टमाटर की जैविक उन्नत खेती करने का तरीका :-
टमाटर की उन्नत खेती करने का तरीका
टमाटर भारत के हर एक रसोई घर में पाया जाता है | लोग इसे सलाद के रूप में खाते है | इसे सब्जी में भी डालकर प्रयोग किया जाता है | इसकी खेती भारत के सभी भागों में की जाती है | इसको खाने से मनुष्य के शरीर को बहुत फायदा होता है | तो आज हम टमाटर की खेती एक विषय में जानकारी दे रहे है |
टमाटर की खेती के लिए उचित जलवायु :- टमाटर को गर्मियों और सर्दियों दोनों
ही ऋतु में उगाया जा सकता है | लेकिन टमाटर उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है | टमाटर
की बुआई करने के बाद मौसम का तापमान 21.44 से 25 .22 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना चाहिए
| तभी टमाटर का अंकुरण अच्छी तरह से होता है | टमाटर के पौधे की उचित वृद्धि के
लिए मौसम का तापमान 35.22 से 37. 22 डिग्री सेल्सियस का होना चहिये | इसके पौधे
अधिक पाले को सहन नहीं कर पाते और जल्दी ही नष्ट हो जाते है | टमाटर में सुखा रहने
की क्षमता भी बहुत अधिक होती है | अधिक वाष्पीकरण होने के कारण बहुत गर्म और शुष्क
मौसम में टमाटर के कच्चे फल निचे गिरने लगते है | वातावरण में प्रकाश और तापमान का
टमाटर के फलों के के लाल रंग और खट्टेपन पर काफी प्रभाव पड़ता है | यही कारण है की
सर्दियों में फल मीठे और गहरे लाल रंग के होते है | जबकि गर्मी के मौसम में टमाटर
का रंग कम लाल और खट्टापन बहुत कम होता है | जिस भाग में अधिक वर्षा होती है वह
स्थान टमाटर की खेती के लिए उचित होता है |
Tmater ki Fasal Ke Liye Upyukt Bhumi
टमाटर की खेती के लिए उचित भूमि का चुनाव :- टमाटर की खेती सभी प्रकार की
मिटटी में असनि से की जा सकती है | लेकिन दोमट मिटटी इसकी खेती के लिए सर्वोतम
मानी जाती है | क्योंकि इस भूमि में उचित जल निकास की सुविधा होती है | टमाटर की
अच्छी और अधिक उपज लेने के लिए चिकनी दोमट मिटटी अच्छी होती है | इसके आलावा इसकी
अगेती किस्म की फसल लेने के लिए हल्की भूमि अच्छी होती है | जिस भूमि में टमाटर की
खेती की जा रही हो उस भूमि का पी. एच मान 6 से 7 के बीच का हो तो बेहतर होता है |
टमाटर की निम्नलिखित किस्में पाई जाती है |
टमाटर की मुख्य रूप से लाइकोपोर्सिन वंश की दो प्रकार की किस्मे उगाई जाती
है | एस्न्कूलेनटम एवं पिम्पिनेफोलिया आदि |
इश्क एबाद वाली सभी किस्मों के फल छोटे होते है | इसलिए इन्हें घर में बाग
आंगन में उगाया जाता है | टमाटर की वृद्धि के अनुसार प्रक्रति ने इसे दो रूपों में
विभाजित किया गया है |
निर्धारित वृद्धि वाले :- इस
किस्म में जब तक पौधे के शीर्ष पर फूल नही निकलते तब तक पौधे की लम्बाई नहीं बढती
| एच. इस. 102 , स्वीट – 72 , पूसा गौरव , पंजाब केसरी , पूसा अर्लीदुवार्फ और को.
3 आदि किस्मों के नाम इसके अंतर्गत आते है |
अनिर्धारित वृद्धि वाली किस्में :- इसमें
मुख्य अक्ष वृद्धि करते रहते है | इसमें निम्नलिखित किस्में आती है :- पूसा रूबी ,
सेलेक्शन 120 , पन्त टाइप 1- 3 किस्में और पन्त बहार आदि |
भारतीय किस्में :- भारत के विभिन्न कृषि वि. वि. भारतीय कृषि अनुसंधान
संस्थान नई दिल्ली क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान ग्वालियर , भारतीय बागवानी
अनुसंधान संस्थान बंगलौर , द्वारा टमाटर की अनेक उन्नत किस्मों का विकास किया गया
है | इसकी और भी किस्में है जिनका वर्णन इस प्रकार से है :-
एच . एस 101 :- टमाटर की इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि
विश्वविद्यालय हिसार द्वारा विकसित की गई है | टमाटर की इस किस्म के फल पूसा रूबी
के फल से 10 से 15 दिन पहले पकना शुरू हो जाता है | इसके फलों का गुदा कुछ मोटा
होता है | इसलिए इस किस्म के भंडारण की क्षमता अधिक होती है | टमाटर की इस किस्म
की खेती करने से हमे लगभग 250 से 300 किवंटल प्रति हेक्टेयर की अची उपज प्राप्त
होती है |
tmater ki vibhinn kismen |
एच. एस. 102 :- टमाटर की इस किस्म को भी चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि
विश्वविद्यालय हिसार द्वारा विकसित की गई है | इसके फल चपटे गोल होते है | इसका
आकार मध्यम होता है और धारीदार होता है | इस किस्म के पौधे बौने ही रह जाते है | टमाटर
की बुआई के 85 से 90 दिन में फल पकने शुरू हो जाते है | इसके फलों का रंग लाल और
छिलका मोटा होता है | | इस किस्म से हमे 200 से 275 किवंटल प्रति हेक्टेयर की उपज
