आलू की खेती करने का तरीका :-
आलू को
सब्जियों का राजा कहा जाता है | इसे हर सब्जी के साथ मिक्स करके बनाया जाता है |
भारत के हर राज्य , हर प्रान्त और हर जगह पर आलू की खेती की जाती है | आलू हर घर
में पाया जाता है | शायद ही कोई घर ऐसा होगा जंहा आलू ना मिले | आलू में प्रोटीन ,
विटामिन सी और स्टार्च की मात्रा अधिक पाई जाती है | इस सभी गुणों के आलावा आलू
में अमीनो अम्ल , ट्रिपटोफेन , ल्युसिन आइसोल्युसिन की भी मात्रा पाई जाती है | ये
सभी गुण हर मनुष्य की सेहत के लिए लाभकारी होती है | आलू की मसालेदार सब्जी ,
पकौड़ी , चाट , पापड़ , चिप्स , अंकल चिप्स, भुजिया और कुरकरे आदि चीजे बनाई जाती है
| जिसे हर मनुष्य खाने में पसंद करता है | आलू की खेती आज से लगभग 7000 वर्ष पहले
से किसान कर रहे है | इसकी खेती केरल और तमिलनाडू में नहीं की जाती और सभी स्थान
पर इसकी खेती की जाती है |
आलू की लाभदायक खेती का तरीका |
आलू की खेती के लिए जलवायु |
इसकी खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु :- आलू
की खेती के लिए छोटे दिनों की जरूरत होती है | भारत में उचित जलवायु पाई जाती है
इसलिए किसी ना किसी भाग में आलू की खेती की जाती है आलू को बढने के समय में आलू की
माध्यमिक शीत की आवश्कता होती है | भारत के मैदानी इलाकों में सर्दी के मौसम में
रबी की फसल के रूप में इसकी खेती की जाती है | आलू की उचित वृद्धि और विकास के लिए
जलवायु का तापमान 15 से 25 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए | आलू के अंकुरण के समय
तापमान 25 डिग्री सेल्सियस और कंद विकास के लिए 15 से 19 डिग्री सेल्सियस की
आवश्कताहोती है | लेकिन उच्च तापक्रम में आलू की खेती प्रभावित हो सकती है | अक्तूबर
से मार्च तक के समय में जब रात लम्बी और दिन छोटे और चमकीले होते है उस समय में
आलू की वृद्धि के लिए अच्छे होते है | बारिश के दिनों में और उच्च आद्रता के मौसम
में आलू की फसल पर फफूंदी और बैक्टीरिया जैसे रोग लग जाते है | इससे हमारी फसल को
नुकसान होता है |
आलू की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी :- आलू को सभी प्रकार की मिटटी में उगाया जा सकता
है लेकिन क्षारीय मिटटी में इसकी खेती नहीं की जा सकती | दोमट मिटटी , सिल्टी दोमट
मिटटी और जीवांश युक्त रेतीली मिटटी आलू की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है | जिस
भूमि पर आलू की खेती की जा रही हो उस पर उचित जल निकास का प्रबन्ध होना चाहिए | भूमि
का p.h मान 5.2 से 6. 5 का होना चाहिए | जिस तरह से इसका p. h मान बढ़ेगा आलू की
अच्छी उपज के लिए उपयुक्त होती है |
आलू की खेती करने से पहले खेत की जुताई मिटटी
को पलटने वाले हल से करें | दूसरी और तीसरी जुताई देसी हल से या ट्रेक्टर से करनी
चाहिए | यदि खेत में ढेले हो तो पाठा चलाकर मिटटी को भुरभुरा कर लें | आलू की बोते
समय मिटटी में उचित नमी होनी चहिये | और यदि खेत में नमी ना हो तो पलेवा करके
जुताई करवानी चाहिए | आलू का कंद मिटटी के अंदर होता है | इसलिए मिटटी का भुरभुरा
होना अति आवश्यक है |
आलू की बुआई का तरीका |
आलू की निम्नलिखित प्रजातियाँ उगाई जाती है |
भारत के शिमला द्वारा विकिसित हुए केंद्रीय आलू की किस्मे :- 1. कुफरी अलंकर 2,
कुफरी चन्द्र मुखी 3. कुफरी बहार 4. कुफरी ज्योति 5. कुफरी नवताल 6. कुफरी शीत मान
7. कुफरी बादशाह 8. कुफरी देवा 9.कुफरी सिंदूरी 10. कुफरी स्वर्ण 11. कुफरी लालिमा
12. कुफरी लवकर आदि अब हम इन सभी किस्मों की जानकारी आपको दे रहे है | की इनकी
प्रति ह्येक्टर उपज कितनी होती है |
1.
