तोरई की खेती करने का तरीका,Torai Ki Kheti Ka Trika |

तोरई की खेती करने का तरीका
तोरई की खेती करने का तरीका
तोरई की खेती सारे भारत में की जाती है | लेकिन इसकी खेती मुख्य रूप से केरल , उड़ीसा , कर्नाटक , बंगाल और उत्तर प्रदेश में की जाती है | यह बेल पर लगने वाली सब्जी होती है | जिसे हर मनुष्य खाने में पसंद करता है | यह सब्जी ठंडी होती है इसलिए इसका उपयोग गर्मी के मौसम में किया जाता है | तो आज हम तोरई की उन्नत खेती किस प्रकार से करनी है इस बात की जानकारी दे रहे है |
तोरई की खेती के लिए उत्तम जलवायु :- तोरई की खेती हर तरह के मौसम में की जाती है | लेकिन तोरई की अच्छी फसल लेने के लिए उष्ण और नम जलवायु सर्वोतम मानी जाती है |
तोरई की खेती करने का समय :- गर्मी के मौसम की फसल लेने के लिए इसकी बुआई जनवरी से मार्च के महीने में करनी चाहिए | जबकि वर्षा कालीन फसलों के लिए जून से जुलाई का महिना सबसे अच्छा माना जाता है |
तोरई की खेती के लिए भूमि का चुनाव :- इसकी खेती हर तरह की मिट्टियों में सफलतापूर्वक की जा सकती है | लेकिन जिवांश युक्त हल्की दोमट मिटटी इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है | इस मिटटी में उचित जल निकास की क्षमता होती है | इसके आलावा कुछ अम्लीय प्रकार की मिटटी में भी इसकी खेती की जा सकती है | नदियों के किनारे वाले मिटटी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है | जिस मिटटी में तोरई की खेती की जा रही हो उस मिटटी का पी. एच मान उदासीन हो तो बेहतर होता है | इस मिटटी में तोरई की अच्छी उपज मिल जाती है |
Torai, Ki Unnat Kismen
Torai, Ki Unnat Kismen
बुआई करने से पहले खेत की तैयारी :- यह फसल अधिक निराई वाली फसल है | इसलिए इसके खेत में पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें | जुताई करने के बाद खेत में 2 या 3 बार केल्टिवेटर चलायें | जब खेत ई मिटटी भुरभरी हो जाये तो ही तोरई की खेती करें |
बीज की मात्रा :- तोरई के 4 से 5 किलोग्राम बीज की मात्रा को एक हेक्टेयर भूमि के लिए पर्याप्त है | तोरई के बीज को खेत में बोने से पहले गौमूत्र से उपचारित करना चाहिए |
फसल लगाने का तरीका :- तोरई के पौधे को कतारों में लगाना चाहिए | तोरई के एक पौधे से दुसरे पौधे के बीज की दुरी 1. 0 से 1. 20 तक की होनी चाहिए | तोरई की एक जगह पर दो बीज बोयें | इसके बीजों को अधिक गहराई में नहीं बोना चाहिए | यदि इसके बीजों को अधिक गहराई में बोया गया तो इसके अंकुरण में कमी आ सकती है |  
तोरई की किस्में :-  1. पूसा नसदार , एम. ए. 11 , कोयम्बटूर 1 , कोयम्बटूर -2, पी. के. एम. -1 , पूसा चिकिनी , आर. 164 , कल्याणपुर चिकनी , राजेन्द्र नेनुआ -1 , राजेन्द्र आशीष ,सी. एच. आर. जी. -1 ,पी. आर जी . -1 , पूसा स्नेहा ,स्वर्ण मंजरी आदि किस्मे भारत में उगाई जाती है |
सरपुतिया :- तोरई की इस किस्म में फल छोटे लगते है | इसके एक गुच्छे में लगभग 5 से 8 फल लगते है | इस किस्म की खेती ज्यादतर बिहार और पंजाब में उगाया जाता है | तोरई के बीज बोने के 60 से 70 दिन में पकाकर तैयार हो जाती है |
पंजाब सदाबहार :- इसके पौधे मध्यम आकार के होते है | इसके एक फल की लम्बाई 20 सेंटीमीटर की होती है और चौड़ाई 3 से 4 सेंटीमीटर की होती है | इसका हर एक फल का रंग गहरा हरा और धारीदार होता है इसके आलावा फल कोमल और पतला होता है | तोरई की इस किस्म में सबसे अधिक प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है |
तोरई की खेती में प्रयोग होने वाली खाद :- तोरई की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए इसकी फसल में आर्गनिक खाद और कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए | इसकी फसल के लिए एक हेक्टेयर भूमि में 30 से 40 टन सड़ी हुई गोबर की खाद काफी होती है | इस खाद को खेत में जुताई करने से पहले अच्छी तरीके से बिखेर दें | इसके बाद ही खेत की जुताई करें | ताकि खाद मिटटी में मिल जाये | खाद डालने के बाद ही बीजों की बुआई करें | बीज बोने के लगभग 20 से 25 दिन के बाद फसल में जीवा मृत का छिडकाव करें | इसका दूसरा और तीसरा छिडकाव हर 15 दिन के बाद करें |
Khrpatvaar Ki Roktham Ka Upay
Khrpatvaar Ki Roktham Ka Upay
सिंचाई करने का तरीका :- इसकी सिंचाई मौसम पर आधारित होती है | यदि तोरई को गर्मी में उगाया गया है तो इसकी सिंचाई 6 से 7 दिन के अंतर पर करें | इसके आलावा वर्षा ऋतु की फसलो को अधिक सिंचाई की अवश्यकता नहीं होती | इसकी सिंचाई वर्षा पर ही निर्भर होती है |  
खरपतवार की रोकथाम करने के लिए :- तोरई की खेती में उगे हुए छोटे – छोटे खरपतवार को जड़ समेत उखाड़कर निकाल देना चाहिए | इसके लिए केवल 2 से 3 बार हल्की निराई – गुड़ाई करनी चाहिए |
कीटों की रोकथाम के लिए :-
लालड़ी :- यह कीट पौधे की हरी पत्तियों और फूलो को खाकर नुकसान पंहुचाता  है | जब पौधे पर दो पत्तियां निकल जाती है | उसी समय इस कीट का कुप्रभाव शुरू हो जाता है | लालड़ी नामक कीट की सुंडी भूमि के अंदर होती है | जो भूमि के अंदर रहकर पौधे की जड़ों को नुकसान देता है | इसकी रोकथाम करने के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
    :- उपाय :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस कीट का प्रभाव दूर हो जाता है
फल को नुकसान पंहुचाने वाली मक्खी :- यह मक्खी फलों के अंदर छेद करके घुस जाती है और वंही अंडे दे देती है | इसके अंडो में से सुंडी निकल जाती है | जो फल से बाहर निकल जाती है | इसके कारण फल बेकार हो जाता है | इस मक्खी का अधिकतर प्रभाव खरीफ वाली फसलों पर होता है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी है |
रोकथाम के उपाय :-  नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस कीट का प्रभाव दूर हो जाता है
Torai Ki Kheti Ke Liye Uchit Bhumi
Torai Ki Kheti Ke Liye Uchit Bhumi 