मिल जाती है |
एच. एस. 110 :- टमाटर की इस किस्म को भी चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि
विश्वविद्यालय हिसार द्वारा विकसित की गई है | टमाटर की इस किस्म को सर्दी के मौसम
और बसंत के मौसम में उगाया जाता है | इसके फल अन्य किस्मों की अपेक्षा तीन गुना
भारी होता है | इसकी कारण टमाटर की अधिक पैदावार प्राप्त होती है | इस किस्म के
पौधे में रोग और कीटों का प्रभाव कम होता है | इसके फलों का गुदा गहरे लाल रंग का
होता है जो खाने में बहुत मीठे और स्वादिष्ट लगते है | यह एक पछेती किस्म है |
सेलेक्शन 12 :- इसके फल गोल सुडोल और रसदार होते है | इसके फल हल्के और पतले
छिलके वाले होते है | इन फलों का आकार मध्यम होता है | इस किस्म की खेती करने से
हमे 200 से 275 किवंटल प्रति एक हेक्टयर की उपज मिल जाती है | टमाटर की इस किस्म
का विकास पंजाब कृषि विश्वविधालय लुधियाना के द्वारा हुआ है |
कैकरुथ :- टमाटर की इस किस्म के फल बड़े और आकार में गोल होते है | और इसका
गुदा गहरे लाल रंग का होता है | टमाटर की
इस किस्म के अधिकांश फल मई के महीने
में पक जाते है | इस किस्म का अधिक उपयोग
रस निकालने के काम आती है | टमाटर की इस किस्म का विकास पंजाब कृषि विश्वविधालय के
द्वारा हुआ है | टमाटर की इस किस्म की खेती करने से हमे एक हेक्टेयर भूमि पर से
550 किवंटल तक की अच्छी उपज प्राप्त होती है | यह टमाटर की सबसे उत्तम किस्म मानी
जाती है |
कल्याण पूर कुबेर :- इस किस्म के टमाटर गोल होते है और उनका रंग लाल होता है |
यह टमाटर की अगेती किस्म है | इसकी खेती करने से हमे अधिक उपज की प्राप्ति होती है
| भारत में टमाटर की इस किस्म का विकास चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रोद्योगिक
विश्वविद्यालय कानपूर के द्वारा किया गया है |
कानपूर नं :- 1 :- इस किस्म के टमाटर का आकार गोल होता है और इसका रंग गहरा
लाल होता है | टमाटर की इस किस्म का विकास चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रोद्योगिक
विश्वविद्यालय कानपूर के द्वारा किया गया है| यह एक मध्य कालीन किस्म है | जो की
कम समय में अधिक उपज देती है |
अंगूर लता :- इस किस्म के टमाटर का फल मध्यम आकार का होता है | ये टमाटर एक
गुच्छे के रूप में एक ही जगह पर बहुत सर
लगते है | इसके हर एक गुच्छे में 8 या 10 टमाटर होते है | टमाटर की इस किस्म को घर
में बगीचा बनाकर भी उगा सकते है | यह एक पछेती किस्म है | इसकी रोपाई अक्टूबर के
महीने में की जाती है | रोपाई के लगभग 100 से 120 दिन के बाद इसका पौधा फल देना
शुरू कर देता है | जो मई महीने में आखिर तक मिलते रहते है | भारत में टमाटर की इस
किस्म का विकास चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय कानपूर के
द्वारा किया गया है|
tmater ki vibhinn kismen |
पन्त टी -1:- टमाटर की इस किस्म की खेती गर्मी और सर्दी दोनों ही मौसम में
सफलतापूर्वक की जा सकती है | इसके फल बड़े और गूदेदार होते है | यह अधिक फैलने वाली
किस्म होती है | भारत में इस किस्म का विकास गो.ब. पन्त कृषि और प्रोद्योगिक
वि.वि. पंतनगर के द्वारा किया गया है | टमाटर की इस किस्म की खेती करने से हमे
लगभग 350 किवंटल प्रति एक हेक्टेयर की उपज मिल जाती है | जो हर एक किसान के लिए
लाभदायक होती है |
पन्त टी -2:- टमाटर की इस किस्म की अधिकतर खेती भारत के पर्वतीय इलाके में और
रामगढ़ में की जाती है | यंहा की जलवायु और मिटटी इसकी खेती के लिए उपयुक्त है | इस
किस्म का विकास गो.ब. पन्त कृषि और प्रोद्योगिक वि.वि. पंतनगर के द्वारा किया गया
है | इस किस्म के टमाटर का छिलका मोटा होता है | और इसके फल नाशपाती के आकार के
होते है | इसलिए इसे मैदानी भागों में बड़ी ही आसानी के पंहुचाया जाता है | इसे
पहुचाने में टमाटर को बहुत ही कम हानि होती है |
पूसा रूबी :- इस किस्म के पौधे लम्बे और फैले हुए होते है और इसके फल चपटे , गोल और मध्यम आकार के होते है | यह एक अगेती किस्म है
जो रोपाई के लगभग 60 से 65 दिन में पककर तैयार हो जाते है | पकने के बाद इन
टमाटरों का रंग लाल हो जाता है | इसके फलों में अधिक रस और थोडा सा खट्टापन होता
है | इसके कारण टमाटर जल्दी खराब हो जाते है | टमाटर की इस किस्म का उपयोग चटनी
बनाने में और रस निकालने में किया जाता है | टमाटर की इस किस्म का विकास भारतीय
अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के द्वारा किया गया है | टमाटर की इस किस्म को भारत