कुफरी
अलंकर :- यह किस्म अंगमारी रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी होती है | यह किस्म
लगभग 70 दिनों में तैयार हो जाती है और इसकी उपज 200 से 250 किवंटल प्रति ह्येक्टर
की होती है |
2.
कुफरी
चन्द्र मुखी :- आलू की यह किस्म उगने के
लगभग 70 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है | इसकी उपज 200 से 250 किवंटल प्रति
ह्येक्टर है |
3.
कुफरी बहार 3792 इ :- यह किस्म 100 से 120 दिनों
के समय में तैयार होती है | इसकी उपज प्रति ह्येक्टर 150 से 200 किवंटल की होती है
|
4.
कुफरी
नवताल g 2524 :- आलू की इस किस्म की उपज 200 से २५० किवंटल प्रति ह्येक्टर की है |
इसे तैयार होने में लगभग 70 से 80 दिन का समय लगता है |
5.
कुफरी
ज्योति :- यह किस्म 90 से 120 दिन में
तैयार हो जाती है और इसकी प्रति ह्येक्टर उपज लगभग 170 से 250 तक की है |
AALU Ki Vibhinn Kismen |
6.
कुफरी
शीत मान :- आलू की इस किस्म की उपज 200 से 270 किवंटल प्रति ह्येक्टर है | इस फसल
को तैयार होने में कम से कम 90 से 120 दिन का समय लगता है |
7.
कुफरी
बादशाह :- आलू की इस फसल को तैयार होने में लगभग 100 से 120 दिन का समय लगता है |
इसकी उपज 200 से 275 किवंटल प्रति ह्येक्टर की है |
8.
कुफरी सिंदूरी :- इसकी उपज और दूसरी किस्म से
ज्यादा है | इस आलू की उपज 300 से 400 किवंटल प्रति ह्येक्टर है | इस फसल को तैयार
होने में लगभग 110 से 140 दिन का समय लगता है |
9.
कुफरी
स्वर्ण :- यह फसल 110 दिन में तैयार हो जाती है | इस किस्म की उपज 300 किवंटल
प्रति ह्येक्टर की है |
10.
कुफरी
लवकर :- इस किस्म को तैयार होने में कम से कम 90 से 120 दिन का समय लगता है ओए
इसकी प्रति ह्येक्टर उपज 300 किवंटल की है |
11.
कुफरी
देवा :- इसकी उपज 300 से 400 किवंटल प्रति ह्येक्टर है | इस फसल को तैयार होने में
लगभग 100 से 125 दिन का समय लगता है |
12.
