेती के सकते है | इस प्रकार से दो फसलो को एक साथ बोने
की विधि को अंतरवर्तिये फसल कहा जाता है |
फसलों के पोषण
हेतु खाद का प्रयोग :-
किसान को एक अच्छी सोयाबीन की फसल प्राप्त करने के लिए
अच्छी किस्म की खाद का प्रयोग करना चाहिए | सड़ी हुई गोबर की खाद जिसे हम कम्पोस्ट
कहते है | इस खाद की कम से कम 2 टन की मात्रा को बखरनी के समय एक एकड़ खेत में भली –
भांति मिला दें | इसके बाद जब बीज को बोते समय नत्रजन की 9 किलोग्राम की मात्रा ,
32 किलो स्फुर 8 किलो पोटाश और कम से कम 8 किलो गंधक की मात्रा को आपस में मिलाकर
एक एकड़ की भूमि पर छिड़क दें | इस खाद की
मात्रा को मिटटी के परीक्षण के आधार पर बढ़ाया भी जा सकता है और घटाया भी जा सकता
है | यदि संभव हो तो किसान को फासको कम्पोस्ट को अधिक प्रयोग करना चाहिए | यदि
गहरी काली मिटटी है तो इसमें 25 से ३० किलोग्राम जिंक सल्फेट की मात्रा को एक एकड़
भूमि पर छिड़क दें | लेकिन इसका प्रयोग कम से कम 4 से ६ फसलों को बोने के बाद करना
चाहिए | खेती करने वाले किसान को रासायनिक उर्वरकों को सभी कूड़े के साथ गहरा गड्ढा
खोदकर दबा देना चाहिए |
फसलों के बीच
उगने वाले खरपतवार की रोकथाम के लिए उपाय :-
किसी भी प्रकार की फसल बोने के बाद
किसान को शरुआत के कम से कम 35 से 45 दिनों तक खरपतवार पर नियंत्रण रखना चाहिए | बीजों
को बोने के बाद जब छोटी – छोटी घास उग जाये तो इन्हें खुरपी या डोरा चलाकर साफ कर
देना चाहिए | यदि 15 से 20 दिन की फसल में घास के साथ और दुसरे छोटे खरपतवार उग
जाये तो उन्हें नष्ट करने के लिए 400 मिलीलीटर क्युज्लेकोप इथाइल को घास पर छिड़क
दें | इससे सभी खरपतवार समाप्त हो जांयेंगे | इसके आलावा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार
पर इमाजेथाफायर की कम से कम 350 मिलीलीटर की मात्रा का छिडकाव करें | बीजों को
भूमि पर बोने से पहले फ्लूक्लोरेलिन की 850 मिलीलीटर की मात्रा को एक एकड़ भमि पर
अंतिम बखरनी करने से पहले खेत में छिड़क दें | इसके छिडकने के बाद ही खेत में जुताई
करे इससे जुताई करते समय दवा सारे खेत में मिक्स हो जाएगी | बीज को बोने के बाद और
बीजों के अंकुरण से पहले के समय में एलाक्लोर की 2 लिटर की मात्रा अथवा
पेंडीमेथलिन की 1 . 5 लिटर को प्रति एकड़ भमि पर छिड़काव करें | इसके आलावा 500 से
800 मिलीलीटर मेटोलाकलोर की मात्रा को 250 लिटर पानी में मिलाकर पूरे खेत में
छिडकाव करने से फालतू के उगे उगे हुए पौधे नष्ट हो जाते है | इस दवा का छिडकाव
किसी नोजल की मदद से करें | फसल बोने से पहले और बीज के अंकुरण होने से पहले
खरपतवार को नष्ट करने के लिए मिटटी में भुरभुरापन और नमी होनी चाहिए | ऐसा करने से
हमे एक अच्छी और रोग रहित फसल प्राप्त होती है
सिंचाई करने के
तरीके :-
सोयाबीन एक खरीफ की फसल होती है | इसलिए इस फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं
होती | सितम्बर का महीना आते – आते जब सोयाबीन की फलियों में दाने भरने लगे और खेत
में अगर नमी न हो तो जरूरत पड़ने पर एक या दो बार सिंचाई कर सकते है | सोयाबीन के
और अधिक उत्पादन के लिए ये बहुत लाभदायक माना जाता है |
सोयाबीन की फसल
को सुरक्षा देने के लिए हमे क्या – क्या उपाय करना चाहिए इसका वर्णन इस प्रकार से
है |
सोयाबीन की फसल
पर बीज और पौधे को हानि पंहुचाने वाला कीट नीलाभृंग जिसे ब्लूबीटल भी कहते है इसके
आलावा पत्ते खाने वाली झिलियाँ , तने को नुकसान पंहुचाने वाले कीट जैसे चक्रभृंग
और मक्खियाँ ( गर्दल बीटल ) होती है | कीटों के इस आक्रमण और प्रकोप की वजह से सोयाबीन
की पैदावार में 10 से 50 %की कमी आ जाती है | इस लिए इन कीटों पर नियन्त्र्ण रखने
के लिए और अपनी फसल को बचाने के लिए हमे निम्नलिखित उपय करने चाहिए |
No comments:
Post a Comment