अन्त्र्वृधिकी बीमारी का ईलाज : -
यह बीमारी किसी भी मनुष्य को हो सकती है वो चाहे स्त्री हो या पुरुष | इस बीमारी में गुहाओं की झिल्ली फट जाती है और इसका
कुछ भाग बाहर की तरफ निकल जाता है | इस बीमारी का होने का मुख्य कारण मनुष्य की आंत्र गुहा का कमजोर होना है | यह बीमारी शरीर के किसी भी हिस्से में हो जाती है | इस रोग का ईलाज आयुर्वेद चिकित्सा के द्वारा किया जाता
है |
सामग्री : -
सर्वकल्प क्वाथ :- ३०० ग्राम
बनाने की विधि :- किसी
बड़े बर्तन में ४०० मिलीलीटर पानी की मात्रा लें | इस पानी में एक चम्मच सर्वकल्प क्वाथ मिलाकर
धीमी – धीमी आंच पर पकाएं | कुछ देर पकने के बाद जब इस पानी की मात्रा १००
मिलीलीटर रह जाए तो इसे छानकर सुबह और शाम के समय खाली पेट पीयें | इस उपचार का प्रयोग करने से इस बीमारी से छुटकारा
मिल जाता है |
सामग्री : -
त्रिकटु चूर्ण :- २५ ग्राम
प्रवाल पिष्टी :- १० ग्राम
गोदन्ती भस्म :- १० ग्राम
इन सभी आयुर्वेदिक औषधियों को आपस
में मिलाकर एक मिश्रण बना लें | इस मिश्रण की बराबर मात्रा में ६० पुड़ियाँ यानि दो महीने की खुराक तैयार कर
लें | इस तैयार औषधी को किसी डिब्बे में बंद करके
सुरक्षित जगह पर रख दें | रोजाना एक पुड़ियाँ सुबह नाश्ता करने से आधा घंटा पहले ले और एक पुड़ियाँ रात
को खाना खाने से आधा घंटा बाद खाएं | इन औषधियों का सेवन ताज़े पानी के साथ , शहद के साथ या गाय के दूध के साथ खाएं | ऐसा करने से इस बीमारी से जल्दी छुटकारा मिल जाता
है |
सामग्री : -
कांचनार गुग्गुलु :- ६० ग्राम
वृद्धिवाधिका वटी :- ४० ग्राम
इन दोनों आयुर्वेदिक औषधी की दो – दो गोली का सेवन दिन में दो बार सुबह के समय और
रात के समय खाना खाने के बाद हल्के गर्म पानी के साथ खाएं | इन गोलियों का सेवन उपर बताएँ गये उपचार के साथ करे
|
स्वमूत्र चिकित्सा - इस बीमारी में व्यक्ति को अपना पेशाब पीने से भी लाभ मिलता है , अपने पेशाब को आरम्भ में निकलने वाला और बाद वाले पेशाब को छोड़कर बीच में आने वाला पेशाब का सेवन करने से भी आपको लाभ मिलेगा, दूध में हल्दी डालकर पीने से भी आराम मिलता है , अधिक ठंडा भोजन न करे,
सावधानियां -
- अधिक मिर्च मसाले वाले भोजन से बचे ,
- तला हुआ भोजन न करे ,
- अधिक भोजन एक साथ करने से बचे ,
- मांसाहार त्याग दे ,
- तरीदार शब्जी का सेवन करे,
- पतले फुल्के खाये,
- अधिक वसा और चिकनाई युक्त पदार्थों का सेवन करने से बचे ,
- मलाई उतार कर दूध पीये,
- कब्ज न होने दे ,
- वजन को नियन्त्र में रखे ,
इन सभी उपाए करने से यदि आपकी बीमारी बिलकुल ठीक न भी हो परन्तु बचाव जरूर होगा,
body ke internal parts ka outside ki taraf increase hone ko hernia ya phir aantravardhi kahate hai, is bimari mein pet ki aante ya to andkosh ki taraf jhuk jaati hai ya phir kisi dusri or inka rujhaan ho jaata hai, ausdhi ki do do goli ka sevan karne se halke garm paani mein ubal kar khaane se laabh milega, tala hua or adhik mirch masale ke bhojan is bimari mein nahi karna chahiye,
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