कुफरी
लालिमा :- आलू की इस किस्म का कंद गोल और आंखे कुछ गहरी होती है | इसके छिलके का
रंग गुलाबी होता है | यह फसल बहुत जल्द ही पककर तैयार हो जाती है | इसे तैयार होने
में कम से कम 90 से 100 दिन का समय लगता है |
:- संकर किस्मे :-
कुफरी जवाहर jh 222 :-
खेतो में अगेता झुलसा और फोम रोग के लिए प्रतिरोधी किस्मे है | इसकी उपज 250 से
300 किवंटल प्रति ह्येक्टर की होती है | इस फसल को पकने में लगभग 90 से 120 दिन का
समय लगता है |
e4 , 486 :- आलू की यह
किस्म ज्यादातर हरियाणा , उतरप्रदेश , बिहार , पशिमी बंगाल , मध्य प्रदेश और
गुजरात में उगाई जाती है | इसकी उपज 200 से 300 किवंटल प्रति ह्येक्टर की है | इस
फसल को तैयार होने में कम से कम 100 से 135 दिन का समय लगता है |
jf 5106 :- इस फसल को
तैयार होने में लगभग 60 से 70 दिन का समय लगता है | इसकी उपज 25 से 28 टन प्रति
ह्येक्टर मिल जाती है| यह फसल उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रो में उगाई जाती है |
कुफरी संतुलज j 5857 i
:- आलू की यह फसल लगभग 70 से 75 दिनों में तैयार हो जाती है | इस फसल की प्रति ह्येक्टर
उपज 25 से 28 टन तक की प्राप्त हो जाती है | संकर की यह किस्म सिन्धु घाटी के गंगा
मैदानी भागों में या पठारी क्षेत्रो में उगाया जाता है |
आलू की संकर किस्में |
कुफरी अशोका p 376 j
:- आलू की इस फसल की भी 25 से 28 टन की उपज हमे प्राप्त हो जाती है | इसे तैयार
होने में कम से कम 75 दिन का समय लगता है |
jex 166 c :- आलू की
इस किस्म की उपज सबसे ज्यादा मिल जाती है | इसकी उपज हमे 30 टन तक प्राप्त हो जाती
है | इसे तैयार होने में तीन महीने यानि 90 दिन लग जाते है |
आलू की नई किस्मे :- कुकरी
चिप्सोना -1 , कुकरी चिप्सोना -2 , कुफरी गिरिराज , कुफरी आनन्द आदि |
आलू की कुछ विदेशी
किस्मे जिनको भारत की परिस्थीती के अनुकूल उगाया जाता है | इसमें से कुछ किस्मो के
नाम निम्नलिखित है |
1.
अपटूडेट
, क्रिंग्स डिफेन्स और प्रेसिडेंट आदि |
आलू की खेती करने के लिए बीजों का चुनाव :-
आलू के बीज का आकार और उसकी उपज का आपस में एक गहरा रिश्ता होता है | जिस बीज का
माप बड़ा होता है उससे हमे उपज अधिक प्राप्त होती है| परन्तु इसकी कीमत बहुत ज्यादा
होती है जिसके कारण हमे उचित लाभ नहीं मिलता | छोटे माप वाले बीज की कीमत बहुत कम
होती है लेकिन इसे उगाने के बाद रोगाणु युक्त आलू पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है | इस
लिए हमे अच्छा लाभ प्राप्त करने के लिए 3 सेंटीमीटर से 3.5 सेंटीमीटर के आकार के
या 40 ग्राम के आलुओ को ही बीजो के रूप में भूमि में बो देना चाहिए | इससे हमे एक
रोग मुक्त और अच्छी फसल प्राप्त होती है |
आलू की फसल बोने का उचित समय और बीज की
मात्रा :- भारत में जब सर्दी का प्रकोप बढ़ जाता है और दिन छोटे होने लागते है तो
आलुओं को बढ़ने के लिए समय बहुत कम मिलता है | इसके आलावा अगेती बुआई करने से हमे
लम्बा समय तो मिलता है लेकिन उपज की प्राप्ति कम होती है | इस प्रकार की अगेती फसल
में आलू के कंद के बनने पर और फसल की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | इसके