उत्तरी हिस्से में उगाया जाता है | टमाटर की इस किस्म की खेती करने से हमे एक
हेक्टेयर की भूमि पर से 200 से 250 किवंटल तक की अच्छी उपज मिल जाती है |
पूसा अर्ली डूआरफ :- टमाटर की इस किस्म के पौधे थोड़े बौने होते है | लेकिन ये
घने झाड़ वाले होते है | इसकी पत्तियां कटावदार और हरें रंग की होती है | इस किस्म
के टमाटर के फल चपटे , गोल गहरी धारीदार और मध्यम आकार के होते है | टमाटर की इस
किस्म का विकास भारतीय अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के द्वारा किया गया है | रोपाई के 55 से 60 दिन में इसके फल पककर
तैयार हो जाते है | इसके फल लाल रंग के पतले छिलके वाले होते है | अगर इस किस्म को
बसंत ऋतु में उगाया जाये तो बेहतर होता है |
सेलेक्शन 120 :- इस किस्म के फल चपटा मध्यम आकार के चिकने , कम खट्टे , ,कम
बीज वाले और समान रूप में लाल रंग के होते है | इस किस्म के पौधे आधे फैले हुए
होते है | इनकी पत्तियों का रंग गहरा हरा और सघन होता है | इसकी रोपाई के लगभग 65
से 70 दिन में फल पककर तोड़ने लायक हो जाते है | टमाटर की इस किस्म का विकास भारतीय
अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के द्वारा किया गया है | यह किस्म सूत्र कृमियो का प्रतिरोधी होती है
| इस किस्म की खेती करने से हमे 250 से 275 किवंटल प्रति हेक्टयेर की अच्छी उपज
मिल जाती है |
सेलेक्शन 152 :- टमाटर की इस किस्म का विकास भारतीय अनुसंधान संस्थान नई
दिल्ली के द्वारा किया है | इस किस्म की बुआई के 80 से 85 दिन में फल पकने शुरू हो
जाते है | इस किस्म के पौधे लम्बाई में छोटे होते है और इसके फल ना ही ज्यादा बड़े
और ना ही ज्यादा छोटे होते है | यह टमाटर नाशपाती के आकार का और गूदेदार होता है |
इस किस्म को सर्दियों की अपेक्षा गर्मी के मौसम में उगाना चाहिए | क्योंकि गर्मी
के मौसम में इसकी अधिक पैदावार होती है | इन टमाटरों को बाजार में भजने और पेस्ट
बनाने के लिए उपयोग किया जाता है | टमाटर की इस किस्म की खेती करने से हमे एक
हेक्टेयर भूमि पर से 280 से 300 किवंटल की अच्छी उपज प्राप्त होती है |
tmater ki vibhinn kismen |
स्वीट 72 :- इस किस्म के फल गोल ,
सुडौल ,डंठल की तरह हरापन लिए हुए रसदार होते है | इसके फल दुसरे टमाटर की
तुलना में ज्यादा मीठे होते है | इसकी बुआई के 85 से 110 दिन में पकने शुरू हो
जाते है | टमाटर की इस कीं का विकास क्षत्रिय अनुसंधान संस्थान ग्वालियर द्वारा
किया गया है | इस किस्म को सर्दी के मौसम में भी उगाया जाता है और गर्मी के मौसम
में भी उगाया जाता है | ये दोनों ही मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त है | इससे हमे
300 से ३२५ किवंटल प्रति हेक्टेयर की अच्छी उपज प्राप्त होती है |
अर्का विकास :- इस किस्म के फल आकार में बड़े होते है | इस किस्म का विकास
भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बंगलौर के द्वारा किया गया है | इस किस्म को
दक्षिण भारत में उगाने के निर्देश दिए गये है |
पी. एन. आर. 7 :- टमाटर की इस किस्म का विकास पंजाब कृषि विश्व विद्यालय
लुधियाना के द्वारा किया गया है | टमाटर की यह किस्म नेमाटोड प्रतिरोधी होती है | इसकी
खेती करने से एक हेक्टेयर भूमि पर से लगभग 300 से 350 किवंटल की अच्छी उपज प्राप्त
हो जाती है |
ए. सी. 142 :- टमाटर की इस किस्म की रोपाई के लगभग 55 से 60 दिन में फल पककर
तैयार हो जाते है | यह बहुत जल्दी पकने वाली किस्म होती है | इसकी खेती करने से एक
हेक्टेयर की भूमि पर से हमे 200 से 250 किवंटल की अच्छी उपज मिल जाती है |
हिसार अरुण सेलेक्शन 7 :- इसके पौधे
छोटे होते है और हर एक पौधे पर फल काफी मात्रा में लगते है | ऐसे फल सामान्यता एक
ही समय में पककर तैयार हो जाते है | ये मध्यम से बड़े आकार के होते है | यह अगेती
किस्म है | इस किस्म का विकास चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि वि. वि. के द्वारा पूसा
अर्ली डूआर्फ और के. संस्करण से इस किस्म का विकास किया है | यह एच. एस. 110 किस्म
से लगभग 12 % अधिक उपज देती है | टमाटर की इस किस्म को ज्यादतर बसंत ऋतु में और
बारिश के मौसम में उगाया जाता है |
हिसार लालिमा सेलेक्शन 18 :- यह एक अगेती और अधिक उपयोगी किस्म है | इसके पौधे
कम बढ़ते है और फल आकार में बड़े, गोल, और
गूदेदार होते है | इनके फलों का रंग लाल होता है | इसके फल देखने में बहुत आकर्षक
