आयुर्वेद
का
परिचय
आयुर्वेद
का हमारे जीवन में बहुत महत्व है । आज का मानव आयुर्वेदिक दवाइयों को छोड़कर अंग्रेजी दवाइयों का उपयोग कर रहा है । जिससे मनुष्य का एक रोग तो ठीक हो जाता है लेकिन उन दवाइयों का उपयोग करने के बाद मनुष्य के शरीर में कुछ और नई बीमारियां उत्पन्न हो जाती है । जिससे वह शारीरिक रूप से कमजोर हो जाता है । लेकिन आयुर्वेदिक औषधि के द्वारा उपचार करके हम व्यक्ति के स्वास्थय को ठीक करके उनको होने वाले रोगों से भी बचाते है ।
प्राचीन काल से ही आयुर्वेदिक जड़ी - बुटिओ
के द्वारा रोगी का उपचार होता रहा है । इन जड़ी - बूटियों
को बनाने में हमारे देश के ऋषि - मुनियों का
योगदान रहा है । इन्होने ने जंगलो और पहाड़ो में रहकर , बहुत
कठिनाइयों को सहन करके बहुत सारी चमत्कारी औषधियों का निर्माण किया है । क्योकि उनका मानना था कि मनुष्य की कोई भी बीमारी शरीर से संबंधित नहीं होती बल्कि रोगी के शरीर और मन दोनों से ही पीड़ित हो जाता है । क्योंकि बीमारी का बुरा असर व्यक्ति के शरीर के साथ - साथ
उसके मन पर भी पड़ता है| इसलिए
आयुर्वेद में ऐसी जड़ी - बूटियों
हैं जिससे रोगी की हर बीमारी को ध्यान में रखते हुए उनका उपचार किया जाता है । जो भी व्यक्ति आयुर्वेदिक पद्धति से अपना इलाज करवाता है । तो चिकित्सक पहले रोगी के शरीर की अवस्था मन और आत्मा की अवस्था , वात , पित्त , कफ
और मल और मूत्र का परीक्षण करके, पीड़ित
व्यक्ति का उपचार आरम्भ करता है । इस प्रकार की प्रक्रिया को सांस्थानिक पद्धति कहा जाता है । इसमें रोगी के लक्षणों पर भी ध्यान दिया जाता है । आयुर्वेद चिकित्स्या में प्रयोग होने वाली औषधि एक प्रकार का रसायन होती है ।
आयुर्वेदिक
औषधि का प्रयोग किस प्रकार करना चाहिए , और
इसके उपयोग के बाद क्या खाना चाहिए , किन
चीजो का परहेज रखना चाहिए । इन सभी बातों का विस्तृत वर्णन आयुर्वेद में किया गया है ।
मनुष्य
का आयुर्वेदिक उपचार के साथ - साथ
कई और जानकारी का वर्णन आयुर्वेद में किया गया है । जैसे :- सुबह - सुबह
सूर्य उदय होने से पहले उठना सैर करना , निाहर
अथवा , खाली
पेट पानी पीना मल मूत्र त्यागना , दांतो
को साफ करना व्यायाम करने के बाद स्नानं करने से लेकर पूरे दिन के कार्य के बारे में बताया गया है । इसके आलावा रात के समय क्या खाना चाहिए और किस समय और कितना सोना चाहिए। भारत
को ऋतुओं का देश कहा जाता है । इन ऋतुओं में मनुष्य को क्या खाना चाहिए कैसा व्यवहार करना चाहिए । किस प्रकार की चीजों का परहेज करने से मनुष्य स्वस्थ रह सकता है । इन सभी बातों का आयुर्वेद में वर्णन किया गया है । जिसका अनुसरण करके मानव रोगो से बच सकता है ।
इसके आलावा मनुष्य के जीवन को निरोग और सुखी बनाने के लिए कुछ आवशयक जानकारी आयुर्वेद में की गई है । जैसे :- हर
एक मनुष्य का बड़ो और छोटो के प्रति कैसा व्यवाहर रखना चाहिए । उनका कैसा आचरण होना चाहिए , समाज
और परिवार में क्या मर्यदाय होनी चाहिए । किस तरह के मनुष्य से दूर रहना चाहिए , कैसा
स्वभाव होना चाहिए , मनुष्य को किस प्रकार उठना , बैठना
और किस तरह देखना चाहिए । और मर्यादा रहित व्यक्ति से कैसे बचना चाहिए आदि बातों का समावेश हमारे आयुर्वेद में किया गया है
इसके
अतिरिक्त मनुष्य को कभी अपने ऊपर घमंड नहीं करना चाहिए । अपने स्वभाव को सरल और सहज बनाने के लिए हमे क्या करना चाहिए , प्रकृति
मनुष्य को उपहार में मिली है इसे हमे किस प्रकार सहेज के रखना है आदि जानकरी का समायोजन भी आयुर्वेद में किया गया है । आयुर्वेद को पढ़ने से हमारी ज्ञान की वृद्धि होती है । आयुर्वेद भारत की परम्परा को बनाये रखता है । आयुर्वेद हमे दूसरो के दुःख में शामिल होना और अपने सुख में दूसरों को शामिल करना सिखाता है । इस लिए आयुर्वेद हमारे जीवन में एक पथ प्रदर्शक का कार्य करती है ।
mujhe shareer mein bhaut adhik khujli or alerji rahti hai to kripya aap iska ilaj mujhe bataye taaki mein is bimari se mukti pa saku, mein khaaj khujli se preshaan haun,
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