साथ ही साथ बीजो के अंकुरण और सडन का खतरा बढ़ जाता है | इसलिए हमे उत्तर भारत में
आलू की बुआई ऐसे समय में करनी चाहिए की आलू दिसम्बर के महीने में पुरे तैयार हो
जाये | सिलिये हमे इसकी बुआई अक्तूबर के महीने के आरम्भ में ही कर देनी चहिये |
भारत के पूर्वी भाग में आलू को अक्तूबर के बीच से लेकर जनवरी के महीने तक बोया
जाता है | जिसके कारण हमे आलू की लगभग 25 से 30 किवंटल प्रति ह्येक्टर की उपज
प्राप्त हो जाती है | जो किसी भी किसान के लिए लाभदायक होता है |
AALU Mein Khad Ka Pryog, |
आलू को बोने की विधि :- आलू को बोते समय यदि
हम दुरी कम कर देते है तो पानी , रोशनी और पोषक तत्व पौधे को कम मिल पाते है |
जिसके कारण छोटे – छोटे आलू पैदा होते है | इसके आलावा यदि दुरी अधिक रखते है तो
प्रति ह्येक्टर पौधे की संख्या कम हो जाती है | जिसके कारण आलू की वृद्धि तो पुरे
तरीके से होती है लेकिन इसकी उपज बहुत कम हो जाती है | इसी कारण आलू को बोते समय
इसकी कतारों और पौधे की दुरी में संतुलन बनाना होता है ताकि हमे उपज भी अच्छी मिले
और इसकी वृद्धि भी उचित ठंग से हो सके | आलु को बोते हुए इसकी एक पंक्ति में कम से
कम 50 सेंटीमीटर का अंतर होना चाहिए और इसके पौधे की बीच की दुरी 20 से 25
सेंटीमीटर की होनी चाहिए | इस प्रकार से आलू को बोने से हमे एक अच्छी और लाभप्रद
फसल प्राप्त होती है |
बीजो को किस प्रकार से उपचारित करना है इसकी
जानकारी हम आपको दे रहे है |
बीजों को अगोरा , दीमक ,फफूंद और जमीन से
होने वाली बिमारियों से बचाने के लिए 5 लिटर देसी गाय का मठा को 15 ग्राम हींग में
अच्छी तरह से मिलाकर एक मिश्रण तैयार कर लें | इस मिश्रण में आलू के बीज को
उपचारित दें | बीजों को उपचारित करने के बाद इन्हें अच्छी तरह से सुखाकर बोये | इस
विधि के आलावा देसी गाय के पेशाब में बीजो को उपचारित करके और उन्हें सुखाकर बोये
| इस प्रकार से बीजो को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होता |
खाद और उर्वरक का प्रयोग :- खेत में फसल को
बोने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करें और इसमें 50 से 60 टन सड़ी हुई गोबर
की खाद , 20 किलोग्राम नीम के पेड़ की खली , 20 किलोग्राम अरंडी की खली को मिलाकर
जोती हुई भूमि पर छिडकाव करे | इस मिश्रण को एक कद भूमि पर एक समान मात्रा में
छिडके | इस खाद के छिडकने के बाद ही खेत में आलू की फसल बोयें | फसल के बोने के कम
से कम एक महीने के बाद इस फसल में 10 लीटर गाय का मूत्र और नीम की पत्तियों का
काढ़ा मिलाकर एक अच्छा सा मिश्रण बनाये | इस मिश्रण को फसल पर किसी पम्प के द्वारा
तर – बत्तर करके छिडकाव करें | इस प्रकार के मिश्रण का छिडकाव एक महीने में कम से
कम दो बार अवश्य करे |
Aalu Mein Lagne Vale Rog |
रासायनिक खाद के प्रयोग की दशा में :- खाद का
प्रयोग प्रति ह्येक्टर भूमि के परीक्षण के आधार पर करें |
सड़ी हुई गोबर की खाद :- 50 से 60 टन
नाइट्रोजन
:- 90 से 120 किलोग्राम प्रति एक ह्येक्टर
फास्फोरस
:- 40 से 50 किलोग्राम प्रति ह्येक्टर |
फास्फोरस और सड़ी हुई गोबर की खाद को आपस में