होते है | रोपाई के 65 से 70 दिन में इसके फल पककर तैयार हो जाते है | टमाटर की इस
किस्म की खेती करने से हमे एक हेक्टयर की भ्मु पर से लगभग 300 किवंटल की अच्छी उपज
प्राप्त हो जाती है |
हिसार ललित ( एन. टी . 8 :- टमाटर की इस किस्म को चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि
वि. वि. द्वारा आर . बी. और एच. एस . 101 के संस्करण से तैयार किया गया है | टमाटर
के इस किस्म में जड़ गांठ सूत्र कृमि नामक रोग नहीं लगता | इस किस्म को रोग घर्सित
खेत में उगाने पर भी इसकी उपज 100 किवंटल प्रति एक हेक्टयर से प्राप्त होती है |
हिसार अनमोल :- इस किस्म के टमाटरों
के फलों का आकार मध्यम , गोल और गूदेदार होता है | और इसके फलों का रंग लाल होता
है | यह एक विषाणु रोधी किस्म है | इसके पौधे का अच्छी तरह से विकास ठंड के मौसम
में होता है | टमाटर की इस किस्म की बुआई जुलाई से दिसंबर के महीने में की जाती है
|
पूसा गौरव :- टमाटर की इस किस्म को बसंत गर्मी और खरीफ की फसल के रूप में उगाया जाता है | इसके
फलों का छिलका मोटा होता है | इसके आलावा इसके फल चिकने मध्यम आकार के और पूरी तरह
से लाल रंग के होते है | इन टमाटरों को दूर बाजारों में बेचने के लिए भेजा जाता है
| इस किस्म के फल डिब्बा बंदी के लिए उपयुक्त होते है | इसकी खेती करने से हमे 400
किवंटल तक की अच्छी उपज प्राप्त हो जाती है | यह उपज हमे केवल एक हेक्टेयर भूमि पर
से मिलती है |
पूसा शीतल :- इस किस्म के फल मध्यम आकार के सुंदर लाल रंग के होते है | टमाटर
की इस किस्म में सबसे खास बात यह है कि यह कम तापमान पर भी फल बना लेती है | इसी
कारण इसकी खेती मैदानी भागों में ठंड के मौसम में भी की जा सकती है | इसके फल
फरवरी के आखिर में या मार्च के महीने के शुरू होते ही पककर तोड़ने लायक हो जाते है
| इस किस्म की खेती करने से हमे एक हेक्टयर की भूमि पर से 300 किवंटल की अच्छी उपज
प्राप्त होती है |
पन्त बिहार :- यह किस्म हमे रूबी नामक किस्म से भी अधिक उपज देती है | इसके
आलावा इसके फल पूसा रूबी के फलों से आकर्षक और आकार में बड़े होते है | रोपाई के
लगभग 70 दिन के बाद इसकी पहली तुड़ाई की जा सकती है | यह किस्म वर्ती सीलीयम और
फ्यूजेरियम मुरझान के लिए प्रतिरोधी किस्म है |
एन. टी. डी. 5 :- यह बुआई के लगभग 70 से 90 दिन में पक जाती है और फल देना
शुरू कर देती है | इसके फल गोल , चमकीले , मध्यम से बड़े आकार के होते है | इसका फल
गूदेदार और लाल रंग का होता है | टमाटर की यह किस्म अधिक बढ़ने वाली होती है |
टमाटर की इस किम की खेती करने से हमे एक हेक्टयर की भूमि पर से 250 से 300 किवंटल
की उपज प्राप्त होती है |
tmater ki vibhinn kismen |
एन . डी. टी.-120 :- इस किस्म के फल का गूदा लाल और आकर्षक होता है | इसके
पौधे बौने होते है | इसके फल पत्तियों के नीचे एक गुच्छे में लगते है | टमाटर की
इस किस्म को बोने के बाद लगभग 75 से 80 दिन में फल लग जाते है | टमाटर की इस किस्म
की खेती करने से हमे एक हेक्टेयर भूमि पर से लगभग 250 से 300 किवंटल तक की अच्छी
उपज मिल जाती है |
एन . डी . टी 21 :- टमाटर की इस किस्म
को बोने के लगभग 70 से 90 दिन में फल लगने शुरू हो जाते है | यह एक अगेती किस्म है | जो जल्द ही बढ़ती है और
फल देती है |
टमाटर की आधुनिक किस्में :- इसमें निम्नलिखित किस्मों को उगाया जाता है |
1. नरेंद्र टमाटर 1, 2, 3,
2. बी. टी. 116 और 3 से 2
3. डी . वी. आर. टी.
4. आजाद टी . 6
5. के. एस. 118
6. एन. डी. टी. 1
7. बी. टी. 20 और 2- 1
8. आजाद टी. 5
9. एन. डी. टी. 3
आदि किस्मो को उगाया जाता है |
दिव्या संकर :- टमाटर की यह किस्म पछेता झुलसा
और आंख सदन रोग की रोधी होती है | इसके आलावा इसके फल एक लम्बी अवधि तक रहते है |
इसके खराब होने की आशंका नहीं होती है | टमाटर की सी किस्म को बोने के लगभग 75 से
90 दिनों में पक जाती है | जिसे हम उपयोग कर सकते है | टमाटर की इस किस्म का विकास
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के द्वारा किया गया है | टमाटर की इस
किस्म की खेती करने से हमे एक हेक्टेयर की भूमि पर से लगभग 40 से 50 टन की उपज
प्राप्त हो जाती है |
संकर की और अन्य जातियाँ :-
1. रुपाली टमाटर सुमन मंगला
2. रजनी वैशाली
3. शीतल टमाटर मनमोहन
4. रश्मि टमाटर सेंचुरी 1 और 2
5. टमाटर स्वर्ण
6. कर्नाटक
7. टमाटर सोनाली
8. आइ. ए. एच. एस. 88 .2
9. आइ. ए. एच. एस. 88 . 3
10.
