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चीचिंडा की आधुनिक खेती करने का तरीका |
चीचिंडा की जैविक खेती करने का तरीका :
चिचिड़ा की खेती करने के लिए भूमि का चुनाव :- इसके लिए जिवांश युक्त रेतीली दोमट मिटटी सर्वोतम होती है | इस प्रकार की मिटटी में खेती करने से हमे चिचिड़ा की अधिक उपज मिलती है |
खेत की तैयारी :- खेत की पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें | जुताई करने के बाद 2 या 3 बार देशी हल या पाटा लगाकर भूमि को भुरभुरा या समतल बना लें | इसके बाद ही खेत में बुआई करें |
चीचिड़े की निम्नलिखित किस्मे है | :- ज्यादतर इसकी स्थानीय किस्मे ही उगाई जाती है | जैसे :- एच. 8 , एच. 371 , एच. 372 , को.- 1 , टी. ए. -11, आइ . आइ . एच .आर. -16 ए आदि किस्मो को उगाया जाता है | ये सभी किस्मे भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बंगलौर द्वारा विकिसित की गई है |
इसकी खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु :- चिचिड़े की खेती करने के लिए गर्म और आद्र जलवायु उत्तम होती है | इस प्रकार की जलवायु में पौधे अच्छी तरह से वृद्धि करते है |
चीचिड़े की बुआई करने का समय और तरीका :- भारत क उत्तरी हिस्से में चीचिड़े को वर्षा ऋतु की फसल के रूप में उगाया जाता है | इस लिए इसके बीजो को जून महीने के अंत तक के एमी में बोना चाहिए | जबकि दक्षिण भारत में इसे अप्रैल – जुलाई तक के एमी में या अक्टूबर – नवम्बर तक के समय में बोया जाता है | चीचिड़े को कतारों में बोना चाहिए | बोने से पहले इसकी बीच की दुरी का ध्यान रखे | एक कतार से दुसरे कतार की दूरी 1. 5 से 2. 5 मीटर की रखे | खेत में एक ही स्थान पर दो या तीन बीज बोने चाहिए | चीचिड़े के बीज लगभग 8 से 10 दिन में अंकुरित हो जाते है |
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Chinchida Ki Unnt Kismen |
बीज की मात्रा :- चीचिड़े की 5 से 6 किलोग्राम की मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त होती है |
चीचिड़े की फसल में प्रयोग होने वाली खाद :- चिचिड़े की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए इसकी फसल में कम्पोस्ट खाद और आर्गनिक खाद का प्रयोग करना बहुत जरूरी होता है | इसलिए हमे सड़ी हुई गोबर की 35 से 40 किवंटल की मात्रा में आर्गनिक खाद 2 बैग , भू पावर 40 किलोग्राम , 2 बैग माइक्रो फर्ट सिटी कम्पोस्ट 40 किलोग्राम , 2 बैग माइक्रो नीम 20 किलोग्राम , 2 बैग सुपर गोल्ड कैल्सीफर्ट की 10 किलोग्राम की मात्रा , 2 बैग माइक्रो भू पावर लगभग 10 किलोग्राम और 30 से 40 किलोग्राम अरंडी की खली आदि | इन सभी खादों को आपस में मिलाकर एक अच्छा सा मिश्रण बनाएं | इस प्रकार से तैयार मिश्रण को खेत में बीज को बोने से पहले समान मात्रा में बिखेर दें | इसके बाद खेत की अच्छी तरीके से जुताई करे | ताकि यह खाद भूमि में अच्छी तरीके से मिल जाये | इसके बाद ही खेत में बुआई करे | बीज बोने के कम से कम 20 से 25 दिन के बाद फसल में सुपर गोल्ड मैग्नीशियम की 1 किलोग्राम की मात्रा और माइक्रो झाझम की 400 मिलिटर की मात्रा को आपस में मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस मिश्रण में 400 लीटर पानी मिलाकर किसी पम्प में डालकर छिडकाव करें | इस प्रकार के छिडकाव को महीने में दो बार अवश्य करें |
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Chinchida Ki Kheti Ke Liye Upyukt Bhumi |
सिंचाई करने का तरीका :- उत्तरी भारत की वर्षाऋतु की फसलों में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती | लेकिन यदि अधिक समय तक बारिश ना हुई तो सिंचाई जरुर करनी चाहिए | मौसम जब शुष्क हो तो पांच दिन के बाद सिंचाई करे | जबकि दक्षिण भारत की फसलों में अधिक सिंचाई की आवश्कयता होती है | इसकी फसल में हर 15 से 20 दिन के अंतर पर सिंचाई करना चाहिए |
लालड़ी :- यह कीट पौधे की हरी पत्तियों और फूलो को खाकर नुकसान पंहुचाता है | जब पौधे पर दो पत्तियां निकल जाती है | उसी समय इस कीट का कुप्रभाव शुरू हो जाता है | लालड़ी नामक कीट की सुंडी भूमि के अंदर होती है | जो भूमि के अंदर रहकर पौधे की जड़ों को नुकसान देता है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
:- उपाय :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस कीट का प्रभाव दूर हो जाता है