अच्छी तरह से मिलाकर खेत में फसल को बोने से पहले मिटटी में अच्छी तरह से मिला दें
| इसके आलावा नाइट्रोजन की खाद को दो या तीन हिस्सों में बाँटकर फसल की रोपाई के
कम से कम 25 , 40 और 60 दिन के बाद प्रयोग कर सकते है | नाइट्रोजन की खाद को खेत
में दूसरी बार लगाने के बाद पौधे पर परत की मिटटी चढ़ाना अति लाभदायक होता है |
सिंचाई करने का तरीका :- किसी भी फसल की
अच्छी उपज और सफल खेती के लिए सिंचाई अति लाभदायक मानी जाती है | यह खेती में एक
महत्वपूर्ण योगदान देती है | भारत में मैदानी भागों में पानी की कमी नहीं होती
इसलिए यंहा पर खेती आसानी से की जा सकती है | लेकिन पहाड़ी इलाकों में आलू की खेती
केवल बारिश पर ही नर्भर करती है | क्योंकि यंहा पानी की उपलभता नहीं होती | आलू की
खेती में पानी की कमी होने के कारण आलू की वृद्धि , विकास और कंद के बनने पर
प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है | जंहा पर आलू की खेती की जा रही है उस स्थान पर पानी का
ठहराव नहीं होना चाहिए | इससे फसल को हानि हो सकती है | आलू की खेती में सबसे पहली
सिंचाई अंकुरण के बाद ही करनी चहिये | इस सिंचाई के बाद एक महीने में कम से कम दो
या तीन बार हल्की – हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए | सिंचाई करते समय इस बात का
ध्यान रखे की खुंद तीन चौथाई से ज्यादा ना डूबे | आलू के कंद बनने के समय में इसकी
खेती में पानी की कमी नहीं होनी चहिये
| आलू की खेती में कम से कम 500 मिलीलीटर पानी की जरूरत होती है | जब आलू की फसल
तैयार हो जाये तो इसकी खुदाई करने के लिए सिंचाई को 10 दिन पहले ही बंद कर देना
चाहिए | इससे आलू के कंद का छिलका मजबूत हो जाता है | आलू का छिलका कठोर होने के
कारण खुदाई करते समय इसका छिलका नहीं उतरता और इसके भंडारण क्षमता में बढ़ोतरी होती
है |
खरपतवार की रोकथाम |
आलू की खेती में खरपतवार की समस्या :- इसकी
खेती में खरपतवार की समस्या आलू पर मिटटी चढ़ाने से पहले अधिक होती है | लेकिन यश
समस्या निराई , गुड़ाई करने से और मिटटी के चढ़ाने से दूर हो जाती है | इसकी खेती
में किसी – किसी जगह पर खरपतवार की मात्रा अधिक बढ़ जाती है | जिसके कारण आलू के
पौधे उगने से पहले ही खरपतवार इन पौधे को ढक लेते है | इस कारण आलू की फसल को हानि
पंहुचती है | इसे समय पर ही निराई और गुड़ाई करके निकाल देना चाहिए
:- आलू को हानी पंहुचाने वाले कीट का वर्णन :-
:- आलू को हानी पंहुचाने वाले कीट का वर्णन :-
चैपा :- ये कीट मुख्य रूप से दो तरह के होते है
| एक पंख वाले और दुसरे बिना पंख के | इस कीट का रंग गहरा काला या हरा होता है |
कीट की ये दोनों रूप आलू के पौधे की पत्तियों और टहनी का रस चूस लेते है | इसके
कारण पत्तियाँ पीली होकर नीचे की तरह मुड़ जाती है | इस कीट का जब अधिक कुप्रभाव
होता है तो सारी आलू की फसल नष्ट हो जाती है | जिस कीट के पंख होते है वह कीट
विषाणु फैलाते है |
इस कीट से बचने का उपाय :- चैपा नामक कीट से
बचने के लिए देसी गाय का 5 लिटर मट्ठा लें | इसमें नीम के पेड़ की पत्तियों का रस (