आइ. ए. एच. एस. 88 .1
11.
पूसा नं :- 1
12.
पूसा नं :- 2
13.
पूसा नं :- 4
14.
टमाटर सुप्रिया
15.
डी . एच. टी. 4
16.
परिक्षण संकर नं 15 और 14
17.
एच. आइ 303
18.
अविनाश :- 2
19.
बी. एस. एस. :- 20
अर्का अभिजित
उन्नत किस्म की विदेशी जाति :- हमारे भारत में अनेक विदेशी
किस्मो की खेती की जाती है | इन विदेशी किस्मों को लोगों ने बहुत पसंद किया है | जिस
विदेशी किस्मों की खेती भारत में की जाती है उनके नाम इस प्रकार से है |
1. रोमा गैमेड
2. सु. एस. सी. २३८इटेलियन रेड
पियर बाल्कन
3. एस. सी. 142
आदि विदेशी किस्मो की खेती
भारत में की जाती है |
टमाटर के बीज बोने का समय
:- टमाटर को भारत में अलग – अलग भाग में अलग – अलग समय पर बोया जाता है | जैसे भारत के मैदानी भागों में इसकी बुआई साल
में दो बार की जाती है | पहली बुआई जून या जुलाई में और दूसरी बुआई नवम्बर और
दिसंबर के महीने में की जाती है | इसके आलावा पहाड़ी इलाके में इसकी बुआई मार्च और
अप्रैल के महीने में की जाती है | यह समय टमाटर की बुआई का अच्छा समय माना जाता है
|
टमाटर के बीज की मात्रा :-
टमाटर के जिस बीज में अंकुरण केने की 75 से 90 % की क्षमता होती है | उस बीज को
400 से 500 ग्राम की मात्रा को एक हेक्टेयर भूमि पर उगाया जाता है | 1 ग्राम में
लगभग 300 टमाटर के बीज होते है |
टमाटर की पौधशाला तैयार
करना :- जिस भूमि पर टमाटर की पौधशाला बनाई जा रही हो उस
भूमि में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद डालकर अच्छी तरह से जुताई करें | ताकि
मिटटी में गोबर की खाद अच्छी तरह मिल जाये | जब मिटटी भुरभुरी हो जाये तो 5 गुना
एक मीटर की 15 से 20 सेंटीमीटर भूमि की सतह से उठी हुई क्यारियां बना लें | क्यारियों
की लम्बाई अपनी इच्छा के अनुसार रखे | तैयार की हुई दो क्यारियों के बीच में एक
नाली अवश्य छोड़नी चाहिए | एक हेक्टेयर की भूमि के रोपाई करने के लिए 100 से 125
वर्ग मीटर में तैयार की गई पौध ही काफी होती है | टमाटर के बीजों को बोने से पहले
इन्हें कीटनाशक दवाओं से या गौमूत्र से उपचारित करना चाहिए | इसके लावा हम इसके
बीजों को नीम के तेल से भी उपचारित कर
सकते है | टमाटर के बीजों को उपचारित करने के बाद इन्हें तैयार की हुई नालियों में
छिड्ककर बोये जाते है या इन्हें एक लाइन में गड्डा खोदकर बोया जाता है | इन्हें
क्यारियों में 15 सेंटीमीटर की दुरी पर एक सेंटीमीटर का गड्डा खोदकर बोया जाता है
| टमाटर को एक और विधि से उगाया जाता है | टमाटर के बीजों को छिड्क दिया जाता है |
और उसके बाद गोबर की सड़ी हुई खाद डालकर बीजों को ढक दिया जाता है | बीजो को ढकने के बाद तुरंत ही इसकी सिंचाई
की जाती है |
टमाटर की खेती में आर्गनिक
खाद का प्रयोग :- टमाटर की अच्छी और अधिक उपज की प्राप्ति करने के लिए हमे इसकी
फसल में आर्गनिक खाद और कम्पोस्ट खाद का
प्रयोग करना चाहिए | टमाटर की फसल में 35 से 40 किवंटल अच्छी तरह से सडाई हुई गोबर
की खाद और अर्गिंक खाद, 2 बैग भू पावर वजन
50 किलो , 2 बैग माइक्रो फर्ट सिटी कम्पोस्ट वजन 40 किलोग्राम , 2 बैग माइक्रो नीम वजन 20 किलोग्राम , 2 बैग
माइक्रो भू पावर वजन 10 किलोग्राम , 2 बैग सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट वजन 10
किलोग्राम और लगभग 50 किलोग्राम अरंडी की खली आदि | इन सभी खादों को आपस में अच्छी
तरह से मिला लें | खाद के इस मिश्रण को खेत में बीज की बुआई से पहले एक समान
मात्रा में बिखेर दें | इसके बाद खेत की अच्छी प्रकार से जुताई करके तैयार कर लें
| खेत के तैयार हो जाने के बाद इसमें बुआई करें | बुआई के बाद जब फसल को कम से कम
20 से 25 दिन हो जाये तो इसमें 2 बैग सुपर गोल्ड मैग्नीशियम और माइक्रो झाझम की
500 मिलीलीटर की मात्रा में 500 लीटर पानी मिलाकर एक घोल बनाएं | इस प्रकार से
तैयार किये हुए घोल को किसी पम्प में डालकर फसल पर तर बतर करके छिडकाव करें | इस
घोल का दूसरा और तीसरा छिडकाव 20 से 25 दिन के अंतर पर करें |
सिंचाई करने का तरीका |
टमाटर की फसल में सिंचाई
करने का तरीका :- टमाटर की फसल में सिंचाई अवश्य करनी चाहिए | इसकी फसल में सिंचाई
का एक अपना अलग महत्व है | इसकी फसल में आवश्कता से अधिक और कम सिंचाई नहीं करनी
चाहिए | यह तम्टर की फसल के लिये हानिकारक हो सकता है | टमाटर की फसल में गर्मी के
मौसम में एक सप्ताह में एक बार सिंचाई करनी चाहिए | इसके आलावा सर्दी के मौसम में