फल को नुकसान पंहुचाने वाली मक्खी :- यह मक्खी फलों के अंदर छेद करके घुस जाती है और वंही अंडे दे देती है | इसके अंडो में से सुंडी निकल जाती है | जो फल से बाहर निकल जाती है | इसके कारण फल बेकार हो जाता है | इस मक्खी का अधिकतर प्रभाव खरीफ वाली फसलों पर होता है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी है |
रोकथाम के उपाय :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस कीट का प्रभाव दूर हो जाता है |
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Chinchida Ki Fasal Mein Hone Vale Rog |
सफेद ग्रब :- यह कीट भूमि के अंदर होता है| जो पोधे की जड़ों को खाता है | यह कीट कददू की किस्मो को हानि पंहुचाता है | इस कीट के प्रभाव को दूर करने के लिए हमे निम्नलिखित उपाय है |
रोकथाम का उपाय :- इस कीट से बचने के लिए बुआई करने से पहले मिटटी में नीम की खाद का प्रयोग करें |
चूर्णी फफूंदी :- यह एक फफूंदी जन्य रोग होता है | इस रोग में पौधे की पत्तियों और तनों पर सफेद दरदरा और गोलाकार जाल दिखाई देता है | धीरे – धीरे इसका आकार बढ़ जाता है | जब इसका आकार बढ़ जाता है तो इसका रंग कथई हो जाता है | पौधे की हरी – हरी पत्तियाँ सुख कर पीली हो जाती है | और पौधे की वृद्धि रुक जाती है | पौधे में यह रोग ऐरीसाईफी सिकोरेसीएरम नामक फफूंदी के कारण होता है | इसकी रोकथाम के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
:- उपाय :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस कीट का प्रभाव दूर हो जाता है
एंथ्रेक्नोज :- इस रोग में पौधे की हरी पत्तियों और फलों पर लाल – काले धब्बे बन जाते है | जो बाद में आपस में मिलकर एक बड़ा धब्बा बन जाता है | पौधे में यह रोग बीज के कारण होता है | इस रोग को फैलाने वाले कीट का नाम कोलेटोट्राईकम स्पिसिज है | इसे रोकने के लिए एक आसान तरीके से किया जा सकता है |
रोकथाम के लिए :- इस रोग से बचने के लिए बीज को बोने से पहले बीजों को गौमूत्र या नीम के तेल से उपचारित करें | जिस खेत में फसल बोई गई हो उस खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए | इसके आलावा किसानों को फसल चक्र की विधि अपनाना चाहिए |
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Chinchida Ki Fasal Ke Liye Khad Ka Pryog |
5.मृदु रोमिल फफूंदी :- पौधे में यह रोग एक फफूंदी के कारण होता है | इसद रोग में पत्तियों की निचली सतह पर कोणा आकार के धब्बे बन जाते है | जो ऊपर से पीले या लाल भूरे रंग के होते है | पौधे में यह रोग स्यूडोपरोनोस्पारो क्युबेनिसिस नामक फफूंदी के कारण होता है |
इसकी रोकथाम के लिए :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस फफूंदी का प्रभाव दूर हो जाता है |
6.मौजेक :- पौधे में यह रोग क विषाणु के कारण होता है | इस रोग में पौधे की पत्तियों की वृद्धि रुक जाती है और वे मुड़ जाती है | यह रोग चेंपा के द्वारा फैलता है | इस रोग में फल छोटे लगते है और उपज भी कम मिलती है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी होता है |
रोकथाम करने का तरीका :- उपचारित किये हुए बीजों का हो प्रयोग करना चाहिए | ताकि पौधे में किसी भी प्रकार का रोग ना लगें | इसके आलावा अच्छी किस्मों का उपयोग करें जो रोगों से लड़ने में सक्षम हों | जो पौधा रोग से घर्सित हो उसे जड़ समेत उखाडकर फेंक देना चाहिए |
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Rog Bachav Ke Uapay |
लताओं के लिए आवश्यक जानकारी :- चीचड़े की लताओं को सहारा देने के लिए कम से कम 2 मीटर ऊँचे पंडाल बनाएं जाते है | बने हुए पंडालों पर लताओं को फैला दिया जाता है | ताकि फल अच्छी तरह से वृद्धि कर सके | फल सीधे फल और लम्बे प्राप्त करने के लिए लता के निचले सिरे पर एक छोटा सा पत्र का टुकड़ा लटका देना चाहिए | इस प्रकार की विधि का प्रयोग करके हम चीचिड़े की अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है |
तुड़ाई :- चीचिड़े की बुआई के लगभग 8 से 10 दिन के बाद बीज अंकुरित होने लगते है | इसके फलों को कच्ची अवस्था में ही तोड़ लिया जाता है |
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upaj ki prapti |
उपज की प्राप्ति :- एक अच्छी लम्बी लता से कम से कम 10 से 15 फल मिल जाते है | लेकिन अच्छी लता से हमे लगभग 30 से 40 फल मिल जाते है | इस हिसाब से हमे एक हेक्टेयर भूमि से हमे 100 किवंटल की उपज मिलती है |
चीचिंडा की आधुनिक खेती करने का
तरीका | Chinchida Ki Kheti Krne Ka Trika | Chinchida Ki Kheti Ke Liye Upyukt
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Or Bachav Ke Uapay |
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