उबाला हुआ ) या 2 किलो नीम की खली को अच्छी तरह से मिलाकर एक मिश्रण बनाये | इस
मिश्रण को पौधे पर किसी पम्प के द्वारा छिडकाव करें | इसके आलावा एक मटके में नीम
की पत्तियों को भरकर कम से कम 45 से 50 दिन तक रख दें | जब ये पत्तियाँ सड़ जाये तो
इन सड़ी हुई पत्तियों की 5 लीटर की मात्रा में लगभग 200 लीटर पानी मिला लें | नीम के
इस मिश्रण को पौधो पर तर – बतर करके छिडकाव करने से इस कीट का कुप्रभाव दूर हो
जाता है |
Aalu Mein Lagne Vale Rog Or Unse Bachav Ke Upay |
कुतरा :- यह कीट आलू के पौधे और उगते हुए
कंदों को काट देती है | इस कीट की सुंडी आलू में घुसकर इसमें छेद बना देती है | इस
कीट का कुप्रभाव रात के समय अधिक होता है | ये कीट रातों – रात फसलों को हानि
पहंचाते है | इसके कारण आलू की कीमत पर भी असर पड़ता है |
इस कीट से बचने का उपाय :- 2 किलोग्राम अकौआ
की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम नीम के पेड़ की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम बेसरम की
पत्तियों को 10 लीटर गाय के मूत्र में मिलाकर 10 से 15 दिन के लिए रख दें | जब यह
मिश्रण सड़ जाये तो इसे उबालकर पका लें | पकते हुए जब यह मिश्रण आधा रह जाये तो इसे
उताकर ठण्डा होने के लिए रख दें | इस तैयार मिश्रण के एक लीटर की मात्रा में 200
लीटर पानी मिलाकर पौधे पर किसी पम्प के द्वारा छिडकाव करें | इस प्रकार की दवा का
प्रयोग करके हम पौधे को हानि से बचा सकते है |
व्हाइटगर्ब :- इस कीट का रंग सफेद या सलेटी
होता है | इस कीट का शरीर मुड़ा हुआ और सिर भूरे रंग का होता है | इस कीट को
कुरमुला के नाम से भी जानते है | यह कीट जमीन के अंदर रहकर आलू के पौधे की जड़ो को
नुकसान पंहुचता है | यह कीट आलू में घुस कर इसमें छेद कर देता है जिसके कारण इसका
भाव बाजार में कम हो जाता है | और किसानो को नुकसान का सामना करना पड़ता है |
इस कीट के प्रभाव को रोकने का तरीका :- 2
किलोग्राम आकौआ की पत्तियों को देसी गाय के मूत्र में मिलाकर 15 से 20 दिन के लिए
रख दें | जब यह मिश्रण सड़ जाये तो आंच पर उबालकर पका लें | पकाते हुए जब इस मिश्रण
की मात्रा आधी रह जाये तो इसे उतारकर ठण्डा कर लें | इस तैयार मिश्रण के एक लीटर
की मात्रा में 200 लीटर पानी मिलाकर किसी पम्प की मदद से पौधे पर तर बतर करके
छिडकाव करें |
एपीलेकना :- इस कीट के दो रूप पाए जाते है |
एक बच्चे और दुसरे प्रौढ़ | ये दोनों ही रूप पौधे को नुकसान पंहुचाते है | इस कीट
का आकार छोटा होता है और पीलापन लिए हुए इस कीट का रंग भूरा होता है | इसके पीठ पर
बहुत सारी बिंदियाँ होती है और पीठ का भाग थोडा सा उठा हुआ होता है | इस कीट के
बच्चे पौधे की पत्तियों को खुरच कर खा जाते है | जिसके कारण पौधे की पत्तियाँ सुख
जाती है |
इस कीट से बचने का उपाय :- 2 किलोग्राम अकौआ
की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम नीम के पेड़ की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम बेसरम की
पत्तियों को 10 लीटर गाय के मूत्र में मिलाकर 10 से 15 दिन के लिए रख दें | जब यह
मिश्रण सड़ जाये तो इसे उबालकर पका लें | पकते हुए जब यह मिश्रण आधा रह जाये तो इसे