10 दिन के अंतर पर सिंचाई करें |
टमाटर के खेत में से
खरपतवार को दूर करने का तरीका :- टमाटर की फसल में जल्दी ही छोटे खरपतवार उग जाते
है | जो भूमि में से उर्वरक शक्ति को
समाप्त कर देते है | इसलिए इसमें जल्दी – जल्दी निराई – गुड़ाई करनी चाहिए | टमाटर
के पौधे की जड़ उथली हुई होती है | इसलिए इस फसल में गहरी गुड़ाई ना करें | इससे
टमाटर की जड़ें कट सकती है | और हमारी फसल खराब हो सकती है |
टमाटर की फसल में लगने वाले
कीटों की रोकथाम करने के लिए :-
तम्बाकू की सुंडी :- यह कीट
टमाटर के पौधे की हरी – हरी पत्तियों और तनों को खा जाती है | जिससे टमाटर की फसल
खराब हो जाती है | जिससे टमाटर की पैदावार पर बुरा असर पड़ता है |
टमाटर की फसल को इस कीट से
बचाने के लिए एक उपाय है जो बहुत ही सरल है |
रोकथाम करने का तरीका :- नीम
के पेड़ की कुछ पत्तियों को लेकर इसका काढ़ा तैयार करें | काढ़ा तैयार करने के बाद
इसमें माइक्रो झाझम मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की
मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस दवा को बनाने के लिए आप
नीम के काढ़े के स्थान पर गौमूत्र का भी प्रयोग कर सकते है |
फल छेदक :- यह कीट फलों के
अंदर घुसकर फसल के गुदा वाले भाग को खा जाती है | इस कारण फल खराब हो जाते है | फलों
में छेद करने वाले कीटों का कुप्रभाव मार्च और अप्रैल के महीने में अधिक होता है |
इस कीट के प्रभाव से पैदावार में बहुत कमी आ जाती है | इसकी रोकथाम करना बहुत ही
आवश्यक है | इसके लिए एक उपाय है जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
रोकथाम करने का तरीका :- :- नीम का काढ़ा या
गौमूत्र को माइक्रो झाइम के साथ मिलाकर एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार मिश्रण की
250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने से फलों में
छेद करने वाले कीट का कुप्रभाव दूर हो जाता है |
Tmater Ki Fasal Ko Keeton Se Kaese Bachaayen |
इपिलेचना नामक कीट
:- यह कीट टमाटर के पत्तियों को खाकर इन्हें नुकसान पंहुचता है | इसकी रोकथाम करने
के लिए निम्न उपाय है |
रोकथाम करने के लिए
:- नीम के पेड़ की कुछ
पत्तियों को लेकर इसका काढ़ा तैयार करें | काढ़ा तैयार करने के बाद इसमें माइक्रो
झाझम मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी
पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस दवा को बनाने के लिए आप नीम के काढ़े के
स्थान पर गौमूत्र का भी प्रयोग कर सकते है | इस छिडकाव करने के बाद हम इप्लैचना नामक कीटों
के प्रभाव को दूर कर सकते है |
कटुआ कीट :- यह कीट भूमि के
अंदर छिपा रहता है | जो रात के समय निकलकर पौधे को जमीन की सतह से काटकर निचे गिरा
देता है | इसका कुप्रभाव केवल रात के समय ही होता है और दिन के समय यह भूमि में
वापिस चिप जाता है | इसकी रोकथाम करने का एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
रोकथाम करने के लिए :- इसके
लिए नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाकर इसमें गौमूत्र को मिलाकर के मिश्रण बनाएं | इस
मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा लेकर किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करने
से कटुआ नामक कीट से छुटकारा पाया जा सकता है |
जैसिड्स :- यह कीट पौधे की
हरी पत्तियों का रस चूस जाती है | जिसके कारण पत्तियाँ नीचे की और मुड़ जाती है | यह
फुदकने वाले कीट होते है | इसकी रोकथाम के लिए एक आसन सा उपाय है |
रोकथाम का तरीका :- गौमूत्र
में नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाकर मिला दें और एक अच्छा सा मिश्रण तैयार कर लें |
इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर
छिडकाव करने से जैसिड्स नामक कीट से मुक्ति मिल जाती है |
पौधे में लगने वाले रोग और
उस पर नियन्त्रण का उपाय :-
आद्र विगलन :- यह टमाटर में
लगने वाला एक भयंकर बीमारी होती है | इस रोग में पौधे के तने सड़ जाते है जिसके
कारण पौधा सुखकर मर जाता है | पौधे की इस बीमारी को रोकने के लिए एक उपाय है | जो
बहुत ही साधारण और सरल है |
रोकथाम के उपाय |
रोकथाम करने का तरीका :- नीम
का काढ़ा और गौमूत्र को एक साथ मिलाकर के अच्छा सा मिश्रण तैयार करें | तैयार किये
हुए मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में भरकर फसलों पर छिडकाव करें
| पौधे में हुए आद्र विगलन नामक रोग दूर हो जाता है |
