भूमिका :- अलसी की खेती पूरे भारत में की जाती है | अलसी के पौधे को सर्दी की फसल के साथ उगाते है | अलसी को भारत में कई स्थानों पर तीसी के नाम से जाना जाता है | तीसी की हिमाचल प्रदेश में 6000 फीट की ऊंचाई पर खेती की जाती है | पूरे विश्व में तीसी के बीजों के रंग - रूप और आकार में विभिन्नता पाई गई है | तीसी सफेद , लाल और पीले रंग में पाई गई है | तीसी के बीजों से तेल और डंठल से फाईबर निकलता है जो कपड़ा बुनने के काम आती है | उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में तीसी की अत्यधिक खेती की जाती है | यह मौसम इसकी खेती के लिए उत्तम है |अलसी को भारत के अलग - अलग हिस्सों में अलग - अलग नामों से जाना जाता है | जैसे :-
अंग्रेजी भाषा में :- flax sheed
हिंदी भाषा में :- अलसी या तीसी
संस्कृत भाषा में :- अलसी , उमा , नील पुष्पि
गुजराती भाषा में :- अलसी
अरबी भाषा में :- कत्तान
फारसी भाषा में :- जागिरा
बंगाली भाषा में:- मर्शिना
मराठी भाषा में :- जवसू
अलसी का पेड़ का स्वरूप :- यह झाड़ीदार पौधा होता है | इसकी ऊंचाई लगभग 2 से 4 फुट की होती है |इसके पत्ते तीन शिराओं युक्त भालाकार और नुकीले होते है | तीसी के फूल आसमानी रंग के होते है | फल गोल घुंडीदार और पञ्च कोष्ट वाले होते है | इसके हर एक कोष्ठ में भूरे रंग के बीज होते है | तीसी के पौधे में सर्दी के मौसम में फूल और फल लगते है जो फरवरी या मार्च के महीने में सुख जाते है |
अलसी यानि तीसी के पेड़ में पाए जाने वाले रासायनिक तत्व :- तीसी के बीजों में तेल होता है | इसके बीजों में एक विषाक्त ग्लुकोसाइड नामक तत्व होता है | जिसके कारण इसके पौधे को खाने वाले पशुओं की मृत्यु हो जाती है | इन सभित्त्वों के आलावा तीसी के बीजों में प्रोटीन , म्युसिलेज , कुछ मोमिय पदार्थ , रालीय पदार्थ और शकर्रा के कुछ अंश पाए जाते है |
अलसी ( तीसी ) के गुण :- इसके प्रयोग से हम
किन बिमारियों को ठीक कर सकते है | अलसी के पौधे के सभी भागों को उपयोग में लाया जाता है | जैसे :-
1. अलसी का तेल:- अलसी के तेल का उपयोग करने से मलकारक सिन्ग्ध ग्राही , बलकारक कफ कास नाशक होता है |
अलसी का पत्ता :- इसके प्रयोग करने से कास श्वास और कफ वात नाश होता है | इसके पौधे के ताज़े हरे पत्ते की सब्जी बनाकर खाने से वात से पीड़ित रोगी को फायदा होता है |
अलसी के फायदे |
अलसी का फूल :- यह रक्त पित्त नाशक होता है |
अलसी या तीसी के का औषधि के रूप में किस प्रकार से किया जाता है |इसके बारे में कुछ जरूरी बातें :-
1. मस्तक का दर्द :- अलसी के बीजों को ठंडे पानी में बारीक़ पीस कर एक लेप बना लें | इस लेप को सिर पर लगाने से सिर का दर्द और शिरोव्रण को लाभ मिलता है |
कान के सुजन के लिए :- अलसी के पत्ते को प्याज के रस में पका लें | इस पके हुए रस को कान में डाल लें | इससे कान में आई हुई सुजन ठीक हो जाती है |
नींद न आने पर :- अलसी का तेल और अरंड के तेल को एक बराबर मात्रा में लें |
वात कफ का रोग :- अलसी के 50 ग्राम बीज को तवे पे अच्छी तरह से भुन लें | इसके बाद इसका बारीक़ चूर्ण बना लें | इसमें 50 ग्राम मिश्री , 10 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण और शहद मिलाकर छोटी - छोटी गोलियां बना लें | इन गोलियों का आकार मरीज की उम्र पर होता है यदि छोटा बच्चा हा तो इसके लिए ३ ग्राम की गोली बनाएं और यदि कोई बड़ा व्यक्ति है तो उसके लिए 6 ग्राम की गोली बनाएं | इस प्रकार बनाई हुई गोली को सुबह और शाम के समय खाएं | इससे फक से निजात मिलती है इस गोली का सेवन करने के एक घंटे के बाद ही पानी पीयें |
प्लीहा का रोग :- अलसी ( तीसी ) को थोडा सा भुन लें और इसे थोडा बारीक़ करके पीस लें | इस पीसे हुए अलसी में शहद मिलाकर लेने से शोथ की बीमारी ठीक हो जाती है |