उताकर ठण्डा होने के लिए रख दें | इस तैयार मिश्रण के एक लीटर की मात्रा में 200
लीटर पानी मिलाकर पौधे पर किसी पम्प के द्वारा छिडकाव करें | इस प्रकार की दवा का
प्रयोग करके हम पौधे को हानि से बचा सकते है |
:- पौधे के रोग और उसके उपचार :-
अगेती अंगमारी :- आलू की फसल पे इस रोग का
अधिक प्रभाव सर्दी के मौसम में और बसंत के मौसम में होता है | यह रोग अल्तेरनेरिया
सोलेनाई नामक फफूंदी की वजह से होता है | आलू में यह रोग कंद के बनने से पहले ही
हो जाता है | इस रोग का सबसे पहले असर नीचे वाली पत्तियों पर होता है | फिर इस रोग
का प्रभाव ऊपर की और बढ़ता है | पौधे की पत्तियों पर छोटे – छोटे गोल आकार के या
कोण आकर के धब्बे हो जाते है | इन धब्बे का रंग भूरा होता है | धीरे – धीरे धब्बे
के आकार बढ़ जाते है और पुरे पत्ते पर दिखाई देने लगते है | ये धब्बे सूखने के बाद
चटक जाते है जिसके कारण रोगी पौधा मर जाता है |
रोग से बचने का उपाय |
:- इस रोग से बचने का उपाय :-
2 किलोग्राम अकौआ की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम
नीम के पेड़ की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम बेसरम की पत्तियों को 10 लीटर गाय के मूत्र
में मिलाकर 10 से 15 दिन के लिए रख दें | जब यह मिश्रण सड़ जाये तो इसे उबालकर पका
लें | पकते हुए जब यह मिश्रण आधा रह जाये तो इसे उताकर ठण्डा होने के लिए रख दें |
इस तैयार मिश्रण के एक लीटर की मात्रा में 200 लीटर पानी मिलाकर पौधे पर किसी पम्प
के द्वारा छिडकाव करें | इस प्रकार से तैयार किये हुए मिश्रण से छिडकाव करने से
पौधे में बढ़ने वाले धब्बे पर हम नियंत्रण पा सकते है |
पछेती अंगमारी :- इस रोग में पौधे के तनों ,
शिराओं और डंठल पर छोटे – छोटे भूरे रंग के धब्बे निकल जाते है | धीरे – धीरे इन
धब्बे का रंग काला हो जाता है | इसके कारण पौधे का भूरा भाग सड़ जाता है | यह रोग
फाइटो पथोरा इन्फेस्तेंस नामक फफूंदी के कारण होता है | इस रोग की रोकथाम देरी से
होने के कारण आलू के कंद भूरे और बैगनी रंग में बदल जाते है | इसके कारण आलू गलने
लगता है |
इस
रोग से बचने का उपचार :- 2 किलोग्राम अकौआ
की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम नीम के पेड़ की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम बेसरम की
पत्तियों को 10 लीटर गाय के मूत्र में मिलाकर 10 से 15 दिन के लिए रख दें | जब यह
मिश्रण सड़ जाये तो इसे उबालकर पका लें | पकते हुए जब यह मिश्रण आधा रह जाये तो इसे
उताकर ठण्डा होने के लिए रख दें | इस तैयार मिश्रण के एक लीटर की मात्रा में 200
लीटर पानी मिलाकर पौधे पर किसी पम्प के द्वारा छिडकाव करें | इस प्रकार से तैयार
किये हुए मिश्रण से छिडकाव करने से पौधे में बढ़ने वाले धब्बे पर हम नियंत्रण पा
सकते है |
इस उपचार के आलावा आधा किलो लहसुन और आधा
किलो तीखी हरी मिर्च को लेकर बारीक़ करके पीस लें | दोनों को पिसने के बाद इसमें
200 लीटर पानी और झाग के लिए थोडा सा शैम्पू मिलाकर एक घोल बनाये | इस घोल को
प्रति एक एकड़ भूमि पर किसी पम्प की मदद से तर बतर करके छिडकाव करें | इससे पौधे