पर्ण कुंचन :- पौधे में इस
बीमारी को एक सफेद मक्खी फैलाती है | यह एक विषाणु जन्य रोग है | इस बीमारी में
पौधे की पत्तियाँ नीचे की और मुड़ जाती है | जिसके कारण पौधा बौना रह जाता है | पौधे
में जब इस बीमारी की शुरुआत होती है तो पौधे की पत्तियां खुरदरी और मोटी हो जाती
है | यह इस बीमारी का लक्षण होता है | इस बीमारी में पैदावार में बहुत कमी आ जाती
है | इस बीमारी की रोकथाम के लिए निम्न
उपाय है |
रोकथाम का तरीका :- नीम के पेड़ की कुछ पत्तियों
को लेकर इसका काढ़ा तैयार करें | काढ़ा तैयार करने के बाद इसमें गौमूत्र मिलाकर एक
मिश्रण बनाएं | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर
फसलों पर छिडकाव करें | पौधे में हुए इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है |
बैक्टीरियल बिल्ट :- इस
बीमारी में पौधा मुरझाकर सुख जाता है | पौधे में यह रोग राल्सटेनिया सोलेनिशिय्श
नामक विषाणु से फैलता है | इस रोग का कुप्रभाव नमी और गर्म मौसम में अधिक होता है
| पौधे में इस बीमारी को दूर करने के लिए एक उपाय है |
रोकथाम करने के लिए :- :- नीम के पेड़ की कुछ पत्तियों को लेकर इसका काढ़ा तैयार करें
| काढ़ा तैयार करने के बाद इसमें माइक्रो झाझम मिलाकर एक मिश्रण बनाएं | इस तैयार
मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें |
इस दवा को बनाने के लिए आप नीम के काढ़े के स्थान पर गौमूत्र का भी प्रयोग कर भी कर
सकते है | इस प्रकार के मिश्रण के छिडकाव करने से पौधे में हुई इस बीमारी को हम
ठीक कर सकते है |
अगेता झुलसा :- पौधे में यह
बीमारी कवक के द्वारा फैलती है | इस रोग में पौधे की नीचले हिस्से वाली पत्तियां
पहले प्रभावित होती है | पत्तियों पर छोटे – छोटे पीले रंग और भूरे रंग के कोणाकार
और गोलाकार धब्बे बन जाते है | जो कुछ समय बाद बढ़कर सारी पत्तियों पर फैल जाता है
| जिससे पत्तियां सूख जाती है | जिस स्थान पर अधिक नमी होती है उस साथं पर इस
बीमारी का कुप्रभाव ज्यादा होता है |
पौधे में यह बीमारी
अल्टरनेरिया सोलेनाई , अल्टरनेरिया अल्टरनेटा और अल्टरनेरिया लाइको पारसी नामक कवक
के द्वारा होता है | पौधे को इस बीमारी से बचाने के लिए एक उपाय है | यह एक सरल और
साधारण उपाय है |
रोकथाम का उपाय :- गौमूत्र
में नीम की पत्तियों का काढ़ा बनाकर मिला दें और एक मिश्रण तैयार करें | इस तैयार
मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को पम्प में भरकर फसलों पर छिडकाव करें | इससे
पौधे में लगी बीमारी से छुटकारा मिल जाता है |
गुच्छा – मुच्छा रोग :- यह एक विषाणु जन्य रोग है | जो की एक प्रकार के
विषाणु के द्वारा फैलता है | टमाटर की फसल में लगने वाला यह एक भयंकर बीमारी है | इस रोग में पौधे की
वृद्धि रुक जाती है | और पत्तियां मोटी हो जाती है जिसके कारण इसकी आकृति बिगड़
जाती है | पौधे में जब यह बीमारी लग जाती है तो इसकी उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है |
इस बीमारी को रोकने का एक
ही उपाय है | जिसका वर्णन इस प्रकार से है |
रोकथाम का उपाय :- नीम की
पत्तियों का काढ़ा तैयार करके इसमें गौमूत्र को अच्छी तरह से मिला कर एक मिश्रण बनाये | इस तैयार
मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को पम्प में डालकर फसलों पर छिडकाव करें | इस
छिडकाव के प्रभाव से पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक हो जाती है |
पछेता झुलसा :- इस बीमारी
में पौधे की पत्तियों पर गहरे रंग के रंग – बिरंगे धब्बे पड़ जाते है | पौधे में यह
बीमारी फफूंदी के कारण फैलती है जिसे phytophthora इन्फेक्टंस नामक फफूंदी के नाम
से जाना जाता है | इस बीमारी की रोकथाम
करना बहुत आवश्यक है |
रोकथाम का उपाय :- :- नीम की पत्तियों का काढ़ा तैयार करके इसमें
गौमूत्र को अच्छी तरह से मिला कर एक
मिश्रण बनाये | इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को पम्प में डालकर
फसलों पर छिडकाव करें | इस छिडकाव के प्रभाव से पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक हो
जाती है |
जड़ गांठ सूत्र कृमि :- इस
बीमारी में ए की जड़ें फूल जाती है | इससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है और पौधे का
आकार छोटा ही रह जाता है | पौधे में यह रोग बीमारी सूत्र कृमि के कारण फैलता है |
इस बीमारी को ठीक करने के लिए एक उपाय है जो इस प्रकार से है |