अलसी के बीज से इलाज |
मूत्र विकार के लिए :- अलसी ( तीसी ) की 50 ग्राम की मात्रा और मुलहठी की ३ ग्राम की मात्रा लें | इन दोनों को दरदरा करके कूट लें | अब किसी मिटटी के बने हुए बर्तन में 125 ग्राम पानी डालकर इसमें कुटा हुआ पावडर डाल कर मंद अग्नि पर पका लें | पकते -पकते जब इस मिश्रण की मात्रा लगभग 50 ग्राम की रह जाये तो आंच से उतार कर ठंडा होने के लिए रख दें | थोडा गुनगुना रहने पर इसमें 2 ग्राम कलमी शोरो मिलाकर 2 - 2 घंटे के समय अन्तराल पे पीते रहें | इस विधि के प्रयोग से मूत्र विकार ठीक हो जाता है | ध्यान रहे कि इस मिश्रण की मात्रा को आप 10 से 15 दिन तक उपयोग कर सकते है |
अलसी के तेल को मूत्र के छेद में डालने से सुजाक पुय मेह का रोग मिटता है |
अलसी की 10 ग्राम की मात्रा और मुलहठी की 6 ग्राम की मात्रा लें | अब इन दोनों को अच्छी तरह से कुचल लें | अब किसी बर्तन में एक किलो पानी लें और इसमें कुटा हुआ मिश्रण मिला दें | पकते - पकते जब इस मिश्रण का आठवां भाग रह जाएँ तो इसे आंच से उतार कर ठंडा होने के लिए रख दें | इस प्रकार से सिद्ध किये हुए क्वाथ की 25 ग्राम की मात्रा में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीयें | इस प्रकार के क्वाथ का सेवन करने से पेशाब में होने वाली जलन दूर हो जाती है और पेशाब साफ से होता है |
अलसी का तेल |
अलसी यानि तीसी का बीज और मुलहठी को एक बराबर मात्रा मे लें | और हल्का कूट लें | अब एक मिटटी का बर्तन लें इसमें लगभग एक किलोग्राम उबलता हुआ पानी डालकर इसमें कुटे हुए अलसी और मुलहठी के मिश्रण को डालकर कुछ देर तक ढक कर रख दें | पानी के इस मिश्रण में लगभग 20 से 25 ग्राम कलमी शोरा मिला दें | इस प्रकार से तैयार किये हुए पानी को पुरे दिन में तीन - तीन घंटे के अंतर पे पीते रहें | इस विधि का उपयोग करने से मूत्र में खून आना , मवाद का बहना और सुरसुराहट होने जैसी परेशानी से निजात मिल जाती है |
संधि शूल :- अलसी के बीजों को ईसबगोल के साथ पीसकर लगाने से संधि शूल को फायदा मिलता है |
कटी शूल :- अलसी के तेल को थोडा सा गर्म कर लें | गर्म किये हुए तेल में शुंठी का चूर्ण मिलाकर मालिश करें | ऐसा करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है |
वीर्य की पुष्ठी करने के लिय :- तीसी यानि अलसी के साथ काली मिर्च का पावडर और शहद मिलाकर खाने से वीर्य गाढ़ा हो जाता है |
आग से जलने पर :- चुने से निथारा हुआ पानी और शुद्ध अलसी को एक साथ अच्छी तरह से मिक्स कर लें | ये एक सफेद रंग के मलहम जैसा लगता है | इस मलहम को आग से जले हुए स्थान पर लगाने से दर्द तो कम होता ही है साथ ही साथ इसका प्रयोग यदि रोजाना दो से तीन बार किया जाए तो जल्द ही आराम मिलता है |
फोड़ा होने पर :- अलसी को पानी में पीसकर इसमें थोडा सा जौ का सत्तू इसमें मिला दे |अब इन दोनों के मिश्रण में खट्टी दही के साथ लेप करें और उस स्थान को किसी कपड़े से बांध दें | ऐसा करने से फोड़ा पक जाता है |
अलसी के बीज के प्रकार |
यदि फोड़े में जलन होती हो या उसमे दर्द होता हो तो तिल और अलसी को भूनकर इसे गाय के दूध में मिलाकर उबाल लें | जब यह पक जाये तो इसे आंच से उतारकर ठंडा होने के लिए रख दें | जब यह्थ्न्दा हो जाये तो इसका लेप बनाकर फोड़े पर लगा लें | ऐसा करने से हमे फायदा मिलता है | इससे जलन और दर्द में आराम मिल जाता है |
तो इस प्रकार की विधि का उपयोग करके आप किसी भी बीमारी का इलाज कर सकते है | लेकिन बीमारी को ठीक करने के लिए अलसी की उचित मात्रा का ही प्रयोग करें|
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Bimariyon Ka Ilaj |
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