में रह रोग ठीक हो जाता है |
काली रुसी ब्लेक स्कार्फ :- आलू की फसल में
यह रोग मैदानी और पठारी हिस्सों में अधिक होता है | इस रोग में आलू के कंदों पर
चोकलेटी रंग के धब्बे निकल जाते है जो धोने के बाद भी साफ नहीं होते | आलू में यह
रोग रैजोकटोनिया सोलेनाई नामक फफूंदी के कारण होता है | इस फफूंदी का कुप्रभाव आलू
की बुआई के बाद शुरू हो जाता है | इस रोग के प्रभाव से पौधे दूर – दूर हो जाते है
और आलू के कंद मर जाते है |
इस रोग से बचने का उपाय :- :- 2 किलोग्राम
अकौआ की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम नीम के पेड़ की पत्तियाँ , 2 किलोग्राम बेसरम की
पत्तियों को 10 लीटर गाय के मूत्र में मिलाकर 10 से 15 दिन के लिए रख दें | जब यह
मिश्रण सड़ जाये तो इसे उबालकर पका लें | पकते हुए जब यह मिश्रण आधा रह जाये तो इसे
उताकर ठण्डा होने के लिए रख दें | इस तैयार मिश्रण के एक लीटर की मात्रा में 200
लीटर पानी मिलाकर पौधे पर किसी पम्प के द्वारा छिडकाव करें | भूमि से होने वाला
रोग और जड़ में सड़ने , दीमक आदि के लिए अरंडी की खली ओए नीम खाद को खेती में प्रयोग
करना चाहिए |
आलू की खुदाई |
आलू की फसल तैयार होने पर इसकी खुदाई किस
प्रकार से करना है इस बात पर हम आपको जानकारी दे रहे है |
जब आलू की फसल तैयार हो जाती है तो इसकी
खुदाई करते समय इस बात पर ध्यान दे की कटें और सड़े हुए आलू के कंदों को अलग कर दें
| जब सारे आलू की खुदाई हो जाये तो इन्हें बोरियों में भरकर रख दें | लेकिन
बोरियों में भरने से पहले इस बात का जरुर ध्यान रहे की आलू का छिलका ना उतरे और
आलू को किसी भी प्रकार का नुकसान ना हो | तभी आलू की अच्छी कीमत लगाई जाती है | और
किसानों को मुनाफा होता है |
आलू की उपज :- आलू की अच्छी उपज भूमि की
उर्वरक शक्ति , उसकी फसल की देखभाल और आलू की किस्म पर आधारित होती है | भारत के
मैदानी भागों में आलू की अगेती मध्य मौसमी किस्मो की 200 से 250 किवंटल प्रति
ह्येक्टर उपज मिल जाती है | इसके आलावा पछेती फसलो की 300 से 400 किवंटल तक की उपज
किसानो को प्राप्त हो जाती है| ऊँचे – ऊँचे पर्वतों और घाटियों में आलू की उपज
थोड़ी कम मिलती है | इन क्षेत्रो में 150 से 200 किवंटल तक की उपज ही मिल पाती है |
Aalu Ka bhandaran |
आलू का भंडारण :- आलू के लिए एक अच्छे भंडारण
की सुविधा होना बहुत जरूरी है क्योंकि आलू बहुत जल्दी ख़राब हो जाता है | भारत के
पर्वती इलाके में तापमान कम होता है इसलिए वंहा आलू के भंडारण की कोई समस्या नहीं
होती | आलू के भंडारण की समस्या ज्यादातर मैदानी भागों में होती है | इस भाग में
आलू को ख़राब होने से बचाने के लिए शीत भण्डार ग्रहों की आवश्कता होती है | इसे 1
से 2.5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भंडारित करना चाहिए |
आलू की लाभदायक खेती का तरीका,AALU Ki Labhdayaak Kheti Ka Trika, AALU Ke
Poushtik Ttv, AALU Ki Vibhinn Kismen, AALU Ke Liye Upukt Jalvayu, Or Khad Ka Pryog Aalu mein lagne vale rog or unse bachav ke upay |
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