जोगन मीराबाई से एक परिचय | Jogan Meerabai Se Ek Prichye

               मीराबाई

मीराबाई एक महान कवयित्री थी जिन्हें श्री कृष्णा के भक्त या जोगन के नाम से जाना जाता है | मीराबाई का पूरा नाम मीरांबाई था उनका जन्म 1498 में जोधपुर जिले के कुडकी गाँव में हुआ था | मीराबाई के पिता का नाम रत्नसिंह और उनकी माँ का नाम वीर कुमारी था | जब मीराबाई बहुत कम उम्र की थी उस समय एक दिन उनके घर के सामने से एक बारात जा रही थी | तब मीराबाई ने बारात में दुल्हे को देखा और अपनी माँ से यह प्रश्न किया की यह क्या हो रहा है ये सब कहाँ जा रहे है और जो घोड़े पर सवार है वह कौन है | तब उसकी माँ ने उसे कहा की यह बारात जा रही है और यह दूल्हा है | यह अपनी दुल्हन को लेने उसके घर जा रहा है | तो मीराबाई के दिल में एक और प्रश्न आया और उन्होंने कहा की मेरा दूल्हा कौन है और वह मुझे लेने कब आएगा | तब उनकी माँ ने उसे बच्ची समझ कर उसके सामने रखी श्री कृष्ण जी की मूर्ति को ही उसका दूल्हा बता दिया था | इसलिए बचपन से ही मीराबाई श्री कृष्ण की भक्ति में मगन रहने लगी थी | उनकी भक्ति में वह इतना मगन रहने लगी थी की मीराबाई कोई खेल खेलना भी पसंद नही करती थी | वह श्री कृष्ण की मूर्ति के साथ ही खेलती या बात करती थी | उन्होंने मन ही मन खुद को श्री कृष्ण का दीवाना बना लिया था उन्हें पूरा दिन श्री कृष्ण भक्ति में लीन रहना बहुत अच्छा लगता था |
जोगन मीराबाई से एक परिचय  Jogan Meerabai Se Ek Prichye

मीराबाई का विवाह बहुत कम उम्र में हो गया था | जिनसे उनका विवाह हुआ था वह उदयपुर के महाराणा कुंवर भोजराज थे | जो उदयपुर में रहने वाले महाराणा सांगा के पुत्र थे | मीराबाई के विवाह के कुछ समय बीत जाने के बाद ही उनके पति का देहांत हो गया था | जब उनके पति का देहांत हो गया था उसके बाद उनके पति के साथ सती करने प्रयास किया जाना था लेकिन मीराबाई इसके लिए बिलकुल भी तैयार नही हुई थी | मीराबाई संसार से बिलकुल मुक्त हो गई थी | वह अपना पूरा समय साधू संतुओं के साथ श्री कृष्ण की भक्ति कीर्तन में मगन रहने लगी थी | पति के देहांत के बाद उनका भक्ति में मगन रहना बढ़ता गया | उन्हें संसार में किसी से कोई लेना देना नहीं था | वह श्री कृष्ण की भक्ति में खुद को लीन रखना ही अपना जीवन समझने लगी थी | मीराबाई रोज मन्दिर जाने लगी थी और वह कृष्णभक्तो के सामने श्री कृष्ण की मूर्ति रख कर नाचती गाती रहती थी | मीराबाई का ऐसा करना राज परिवार को बिलकुल पसंद नहीं था | उन्होंने फिर निर्णय लिया की वह मीराबाई को विष देकर मार देंगे | उनके इस व्यवहार से बहुत परेशान हो कर मीराबाई द्वारका और वृंदावन चली गई थी | मीराबाई फिर जहाँ भी जाती वहां लोगो को बहुत सम्मान मिलता साथ ही उन्हें भी बहुत सम्मान और आदर मिलने लगा | सभी उन्हें देवियों के जैसा प्यार देने लगे और पूजने लगे थे

द्वारिका जाने के बाद मीराबाई सवंत 1558 इस्वी में श्री कृष्ण जी की मूर्ति में समा गई थी |
मीराबाई ने जिन्ह चार ग्रंथो की रचना की थी :-

नारसी का मराया
गीत गोविंद टीका
राग रोविंद
राग सोरठ के पद  
                                                                         

इसके अलावा एक मीराबाई की पदावली के नाम से ग्रंथ में मीराबाई के गीतों में इक्कठा किया गया है | उसके कुछ खंड इस प्रकार है :-

नरसी जी का मायरा

मीराबाई का मलार या मलार का राग

गर्बा गीता या मीराँ की गरबी

फुटकर पद

सतभामानु रूसण या सत्यभामा जी नुं रूसणं

रुक्मणी मंगल

नरसिंह मेहता की हुंडी

meera baai ka jeevan parichye , मीराबाई का जीवन परिचय

चरित

मीराबाई अपने समय से लेकर आज तक भी बहुत प्रसिद्ध रही है | भारत में आज भी मीराबाई के हिन्दी भाषा के भजन और गीत लोगो को बहुत मन भाते है, यहाँ तक की हिन्दी फिल्मो में भी मीराबाई के गीतों को गाया जाता है |


मीराबाई के वृंदावन से द्वारिका चले जाने के बाद उदयसिंह राजा बन गए थे और उन्हें इस बात से बहुत दुःख पहुँचा था की उनके परिवार में एक महान भगत के साथ बुरा बर्ताव किया गया है | तब उन्होंने अपने राज्य के ब्राह्मणों को द्वारिका  भेजा मीराबाई को वापस लेके आने के लिए | लेकिन मीराबाई ने आने से मना कर दिया था फिर ब्राह्मणों ने भी जिद करके मीराबाई से कहा वापस द्वारिका  नहीं जाएंगे | उस समय कृष्ण जन्माष्टमी के लिए द्वारिका में बहुत धूम धाम से तैयारियां हो रही थी | मीराबाई ने कहा की वह इस आयोजन में भाग लेने के बाद चलेगी | उस दिन वहां बहुत सी प्रतियोगिताएं चल रही थी और सभी भक्त जन भजन कीर्तन में मगन थे | मीराबाई ने उस आयोजन में नृत्य करना शुरू कर दिया | वह नाचते नाचते रनछोर राय जी के मंदिर में चली गई और मंदिर के मुख्य द्वार  खुद बंद हो गए थे | जब ब्राह्मणों ने द्वार खोला तो देखा की मीराबाई वहां से गायब हो गई थी और साथ ही देखा की मीराबाई का वस्त्र श्री कृष्ण जी की मूर्ति के चारो तरफ लिपटा हुआ था | जिससे मूर्ति बहुत चमक रही थी क्योंकि मीराबाई मूर्ति में ही समा गई थी | ब्राह्मणों ने बहुत ढूंढा लेकिन मीराबाई का शरीर कही नही मिला | उनका मिलन अपने प्रिय प्रेम से हो गया था | उनकी भक्ति की शक्ति से उन्हें श्री कृष्ण जी प्राप्त हो गए थे |        

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