रोकथाम के लिए उपाय :- जिस
खेत में टमाटर की फसल उगाई जा रही हो उस खेत में नीम की खली या लकड़ी का बुरादे की
25 किलोग्राम की मात्रा को खेत में डाल दें | यह मात्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए
काफी होती है | इसके आलावा हमे फसल चक्र की विधि का अनुसरण करना चाहिए |
बक आईराइट :- टमाटर के पौधे
में इस रोग का पहला प्रभाव निचले फलों पर पड़ता है | यह एक गुच्छे में एक या दो
फलों पर ही लगता है | इससे फलों के पर भूरे रंग के धब्बे हो जाते है | इस बीमारी
में पौधे की पत्तियों को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है | इस बीमारी को दूर करने के लिए निम्न उपाय है |
रोकथाम का उपाय :- नीम के पेड़ की कुछ पत्तियों को लेकर इसका काढ़ा
तैयार करें | काढ़ा तैयार करने के बाद इसमें माइक्रो झाझम मिलाकर एक मिश्रण बनाएं |
इस तैयार मिश्रण की 250 मिलीलीटर की मात्रा को किसी पम्प में डालकर फसलों पर
छिडकाव करें | इस दवा को बनाने के लिए आप नीम के काढ़े के स्थान पर गौमूत्र का भी
प्रयोग कर सकते है | इस प्रकार के छिडकाव
से पौधे में लगी हुई बीमारी ठीक हो जाती है |
Tmater ki Kheti Se Prapt Upaj | |
टमाटर की फसल तैयार होने के बाद इसकी कटाई और खुदाई करने का तरीका :- टमाटर की
फसल के पकने का समय उसके उगाये जाने के स्थान और भेजे जाने वाली जगह पर आधारित
होता है | टमाटर के पके हुए फलों की तुड़ाई निम्नलिखित चार अवस्थाओं में की जाती है
| 1. हरी अवस्था 2. गुलाबी अवस्था 3. पूरी तरह से पकी हुई अवस्था 4. पकी हुई
अवस्था
1. हरी अवस्था :- यह अवस्था
दूर बाजरों में भेजने के लिए अच्छी होती है |
2. गुलाबी अवस्था :- अपने आस –
पास के बाजारों में भेजने के लिए बेहतर होती है |
3. पूरी तरह से पकी हुई अवस्था
में :- टमाटर की इस अवस्था में इसका आचार और डिब्बों में बंद करने के लिए प्रयोग
किया जाता है |
4. पकी हुई अवस्था :- टमाटर की
इस अवस्था का उपयोग घर में बनने वाली सब्जियों में किया जाता है |
टमाटर की उपज की प्राप्ति :- टमाटर की एक
हेक्टेयर भूमि पर से लगभग 150 से 250 किवंटल तक की अच्छी उपज मिल जाती है | लेकिन
टमाटर की अधिक उपज की प्राप्ति के लिए
उन्नत किस्म के बीजो का उपयोग करना चाहिए और साथ घी साथ इसकी अच्छी तरह से देखभाल
करना चाहिए |
पलवार :- गन्ने की पत्ती या बगीचे की पत्तियों
को हम पलवार कहते है | खेत में पहली बार निराई करने के बाद पलवार बिछाने से हमे
टमाटर की अच्छी उपज प्राप्त होती है | इसके लिए पलवार की लगभग 5 सेंटीमीटर मोटी तह
होनी चाहिए |
फलों का बनना :- फलों को बनने के लिए पादप
नियंत्रकों का उपयोग करना चाहिए | टमाटर की फसल पर पर्ण कुंचन नामक रोग का प्रभाव
नहीं होना चाहिए | इसके लिए फसलों पर माइक्रो झाझम और सदा बहार का छिडकाव करना
चाहिए | इस प्रकार के छिडकाव करने से हमे फसल जल्दी मिलती है | ज्यादा गर्मी और
सर्दी के मौसम में टमाटर की फसल लेना मुश्किल होता है | इसलिए अधिक ठंड और गर्मी
के मौसम में टमाटरो की कीमत अधिक हो जाती है | गर्मियों के मौसम में जब टमाटर की
फसल पर फूल आने लग तो इसकी फसल पर माइक्रो झाझम और सदा बहार का छिडकाव करना चाहिए
| इसका छिडकाव करने के लिए माइक्रो झाझम की 500 मिलीलीटर की मात्रा में लगभग 500
लीटर पानी मिलाकर एक घोल बनाये और किसी पम्प में डालकर फसल पर छिडकाव करें | इस
छिडकाव से पौधे में किसी भी प्रकार की
बीमारी का प्रकोप न हो इसके साथ ही साथ पौधे पर बहुत सारे टमाटर लगते है और हमारी
फसल कम समय में पक जाती है |
टमाटर को सहारा देने के लिए |
टमाटर की फसल को सहारा देने के लिए :- फलों के
अच्छे और आकर्षक रंग और सड़ने से बचाने के लिए पौधे को सहारा देना बहुत जरूरी होता
है | इन पौधों को सहारा देने के लिए अरहर की लकड़ी या ढेंचा की लकड़ियों के छोटे –
छोटे को 15 सेंटीमीटर की दुरी पर भूमि के अंदर गाढ़ दें और इन लकड़ियों को पौधे के
साथ बांध दें | फसल की गुड़ाई करने के बाद पौधों की तनों पर मिटटी की परत चढ़ा देनी
चाहिए | इससे पौधे में मजबूती बनी रहती है |
टमाटर की उन्नत खेती करने का तरीका, Tmater
ki
Unnt Kheti Karne ka Tarika, Tmater ki Kismen Tmater ki Fasal
Ke Liye Upyukt Bhumi Tmater ki Fasal Mein Kharpatvar
Ko Kaese Roken, Tmater Ki Fasal Ko Keeton Se Kaese Bachaayen, Tmater
ki
Kheti Se Prapt Upaj |
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