सफेद ग्रब :- यह कीट भूमि के अंदर होता है| जो पोधे की जड़ों को खाता है | यह कीट कददू की किस्मो को हानि पंहुचाता है | इस कीट के प्रभाव को दूर करने के लिए हमे निम्नलिखित उपाय है |
रोकथाम का उपाय :- इस कीट से बचने के लिए बुआई करने से पहले मिटटी में नीम  की खाद का प्रयोग करें |
चूर्णी फफूंदी :- यह एक फफूंदी जन्य रोग होता है | इस रोग में पौधे की पत्तियों और तनों पर सफेद दरदरा और गोलाकार जाल दिखाई देता है | धीरे – धीरे इसका आकार बढ़ जाता है | जब इसका आकार बढ़ जाता है तो इसका रंग कथई हो जाता है | पौधे की हरी – हरी पत्तियाँ सुख कर पीली हो जाती है | और पौधे की वृद्धि रुक जाती है | पौधे में यह रोग ऐरीसाईफी सिकोरेसीएरम नामक फफूंदी के कारण होता है | इसकी रोकथाम के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
रोकथाम एक उपाय :-  :-  नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस फफूंदी का प्रभाव दूर हो जाता है | 
मृदु रोमिल फफूंदी :- पौधे में यह रोग एक फफूंदी के कारण होता है | इसद रोग में पत्तियों की निचली सतह पर कोणा आकार के धब्बे बन जाते है | जो ऊपर से पीले या लाल भूरे रंग के होते है | पौधे में यह रोग स्यूडोपरोनोस्पारो क्युबेनिसिस नामक फफूंदी के कारण होता है |
इसकी रोकथाम के लिए :- नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस फफूंदी का प्रभाव दूर हो जाता है |
मौजेक :- पौधे में यह रोग क विषाणु के कारण होता है | इस रोग में पौधे की पत्तियों की वृद्धि रुक जाती है और वे मुड़ जाती है | यह रोग चेंपा के द्वारा फैलता है | इस रोग में फल छोटे लगते है और उपज भी कम मिलती है | इसकी रोकथाम करना बहुत जरूरी होता है |
रोकने का उपाय :-  नीम का काढ़ा या गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से इस विषाणु का प्रभाव दूर हो जाता है |
एंथ्रेक्नोज :- इस रोग में पौधे की हरी पत्तियों और फलों पर लाल – काले धब्बे बन जाते है | जो बाद में आपस में मिलकर एक बड़ा धब्बा बन जाता है | पौधे में यह रोग बीज के कारण होता है | इस रोग को फैलाने वाले कीट का नाम कोलेटोट्राईकम स्पिसिज है | इसे रोकने के लिए एक आसान तरीके से किया जा सकता है |
Torai Mein Lagne Vale Rog or Keet se bachaav
Torai Mein Lagne Vale Rog or Keet se bachaav
रोकथाम के लिए :- इस रोग से बचने के लिए बीज को बोने से पहले बीजों को गौमूत्र या नीम के तेल से उपचारित करें | जिस खेत में फसल बोई गई हो उस खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए | इसके आलावा किसानों को फसल चक्र की विधि अपनाना चाहिए |
फसल :- तोरई को फसल चक्र में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है |
फसल पकने के बाद तुड़ाई :- तोरई के फलों को छोटी अवस्था में हो तोड़ लेना चाहिए | नहीं तो फल कठोर हो जाते है | फलों के कठोर होने के बाद इसके गुणों में कमी आ जाती है | जिसका मूल्य बाजार में कम होता है |
उपज की प्राप्ति :- तोरई की एक हेक्टेयर भूमि पर से हमे लगभग 100 से 150 किवंटल की उपज मिल जाती है |


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